नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध 2022 – Essay on Netaji Subhas Chandra Bose in Hindi- सुभाष चंद्र बोस एस्से

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध 2018

इस साल नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी की 125 वीं जन्म वर्षगांठ हैं यानी की जयंती है| इस साल नेताजी की जयंती 23 जनवरी 2022 को मनाई जाएगी| अक्सर स्कूल के बच्चो को कहा जाता है की नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध व सुभाष चंद्र बोस जीवनी के ऊपर कुछ लाइन लिखें यानी की few sentences on Netaji Subash Chandra Bose in Hindi & English. आज हम आपके सामने नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर निबंध (निबन्ध) पेश करने जा रहे हैं जिसे आप पीडीऍफ़ में डाउनलोड कर सकते हैं| आइये देखें कुछ subhash chandra bose ke upar nibandh jo की hindi language, composition, short paragraph, hindi font यानी की हिंदी भाषा में होगी|नेताजी को हमारा शत-शत नमन, जय हिन्द! जय भारत! भारत माता की जय!

सुभाष चन्द्र बोस निबंध 100 शब्द  (100 words)

Essay on Netaji Subhas Chandra Bose in Hindi- सुभाष चंद्र बोस एस्से

“नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ और इनका निधन 18 अगस्त 1945 में हुआ था। जब इनकी मृत्यु हुयी तो ये केवल 48 वर्ष के थे। वो एक महान भारतीय राष्ट्रवादी नेता थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत की आजादी के लिये द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बड़ी हिम्मत से लड़ा था। नेताजी 1920 और 1930 के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्वच्छंदभाव, युवा और कोर नेता थे। वो 1938 में कांग्रेस अध्यक्ष बने हालांकि 1939 में उन्हें हटा दिया गया था। नेताजी भारत के एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने बहुत संघर्ष किया और एक बड़ी भारतीय आबादी को स्वतंत्रता संघर्ष के लिये प्रेरित किया।”

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का व्यक्तित्व और कृतित्व

नेताजी की जयंती के उपलक्ष में हमने सुभाष चंद्र बोस के बारे में जानकारी दी हुई है| सुभाष चन्द्र बोस जयंती की जानकारी में आप उनके जीवन परिचय को जान सकते हैं| नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का आहवान – तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा!

“नेताजी सुभाष चन्द्र का जन्म 23 जनवरी, 1897 में कटक ( उड़ीसा ) में हुआ । वह एक मध्यम वर्गीय परिवार से सम्बन्ध रखते थे । 1920 में वह उन गिने – चुने भारतीयों में से एक थे, जिन्होंने आई.सी.एस. परीक्षा उत्तीर्ण की । 1921 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने । पुन: 1939 त्रिपुरा सेशन कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये ।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भारतीय राष्ट्रीय संग्राम में सबसे अधिक प्रेरणा के स्रोत रहे हैं । यह वह व्यक्ति हैं जिन्होने कहा था, ” तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।” और इस नारे के तुरन्त बाद सभी जाति और धर्मों के लोग खून बहाने के लिए आ खड़े हो गए । इतना अधिक वह लोग अपने नेता से प्रेम रखते थे और उनके मन में नेताजी के लिए श्रद्धा थी ।

उनके पिता जानकीनाथ एक प्रसिद्ध वकील थे और ऊनकी माता प्रभा देवी धार्मिक थीं। सुभाष चन्द्र बोस बचपन से ही मेधावी छात्र थे । उन्होंने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया । कॉलेज में रहते हुए भी वह स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेते रहे जिसके कारण उन्हें कॉलेज से निकाल दिया ।

एक बार तो उन्होंने अपने इग्लिश अध्यापक की भारत के विरूद्ध की गयी टिप्पणी का कड़ा विरोध किया । जब उनको कॉलेज से निकाल दिया गया तब आशुतोष मुखजीं ने उनका दाखिला ‘ स्कोटिश चर्च कॉलेज ‘ में कराया । जहाँ से उन्होंने दर्शनशास्त्र में प्रथम श्रेणी में बी.ए. पास किया ।

उसके बाद वह भारतीय नागरिक सेवा की परीक्षा में बैठने के लिए लंदन गए और उस परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया । साथ ही साथ उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में एम.ए. किया । क्योंकि वह एक राष्ट्रवादी थे इसलिए ब्रिटिश अंग्रेजों के राज्य में काम करने से इनकार कर दिया ।

उसके तत्पश्चात् उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय संग्राम में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया । उन्होंने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में देशबंधु चितरंजनदास के सहायक के रूप में कई बार स्वयं को गिरफ्तार कराया । कुछ दिनों के बाद उनका स्वास्थ्य भी गिर गया । परन्तु उनकी दृढ इच्छा शक्ति में कोई अन्तर नहीं आया ।

उनके अन्दर राष्ट्रीय भावना इतनी जटिल थी कि दूसरे विश्वयुद्ध में उन्होंने भारत छोड़ने का फैसला किया । वह जर्मन चले गए और वहाँ से फिर 1943 में सिंगापुर गए जहाँ उन्होंने इण्डियन नेशनल आर्मी की कमान संभाली ।
जापान और जर्मनी की सहायता से उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने के लिए एक सेना का गठन किया जिसका नाम उन्होंने ” आजाद हिन्द फौज ” रखा । कुछ ही दिनों में उनकी सेना ने भारत के अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह नागालैण्ड और मणिपुर में आजादी का झण्डा लहराया ।

किन्तु जर्मनी और जापान की द्वितीय विश्वयुद्ध में हार के बाद आजाद हिन्द फौज को पीछे हटना पड़ा । किन्तु उनकी बहादुरी और हिम्मत यादगार बन गयी । आज भी हम ऐसा विश्वास करते हैं कि भारत को आजादी आजाद हिन्द फौज के सिपाहियों की बलिदानों के बाद मिली है ।

ऐसा माना जाता है कि 18 अगस्त, 1945 को उनकी मृत्यु एक विमान दुर्घटना में हो गयी । लेकिन आज तक नेताजी की मौत का कोई सुबूत नहीं मिला । आज भी कुछ लोगों का विश्वास है कि वह जीवित हैं ।”

Short Essay on Subash Chandra Bose (150 words)

1. नेताजी सुभाष चंद्र बोस के व्यक्तित्व:

“सुभाष चन्द्र बोस एक महान स्वतंत्रता सेनानी और देशभक्त थे। इनका जन्म एक अमीर हिन्दू कायस्थ परिवार में 23 जनवरी 1897 को कटक में हुआ। ये जानकीनाथ बोस (पिता) और प्रभावती देवी (माता) के पुत्र थे। अपनी माता-पिता के 14 संतानों में से ये 9वीं संतान थे। इन्होंने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा कटक से ली जबकि मैट्रिकुलेशन डिग्री कलकत्ता से और बी.ए. की डिग्री कलकत्ता यूनिवर्सिटी (1918 में) से प्राप्त की।

आगे की पढ़ाई के लिये 1919 में बोस इंग्लैंड चले गये। नेताजी चितरंजन दास (एक बंगाली राजनीतिक नेता) से बहुत ज्यादा प्रभावित थे और जल्द ही भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष से जुड़ गये। स्वराज नामक एक समाचार पत्र के माध्यम से उन्होंने लोगों के सामने अपने विचार प्रकट करना शुरु किये। उन्होंने ब्रिटिश शासन की खिलाफ़त की और भारतीय राजनीति में रुचि रखने लगे। सक्रिय भागीदारी के कारण, इन्हें ऑल इंडिया युवा कांग्रेस अध्यक्ष और बंगाल राज्य कांग्रेस के सेक्रेटरी के रुप में चुना गया। इन्होंने अपने जीवन में बहुत सारी कठिनाईयों का सामना किया लेकिन कभी-भी निराश नहीं हुए।”

2.नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर शॉर्ट एस्से 

‘नेताजी’ के नाम से विख्यात सुभाष चंद्र बोस एक महान नेता थे जिनके अंदर देश-भक्ति का भाव कूट-कूट कर भरा हुआ था । नेताजी का जन्म सन् 1897 ई॰ के जनवरी माह की तेईस तारीख को एक धनी परिवार में हुआ था ।

देश को अंग्रेजी दासता से मुक्त कराने का सपना संजोए नेता जी कांग्रेस के सदस्य बन गए ।  वे गाँधी जी के अहिंसा के मार्ग से पूरी तरह सहमत नहीं थे । ” तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा ” का प्रसिद्‌ध नारा नेता जी द्‌वारा दिया गया था ।

जर्मनी से पर्याप्त सहयोग न मिल पाने पर नेताजी जापान आए । यहाँ उन्होंने कैप्टन मोहन सिंह एवं रासबिहारी बोस द्‌वारा गठित आजाद हिंदी फौज की कमान सँभाली । वे पुन: जापान की ओर हवाई जहाज से जा रहे थे कि रास्ते में जहाज के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से उनकी मृत्यु हो गई ।

उनकी मृत्यु के साथ ही राष्ट्र ने अपना एक सच्चा सपूत खो दिया ।नेताजी का बलिदान इतिहास के पन्नों पर अजर-अमर है । स्वतंत्रता के लिए उनका प्रयास राष्ट्र के लिए उनके प्रेम को दर्शाता है । हमारा कर्तव्य है कि हम उनके बलिदान को व्यर्थ न जाने दें और सदैव देश की एकता, अखंडता व विकास के लिए कार्य करते रहें ।

3.Essay on Subhash Chandra Bose in Hindi

‘सुभाष चन्द्र बोस’ वह नाम है जो शहीद देशभक्तों के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा है।
सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा प्रांत में कटक में हुआ था। उनके पिता श्री जानकी दास बोस एक प्रसिद्ध वकील थे। आई.सी.एस. की परीक्षा उर्तीण करके इन्होंने अपनी योग्यता का परिचय दिया।

देश के लिये अटूट प्रेम के कारण यह अंग्रेजों की नौकरी नहीं कर सके। बंगाल के देशभक्त चितरंजन दास की प्ररेणा से यह राजनीति में आये। 1939 में यह कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये। उन्होंने पूर्ण स्वराज्य का लक्ष्य रखा। उनका नारा थ ‘जय हिन्द’। जापान में उन्होंने ‘आजाद हिन्द फौज’ का संगठन किया। इनकी फौज ने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया। जापान में परमाणु बम गिरने से आजाद हिन्द फौज को हथियार डालने पड़े।

नेताजी भारत को एक महान विश्व शक्ति बनाना चाहते थे। उन्होंने अंडमान निकोबार को स्वतंत्र कराया। किन्तु दुर्भाग्यवश एक विमान दुर्घटना में उनका देहान्त हो गया।‘बंगाल के बाघ’ कहे जाने वाले नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ‘अग्रणी’ स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। उनके नारों ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ से युवा वर्ग में एक नये उत्साह का प्रवाह हुआ था।

Subhash Chandra Bose Nibandh in Hindi Pdf Download

“सुभाष चन्द्र बोस देश के एक महान और बहादुर नेता थे जो अपने कड़े संघर्षों की वजह से नेताजी के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनका जन्म 23 जनवरी 1897 में एक हिन्दू परिवार में कटक में हुआ था। वो अपने बचपन से ही बहुत बहादुर और प्रतिभाशाली थे साथ ही शारीरिक रुप से भी वो बहुत मजबूत थे। वो हमेशा हिंसा में भरोसा करते थे और एक बार तो उन्होंने अपने यूरोपियन स्कूल प्रोफेसर की पिटाई कर दी थी। बाद में सजा के रुप में उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था। 1918 में इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्रथम स्थान में बी.ए. की परीक्षा पास की और आगे की पढ़ाई के लिये इंग्लैंड के कैंब्रिज़ यूनिवर्सिटी चले गये। वो हमेशा एक उच्च अधिकारी के रुप में अपने देश की सेवा करना चाहते थे।

ब्रिटिश शासन से आजादी के लिये अपने देश की सेवा करने के लिये, ये कांग्रेस के आंदोलन से जुड़ गये। 1939 में उन्हें कांग्रेस के अध्यक्ष के रुप में चुना गया लेकिन बाद में कांग्रेस नीतियों के साथ भिन्नता होने के कारण हटा दिये गये। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वो भारत से फरार हो गये और जर्मनी से मदद के लिये कहा, जहाँ हिटलर के द्वारा दो वर्ष के लिये उन्हें मिलिट्री ट्रेनिंग दी गयी। वहाँ उन्होंने जर्मनी, इटली और जापान से युद्ध के कैदियों और भारतीय रहवासियों को प्रशिक्षण के द्वारा अपनी भारतीय राष्ट्रीय सेना बनायी। अच्छे मनोबल और अनुशासन के साथ एक सच्ची भारतीय राष्ट्रीय सेना (अर्थात् आजाद हिन्द फौज) बनाने में वो सफल हुए।”

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Subhash Chandra Bose Marathi Nibandh – सुभाष चंद्र बोस पर मराठी निबंध

नेताजी सुभाष चंद्र बोस मराठी माहितीलिखें:

23 जानेवारी 1897 हा दिवस जागतिक इतिहासातील सुवर्ण अक्षरात कोरलेला आहे. या दिवशी स्वातंत्र्य चळवळीचे महान नायक सुभाषचंद्र बोस यांचा जन्म कटक येथील प्रसिद्ध वकील जानकीनाथ आणि प्रभावतीदेवी यांच्याशी झाला.
इंग्रजांच्या दडपशाहीचा निषेध म्हणून त्याच्या वडिलांनी ‘रायबहादूर’ ही पदवी परत केली. यामुळे सुभाषच्या मनात ब्रिटिशांविषयी कटुता निर्माण झाली. ब्रिटिशांना भारताबाहेर हाकलून देण्यासाठी आणि राष्ट्रवादाच्या मार्गावर भारत स्वतंत्र करण्यासाठी आता सुभाषने आत्मनिर्णय घेतला आहे.

सुभाष यांनी आयसीएस परीक्षा उत्तीर्ण झाल्यानंतर आयसीएसचा राजीनामा दिला. या विषयावर, त्याच्या वडिलांनी त्यांचे मनोबल वाढविले आणि म्हणाले- ‘तुम्ही आधीच उपवासाचा उपवास घेतला असेल तर या मार्गापासून कधीही भटकू नका.’

डिसेंबर 1927 मध्ये कॉंग्रेसचे राष्ट्रीय सरचिटणीस झाल्यानंतर ते 1938 मध्ये कॉंग्रेसचे राष्ट्रीय अध्यक्ष म्हणून निवडले गेले. ते म्हणाले होते- माझी इच्छा आहे की आपण महात्मा गांधी यांच्या नेतृत्वात स्वातंत्र्यासाठी लढावे. आमचा लढा फक्त ब्रिटीश साम्राज्यवादाबरोबर नाही तर जागतिक साम्राज्यवादाशी आहे. हळूहळू सुभाष यांचे कॉंग्रेसवरील आकर्षण विरघळू लागले.

सुभाष यांनी 16 मार्च 1939 रोजी आपल्या पदाचा राजीनामा दिला. सुभाष यांनी स्वातंत्र्य चळवळीला नवा मार्ग देऊन तरुणांना संघटित करण्यासाठी मनापासून प्रयत्न सुरू केले. त्याची सुरुवात July जुलै १ 194 .3 रोजी सिंगापूर येथे झालेल्या ‘इंडियन स्वातंत्र्य परिषद’ ने झाली.

‘आझाद हिंद फौज’ याची 5 जुलै 1943 रोजी विधिवत स्थापना झाली. २१ ऑक्टोबर १ 194 .3 रोजी आशियाच्या वेगवेगळ्या देशांमध्ये राहणार्‍या भारतीयांच्या गटाचे आयोजन करून आणि तात्पुरते स्वतंत्र भारत सरकार स्थापन करून नेताजींना स्वातंत्र्य मिळविण्याचा आपला संकल्प कळला.

१२ सप्टेंबर १ 194 .4 रोजी शहीद यतींद्र दास यांच्या स्मृतिदिनानिमित्त जयंती हॉल, रंगून येथे नेताजींनी अतिशय मार्मिक भाषण केले – ‘आता आपले स्वातंत्र्य निश्चित आहे, पण स्वातंत्र्य त्यागाची मागणी करतो. तू मला रक्त दे, मी तुला स्वातंत्र्य देईन. ‘ हे असे वाक्य होते जे देशातील तरूणांमध्ये फुटले, ज्याचा उल्लेख केवळ भारतामध्येच नाही तर जगाच्या इतिहासातही सुवर्ण अक्षरांमध्ये आहे.

१ August ऑगस्ट १ 45 .45 रोजी टोकियोला जाण्यासाठी नेताजींचे विमान तायहोकू विमानतळावर कोसळले आणि देशाच्या प्रेमाची दैवी ज्योत पेटवून मदर इंडिया अमरत्व प्राप्त झाले.

Subhash Chandra Nose par Nibandh In Hindi Language

भारतीय इतिहास में सुभाष चन्द्र बोस एक सबसे महान व्यक्ति और बहादुर स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत के इतिहास में स्वतंत्रता संघर्ष के लिये दिया गया उनका महान योगदान अविस्मरणीय हैं। वो वास्तव में भारत के एक सच्चे बहादुर हीरो थे जिसने अपनी मातृभूमि की खातिर अपना घर और आराम त्याग दिया था। वो हमेशा हिंसा में भरोसा करते थे और ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता पाने के लिये सैन्य विद्रोह का रास्ता चुना।

“उनका जन्म एक समृद्ध हिन्दू परिवार में 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था। उनके पिता जानकी नाथ बोस थे जो एक सफल बैरिस्टर थे और माँ प्रभावती देवी एक गृहिणी थी। एक बार उन्हें ब्रिटिश प्रिसिंपल के ऊपर हमले में शामिल होने के कारण कलकत्ता प्रेसिडेंसी कॉलेज से निकाल दिया गया था। उन्होंने प्रतिभाशाली ढंग से आई.सी.एस की परीक्षा को पास किया था लेकिन उसको छोड़कर भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई से जुड़ने के लिये 1921 में असहयोग आंदोलन से जुड़ गये।

नेताजी ने चितरंजन दास के साथ काम किया जो बंगाल के एक राजनीतिक नेता, शिक्षक और बंगलार कथा नाम के बंगाल सप्ताहिक में पत्रकार थे। बाद में वो बंगाल कांग्रेस के वालंटियर कमांडेंट, नेशनल कॉलेज के प्रिंसीपल, कलकत्ता के मेयर और उसके बाद निगम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रुप में नियुक्त किये गये। अपनी राष्ट्रवादी क्रियाकलापों के लिये उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा लेकिन वो इससे न कभी थके और ना ही निराश हुए। नेताजी कांग्रेस के अध्यक्ष के रुप में चुने गये थे लेकिन कुछ राजनीतिक मतभेदों के चलते गांधी जी के द्वारा उनका विरोध किया गया था। वो पूर्वी एशिया की तरफ चले गये जहाँ भारत को एक स्वतंत्र देश बनाने के लिये उन्होंने अपनी “आजाद हिन्द फौज” को तैयार किया।”

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सुभाष चंद्र बोस निबंध – Long Essay

भूमिका : देश की स्वतंत्रता के लिए भारतियों ने जिस यज्ञ को शुरू किया था उसमें जिन-जिन स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया था उसमें सुभाष चन्द्र बोस भी थे। सुभाष चन्द्र बोस जी का नाम बहुत ही स्नेह और श्रद्धा के साथ लिया जाता है।

वीर पुरुष हमेशा एक ही बार मृत्यु का वरण करते हैं लेकिन वे अमर हो जाते हैं उनके यश और नाम को मृत्यु मिटा नहीं पाती है। सुभाष चन्द्र बोस जी ने स्वतंत्रता के लिए जिस रस्ते को अपनाया था वह सबसे अलग था। स्वतंत्रता की बलिवेदी पर मर मिटने वाले वीर पुरुषों में से सुभाषचन्द्र बोस का नाम अग्रगण्य है।

वे अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध करके देश को आजाद कराना चाहते थे। बोस जी ने भारतवासियों का आह्वान किया ‘ तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हें आजादी दूंगा ‘। सुभाष चन्द्र बोस जी की इस दहाड़ से अंग्रेजों की सत्ता हिलने लगी थी। उनकी इसी आवाज के पीछे लाखों हिन्दुस्तानी लोग कुर्बान होने के लिए तत्पर हो गये थे।

जन्म : नेता सुभाष चन्द्र बोस जी का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा प्रान्त के कटक में हुआ था। इनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस था और माता का नाम प्रभावती बोस था। इनके पिता एक वकील थे और बंगाल विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे थे। नेता जी अपने 14 बहन-भाइयों में से नौवीं संतान थे। सुभाष चन्द्र जी के 7 भाई और 6 बहनें भी थीं। अपने बहन भाइयों में से सबसे ज्यादा लगाव उन्हें शरदचंद्र बोस से था।

शिक्षा : बोस जी को बचपन से ही पढने-लिखने का बहुत शौक था। बोस जी की प्रारम्भिक शिक्षा कटक के एक प्रतिष्ठित विद्यालय रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में हुई थी। मैट्रिक की परीक्षा बोस जी ने कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कालेज से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी।

बोस जी सन् ने 1915 में बीमार होने के बाद भी 12 की परीक्षा को द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण किया था। अंग्रेजी में उनके इतने अच्छे नम्बर आए थे कि परीक्षक को विवश होकर यह कहना ही पड़ा था कि ‘ इतनी अच्छी अंग्रेजी तो मैं स्वंय भी नहीं लिख सकता ‘। बोस जी ने सन् 1916 में अपनी आगे की पढाई के लिए कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया जहाँ पर इनकी मुलाकात डॉ सुरेश बाबू से हुई थी।

उन्होंने कलकत्ता के स्काटिश कालेज से ही सन् 1919 में बी० ए० की परीक्षा को प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण किया था। बी०ए० की परीक्षा के बाद पिता के आदेश पर उन्हें आई०सी०एस० की परीक्षा के लिए इंग्लैण्ड जाना पड़ा था। इंग्लेंड में इन्हें कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में प्रवेश लेना पड़ा था और वहीं से आई०सी०एस० की परीक्षा को उत्तीर्ण करने के बाद स्वदेश लौटे और यहाँ एक उच्च पदस्थ अधिकारी बन गए।

जीवन : सुभाष चन्द्र बोस जी की मुलाकात सुरेश बाबू से प्रेसिडेंसी कॉलेज में हुई थी। सुरेश बाबू देश-सेवा हेतु उत्सुक युवकों का संगठन बना रहे थे। क्योंकि युवा सुभाष चन्द्र बोस में ब्रिटिश हुकुमत के विरुद्ध विद्रोह का कीड़ा पहले से ही कुलबुला रहा था इसी वजह से उन्होंने इस संगठन में भाग लेने में बिलकुल भी देरी नहीं की थी।

यहीं पर उन्होंने अपने जीवन को देश सेवा में लगाने की कठोर प्रतिज्ञा ली थी। सुभाष चन्द्र बोस जी को कलेक्टर बनकर ठाठ का जीवन व्यतीत करने की कोई इच्छा नहीं थी। उनके परिवार वालों ने उन्हें बहुत समझाया, कई उदाहरणों और तर्कों से सुभाष चन्द्र जी की रह को मोड़ने की कोशिश की लेकिन परिवार वाले किसी भी प्रयत्न में सफल नहीं हुए।

सुभाष चन्द्र बोस एक सच्चे सेनानी थे। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में बोस जी का एक महत्वपूर्ण योगदान रहा था। सुभाष चन्द्र बोस जी ने गाँधी जी के विपरीत हिंसक दृष्टिकोण को अपनाया था। बोस जी ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए क्रांतिकारी और हिंसक तरीके की वकालत की थी। बोस जी ने भारतीय कांग्रेस से अलग होकर आल इण्डिया फारवर्ड की स्थापना की थी।

स्वतन्त्रता आन्दोलन में प्रवेश : सुभाष चन्द्र बोस जी अरविन्द घोष और गाँधी जी के जीवन से बहुत अधिक प्रभावित थे। सन् 1920 में गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन चलाया हुआ था जिसमें बहुत से लोग अपना-अपना काम छोडकर भाग ले रहे थे। इस आन्दोलन की वजह से लोगों में बहुत उत्साह था।

सुभाष चन्द्र बोस जी ने अपनी नौकरी को छोडकर आन्दोलन में भाग लेने का दृढ निश्चय कर लिया था। सन् 1920 के नागपुर अधिवेशन ने उन्हें बहुत प्रभावित किया था। 20 जुलाई , 1921 में सुभाष चन्द्र बोस जी गाँधी जी से पहली बार मिले थे। सुभाष चन्द्र बोस जी को नेताजी नाम भी गाँधी जी ने ही दिया था।

गाँधी जी उस समय में स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे जिसमें लोग बहुत ही बढ़-चढ़कर भाग ले रहे थे। क्योंकि बंगाल में असहयोग आंदोलन का नेतृत्व दासबाबू कर रहे थे इसलिए गाँधी जी ने बोस जी को कलकत्ता जाकर दासबाबू से मिलने की सलाह दी। बोस जी कलकत्ता में असहयोग आंदोलन में दासबाबू के सहभागी बन गए थे।

सन् 1921 में जब प्रिंस ऑफ़ वेल्स के भारत आने पर उनके स्वागत का पूरे जोर से बहिष्कार किया गया था तो उसके परिणामस्वरूप ही बोस जी को 6 महीने के लिए जेल जाना पड़ा था। कांग्रेस द्वारा सन् 1923 में स्वराज पार्टी की स्थापना की गई। इस पार्टी के अध्यक्ष मोतीलाल नेहरु, चितरंजन दास थे। इस पार्टी का उद्देश्य विधान सभा से ब्रिटिश सरकार का विरोध करना था।

स्वराज पार्टी ने महापालिका के चुनाव को जीत लिया था जिसकी वजह से दासबाबू कलकत्ता के महापौर बन गए थे। महापौर चुने जाने के बाद दासबाबू ने बोस जी को महापालिका का कार्यकारी अधिकारी बना दिया था। इसी दौरान सुभाष चन्द्र बोस जी ने बंगाल में देशभक्ति की ज्वाला को भड़का दिया था जिसकी वजह से सुभाष चन्द्र बोस देश के एक महत्वपूर्ण युवा नेता और क्रांति के अग्रदूत बन गये थे।

इसी दौरान बंगाल में किसी विदेशी की हत्या कर दी गई थी। हत्या करने के शक में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को गिरफ्तार कर लिया गया था। बोस जी अपनी जी-जान से आन्दोलन में भाग लेने लगे और कई बार जेल यात्रा भी करनी पड़ी। सन् 1929 और सन् 1937 में वे कलकत्ता अधिवेशन के मेयर बने थे। सन् 1938 और 1939 में वे कांग्रेस के सभापति के रूप में चुने गये थे।

सन् 1920 में सुभाष चन्द्र बोस जी को भारतीय जनपद सेवा में चुना गया था लेकिन खुद को देश की सेवा के लिए समर्पित कर देने की वजह से उन्होंने गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन में शामिल हो गये थे। सुभाष चन्द्र बोस जी ने सन् 1921 में अपनी नौकरी को छोडकर राजनीति में प्रवेश किया।

क्रांति का सूत्रपात : सुभाषचन्द्र बोस जी के मन में छात्र काल से ही क्रांति का सूत्रपात हो गया था। जब कॉलेज के समय में एक अंग्रेजी के अध्यापक ने हिंदी के छात्रों के खिलाफ नफरत से भरे शब्दों का प्रयोग किया तो उन्होंने उसे थप्पड़ मार दिया। वहीं से उनके विचार क्रांतिकारी बन गए थे।

वे एक पक्के क्रांतिकारी रोलेक्ट एक्ट और जलियांवाला बाग के हत्याकांड से बने थे। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक सबसे प्रमुख नेता थे। बोस जी ने जनता के बीच राष्ट्रिय एकता , बलिदान और साम्प्रदायिक सौहार्द की भावना को जागृत किया था।

कांग्रेस से त्याग पत्र : वे क्रांतिकारी विचारधारा रखते थे इसलिए वे कांग्रेस के अहिंसा पूर्ण आन्दोलन में विश्वास नहीं रखते थे इसलिए उन्होंने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया था। बोस जी अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेडकर देश को स्वाधीन करना चाहते थे। उन्होंने देश में हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की।

उनके तीव्र क्रांतिकारी विचारों और कार्यों से त्रस्त होकर अंग्रेजी सरकार ने उन्हें जेल भेज दिया। जेल में उन्होंने भूख हड़ताल कर दी जिसकी वजह से देश में अशांति फ़ैल गयी थी। जिसके फलस्वरूप उनको उनके घर पर ही नजरबंद रखा गया था। बोस जी ने 26 जनवरी , 1942 को पुलिस और जासूसों को चकमा दिया था।

वे जियाउद्दीन के नाम से काबुल के रास्ते से होकर जर्मनी पहुंचे थे। जर्मनी के नेता हिटलर ने उनका स्वागत किया। बोस जी ने जर्मनी रेडियो केंद्र से भारतवासियों के नाम स्वाधीनता का संदेश दिया था। देश की आजादी के लिए किया गया उनका संघर्ष , त्याग और बलिदान इतिहास में सदैव प्रकाशमान रहेगा।

आजाद हिन्द सेना : बोस जी ने देखा कि शक्तिशाली संगठन के बिना स्वाधीनता मिलना मुश्किल है। वे जर्मनी से टोकियो गए और वहां पर उन्होंने आजाद हिन्द फ़ौज की स्थापना की। उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी का नेतृत्व किया था। यह अंग्रेजों के खिलाफ लडकर भारत को स्वाधीन करने के लिए बनाई गई थी। आजाद हिन्द ने यह फैसला किया कि वे लड़ते हुए दिल्ली पहुंचकर अपने देश की आजादी की घोषणा करेंगे या वीरगति को प्राप्त होंगे। द्वितीय महायुद्ध में जापान के हार जाने की वजह से आजाद हिन्द फ़ौज को भी अपने शस्त्रों को त्यागना पड़ा।

सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु : जापान के हार जाने की वजह से आजाद हिन्द फ़ौज को भी आत्म-समर्पण करना पड़ा था। जब नेताजी विमान से बैंकाक से टोकियो जा रहे थे तो मार्ग में विमान में आग लग जाने की वजह से उनका स्वर्गवास हो गया था। लेकिन नेताजी के शव या कोई चिन्ह न मिलने की वजह से बहुत से लोगों को नेताजी की मौत पर संदेह हो रहा है।

18 अगस्त , 1945 को टोकियो रेडियो ने इस शोक समाचार को प्रसारित किया कि सुभाष चन्द्र बोस जी एक विमान दुर्घटना में मारे गए। लेकिन उनकी मृत्यु आज तक एक रहस्य बनी हुई है। इसीलिए देश के आजाद होने पर सरकार ने उस रहस्य की छानबीन के लिए एक आयोग भी बिठाया लेकिन उसका भी कोई परिणाम नहीं निकला।

उपसंहार : नेताजी भारत के ऐसे सपूत थे जिन्होंने भारतवासियों को सिखाया कि झुकना नहीं बल्कि शेर की तरह दहाड़ना चाहिए। खून देना एक वीर पुरुष का ही काम होता है। नेताजी ने जो आह्वान किया वह सिर्फ आजादी प्राप्त तक ही सीमित नहीं था बल्कि भारतीय जन-जन को युग-युग तक के लिए एक वीर बनाना था। आजादी मिलने के बाद एक वीर पुरुष ही अपनी आजदी की रक्षा कर सकता है। आजादी को पाने से ज्यादा आजादी की रक्षा करना उसका कर्तव्य होता है।

ऐसे वीर पुरुष को भारत इतिहास में बहुत ही श्रद्धा से याद किया जायेगा। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जी की याद में हर साल 23 जनवरी को देश प्रेम दिवस के रूप में मनाया जाता है। देश प्रेम दिवस के दिन को फारवर्ड ब्लाक की पार्टी के सदस्यों में एक भव्य तरीके से मनाया जाता है। सभी जिला प्रशासन और स्थानीय निकायों में भी इस दिन को मनाया जाता है। बहुत से गैर सरकारी संगठनों द्वारा इस दिन रक्त शिविरों का आयोजन किया जाता है। इस दिन स्कूलों और कॉलेजों में विभिन्न गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं।

Subhash chandra bose essay

Subhas Chandra Bose was an Indian freedom fighter and an exceptional leader of the Indian National Army. He was born on 23rd January at Cuttack in India. He was a man of action. He believed in agitation and resorted to revolutionary methods for the attainment of Swaraj. He was unanimously elected as the President of the INC in 1938. He however, came into conflict with Gandhi because of the ideological differences between the two. He provided an exceptional leadership to the Indian national Army .

Subhash chandra bose essay in hindi

नेताजी ‘सुभाष चन्द्र बोस’ का जन्म 23 जनवरी, 1897 को कटक, ओडिशा, भारत में हुआ था। उनकी माता का नाम प्रभावती देवी था। उनके पिता जानकीनाथ एक वकील थे।

सुभाष चन्द्र बोस एक सच्चे सेनानी थे। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में उनका विशेष योगदान रहा। उन्होंने देश को स्वतंत्र करने के लिए आज़ाद हिन्द फ़ौज़ का गठन किया। उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी का नेतृत्व किया। सुभाष चन्द्र बोस ने महात्मा गांधी के विचारों के विपरीत हिंसक दृष्टिकोण को अपनाया। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के लिए क्रन्तिकारी और हिंसक तरीके की वकालत की। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग होकर आल इंडिया फॉरवर्ड ब्लाक की स्थापना की।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक थे। उन्होंने जनता के बीच राष्ट्रीय एकता, बलिदान और सांप्रदायिक सौहार्द की भावना को जागृत किया। उनकी याद में प्रति वर्ष उनके जन्मदिन 23 जनवरी को ‘देश प्रेम दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। देश प्रेम दिवस का दिन फारवर्ड ब्लाक की पार्टी के सदस्यों के बीच एक भव्य तरीके से मनाया जाता है। सभी जिला प्रशासन और स्थानीय निकायों में भी इस दिन को मनाया जाता है। विभिन्न गैर सरकारी संगठनों द्वारा इस दिन रक्त शिविरों का आयोजन किया जाता है। इस दिन स्कूल और कालेजों में विभिन्न गतिविधियों जैसे प्रदर्शनी, क्विज और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।

सुभाष चंद्र बोस पर भाषण

नमस्कार साथियों आज हम बात करेंगे 23 जनवरी उस मां भारती के लाडले सपूत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी सेनानी आजाद हिंद फौज के सुप्रीम कमांडर नेता जी के नाम से विख्यात सुभाष चंद्र बोस जी के बारे में। साथियों सुभाष चंद्र बोस एक ऐसा नाम है जिसके बारे में सुनकर मन में देशभक्ति की भावना हिलोरे लेने लगती है। निराशा दूर हो जाती है। और देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा जाग उठता है। साथियों नेताजी उपनाम उस वीर सुभाष चंद्र बोस पर ही ज्यादा शोभा देता है ।साथियों भारत मां के इस दिव्य सपूत का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा राज्य के कटक नगर में हुआ था। इनकी ममतामयी मां का नाम प्रभादेवी व पिताजी का नाम जानकीनाथ बोस था। इनके पिताजी एक जाने-माने वकील थे नेताजी अपने माता -पिता की नौवीं संतान थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से हुई ।साथियों बॉस साहब ने इंडियन सिविल सर्विसेज की परीक्षा पास करने के बावजूद सरकारी नौकरी को ठोकर मारकर मां भारती से गुलामी की बेड़ियों को हटाने के लिए क्रांतिकारियों के पथ पर चल निकले ।साथियों उन्होंने अपने जीवन मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया। व अपना तन मन धन सब भारतवर्ष की आजादी के लिए न्योछावर कर दिया। नेताजी को सार्वजनिक जीवन में 11 बार जेल जाना पड़ा। सुभाष चंद्र बोस जी गांधी जी से बहुत प्रभावित थे।लेकिन अहिंसा के पथ पर चलना उन्हें गवारा नहीं था। वह जानते थे ।कि आजादी मांगने से नहीं मिलेगी ।आजादी को अंग्रेजों से छिनना पड़ेगा। सुभाष चंद्र बोस और उनके जैसे अनेक नौजवानों ने सुख-दुख देखे बिना आजादी के लिए लगातार संघर्ष जारी रखा। नेता जी ने बंगाल को जगा दिया ।और देखते ही देखते आजादी की लड़ाई के अग्रदूत बन गए। 1938 में वे कांग्रेस के अध्यक्ष बने ।लेकिन गांधी जी के विरोध के चलते उन्होंने जल्दी ही कांग्रेस छोड़ दी ।व फॉरवर्ड ब्लॉक नामक राजनीतिक पार्टी की स्थापना की ।तदुपरांत उन्हें उनके ही घर में अंग्रेजों द्वारा नजर बंद कर दिया गया। लेकिन वे 26 जनवरी 1941 को अपने घर से भाग निकले। और जर्मनी पहुंच गए। जहां पर उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया। इस फौज में सेनानियों की संख्या लगभग 40,000 थी आजाद हिंद फौज के झंडे पर बाघ बना हुआ रहता था ।व अपनी सेना को प्रेरित करने के लिए नेता जी ने “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा” व” दिल्ली चलो” जैसे नारे दिए ।1943 से लेकर 1945 तक आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी। जिससे अंग्रेजी हुकूमत विचलित हो गई। और उन्हें अब यह महसूस हो गया कि अब उन्हें भारत को छोड़ना ही होगा ।लेकिन साथियों 18 अगस्त 1945 को दुर्भाग्यवश एक विमान यात्रा के दौरान नेताजी कहां लापता हो गए ।और उन्हें क्या हुआ यह भारतीय इतिहास में आज भी रहस्य बना हुआ है। साथियों हमें आज 23 जनवरी को उनकी जयंती पर उन्हें याद कर उनके विचारों को अपनाने का संकल्प लेना चाहिए।

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध यूट्यूब वीडियो

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