Sardar Vallabhbhai Patel Speech in Hindi – सरदार वल्लभ भाई पटेल पर भाषण – जयंती स्पीच पीडीऍफ़ डाउनलोड

Sardar Vallabhbhai Patel Speech in Hindi

Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti 2020: लौह-पुरुष कहलाये जाने वाले सरदार वल्ल्भ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर को गुजरात के एक किसान परिवार में हुआ था | वह एक स्वतंत्रता सेनानी थे | उनके पिता का नाम झवेरभाई पटेल और माता का नाम लाडबा देवी था | खेड़ा संघर्ष के दौरान स्वतंत्रता आंदोलन में उनका पहला और बड़ा योगदान रहा था | भारत की आजादी के बाद वह पहले उप-प्रधानमंत्री और गृहमन्त्री बने थे | भारत के एकीकरण में उनके द्वारा दिए गए योगदानों के लिए उन्हें लौह-पुरुष के नाम से जाना जाता है | आप ये sardar vallabhbhai patel speech in hindi हिंदी, गुजराती, इंग्लिश, मराठी, बांग्ला, गुजराती, तमिल, तेलगु, आदि की जानकारी देंगे जिसे आप अपने स्कूल के भाषण प्रतियोगिता, कार्यक्रम या भाषण प्रतियोगिता में प्रयोग कर सकते है| ये भाषण कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए दिए गए है|

सरदार वल्लभ भाई पटेल पर भाषण

562 रियासतों का एकीकरण करने वाले लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नाडियाड में उनके ननिहाल में हुआ. वे खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावेर भाई पटेल की चौथी संतान थे. उनकी माता का नाम लाडबा पटेल था. उन्होंने प्राइमरी शिक्षा कारमसद में ही प्राप्त की. बचपन से ही उनके परिवार ने उनकी शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया.

1893 में 16 साल की आयु में ही उनका विवाह झावेरबा के साथ कर दिया गया था. उन्होंने अपने विवाह को अपनी पढ़ाई के रास्ते में नहीं आने दिया. 1897 में 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की. 1900 में ज़िला अधिवक्ता की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए, जिससे उन्हें वकालत करने की अनुमति मिली. गोधरा में वकालत की प्रेक्टिस शुरू कर दी. जहाँ इन्होने प्लेग की महामारी से पीड़ित कोर्ट ऑफिशियल की बहुत सेवा की.

1902 में इन्होने वकालत काम बोरसद सिफ्ट कर लिया, क्रिमिनल लॉयर रूप नाम कमाया. अपनी वकालत के दौरान उन्होंने कई बार ऐसे केस लड़े जिसे दूसरे निरस और हारा हुए मानते थे. उनकी प्रभावशाली वकालत का ही कमाल था कि उनकी प्रसिद्धी दिनों-दिन बढ़ती चली गई. गम्भीर और शालीन पटेल अपने उच्चस्तरीय तौर-तरीक़ों लिए भी जाने जाते थे. यंही उनके पुत्री मणिबेन का 1904 व पुत्र दह्या का 1905 में जन्म हुआ. बेरिस्टर कोर्स करने के लिए पैसों की बचत करली थी परन्तु बड़े भाई विठलभाई की इच्छा पूरी करने के लिए उनहोंने खुद न जाकर 1905 में उन्हें इग्लैंड भेज दिया.

सरदार पटेल अपना कर्तव्य पूरी ईमानदारी, समर्पण व हिम्मत से साथ पूरा करते थे.

Sardar vallabhbhai patel par bhasan

उनके इस गुण का दर्शन हमें सन् 1909 की इस घटना से होते है.

वे कोर्ट में केस लड़ रहे थे, उस समय उन्हें अपनी पत्नी की मृत्यु (11 जनवरी 1909) का तार मिला. पढ़कर उन्होंने इस प्रकार पत्र को अपनी जेब में रख लिया जैसे कुछ हुआ ही नहीं. दो घंटे तक बहस कर उन्होंने वह केस जीत लिया.

बहस पूर्ण हो जाने के बाद न्यायाधीश व अन्य लोगों को जब यह खबर मिली कि सरदार पटेल की पत्नी का निधन हुआ गया

तब उन्होंने सरदार से इस बारे में पूछा तो सरदार ने कहा कि “उस समय मैं अपना फर्ज निभा रहा था, जिसका शुल्क मेरे मुवक्किल ने न्याय के लिए मुझे दिया था. मैं उसके साथ अन्याय कैसे कर सकता था.” ऐसी कर्तव्यपरायणता और शेर जैसे कलेजे की मिशाल इतिहास में विरले ही मिलती है |

Speech on sardar vallabhbhai patel in hindi

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सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा काल में ही उन्होंने एक ऐसे अध्यापक के विरुद्ध आंदोलन खड़ाकर उन्हें सही मार्ग दिखाया जो अपने ही व्यापारिक संस्थान से पुस्तकें क्रय करने के लिए छात्रों के बाध्य करते थे।

सन्‌ 1908 में वे विलायत की अंतरिम परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर बैरिस्टर बन गए। फौजदारी वकालत में उन्होंने खूब यश और धाक जमाई। महात्मा गांधी ने जब पूरी शक्ति से अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन चलाने का निश्चय किया तो पटेल ने अहमदाबाद में एक लाख जन-समूह के सामने लोकल बोर्ड के मैदान में इस आंदोलन की रूपरेखा समझाई।

उन्होंने पत्रकार परिषद में कहा, ऐसा समय फिर नहीi आएगा, आप मन में भय न रखें। चौपाटी पर दिए गए भाषण में कहा, आपको यही समझकर यह लड़ाई छेड़नी है कि महात्मा गांधी और अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया जाएगा तो आप न भूलें कि आपके हाथ में शक्ति है कि 24 घंटे में ब्रिटिश सरकार का शासन खत्म हो जाएगा।

सरदार वल्लभ भाई पटेल को लौह पुरुष क्यों कहा जाता है:

सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारत की 565 रियासतों को एकाकार किया था जिसके कारण भारत एक संपूर्ण संप्रभुता राष्ट्र बन सका और भारत के इसी एकीकरण करने के कारण सरदार वल्लभ भाई पटेल को लौह-पुरुष कहां गया |

सितंबर, 1946 में जब नेहरू जी की अस्थाई राष्ट्रीय सराकर बनी तो सरदार पटेल को गृहमंत्री नियुक्त किया गया। अत्यधिक दूरदर्शी होने के कारण भारत मे विभाजन के पक्ष में पटेल का सपष्ट मत था कि जहरवाद फैलने से पूर्व गले-से अंग को ऑपरेशन कर कटवा देना चाहिए। नवंबर,1947 में संविधान परिषद की बैठक में उन्होंने अपने इस कथन को स्पष्ट किया, मैंने विभाजन को अंतिम उपाय मे रूप में तब स्वीकार किया था जब संपूर्ण भारत के हमारे हाथ से निकल जाने की संभावना हो गई थी।

मैंने यह भी शर्त रखी कि देशी राज्यों के संबंध में ब्रिटेन हस्तक्षेप नहीं करेगा। इस समस्या को हम सुलझाएंगे। और निश्चय ही देशी राज्यों के एकीकरण की समस्या को पटेल ने बिना खून-खराबे के बड़ी खूबी से हल किया, देशी राज्यों में राजकोट, जूनागढ़, वहालपुर, बड़ौदा, कश्मीर, हैदराबाद को भारतीय महासंघ में सम्मिलित करना में सरदार को कई पेचीदगियों का सामना करना पड़ा।

जब चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने नेहरू को पत्र लिखा कि वे तिब्बत को चीन का अंग मान लें तो पटेल ने नेहरू से आग्रह किया कि वे तिब्बत पर चीन का प्रभुत्व कतई न स्वीकारें अन्यथा चीन भारत के लिए खतरनाक सिद्ध होगा। नेहरू नहीं माने बस इसी भूल के कारण हमें चीन से पिटना पड़ा और चीन ने हमारी सीमा की 40 हजार वर्ग गज भूमि पर कब्जा कर लिया।

सरदार पटेल के ऐतिहासिक कार्यों में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निमाण, गांधी स्मारक निधि की स्थापना, कमला नेहरू अस्पताल की रूपरेखा आदि कार्य सदैव स्मरण किए जाते रहेंगे। उनके मन में गोआ को भी भारत में विलय करने की इच्छा कितनी बलवती थी, इसका उद्धहरण ही काफी है।

जब एक बार वे भारतीय युद्धपोत द्वारा बंबई से बाहर यात्रा पर था तो गोआ के निकट पहुंचने पर उन्होंने कमांडिंग अफसरों से पूछा इस युद्धपोत पर तुम्हारे कितने सैनिक हैं जब कप्तान ने उनकी संख्या बताई, तो पटेल ने फिर पूछा क्या वह गोआ पर अधिकार करने के लिए पर्याप्त है। सकारात्मक उत्तर मिलने पर पटेल बोले- अच्छा चलो जब तक हम यहां हैं गोआ पर अधिकार कर लो। किंकर्तव्यविमूढ़ कप्तान ने उनसे लिखित आदेश देने की विनती की तब तक पटेल चौंके फिर कुछ सोचकर बोले-ठीक है चलो हमें वापस लौटना होगा।

जवाहरलाल इस पर आपत्ति करेंगे। सरदार पटेल और नेहरू के विचारों में काफी मतभेद था फिर भी गांधी से वचनबद्ध होने के कारण वे नेहरू को सदैव सहयोग देते रहे। गंभीर बातों को भी वे विनोद से कह देते थे। कश्मीर की समस्या को लेकर उन्होंने कहा था, सब जगह तो मेरा वश चल सकता है पर जवाहरलाल की ससुराल में मेरा वश नहीं चलेगा।

उनका यह कथन भी कितना सटीक था भारत में केवल एक व्यक्ति राष्ट्रीय मुसलमान है- जवाहरलाल नेहरू शेष सब सांप्रदायिक मुसलमान हैं। 15 दिसंबर 1950 को प्रातःकाल 9.37 पर इस महापुरुष का 76 वर्ष की आयु में निधन हो गया, जिसकी क्षति पूर्ति होना दुष्कर है। यह की सच है कि गांधी ने कांग्रेस में प्राणों का संचार किया तो नेहरू ने उस कल्पना और दृष्टिकोण को विस्तृत आयाम दिया। इसके अलावा जो शक्ति और संपूर्णता कांग्रेस को प्राप्त हुई वह सरदार पटेल की कार्यक्षमता का ही परिणाम था। आपकी सेवाओं, दृढ़ता व कार्यक्षमता के कारण ही आपको लौहपुरुष कहा जाता है।

आज भी हम भारत के ताजा परिप्रेक्ष्य पर गौर करें, तो देश का लगभग आधा भाग सांप्रदायिक एवं विघटनकारी राष्ट्रद्रोहियों की चपेट में फंसा दिखाई देता है, ऐसी संकट की घड़ी में सरदार पटेल की स्मृति हो उठना स्वभाविक है।

Sardar vallabhbhai patel jayanti speech

31 अक्टूबर 1875 गुजरात के नाडियाद में सरदार पटेल का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था। उन के पिता का नाम झवेरभाई और माता का नाम लाडबा देवी था। सरदार पटेल अपने तीन भाई बहनों में सबसे छोटे और चौथे नंबर पर थे।

शिक्षा : सरदार वल्लभ भाई पटेल की शिक्षा का प्रमुख स्त्रोत स्वाध्याय था। उन्होंने लंदन से बैरिस्टर की पढ़ाई की और उसके बाद पुन: भारत आकर अहमदाबाद में वकालत शुरू की।

स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी : सरदार पटेल ने माहात्मा गांधी से प्रेरित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था। सरदार पटेल द्वारा इस लड़ाई में अपना पहला योगदान खेड़ा संघर्ष में दिया गया, जब खेड़ा क्षेत्र सूखे की चपेट में था और वहां के किसानों ने अंग्रेज सरकार से कर में छूट देने की मांग की। जब अंग्रेज सरकार ने इस मांग को स्वीकार नहीं किया, तो सरदार पटेल, महात्मा गांधी और अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हें कर न देने के लिए प्ररित किया। अंत में सरकार को झुकना पड़ा और किसानों को कर में राहत दे दी गई।

योगदान : आजादी के बाद ज्यादातर प्रांतीय समितियां सरदार पटेल के पक्ष में थीं। गांधी जी की इच्छा थी, इसलिए सरदार पटेल ने खुद को प्रधानमंत्री पद की दौड़ से दूर रखा और जवाहर लाल नेहरू को समर्थन दिया। बाद में उन्हें उपप्रधानमंत्री और ग्रहमंत्री का पद सौंपा गया, जिसके बाद उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों तो भारत में शामिल करना था। इस कार्य को उन्होंने बगैर किसी बड़े लड़ाई झगड़े के बखूबी किया। परंतु हैदराबाद के ऑपरेशन पोलो के लिए सेना भेजनी पड़ी। चूंकि भारत के एकीकरण में सरदार पटेल का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था, इसलिए उन्हें भारत का लौह पुरूष कहा गया। 15 दिसंबर 1950 को भारत का उनकी मृत्यु हो गई और यह लौह पुरूष दुनिया को अलविदा कह गया।

सरदार पटेल नाम यूं पड़ा : सरदार पटेल को सरदार नाम, बारडोली सत्याग्रह के बाद मिला, जब बारडोली कस्बे में सशक्त सत्याग्रह करने के लिए उन्हें पह ले बारडोली का सरदार कहा गया। बाद में सरदार उनके नाम के साथ ही जुड़ गया।

Sardar vallabhai patel speech in english

Beginning of the speech on Sardar Vallabhbhai Patel

Good morning everyone, honorable chief guests, respected principal, teachers and my dear friends today I am going to talk about one of the leaders who played it all in the battle of independence of India which is Sardar Vallabhbhai Patel. Now, I would like to start my speech.

Introduction

Sardar Vallabhbhai Patel was a strong leader, an ambitious personality. The word “Sardar” itself means a chief, a leader. Sardar Vallabhbhai Patel was one of the leading figures in the battle for the independence of India. He was the first Home Minister and first Deputy Prime Minister of India. People used to call him as the Ironman(Lohpurush) of India.Sardar Vallabhbhai Patel was born on 31st October 1875, in Nadiad village in Gujarat. Is childhood was spent in the countryside of Gujarat. His father’s name was Jhaverbhai Patel who was a farmer and his mother’s name was Laadbai.

He passed his matriculation exam at the age of 22. He spent many years away from his family and home to complete his education. In the initial years, he used to practice law as a successful and skilled lawyer. In 1909, Sardar Vallabhbhai Patel’s wife, Jhaverba, was hospitalized in Bombay for her operation of cancer. Despite the successful surgery, she died in hospital. When he got the news of his wife’s demise he was in the middle of a trial in the courtroom and it is said that he read the note of his wife’s death news, put it in his pockets and continued the trial in the courtroom. He was very passionate and determined about his work. At the age of 36, he went to England for his further studies completed a course of 30 months and return to India to become one of the most successful barristers in Ahmedabad.

After winning the election in 1917 he became the sanitation commissioner of Ahmedabad and later was introduced to Mahatma Gandhi and his Satyagraha movement and supported him. After independence in the Congress president election, Patel stepped down in favor of Nehru at the request of Gandhi and he played a key role in the integration of the princely states into the Indian Federation, hence he was called as the unifier of India.

Sardar Vallabhbhai Patel died on 15 December 1950 at the age of 75 at Birla House, Mumbai. After his death, in 1991 he was awarded India’s highest civilian honor Bharat Ratna. In 2014, his birthday 31 October was celebrated as “Rashtriya Ekta Diwas”( National Unity Day).

He is still remembered by his work and the contribution in the battle of independence of India.

End of the speech on Sardar Vallabhbhai Patel

The independent India we live in today is the result of sacrifices made by the freedom fighters and we will always remember their work. On this note, I would like to end my speech. I would like to thank our honorable chief guest, respected principal and teachers for giving me the opportunity to deliver my speech. Thank you. Jai Hind Jai Bharat.

Sardar vallabhbhai patel speech in gujarati

ભારતીય રાજકારણમાં સરદાર વલ્લભભાઈ પટેલ એક પ્રતિષ્ઠિત નામ છે. વકીલ અને રાજકીય કાર્યકર, તેમણે ભારતીય સ્વતંત્રતા ચળવળ દરમિયાન અગ્રણી ભૂમિકા ભજવી હતી. સ્વતંત્રતા પછી, તે ભારતીય સંઘમાં 500 થી વધુ રજવાડાઓના એકીકરણમાં નિર્ણાયક હતું. ગાંધીની વિચારધારા અને સિદ્ધાંતોથી તેઓ ખૂબ જ પ્રભાવિત થયા હતા, નેતા સાથે ખૂબ નજીકથી કામ કર્યું હતું. લોકોની પસંદગી હોવા છતાં, મહાત્મા ગાંધીની વિનંતી પર, સરદાર પટેલ કોંગ્રેસ પ્રમુખની ઉમેદવારીમાંથી નીચે ઉતર્યા, જે આખરે સ્વતંત્ર ભારતના પ્રથમ વડા પ્રધાનને પસંદ કરવા માટેના ચૂંટણીમાં પરિણમ્યો. તેઓ સ્વતંત્ર ભારતના પ્રથમ ગૃહમંત્રી હતા અને દેશના એકીકરણ તરફના તેમના અસહાય પ્રયાસોને કારણે તેમને ‘ભારતનો આયર્ન મૅન’ નામ આપ્યું હતું.

બાળપણ અને પ્રારંભિક જીવન

વલ્લભભાઈ પટેલનો જન્મ 31 મી ઑક્ટોબર, 1875 ના રોજ ગુજરાતના નડિયાદ ગામમાં ઝવેરભાઇ અને લાડબાયમાં થયો હતો. વલ્લભભાઈ, તેમના પિતા ઝાંસીની રાણીની સેનામાં હતા, જ્યારે તેમની માતા ખૂબ આધ્યાત્મિક સ્ત્રી હતી.

ગુજરાતી માધ્યમિક શાળામાં તેમની શૈક્ષણિક કારકિર્દી શરૂ કરીને, સરદાર વલ્લભભાઈ પટેલ પાછળથી અંગ્રેજી માધ્યમ શાળામાં સ્થળાંતર કર્યું. 1897 માં, વલ્લભભાઈએ તેમની ઉચ્ચ શાળા પાસ કરી અને કાયદાની તપાસ માટે તૈયારી કરવાનું શરૂ કર્યું. તેઓ કાયદાની પદવી મેળવવા ગયા અને 1910 માં ઇંગ્લેન્ડની યાત્રા કરી. તેમણે 1913 માં કોર્ટના ઇન્સેથી તેમની કાયદાની પદવી પૂર્ણ કરી અને ગુજરાતમાં ગોધરામાં તેમની કાયદાની પ્રથા શરૂ કરવા ભારત પાછા આવ્યા. તેમની કાનૂની પ્રાધાન્યતા માટે, વલ્લભભાઈને બ્રિટીશ સરકાર દ્વારા ઘણી આકર્ષક પોસ્ટ્સની ઓફર કરવામાં આવી હતી પરંતુ તેમણે બધાને નકારી કાઢ્યા હતા. તે બ્રિટીશ સરકાર અને તેના કાયદાઓનો કડક વિરોધી હતો અને તેથી તેણે બ્રિટીશ માટે કામ ન કરવાનું નક્કી કર્યું.

1891 માં તેણે ઝેવરબાય સાથે લગ્ન કર્યા અને દંપતિને બે બાળકો થયા.

પટેલ અમદાવાદમાં તેમની પ્રેક્ટિસ ખસેડ્યા. તેઓ ગુજરાત ક્લબના સભ્ય બન્યા જ્યાં તેમણે મહાત્મા ગાંધી દ્વારા ભાષણમાં હાજરી આપી. ગાંધીના શબ્દો વલ્લભાઈ પર ઊંડી અસર કરે છે અને તેમણે તરત જ કરિશ્માવાદી નેતાના કડક અનુયાયી બનવા માટે ગાંધીય સિદ્ધાંતોને અપનાવ્યા હતા.

ભારતીય રાષ્ટ્રીય ચળવળમાં ભૂમિકા

1917 માં, સરદાર વલ્લભભાઈ ભારતીય રાષ્ટ્રીય કોંગ્રેસના ગુજરાત વિંગ, ગુજરાત સભાના સેક્રેટરી તરીકે ચૂંટાયા હતા. 1918 માં, તેમણે વિશાળ “નો ટેક્સ ઝુંબેશ” ને આગેવાની લીધી હતી, જેણે ખેડૂતોને કેરામાં પૂર પછી કર પર ભાર મૂકતા કર બાદ કર ચૂકવવાની વિનંતી કરી હતી. શાંતિપૂર્ણ આંદોલનથી બ્રિટીશ સત્તાવાળાઓએ ખેડૂતો પાસેથી લેવામાં આવેલી જમીન પરત કરવા દબાણ કર્યું. તેમના વિસ્તારના ખેડૂતોને એક સાથે લાવવાનો તેમનો પ્રયાસ તેમને ‘સરદાર’ ના ખિતાબમાં લાવ્યા. તેમણે ગાંધી દ્વારા શરૂ કરાયેલા અસહકાર અભિયાનને સક્રિયપણે ટેકો આપ્યો હતો. પટેલએ તેમની સાથે રાષ્ટ્રનો પ્રવાસ કર્યો, 300,000 સભ્યોની ભરતી કરી અને રૂ. 1.5 મિલિયન

વર્ષ 1928 માં, બારડોલીના ખેડૂતોએ ફરીથી “કર-વધારો” ની સમસ્યાનો સામનો કરવો પડ્યો. લાંબા સમય સુધી સમન્સ પછી, જ્યારે ખેડૂતોએ વધારાની કર ચૂકવવાનો ઇનકાર કર્યો, સરકારે તેમની જમીન બદલામાં કબજે કરી. આંદોલન છ મહિનાથી વધુ સમય માટે ચાલ્યું. પટેલ દ્વારા વાટાઘાટોના ઘણા રાઉન્ડ પછી, સરકાર અને ખેડૂતોના પ્રતિનિધિઓ વચ્ચે સોદો થયા પછી જમીન ખેડૂતોને પરત કરવામાં આવી.

સરદાર પટેલ અને ભારતનું વિભાજન

મુસ્લિમ લીગના નેતા મોહમ્મદ અલી જિન્નાની આગેવાની હેઠળની અલગતાવાદી ચળવળ, આઝાદીની પહેલા દેશભરમાં હિંસક હિંદુ-મુસ્લિમ રમખાણોની શ્રેણીમાં પરિણમી હતી. સરદાર પટેલની મતે, રમખાણો દ્વારા ઉદ્ભવેલા ખુલ્લા કોમવાદી સંઘર્ષોએ સ્વતંત્રતા પછી મધ્યમાં નબળી સરકારની સ્થાપના કરવાની ક્ષમતા ધરાવતા હતા જે લોકશાહી રાષ્ટ્રને મજબૂત બનાવવા માટે વિનાશક હશે. પટેલ સાથેના ઉકેલ પર કામ કરવા પટેલ ગયા. મેનન, ડિસેમ્બર 1946 દરમિયાન એક નાગરિક સેવક અને રાજ્યોના ધાર્મિક વલણને આધારે અલગ પ્રભુત્વ બનાવવાના તેમના સૂચનનો સ્વીકાર કર્યો. તેમણે પાર્ટીશન કાઉન્સિલમાં ભારતનું પ્રતિનિધિત્વ કર્યું.

સ્વતંત્રતા પછી ભારતના ફાળો

ભારતને સ્વતંત્રતા પ્રાપ્ત થયા પછી, પટેલ પ્રથમ ગૃહમંત્રી અને નાયબ વડા પ્રધાન બન્યા. ભારતના સ્વાતંત્ર્ય હેઠળ લગભગ 562 રજવાડાઓને સફળતાપૂર્વક સંકલિત કરીને, સ્વતંત્રતા પછી ભારતએ પટેલ ખૂબ જ મહત્વપૂર્ણ ભૂમિકા ભજવી હતી. બ્રિટીશ સરકારે આ શાસકોને બે વિકલ્પો સાથે રજૂ કર્યા હતા – તેઓ ભારત અથવા પાકિસ્તાનમાં જોડાઈ શકે છે; અથવા તેઓ સ્વતંત્ર રહી શકે છે. આ કલમ દ્વારા પ્રક્રિયાના મુશ્કેલીમાં મોટા પ્રમાણમાં વધારો થયો છે. કોંગ્રેસે આ ભયંકર કાર્ય સરદાર પટેલને સોંપ્યું, જેમણે 6 ઓગસ્ટ, 1947 ના રોજ એકીકરણ માટે લોબિંગ કરવાનું શરૂ કર્યું. તેઓ જમ્મુ અને કાશ્મીર, જુનાગઢ અને હૈદરાબાદ સિવાયના બધાને એકીકૃત કરવામાં સફળ રહ્યા હતા. આખરે તેમણે તેમની તીવ્ર રાજકીય કુશળતા સાથે પરિસ્થિતિનો સામનો કર્યો અને તેમના જોડાણને સુરક્ષિત કરી. સરદાર વલ્લભભાઈ પટેલ દ્વારા કરવામાં આવેલા પ્રયત્નોનું પરિણામ આજે આપણે જોયું છે.

મૃત્યુ

સરદાર વલ્લભભાઈ પટેલનું આરોગ્ય 1950 માં ઘટવાનું શરૂ થયું. તેમને સમજાયું કે તે લાંબા સમય સુધી જીવશે નહીં. 2 નવેમ્બર, 1950 ના રોજ, તેમનો સ્વાસ્થ્ય વધુ બગડ્યો અને તે પથારીમાં બંધ રહ્યો હતો. 15 ડિસેમ્બર 1950 ના રોજ મોટા હૃદય રોગનો હુમલો કર્યા પછી, મહાન આત્માએ વિશ્વને છોડી દીધી. 1991 માં તેમને ભારત રત્ન, ભારતના સર્વોચ્ચ નાગરિક સન્માનથી માતૃત્વ આપવામાં આવ્યું હતું. તેમના જન્મદિવસ, 31 ઓક્ટોબર, 2014 માં રાષ્ટ્રીય એકતા દિવા જાહેર કરવામાં આવ્યા હતા.

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