रामकृष्ण परमहंस जयंती निबंध 2022 – Ramakrishna Jayanti Essay in Hindi

Ramakrishna Jayanti Essay in Hindi

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Ramakrishna Jayanti Essay In Hindi – रामकृष्ण जयंती पर निबंध

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रामकृष्ण परमहंस जी का जन्म, परिवार एवं शुरूआती जीवन (Birthday, Family and Early Life)
रामकृष्ण परमहंस जी एक महान विचारक थे, जिनके विचारों को स्वयं विवेकानंद जी ने पूरी दुनियाँ में फैलाया. राम कृष्ण परमहंस जी ने सभी धर्मो को एक बताया. उनका मानना था सभी धर्मो का आधार प्रेम. न्याय और परहित ही हैं. उन्होंने एकता का प्रचार किया. राम कृष्ण परमहंस जी का जन्म 18 फरवरी सन 1836 में हुआ था. बाल्यकाल में इन्हें लोग गदाधर के नाम से जानते थे. यह एक ब्राह्मण परिवार से थे. इनका परिवार बहुत गरीब था लेकिन इनमे आस्था. सद्भावना. एवं धर्म के प्रति अपार श्रद्धा एवम प्रेम था.

रामकृष्ण परमहंस के विचार (Ramkrishan Paramhans Thoughts)
राम कृष्ण परमहंस जी के विचारों पर उनके पिता की छाया थी. उनके पिता धर्मपरायण सरल स्वभाव के व्यक्ति थे. यही सारे गुण राम कृष्ण परमहंस जी में भी व्याप्त थे. उन्होंने परमहंस की उपाधि प्राप्त की और मनुष्य जाति को अध्यात्म का ज्ञान दिया. इन्होने सभी धर्मो को एक बताया. इनके विचारों से कई लोग प्रेरित हुए, जिन्होंने आगे चलकर इनका नाम और अधिक बढ़ाया.

रामकृष्ण परमहंस विवाह, पत्नी एवं मां काली की भक्ति (Marriage, Wife and Devotion)
राम कृष्ण परमहंस जी देवी काली के प्रचंड भक्त थे. उन्होंने अपने आपको देवी काली को समर्पित कर दिया था. रामकृष्ण परमहंस जी का भले ही बाल विवाह शारदामणि से हुआ था, लेकिन इनके मन में स्त्री को लेकर केवल एक माता भक्ति का ही भाव था, इनके मन में सांसारिक जीवन के प्रति कोई उत्साह नहीं था, इसलिए ही सत्रह वर्ष की उम्र में इन्होने घर छोड़कर स्वयं को माँ काली के चरणों में सौंप दिया. यह दिन रात साधना में लीन रहते थे. इनकी भक्ति को देख सभी अचरज में रहते थे. इनका कहना था कि माँ काली इनसे मिलने आती हैं. वे उन्हें अपने हाथों से भोजन कराते हैं. जब भी माँ काली उनके पास से जाती वे तड़पने लगते और एक बच्चे की भांति अपनी माँ की याद में रुदन करते. उनकी इसी भक्ति के कारण वे पूरी गाँव में प्रसिद्द थे. लोग दूर- दुर से उनके दर्शन को आते थे और वे स्वयं दिन रात माँ काली की भक्ति में रहते थे.

संत से परमहंस बनने तक की कहानी एवं उनके गुरु (Ramkrishan Paramhans Life Story and His Guru)
रामकृष्ण जी एक संत थे और उन्हें परमहंस की उपाधि मिली थी. दरअसल परमहंस एक उपाधि हैं यह उन्ही को मिलती हैं, जिनमे अपनी इन्द्रियों को वश में करने की शक्ति हो. जिनमे असीम ज्ञान हो, यही उपाधि रामकृष्ण जी को प्राप्त हुई और वे रामकृष्ण परमहंस कहलाये, हालांकि रामकृष्ण जी के परमहंस उपाधि प्राप्त करने के पीछे कई कहानियाँ हैं.

रामकृष्ण एक प्रचंड काली भक्त थे, जो माँ काली से एक पुत्र की भांति जुड़े हुए थे, जिनसे उन्हें अलग कर पाना नामुमकिन था. जब रामकृष्ण माता काली के ध्यान में जाते और उनके संपर्क में रहते, तो वे नाचने लगते. गाने लगते और झूम- झूम कर अपने उत्साह को दिखाते, लेकिन जैसी ही संपर्क टूटता, वो एक बच्चे की तरह विलाप करने लगते और धरती पर लोट पोट करने लगते. उनकी इस भक्ति के चर्चे सभी जगह थे. उनके बारे में सुनकर संत तोताराम जो, कि एक महान संत थे, वो रामकृष्ण जी से मिलने आये और उन्होंने स्वयं रामकृष्ण जी को काली भक्ति में लीन देखा. तोताराम जी ने रामकृष्ण जी को बहुत समझाया, कि उनमे असीम शक्तियाँ हैं, जो तब ही जागृत हो सकती हैं, जब वे अपने आप पर नियंत्रण रखे. अपनी इन्द्रियों पर अपना नियंत्रण रखे, लेकिन रामकृष्ण जी अपनी काली माँ के प्रति अपने प्रेम को नियंत्रित करने में असमर्थ थे. तोताराम जी उन्हें कई तरह से मनाते, लेकिन वे एक ना सुनते. तब तोताराम जी ने रामकृष्ण जी से कहा, कि अब जब भी तुम माँ काली के संपर्क में आओ, तुम एक तलवार से उनके तुकडे कर देना. तब रामकृष्ण ने पूछा मुझे तलवार कैसे मिलेगी ? तब तोताराम जी ने कहा – अगर तुम अपनी साधना से माँ काली को बना सकते हो. उनसे बाते कर सकते हो. उन्हें भोजन खिला सकते हो. तब तुम तलवार भी बना सकते हो. अगली बार तुम्हे यही करना होगा. अगली बार जब रामकृष्ण जी ने माँ काली से संपर्क किया तब वे यह नहीं कर पाए और वे पुनः अपने प्रेम में लीन हो गए. जब वे साधना से बाहर आये, तब तोताराम जी ने उनसे कहा कि तुमने क्यूँ नहीं किया. तब फिर से उन्होंने कहा कि अगली बार जब तुम साधना में जाओगे, तब मैं तुम्हारे शरीर पर गहरा आघात करूँगा और उस रक्त से तुम तलवार बनाकर माँ काली पर वार करना. अगली बार जब रामकृष्ण जी साधना में लीन हुए. तब तोताराम जी ने रामकृष्ण जी के मस्तक पर गहरा आघात किया, जिससे उन्होंने तलवार बनाई और माँ काली पर वार किया. इस तरह संत तोताराम जी ने रामकृष्ण जी को अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण करना सिखाया. और तब से संत तोताराम जी रामकृष्ण जी के गुरु हो गए.

Short Essay on Ramakrishna Jayanti

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रामकृष्ण परमहंस का जीवन परिचय व इतिहास 

स्वामी रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को बंगाल के हुगली जिले में कामारपुकुर नामक ग्राम में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके बचपन का नाम गदाधर था. उनके पिता खुदीराम चट्टोपाध्याय तथा माता चन्द्रमणि दोनों ही बड़े धार्मिक थे.

उनके पिता काली माँ के परम भक्त थे. और दक्षिणेश्वर काली मंदिर में रामकृष्ण को बचपन से ही ले जाया करते थे. कुछ बड़े होने पर गाँव की पाठशाला में दाखिला करा दिया गया, लेकिन पढ़ाई में उनका मन नही लगा. वे प्रभु भक्ति के गीत गाया करते थे.

रामकृष्ण परमहंस और माँ काली प्रेरक प्रसंग (Ramkrishna Paramhans and maa Kali)

कलकत्ता में रानी रासमणि द्वारा बनाए गये बहुत बड़े मंदिर में उनके बड़े भाई रामकुमार पुजारी थे. अपने भाई के पास रहकर रामकृष्ण परमहंस ने काली की पूजा करनी शुरू कर दी. वे काली माँ का श्रृंगार करते, उनकी प्रतिमा के सामने घंटों बैठकर पूजा करते हुए रोया करते थे.

माँ मैं अनपढ़ हूँ, मुझे पूजा करनी नही आती. हे माँ मुझे दर्शन दो. मुझे धन दौलत नही चाहिए. माँ काली की भक्ति में पागल होकर रामकृष्ण एक बार तलवार निकालकर माँ काली से बोले- हे माँ दर्शन दो, नही तो मैं आत्मघात कर लूगा. उनकी सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर माँ काली ने उन्हें साक्षात् दर्शन दिए.

23 वर्ष की अवस्था में शारदामणि नामक कन्या से उनका विवाह बलपूर्वक करा दिया गया. कुछ दिनों तक ससुराल में रहने के पश्चात शारदामणि मायके चली गई. कई सालों बाद रामकृष्ण परमहंस ससुराल गये और शारदामणि को माँ कहकर उनकी पूजा करने लगे.

ऐसा देखकर उसकी सासू माँ उन्हें पागल समझ बैठी. वे वापिस कलकत्ता लौट आए. जब शारदामणि कलकत्ता आई तो उन्होंने समझ लिया कि रामकृष्ण पागल नही है. उन्होंने तो माँ काली की भक्ति साध ली हैं. तोतागिरी नामक एक सन्यासी ने रामकृष्ण को सन्यास की दीक्षा दी.

जिस समाधि को उन्होंने 40 वर्षों तक सीखा, उसे रामकृष्ण ने बात बात में सीख लिया. रामकृष्ण को लोग अब परमहंस के नाम से जानने लगे. कहा जाता है कि माँ काली उनके साथ एक सामान्य बालिका की तरह आकर उनके कार्यों में हाथ बटाया करती थी. बड़े बड़े योगी महात्मा रामकृष्ण के दर्शन करने आते थे.

परमहंस विवेकानंद को अपना प्रिय शिष्य मानते थे. उन्होंने विवेकानंद को मानव धर्म व सच्चे धर्म की सिद्धियाँ प्रदान की. सन 1885 में रामकृष्ण का स्वास्थ्य अचानक खराब हो गया. उपचार के नाम पर वे समाधि लगाकर बैठ जाते थे. 16 अगस्त 1886 को उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया. उनकी मृत्यु के बाद बेलूर मठ में रामकृष्ण मिशन का प्रधान केंद्र स्थापित कर उनकी प्रतिमा बनाई गई.

Ramakrishna Jayanti essay in hindi pdf

1. प्रस्तावना:

भारतीय भूमि सच्चे साधु-महात्माओं की गौरवभूमि भी रही है, जिन्होंने धर्म-साधना एवं अपनी योग और साधना से न केतन आत्मसिद्धि प्राप्त की, बल्कि धार्मिक नवचेतना से समाज को नयी दिशा दी ।
मानवतावादी धर्म का शंखनाद करने वाले धर्मगुरुओं में स्वामी रामकृष्ण परमहंस ऐसे ही योगी एवं साधक रहे हैं, जिन्होंने स्वामी विवेकानन्द जैसे आदर्श शिष्य की आध्यात्मिक ज्ञान-पिपासा को शान्त किया । उसी आत्मज्ञान से प्रेरित होकर विवेकानन्द ने विश्वधर्म सम्मेलन में भारतीय धर्म की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या की ।

2. जीवन परिचय:

स्वामी रामकृष्ण परमहंस का जन्म 1836 को फागुन सुदी दूज को बंगाल के हुगली जिले में कामारपुकुर ग्राम में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था । उनके बचपन का नाम गदाधर था । रामकृष्ण नाम तो उनके गुरु का दिया हुआ था । उनके पिता खुदीराम चट्टोपाध्याय तथा माता चन्द्रमणी दोनों ही बड़े धार्मिक थे । उनके पिता दक्षिणेश्वर काली मन्दिर में रामकृष्ण को बचपन से ही ले जाया करते थे ।

वे काली मां के परमभक्त थे । कुछ बड़े होने पर गांव की पाठशाला में उन्हें भरती करा दिया गया, लेकिन पाठशाला में उनका मन नहीं लगा । पेट भरने की विद्या पढ़कर क्या होगा? ऐसा कहकर वे प्रभु के भक्ति के गीत गाया करते थे । कलकत्ता के दक्षिण में रानी रासमणि द्वारा बनाया गया बहुत बड़ा मन्दिर था, जहां उनके बड़े भाई रामकुमार पुजारी थे ।

अपने भाई के पास चले आने के बाद रामकृष्ण ने पूजा का भार अपने पर ले लिया । वे मां काली का घण्टों शृंगार करते । उनकी प्रतिमा के सामने घण्टों बैठकर पूजा करते हुए रोया करते थे । ”मां! मैं अनपढ़ हूं । मुझे पूजा करने का ढंग नहीं आता । हे मां! मुझे दर्शन दो । मुझे धन-दौलत नहीं चाहिए ।”

मां काली की रात-दिन भक्ति में उनकी हालत पागलों जैसी हो गयी । सांसारिक चीजों से विरक्त होकर वे काली को ही अपना सर्वस्व समर्पित कर चुके थे । एक बार तो पास ही तंगी हुई तलवार निकालकर मां काली से बोले- ”हे मां! दर्शन दो नहीं, तो आत्मघात कर लूंगा ।” उनकी सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर मां काली ने उन्हें साक्षात दर्शन दिये । वे मां काली से अभिमान भाव को दूर करने, सबके प्रति समानता का भाव रखने की आत्मशक्ति मांगते थे ।

उनकी साधना और विचारों को सुनकर लोग उन्हें पागल भी कहने लगे । वे मिट्टी और रुपये को एक बराबर समझते थे । काली मां की साधना में कई बार वे पूजा करते-करते बेहोश हो जाया करते थे । कुछ विघ्नसन्तोषियों ने उनकी परीक्षा लेने के लिए एक वेश्या को भी उनके पास भेजा था । रामकृष्ण ने उन्हें मां कहकर सम्मान से पुकारा । उनका उपचार करने वाले वैद्य ने लोगों को इस सत्य से अवगत कराया कि रामकृष्ण पागल नहीं, अपितु मां काली के सच्चे भक्त व एक योगी हैं ।

23 वर्ष की अवस्था में शारदामणि नामक कन्या से उनका विवाह बलपूर्वक करा दिया गया । कुछ दिनों तक ससुराल में रहने के पश्चात शारदामणि मायके चली गयीं । कई सालों बाद रामकृष्ण ससुराल गये । वहां जाकर तो उन्होंने शारदामणि को मां कहकर उनकी पूजा ही कर दी । सासु मां अपने दामाद का ऐसा विचित्र व्यवहार देखकर उन्हें पागल समझ बैठीं । पत्नी को माता के पद पर बैठाकर वे कलकत्ता लौट आये ।

18 वर्षीय शारदामणि पति को ठीक तरह से समझने के लिए कलकत्ता आयीं, तो कुछ ही दिनों में उन्होंने यह समझ लिया कि रामकृष्ण पागल नहीं । उन्हें तो मां काली की भक्ति की साध है । पति की सेवा में रहने वाली शारदामणि को उन्होंने मां काली का दूसरा रूप बताया ।

तोतागिरी नामक एक योगी विद्वान संन्यासी ने तो दक्षिणेश्वर मन्दिर के इस पुजारी रामकृष्ण के तेजपूर्ण चेहरे को देखते ही समझ लिया कि यह बड़ा साधक है । उन्होंने रामकृष्ण को संन्यास की दीक्षा दी । तोतागिरी ने उन्हें समाधि लगाना सिखाया । जिस समाधि को उन्होंने 40 वर्षों की योग-साधना में सीखा था, उसे रामकृष्ण ने बात-बात में सीख लिया ।

रामकृष्ण को समाधि अवस्था में देखकर तोतागिरी ने कमरे का ताला बन्द कर दिया था । दरवाजा खोलने पर देखा कि रामकृष्ण की समाधि अचल थी । उन्होंने होशियारी से उनकी समाधि भंग की और वे वहीं एक वर्ष तक रह गये । रामकृष्ण को अब लोग परमहंस के नाम से जानने लगे । कहा जाता है कि मां काली उनके साथ एक सामान्य बालिका की तरह आकर उनके कार्यों में हाथ बंटाया करती थीं । नेवैद्य सामग्री साक्षात ग्रहण करती थीं ।

उनकी प्रसिद्धि को सुनकर लोग तो क्या, यहां तक कि बड़े-बड़े योगी, महात्मा काशी, प्रयाग, मथुरा तीर्थस्थानों में जाने की बजाय कलकत्ता आकर रामकृष्ण के दर्शन कर स्वयं को धन्य समझते थे । उनके भजन-कीर्तन सुनने लाखों श्रद्धालु एकत्र हो उसमें रम जाते थे । वे गरीबों को भोजन देते, कपड़े बांटते और काली मां की भक्ति में सुध-बुध खो बैठते ।

कहा जाता है कि उनके विरोधियों ने मछुआ बाजार की 10-15 वेश्याओं के अश्लील हाव-भावों के साथ रामकृष्ण को एक कमरे में बन्द कर दिया । रामकृष्ण उन सभी को मां आनन्दमयी की जय कहकर समाधि लगाकर बैठ गये । चमत्कार ऐसा हुआ कि वे सभी भक्ति भाव से प्रेरित होकर अपने इस दुष्कृत्य पर शर्मसार हुई और उन्होंने रामकृष्ण से माफी मांगी ।

कुछ लोगों ने उन्हें धन आदि का प्रलोभन भी देना चाहा था ।  परमहंस विवेकानन्द को अपना प्रिय शिष्य मानते थे । एक सच्चे गुरु के रूप में विवेकानन्द रामकृष्ण को पाकर धन्य थे । उन्होंने विवेकानन्द को मानव धर्म व सच्चे धर्म की सिद्धियां प्रदान कीं ।

सन् 1885 को रामकृष्ण का स्वास्थ्य अचानक खराब हो चला था । नाड़ी की गति देखकर शिष्य रो पड़े थे । उनके गले का गण्डमाला रोग अब बढ़ चला था । उपचार के नाम पर वे समाधि लगाकर बैठ जाया करते थे । भाद्रपद कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को परमहंस ने अपना शरीर छोड़ दिया ।

परमहंस के शरीर छोड़ने के बाद विवेकानन्द अपने संन्यासी साथियों के साथ देश-विदेश में धर्म प्रचार करने निकल पड़े । स्वामी परमहंस के उपदेशों को अमेरिका में भी सुनाया । उनकी मृत्यु के बाद बेलूर मठ में रामकृष्ण मिशन का प्रधान केन्द्र स्थापित कर उनकी प्रतिमा बनाई गयी ।

Ramakrishna Jayanti essay in hindi 150 words

रामकृष्ण परमहंस का जीवन परिचय व इतिहास 

स्वामी रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को बंगाल के हुगली जिले में कामारपुकुर नामक ग्राम में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके बचपन का नाम गदाधर था. उनके पिता खुदीराम चट्टोपाध्याय तथा माता चन्द्रमणि दोनों ही बड़े धार्मिक थे.

उनके पिता काली माँ के परम भक्त थे. और दक्षिणेश्वर काली मंदिर में रामकृष्ण को बचपन से ही ले जाया करते थे. कुछ बड़े होने पर गाँव की पाठशाला में दाखिला करा दिया गया, लेकिन पढ़ाई में उनका मन नही लगा. वे प्रभु भक्ति के गीत गाया करते थे.

रामकृष्ण परमहंस और माँ काली प्रेरक प्रसंग (Ramkrishna Paramhans and maa Kali)

कलकत्ता में रानी रासमणि द्वारा बनाए गये बहुत बड़े मंदिर में उनके बड़े भाई रामकुमार पुजारी थे. अपने भाई के पास रहकर रामकृष्ण परमहंस ने काली की पूजा करनी शुरू कर दी. वे काली माँ का श्रृंगार करते, उनकी प्रतिमा के सामने घंटों बैठकर पूजा करते हुए रोया करते थे.

माँ मैं अनपढ़ हूँ, मुझे पूजा करनी नही आती. हे माँ मुझे दर्शन दो. मुझे धन दौलत नही चाहिए. माँ काली की भक्ति में पागल होकर रामकृष्ण एक बार तलवार निकालकर माँ काली से बोले- हे माँ दर्शन दो, नही तो मैं आत्मघात कर लूगा. उनकी सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर माँ काली ने उन्हें साक्षात् दर्शन दिए.

23 वर्ष की अवस्था में शारदामणि नामक कन्या से उनका विवाह बलपूर्वक करा दिया गया. कुछ दिनों तक ससुराल में रहने के पश्चात शारदामणि मायके चली गई. कई सालों बाद रामकृष्ण परमहंस ससुराल गये और शारदामणि को माँ कहकर उनकी पूजा करने लगे.

ramakrishna jayanti essay in hindi 10 lines

श्री रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी, 1836 को पश्चिम बंगाल में हुआ था।
वह 19वीं सदी में बंगाल में एक हिंदू संत और धार्मिक नेता थे।
श्री रामकृष्ण परमहंस ने शारदा देवे से विवाह किये थे।
श्री रामकृष्ण परमहंस काली मंदिर, दक्षिणेश्वर में पुजारी बने।
रामकृष्ण परमहंस के कई गुरु थे जिनमें तोतापुरे, भैरवी ब्राह्मणी शामिल हैं।
श्री रामकृष्ण को गदाधर चट्टोपाध्याय के नाम से भी जाना जाता है।
उन्हें पवित्र लोगों की सेवा करने और उनके प्रवचन सुनने का शौक था।
रामकृष्ण एक परम रहस्यवादी और सच्चे योगी थे।
रामकृष्ण ईश्वरचंद्र विद्यासागर और बंकिम चंडिका चटर्जी के समकालीन थे।
श्री रामकृष्ण ने 16 अगस्त 1886 को अंतिम सांस ली।

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