बाल गंगाधर तिलक पर निबंध – Short Essay on Bal Gangadhar Tilak in Hindi in 500 words for School Class 1-12

Essay On Bal Gangadhar Tilak

बाल गंगाधर तिलक पहले नेता थे जिन्होंने ‘स्वराज’ या आत्म-शासन की वकालत की थी। वह एक भारतीय राष्ट्रवादी, शिक्षक, वकील, पत्रकार और सामाजिक सुधारक थे जो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के पहले लोकप्रिय नेता थे। ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा उन्हें भारतीय अशांति का जनक कहा जाता था। वह स्वराज के पहले और सबसे मजबूत समर्थकों में से एक थे और एक मजबूत कट्टरपंथी थे। उनका प्रसिद्ध उद्धरण है स्वराज मेरा जन्मजात है, और मेरे पास यह होगा!” | आज भी भारत में उन्हें अच्छे से याद किया जाता है। उन्होंने भारतीय गृह शासन आंदोलन के दौरान पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के साथ घनिष्ठ गठबंधन भी बनाया। आज के इस पोस्ट में हम आपको 250 words essay on bal gangadhar tilak, essay on bal gangadhar tilak in hindi, essay on bal gangadhar tilak 500 words, essay on freedom fighter bal gangadhar tilak, lokmanya tilak speech in english pdf, bal gangadhar tilak par essay, bal gangadhar tilak speech freedom is my birthright, bal gangadhar tilak information, बाल गंगाधर तिलक पर निबन्ध इन मराठी, हिंदी, इंग्लिश, बांग्ला, गुजराती, तमिल, तेलगु, आदि की जानकारी देंगे जिसे आप अपने स्कूल के निबंध प्रतियोगिता, कार्यक्रम या भाषण प्रतियोगिता में प्रयोग कर सकते है| ये निबंध खासकर कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए दिए गए है|

Essay On Bal Gangadhar Tilak 500 Words

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बाल गंगाधर तिलक का जन्म एक सुसंस्कृत मध्यम वर्ग के ब्राह्मण परिवार में 23 जुलाई 1856 में रत्नागिरी, महाराष्ट्र, भारत में हुआ था। क्योंकि उनका जन्म महाराष्ट्र राज्य के तटीय क्षेत्र में हुआ था उन्होंने अपने जीवन के पहले 10 साल वहां रहे थे। बाल गंगाधर तिलक जी के पिता एक शिक्षक और विख्यात व्याकरणकर्ता थे जिन्हें बाद में पूना में नौकरी मिले जिसके कारण उनका परिवार वहां रहने लगे।

बाल गंगाधर तिलक के पिता का नाम श्री गंगाधर तिलक और माता का नाम पार्वतीबाई गंगाधर था। लोकमान्य तिलक जी ने गणित और संस्कृत में अपनी बैचलर डिग्री(Bachelor degree) पूना(Poona) के डेक्कन कॉलेज(Deccan College) से 1876 में पूरी की थी। उसके बाद उन्होंने 1879 में बंबई यूनिवर्सिटी(University of Bombay) से अपनी कानून की पढाई पूरी की थी उसके साथ-साथ वह पूना के एक प्राइवेट स्कूल में गणित के अध्यापक के रूप में कार्य करते थे।

इसी स्कूल से उनके जीवन का राजनीतिक करियर शुरू हुआ और उन्होंने 1884 में डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी (Deccan Education Society) को शुरू करने के बाद उस स्कूल को एक यूनिवर्सिटी के रूप में बदल दिया। उन्होंने उस समय के युवाओं को अंग्रेजी शिक्षा देने पर जोर दिया। उनके समाज़ के सभी लोगों से निस्वार्थ सेवा के आदर्श का पालन करने की उम्मीद थी परन्तु जब पता चला कि कुछ सदस्य स्वयं के फायदे के लिए इससे जुड़े हुए हैं तो उन्होंने सोसाइटी को छोड़ दिया।

उसके बाद उन्होंने केसरी (Kesari) और अंग्रेज़ी में दी महरत्ता (The Mahratta) नाम के दो समाचार पत्रों का प्रकाशन कार्य शुरू किया। उन दोनों अख़बारों के कारण से तिलक ब्रिटिश शासन के उन कट्टर आलोचनाओं और उदार राष्ट्रवादियों के लिए व्यापक रूप से जाने जाते थे जिन्होंने पश्चिमी देशों के साथ सामाजिक सुधारों की वकालत की और संवैधानिक सीमाओं के साथ राजनीतिक सुधारों का समर्थन किया।

Essay On Bal Gangadhar Tilak in Hindi

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लोकमान्य तिलक भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के उन अमर तथा श्रेष्ठ बलिदानियों में गिने जाते हैं, जो अपनी उग्रवादी चेतना, विचारधारा, साहस, बुद्धि व अटूट देशभक्ति के लिए जाने जाते हैं । उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व एक ऐसे संघर्ष की कहानी है, जिसने भारत में एक नये युग का निर्माण किया ।

भारतवासियों को एकता और संघर्ष का ऐसा पाठ सिखाया कि वे स्वराज्य हेतु संगठित हो उठे । वे एक राजनेता ही नहीं, महान् विद्वान, दार्शनिक भी थे । स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है का नारा बुलन्द करने वाले तिलक स्वाधीनता के पुजारी थे ।

बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था । उनके दादाजी केशवरावजी पेशवा राज्य में उच्च पद पर आसीन थे । अंग्रेज सरकार द्वारा पेशवा राज्य के विघटन के बाद उनकी पारिवारिक स्थिति अच्छी न थी ।

तिलक के पिता गंगाधर पंत अध्यापक थे । उन्होंने बाल गंगाधर को संस्कृत, मराठी, गणित का अच्छा ज्ञान घर पर ही करा दिया था । वे 1866 में पूना के स्कूल में भर्ती हुए । उनकी स्मरणशक्ति अदभुत थी । संस्कृत के सहस्त्रों श्लोक उन्हें कण्ठस्थ थे । अपनी निर्भीक प्रवृत्ति के कारण वे अध्यापकों से हमेशा उलझ जाया करते थे ।

1871 को 15 वर्ष की आयु में उनका विवाह तापीबाई से हो गया । 1873 में तिलक ने डेकन कॉलेज में प्रवेश ले लिया । दुर्भाग्यवश वे अनुतीर्ण हो गये । 1876 में उन्होंने प्रथम श्रेणी में बी०ए० तथा 1876 में कानून की परीक्षा पास की । एम०ए० की परीक्षा में वे दो बार अनुत्तीर्ण रहे ।

तिलकजी का भारतीय राजनीति में प्रवेश 1880 में हुआ । उन्होंने बलवन्त वासुदेव फडके की सहायता से विद्रोह का झण्डा फहराकर ब्रिटिश शासन के प्रति अपना विरोध प्रकट किया । तिलक ने जनता को लार्ड रिपन के विचारों से अवगत कराया । सन् 1880 में पूना में न्यू इंग्लिश स्कूल की स्थापना की । इस तरह शिक्षा के क्षेत्र में अपने कार्य की शुरुआत की ।

1881 में पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश कर मराठा केसरी पत्रिका का संचालन किया । इसके माध्यम से जनजागरण व देशी रियासतों का पक्ष प्रस्तुत किया । ब्रिटिश सरकार की आलोचना के कारण उन्हें चार वर्ष का कारावास भोगना पड़ा । जेल से बाहर आकर उन्होंने डैकन एजूकेशन सोसायटी की स्थापना तथा फग्यूर्सन कॉलेज की स्थापना की । सन् 1888-89 में शराबबन्दी, नशाबन्दी व भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाते हुए पत्रों के माध्यम से कार्रवाई की ।

Essay On Bal Gangadhar Tilak in English

Essay On Bal Gangadhar Tilak

The one man who is known as “The Father of Indian Unrest” is “Lokmanya” Bal Gandhar Tilak. These two titles of Tilak have the different meanings. According to Britishers, he was the father of Indian unrest because he was the man who stood the Indian people for the first time against British Government and from that time the rest of British Government in India was gone and never came back.

Tilak was the man who awaken the Indians about their rights and worst condition from where they had to live because of the British Raj. Tilak was strict against the rule of any other country or person over India.

He declared, Swaraj (self rule) is my birth right and 1 must take it” His slogan was on the mouth of every Indian and before Gandhiji he was the first man which approach towards Indians was so deep, that is why he was called ‘The Father of Indian Unrest” According to Indians he was “Lokmanya” it means that he was a man who was honoured by the people of India.

His approach towards the people was too deep and he was the first man who stood the people in front of British Raj. Tilak was born on July 23, 1856 at Ratanagiri, a small coastal town in a middle class family. He passed B.A. in first class. After Graduation in law he helped to found a school which laid emphasis on nationalism. He started newspapers “Kesari and “Maratha”. Both papers tried to teach Indians of their glorious past and remainded them to be self-reliant (Swadeshi)-

After capturing political power in India the British Government damaged the financial structure of India. The British Government took the raw material from India and after manufacturing goods over their factories imposed these goods to Indian people and they had to bought them because the Indian industries was closed by the Britishers. For Britishers India became such a place from where they can grasp the raw material for their industries and then sale their manufacturing goods here.

Short Essay on Bal Gangadhar Tilak in Hindi

बाल गंगाधर तिलक को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का जनक माना जाता है| वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे| वह एक समाज सुधारक, स्वतंत्रता सेनानी, राष्ट्रीय नेता के साथ-साथ भारतीय इतिहास, संस्कृत, हिन्दू धर्म, गणित और खगोल विज्ञानं जैसे विषयों के विद्वान भी थे| बाल गंगाधर तिलक ‘लोकमान्य’ के नाम से भी जाने जाते थे| स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उनके नारे ‘स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे ले कर रहूँगा’ ने लाखों भारतियों को प्रेरित किया|

बाल गंगाधर तिलक का जन्म २३ जुलाई १८५६ को महाराष्ट्र के रत्नागिरी के एक चित्पवन ब्राह्मण कुल में हुआ था| उनके पिता गंगाधर रामचन्द्र तिलक संस्कृत के विद्वान और एक प्रख्यात शिक्षक थे| तिलक एक प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे और गणित विषय से उनको खास लगाव था| बचपन से ही वे अन्याय के घोर विरोधी थे और अपनी बात बिना हिचक के साफ़-साफ कह जाते थे| आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने वाले पहली पीढ़ी के भारतीय युवाओं में से एक तिलक भी थे|

जब बालक तिलक महज १० साल के थे तब उनके पिता का स्थानांतरण रत्नागिरी से पुणे हो गया| इस तबादले से उनके जीवन में भी बहुत परिवर्तन आया| उनका दाखिला पुणे के एंग्लो-वर्नाकुलर स्कूल में हुआ और उन्हें उस समय के कुछ जाने-माने शिक्षकों से शिक्षा प्राप्त हुई| पुणे आने के तुरंत बाद उनके माँ का देहांत हो गया और जब तिलक १६ साल के थे तब उनके पिता भी चल बसे| तिलक जब मैट्रिकुलेशन में पढ़ रहे थे उसी समय उनका विवाह एक १० वर्षीय कन्या सत्यभामा से करा दिया गया| मैट्रिकुलेशन की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने डेक्कन कॉलेज में दाखिला लिया| सन १८७७ में बाल गंगाधर तिलक ने बी. ए. की परीक्षा गणित विषय में प्रथम श्रेणी के साथ उत्तीर्ण किया। आगे जा कर उन्होंने अपनी पढाई जारी रखते हुए एल. एल. बी. डिग्री भी प्राप्त किया|

Bal Gangadhar Tilak Essay in Hindi

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को उन स्वतंत्रता सेनानियों में से एक माना जाता है जो अपनी उग्रवादी चेतना , विचारधारा , साहस , बुद्धि और अपनी अटूट देशभक्ति के कारण जाने जाते हैं। बाल गंगाधर तिलक का व्यक्तित्व और कृतित्व एक ऐसी संघर्ष की कहानी है जिन्होंने एक नए युग का निर्माण किया था।

इन्होने भारतवासियों को एकता और संघर्ष का एक ऐसा पाठ पढ़ाया था जिससे वे स्वराज्य के लिए संगठित हो उठे थे। बाल गंगाधर तिलक एक राजनेता ही नहीं बल्कि एक महान विद्वान् और दार्शनिक भी थे। बाल गंगाधर तिलक जी ने ही स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार का नारा लगाया था ये स्वाधीनता में विश्वास रखने वाले पुरुष थे।

गंगाधर तिलक का जन्म : बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई , 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी के चिखली नमक गाँव में हुआ था। बाल गंगाधर तिलक जी का जन्म मध्यम वर्ग के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके दादा जी का नाम केशवराव था। इनकी माता का नाम पारवती बाई गंगाधर तिलक और पिता का नाम रामचन्द्र गंगाधर तिलक पन्त था। इनके दादाजी पेशवा राज्य के एक उच्च पद पर आसीन थे।

गंगाधर तिलक की शिक्षा : तिलक जी के पिता एक अध्यापक थे। उन्होंने बाल गंगाधर तिलक को संस्कृत , मराठी , गणित ,का अच्छी तरह से घर पर ही ज्ञान करा दिया था। सन् 1873 में बाल गंगाधर तिलक ने डेकन कॉलेज में दाखिला लिया था। बुरी किस्मत की वजह से वे असफल हो गये थे। बाल गंगाधर तिलक जी ने सन् 1876 में बी० ए० की परीक्षा को पहली श्रेणी से पास की थी। एम० ए० की परीक्षा में उन्हें दो बार असफलता प्राप्त हुई थी।

विद्यार्थी जीवन : बाल गंगाधर तिलक जी ने सन् 1866 में पूना के स्कूल में दाखिला लिया। बाल गंगाधर तिलक जी की स्मरण शक्ति बहुत ही प्रबल थी। संस्कृत के सभी श्लोक उन्हें मुंह जुबानी याद रहते थे। वे निर्भीक प्रवृति के व्यक्ति थे जिसकी वजह से वे अध्यापकों से उलझ जाते थे। उनके पिता ने उन्हें घर पर ही बहुत कुछ सिखाया था और उनकी स्मरण शक्ति के कारण वे पुरे विद्यालय में बहुत ही होनहार विद्यार्थी थे। उनके शिक्षक , माता , पिता और अन्य लोगों को उन पर बहुत ही गर्व था। वे अपने परिवार का हमेशा समर्थन करते रहते थे।

Bal Gangadhar Tilak Essay in Marathi

“भारतीय अशांतीचा पिता” म्हणून ओळखले जाणारे एक व्यक्ती म्हणजे “लोकमान्य” बाळ गंधर तिलक. टिळक या दोन शीर्षके वेगवेगळ्या अर्थ आहेत. ब्रिटीशांच्या मते, ते भारतीय अस्थिरतेचे जनक होते कारण ब्रिटीश सरकारच्या विरोधात त्यांनी प्रथम भारतीय लोकांकडे उभे केले होते आणि तेव्हापासून भारतातील उर्वरित ब्रिटिश सरकार गेले आणि परत कधी आले नाही.

टिळक हे असे भारतीय होते ज्यांनी ब्रिटिशांना आपल्या अधिकारांविषयी जागृत केले आणि ब्रिटीश राज्यामुळे त्यांना जिवे मारण्याची जिद्द होती. टिळक हे भारताच्या इतर कोणत्याही देशाच्या किंवा देशाच्या नियमानुसार कठोर होते.

त्यांनी जाहीर केले की, स्वराज (माझा नियम) हा माझा जन्मसिद्ध अधिकार आहे आणि 1 यालाच घेणे आवश्यक आहे “त्याचे घोषवाक्य प्रत्येक भारतीयांच्या तोंडी होते आणि गांधीजींच्या आधी तो भारतीयांचा विचार करणारा तो पहिला माणूस होता, म्हणूनच त्याला ‘ भारतीय अशांपासून पिता “भारतीयांच्या मते” लोकमान्य “म्हणजे ते भारताचे जनतेचे सन्मानित होते असा मनुष्य होता.

लोकांकडे त्यांचा दृष्टिकोन खूप गहन होता आणि तो ब्रिटीश राज्यापुढे लोकांच्या समोर उभा असलेला पहिला माणूस होता. टिळक यांचा जन्म 23 जुलै 1 9 56 रोजी रत्नागिरी येथे एका मध्यमवर्गीय कुटुंबातील लहानसा भाग म्हणून झाला. बी.ए. प्रथम श्रेणीत कायद्यातील पदवी मिळाल्यानंतर त्यांनी शाळेत जाण्यास मदत केली जे राष्ट्रीयत्वावर भर देते. त्यांनी केसरी आणि “मराठा” हे वृत्तपत्र सुरू केले. दोन्ही पेपरांनी आपल्या भव्य भूतकाळातील भारतीयांना शिकवण्याचा प्रयत्न केला आणि स्वत: ची स्वयंसहादी (स्वदेशी) ठेवली.

भारतात राजकीय सत्ता हस्तगत केल्यानंतर ब्रिटिश शासनाने भारताची आर्थिक संरचना खराब केली. ब्रिटीश सरकारने भारत सरकारकडून कच्चा माल हस्तगत केला आणि कारखान्यांनी वस्तू तयार केल्या नंतर या वस्तू भारतीय लोकांना लादल्या आणि त्यांना त्यांना विकत घ्यावे लागले कारण ब्रिटीशांनी भारतीय उद्योग बंद ठेवले होते. ब्रिटिझर्ससाठी भारत अशा ठिकाणी एक स्थान बनला जेथे ते त्यांच्या उद्योगांसाठी कच्चा माल ओळखू शकतील आणि नंतर त्यांचे उत्पादन सामान विकतील.

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