शहीद दिवस कविता – Shaheed Diwas Poem In Hindi – Poem on Martyrs of India

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इस आर्टिकल में आपको शहीद दिवस पर कविता मिलेगी जेसे की shaheed poem hindi, shahid diwas par kavita, shaheed diwas 2022 कब मनाया जाएगा,Martyr’s Day india, shahid diwas date आदि साथ ही आप इससे जुड़ी small poem, kavita, Shahid कवितायेँ, पोएम  व् शायरियाँ एक दूसरों को भेज सकते हैं।यह दिवस 23rd march और 30 January को मनाया जाता है।यह दिन शहीद-ए-आज़म भगत सिंह और मोहनदास करमचंद गांधी के मृत्यु पर उनको श्रद्धांजलि देने के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भारत के सभी सहिद soldier को सलामी दी जाती हैं और दो मिनट का मौन रखा जाता हैं और शहीदों पर स्पीच दी जाती हैं ।

Martyr’s Day पर आपको विभिन्न प्रकार की कविताएँ मिलेगी जेसे की आजादी की थी चाह बड़ी,स्वाधीनता के दीवाने थे, शहीद दिवस पर नमन,नस नस में थी आग दौड़ती,भारत माता के लाल थे वे,भारत माता के शान में बस,चल निकले मुश्किल राह बड़ी,गौरों का दम जो निकाला था, खुद को आँधी में पाला था आदि जिनमे से कुछ नीचे दर्शाई गई हैं।

उनको नमन हमारा

कभी नहीं संघर्ष से,
इतिहास हमारा हारा।
बलिदान हुए जो वीर जवां,
उनको नमन हमारा।।

बिना मतलब के वीरों ने,
दुर्बल को नहीं मारा।
जो शहीद हुए सरहद पर,
उनको नमन हमारा।।

उनकी राहों पर हम इन्हें,
चलना सिखाएंगे।
उनकी गाथा को कल,
ये बच्चे गाएंगे।।

पवित्र देश भारत जो,
जन-जन का है प्यारा।
जो बलिदान हुए जो वीर जवां,
उनको नमन हमारा।।

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वीर जवानों की शहादत

वीर जवानों की शहादत पर गूंज रहा था, सारा देश,
वही भगत सिंह थे, वही राजगुरु और वही थे सुखदेव,

भारत माता की आजादी की खातिर, धरे थे न जाने उन्होंने कितने ही भेष
लहूलुहान हुई जा रही थी भूमि अपनी और बादलों में छाई हुई थी लालिमा,

आजादी-आजादी के स्वरों से गूंज रहा था सारा जहाँ,
इन वीर शहीदों की कुर्बानी से आँखे सबकी भर आई थी,

जब देश के खातिर उन्होंने अपनी कीमती जान गंवाई थी,
वो कल भी थे वो आज भी है अस्तित्व उनका अमर रहेगा

कुर्बानियां कल भी होती थीं और ये सिलसिला यूँ ही जारी रहेगा
नमन है उनकी शहादत को, सर झुके हैं देख उनका ज़ज्बा,

वीर जवानों की शहादत पर आज भी है, मेरा देश कुरबां।।

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मैं अमर शहीदों का चारण

मैं अमर शहीदों का चारण
उनके गुण गाया करता हूँ
जो कर्ज राष्ट्र ने खाया है,
मैं उसे चुकाया करता हूँ।

यह सच है, याद शहीदों की हम लोगों ने दफनाई है
यह सच है, उनकी लाशों पर चलकर आज़ादी आई है,
यह सच है, हिन्दुस्तान आज जिन्दा उनकी कुर्वानी से
यह सच अपना मस्तक ऊँचा उनकी बलिदान कहानी से।

वे अगर न होते तो भारत मुर्दों का देश कहा जाता,
जीवन ऍसा बोझा होता जो हमसे नहीं सहा जाता,
यह सच है दाग गुलामी के उनने लोहू सो धोए हैं,
हम लोग बीज बोते, उनने धरती में मस्तक बोए हैं।

इस पीढ़ी में, उस पीढ़ी के
मैं भाव जगाया करता हूँ।
मैं अमर शहीदों का चारण
उनके यश गाया करता हूँ।

यह सच उनके जीवन में भी रंगीन बहारें आई थीं,
जीवन की स्वप्निल निधियाँ भी उनने जीवन में पाई थीं,
पर, माँ के आँसू लख उनने सब सरस फुहारें लौटा दीं,
काँटों के पथ का वरण किया, रंगीन बहारें लौटा दीं।

उनने धरती की सेवा के वादे न किए लम्बे—चौड़े,
माँ के अर्चन हित फूल नहीं, वे निज मस्तक लेकर दौड़े,
भारत का खून नहीं पतला, वे खून बहा कर दिखा गए,
जग के इतिहासों में अपनी गौरव—गाथाएँ लिखा गए।
उन गाथाओं से सर्दखून को
मैं गरमाया करता हूँ।
मैं अमर शहीदों का चरण
उनके यश गाया करता हूँ।

है अमर शहीदों की पूजा, हर एक राष्ट्र की परंपरा
उनसे है माँ की कोख धन्य, उनको पाकर है धन्य धरा,
गिरता है उनका रक्त जहाँ, वे ठौर तीर्थ कहलाते हैं,
वे रक्त—बीज, अपने जैसों की नई फसल दे जाते हैं।

इसलिए राष्ट्र—कर्त्तव्य, शहीदों का समुचित सम्मान करे,
मस्तक देने वाले लोगों पर वह युग—युग अभिमान करे,
होता है ऍसा नहीं जहाँ, वह राष्ट्र नहीं टिक पाता है,
आजादी खण्डित हो जाती, सम्मान सभी बिक जाता है।
यह धर्म—कर्म यह मर्म
सभी को मैं समझाया करता हूँ।
मैं अमर शहीदों का चरण
उनके यश गाया करता हूँ।

पूजे न शहीद गए तो फिर, यह पंथ कौन अपनाएगा?
तोपों के मुँह से कौन अकड़ अपनी छातियाँ अड़ाएगा?
चूमेगा फन्दे कौन, गोलियाँ कौन वक्ष पर खाएगा?
अपने हाथों अपने मस्तक फिर आगे कौन बढ़ाएगा?

पूजे न शहीद गए तो फिर आजादी कौन बचाएगा?
फिर कौन मौत की छाया में जीवन के रास रचाएगा?
पूजे न शहीद गए तो फिर यह बीज कहाँ से आएगा?
धरती को माँ कह कर, मिट्टी माथे से कौन लगाएगा?
मैं चौराहे—चौराहे पर
ये प्रश्न उठाया करता हूँ।
मैं अमर शहीदों का चारण
उनके यश गाया करता हूँ।
जो कर्ज ने खाया है, मैं चुकाया करता हूँ।

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युद्ध में जख्मी सैनिक

युद्ध में जख्मी सैनिक साथी से कहता है:

‘साथी घर जाकर मत कहना,संकेतो में बतला देना,

यदि हाल मेरी माता पूछे तो, जलता दीप बुझा देना!

इतने पर भी न समझे तो दो आंसू तुम छलका देना!!

यदि हाल मेरी बहना पूछे तो, सूनी कलाई दिखला देना!

इतने पर भी न समझे तो, राखी तोड़ दिखा देना !!

यदि हाल मेरी पत्नी पूछे तो, मस्तक तुम झुका लेना!

इतने पर भी न समझे तो, मांग का सिन्दूर मिटा देना!!

यदि हाल मेरे पापा पूछे तो, हाथों को सहला देना!

इतने पर भी न समझे तो, लाठी तोड़ दिखा देना!!

यदि हाल मेरा बेटा पूछे तो, सर उसका सहला देना!

इतने पर भी न समझे तो, सीने से उसको लगा लेना!!

यदि हाल मेरा भाई पूछे तो, खाली राह दिखा देना!

इतने पर भी न समझे तो, सैनिक धर्म बता देना!!

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