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नेचर का हमारे जीवन में बहुत महत्व है नेचर की मदद से ही हम अपना जीवन व्यतीत करते है नेचर भगवान के द्वारा दिया गया वह अनोखा उपहार है | प्रकृति एक बहुत खबसूरत चीज़ है है जिसमे की कई चीज़े आती है और जो हमें भगवान के द्वारा दी गयी है | इसीलिए कई महान लोगो व कविजयो द्वारा उनके दिमाग में कुछ न कुछ प्रकार के विचार दिमाग में आते रहते है इसीलिए हम आपको उन्ही के द्वारा लिखी गयी कुछ कविताओं के बारे में बताते है जिन कविताओं के माध्यम से आप प्रकृति की खूबसूरती के बारे में जान सकते है |
प्रकृति पर हिन्दी कवितायेँ
कलयुग में अपराध का बढ़ा अब इतना प्रकोप आज फिर से काँप उठी देखो धरती माता की कोख !! समय समय पर प्रकृति देती रही कोई न कोई चोट लालच में इतना अँधा हुआ मानव को नही रहा कोई खौफ !!
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कही बाढ़, कही पर सूखा कभी महामारी का प्रकोप यदा कदा धरती हिलती फिर भूकम्प से मरते बे मौत !! मंदिर मस्जिद और गुरूद्वारे चढ़ गए भेट राजनितिक के लोभ वन सम्पदा, नदी पहाड़, झरने इनको मिटा रहा इंसान हर रोज !! सबको अपनी चाह लगी है नहीं रहा प्रकृति का अब शौक “धर्म” करे जब बाते जनमानस की दुनिया वालो को लगता है जोक !! कलयुग में अपराध का बढ़ा अब इतना प्रकोप आज फिर से काँप उठी देखो धरती माता की कोख !!
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Prakriti Par Kavita Bachon Ke Liye
जय भारत माँ जय गंगा माँ जय नारी माँ जय गौ माँ ।। माँ तुम्हारा ये प्यार है हम लोगो का संस्कार है ।। माँ तुम्हारा जो आशीर्वाद है हमारे दिल मे आपका वास है ।। माँ हमारे दिल की धङकन मे तुम्हारे जीवन की तस्वीर है ।। माँ हम तुम्हे अवश्य बचायेंगे माँ तुम्हारे दूघ की ताकत को दुनिया को दिखलायेंगे ।। हम भारत माँ के वीर है हम नारी माँ के पूत है हम गौ माँ के सपूत है हम गंगा माँ के दूत है ।। हमने लाल दूध पिया है नारी माँ का हमने पीला दूध पिया है गौ माँ का हमने सफेद दूध पिया है गंगा माँ का हमने हरा दूध पिया है भारत माँ का ।। इस दूध की ताकत का अंदाज नही दुश्मन की छाती को फाङे हम पर ये अहसान नही हमने लाल दूध पिया है नारी माँ का ।।
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ह्बायों के रुख से लगता है कि रुखसत हो जाएगी बरसात बेदर्द समां बदलेगा और आँखों से थम जाएगी बरसात . अब जब थम गयी हैं बरसात तो किसान तरसा पानी को बो वैठा हैं इसी आस मे कि अब कब आएगी बरसात . दिल की बगिया को इस मोसम से कोई नहीं रही आस आजाओ तुम इस बे रूखे मोसम में बन के बरसात . चांदनी चादर बन ढक लेती हैं जब गलतफेहमियां हर रात तब सुबह नई किरणों से फिर होती हें खुसिओं की बरसात . सुबह की पहली किरण जब छू लेती हें तेरी बंद पलकें चारों तरफ कलिओं से तेरी खुशबू की हो जाती बरसात . नहा धो कर चमक जाती हर चोटी धोलाधार की जब पश्चिम से बादल गरजते चमकते बनते बरसात
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प्रकृति प्रेम पर कविता
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे ये हवाओ की सरसराहट ये पेड़ो पर फुदकते चिड़ियों की चहचहाहट ये समुन्दर की लहरों का शोर ये बारिश में नाचते सुंदर मोर कुछ कहना चाहती है हमसे ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे ये खुबसूरत चांदनी रात ये तारों की झिलमिलाती बरसात ये खिले हुए सुन्दर रंगबिरंगे फूल ये उड़ते हुए धुल कुछ कहना चाहती है हमसे ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे ये नदियों की कलकल ये मौसम की हलचल ये पर्वत की चोटियाँ ये झींगुर की सीटियाँ कुछ कहना चाहती है हमसे ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे
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धरती माँ कर रही है पुकार । पेङ लगाओ यहाँ भरमार ।। वर्षा के होयेंगे तब अरमान । अन्न पैदा होगा भरमार ।। खूशहाली आयेगी देश में । किसान हल चलायेगा खेत में ।। वृक्ष लगाओ वृक्ष बचाओ । हरियाली लाओ देश में ।। सभी अपने-अपने दिल में सोच लो । सभी दस-दस वृक्ष खेत में रोप दो ।। बारिस होगी फिर तेज । मरू प्रदेश का फिर बदलेगा वेश ।। रेत के धोरे मिट जायेंगे । हरियाली राजस्थान मे दिखायेंगे ।। दुनियां देख करेगी विचार । राजस्थान पानी से होगा रिचार्ज ।। पानी की कमी नही आयेगी । धरती माँ फसल खूब सिंचायेगी ।। खाने को होगा अन्न । किसान हो जायेगा धन्य ।। एक बार फिर कहता है मेरा मन । हम सब धरती माँ को पेङ लगाकर करते है टनाटन ।। “जय धरती माँ”
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नदियों के बहाव को रोका और उन पर बाँध बना डाले जगह जगह बहती धाराएँ अब बन के रह गई हैं गंदे नाले जब धाराएँ सुकड़ गई तो उन सब की धरती कब्जा ली सीनों पर फ़िर भवन बन गए छोड़ा नहीं कुछ भी खाली अच्छी वर्षा जब भी होती हैं पानी बाँधो से छोड़ा जाता है वो ही तो फ़िर धारा के सीनों पर भवनों में घुस जाता हैं इसे प्राकृतिक आपदा कहकर सब बाढ़ बाढ़ चिल्लाते हैं मीडिया अफसर नेता मिलकर तब रोटियां खूब पकाते हैं
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प्रकृति की सुन्दरता पर कविता | प्रकृति के सौंदर्य पर कविता
हे भगवान् तेरी बनाई यह धरती , कितनी ही सुन्दर नए – नए और तरह – तरह के एक नही कितने ही अनेक रंग ! कोई गुलाबी कहता , तो कोई बैंगनी , तो कोई लाल तपती गर्मी मैं हे भगवान् , तुम्हारा चन्दन जैसे व्रिक्स सीतल हवा बहाते खुशी के त्यौहार पर पूजा के वक़्त पर हे भगवान् , तुम्हारा पीपल ही तुम्हारा रूप बनता तुम्हारे ही रंगो भरे पंछी नील अम्बर को सुनहरा बनाते तेरे चौपाये किसान के साथी बनते हे भगवान् तुम्हारी यह धरी बड़ी ही मीठी
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क्यूँ मायूस हो तुम टूटे दरख़्त क्या हुआ जो तुम्हारी टहनियों में पत्ते नहीं क्यूँ मन मलीन है तुम्हारा कि बहारों में नहीं लगते फूल तुम पर क्यूँ वर्षा ऋतु की बाट जोहते हो क्यूँ भींग जाने को वृष्टि की कामना करते हो भूलकर निज पीड़ा देखो उस शहीद को तजा जिसने प्राण, अपनो की रक्षा को कब खुद के श्वास बिसरने का उसने शोक मनाया है सहेजने को औरों की मुस्कान अपना शीश गवाया है क्या हुआ जो नहीं हैं गुंजायमान तुम्हारी शाखें चिडियों के कलरव से चीड़ डालो खुद को और बना लेने दो किसी ग़रीब को अपनी छत या फिर ले लो निर्वाण किसी मिट्टी के चूल्हे में और पा लो मोक्ष उन भूखे अधरों की मुस्कान में नहीं हो मायूस जो तुम हो टूटे दरख़्त……
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प्रकृति पर आधारित कविता
लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का गर्मी तो अभी दूर है वर्षा ना आएगी फूलों की महक हर दिशा में फ़ैल जाएगी पेड़ों में नई पत्तियाँ इठला के फूटेंगी प्रेम की खातिर सभी सीमाएं टूटेंगी सरसों के पीले खेत ऐसे लहलहाएंगे सुख के पल जैसे अब कहीं ना जाएंगे आकाश में उड़ती हुई पतंग ये कहे डोरी से मेरा मेल है आदि अनंत का लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का ज्ञान की देवी को भी मौसम है ये पसंद वातवरण में गूंजते है उनकी स्तुति के छंद स्वर गूंजता है जब मधुर वीणा की तान का भाग्य ही खुल जाता है हर इक इंसान का माता के श्वेत वस्त्र यही तो कामना करें विश्व में इस ऋतु के जैसी सुख शांति रहे जिसपे भी हो जाए माँ सरस्वती की कृपा चेहरे पे ओज आ जाता है जैसे एक संत का लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का
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बाग़ में खुशबू फैल गई , बगिया सारी महक गयी, रंग-बिरंगे फूल खिले, तितलियाँ चकरा गईं, लाल ,पीले ,सफ़ेद गुलाब ,गेंदा , जूही ,खिले लाजवाब , नई पंखुरियां जाग गयी, बंद कलियाँ झांक रही . चम्पा , चमेली , सूर्यमुखी , सुखद पवन गीत सुना रही महकते फूलों की क्यारी , सब के मन को लुभा रही, धीरे से छू कर देखो खुशबू , तुम पर खुश्बू लुटा रही, महकते फूलों की डाली, मन ही मन इतरा रही , हौले -हौले पाँव धरो, भंवरों की गुंजार बड़ी, ओस की बूंदे चमक रहीं , पंखुरिया हीरों सी जड़ी, सब को सजाते महकते फूल , सब को रिझाते महकते फूल, महकते फूलों से सजे द्वार ,महकते फूल बनते उपहार …………
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हे ईस्वर तेरी बनाई यह धरती , कितनी ही सुन्दर नए – नए और तरह – तरह के एक नही कितने ही अनेक रंग ! कोई गुलाबी कहता , तो कोई बैंगनी , तो कोई लाल तपती गर्मी मैं हे ईस्वर , तुम्हारा चन्दन जैसे व्रिक्स सीतल हवा बहाते खुशी के त्यौहार पर पूजा के वक़्त पर हे ईस्वर , तुम्हारा पीपल ही तुम्हारा रूप बनता तुम्हारे ही रंगो भरे पंछी नील अम्बर को सुनेहरा बनाते तेरे चौपाये किसान के साथी बनते हे ईस्वर तुम्हारी यह धरी बड़ी ही मीठी
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