हजारी प्रसाद द्विवेदी की कविता – Hazari Prasad Dwivedi Poems in Hindi Pdf Download

Hazari Prasad Dwivedi Poems in Hindi

आचार्य हज़ारी प्रसाद जी का नाम भारत के जाने माने हिंदी साहित्य के वरिष्ठ निबंधकार में आता है| उनका जन्म भारत के उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में आरत दुबे का छपरा नामक गांव में हुआ था| उन्होंने अपने जीवनकाल में बहुत से हिंदी एवं संस्कृत की रचनाए की थी| विचार वितर्क, अशोक के फूल, प्राचीन भारत का कला विकास नाथ सम्प्रदाय, बाणभट्ट की आत्मकथा, हिन्दी साहित्य की भूमिका, आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है| आज के इस पोस्ट में हम आपको hazari prasad dwivedi kavita, हजारी प्रसाद द्विवेदी ki kavita, महावीर प्रसाद द्विवेदी की कविता, हजारी प्रसाद द्विवेदी की रचनाएँ, हजारी प्रसाद द्विवेदी की कहानियाँ, हजारी प्रसाद द्विवेदी निबंध, हजारी प्रसाद द्विवेदी कबीर, अशोक के फूल हजारी प्रसाद द्विवेदी, हजारी प्रसाद द्विवेदी के दोहे, हजारी प्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि, हजारी प्रसाद द्विवेदी jivan परिचय, आदि की जानकारी देंगे| ये कविता खासकर कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों व प्रशंसकों के लिए दिए गए है

Hazari Prasad Dwivedi Poems

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जहाँ हुए व्यास मुनि-प्रधान,
रामादि राजा अति कीर्तिमान।
जो थी जगत्पूजित धन्य-भूमि ,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि ।।

जहाँ हुए साधु हा महान्
थे लोग सारे धन-धर्म्मवान्।
जो थी जगत्पूजित धर्म्म-भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।

जहाँ सभी थे निज धर्म्म धारी,
स्वदेश का भी अभिमान भारी ।
जो थी जगत्पूजित पूज्य-भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।

हुए प्रजापाल नरेश नाना,
प्रजा जिन्होंने सुत-तुल्य जाना ।
जो थी जगत्पूजित सौख्य- भूमि ,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।

वीरांगना भारत-भामिली थीं,
वीरप्रसू भी कुल- कामिनी थीं ।
जो थी जगत्पूजित वीर- भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।

स्वदेश-सेवी जन लक्ष लक्ष,
हुए जहाँ हैं निज-कार्य्य दक्ष ।
जो थी जगत्पूजित कार्य्य-भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।

स्वदेश-कल्याण सुपुण्य जान,
जहाँ हुए यत्न सदा महान।
जो थी जगत्पूजित पुण्य भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।

न स्वार्थ का लेन जरा कहीं था,
देशार्थ का त्याग कहीं नहीं था।
जो थी जगत्पूजित श्रेष्ठ-भुमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।

कोई कभी धीर न छोड़ता था,
न मृत्यु से भी मुँह मोड़ता था।
जो थी जगत्पूजित धैर्य्य- भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।

स्वदेश के शत्रु स्वशत्रु माने,
जहाँ सभी ने शर-चाप ताने ।
जो थी जगत्पूजित शौर्य्य-भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।

अनेक थे वर्ण तथापि सारे
थे एकताबद्ध जहाँ हमारे
जो थी जगत्पूजित ऐक्य-भूमि,
वही हमारी यह आर्य भूमि ।

Hazari Prasad Dwivedi Poems Hindi

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Hazari Prasad Dwivedi Poems

जै जै प्यारे देश हमारे, तीन लोक में सबसे न्यारे ।
हिमगिरी-मुकुट मनोहर धारे, जै जै सुभग सुवेश ।। जै जै भारत देश ।

हम बुलबुल तू गुल है प्यारा, तू सुम्बुल, तू देश हमारा ।
हमने तन-मन तुझ पर वारा, तेजः पुंज-विशेष ।। जै जै भारत देश ।

तुझ पर हम निसार हो जावें, तेरी रज हम शीश चढ़ावें ।
जगत पिता से यही मनावें, होवे तू देशेश ।। जै जै भारत देश

जै जै हे देशों के स्वामी, नामवरों में भी हे नामी ।
हे प्रणम्य तुझको प्रणमामी, जीते रहो हमेश ।। जै जै भारत देश

आँख अगर कोई दिखलावे, उसका दर्प दलन हो जावे ।
फल अपने कर्मों का पावे, बने नाम निःशेष ।। जै जै भारत देश

बल दो हमें ऐक्य सिखलाओ, सँभलो देश होश में आवो ।
मातृभूमि-सौभाग्य बढ़ाओ, मेटो सकल कलेश ।। जै जै भारत देश

हिन्दू मुसलमान ईसाई, यश गावें सब भाई-भाई ।
सब के सब तेरे शैदाई, फूलो-फलो स्वदेश ।। जै जै भारत देश ।

इष्टदेव आधार हमारे, तुम्हीं गले के हार हमारे ।
भुक्ति-मुक्ति के द्वार हमारे, जै जै जै जै देश ।। जै जै भारत देश

हजारी प्रसाद द्विवेदी कविता

हजारी प्रसाद द्विवेदी कविता को आप Hindi, Prakrit, Urdu, sindhi, Punjabi, Marathi, Gujarati, Tamil, Telugu, Nepali, सिंधी लैंग्वेज, Kannada व Malayalam hindi language व hindi Font में जानना चाहे जिसमे की atal ji Two Lines Shayari, कविता मिलती है जिन्हे आप Facebook, WhatsApp व Instagram, whatsapp groups पर post व शेयर कर सकते हैं|

रजनी–दिन नित्य चला ही किया मैं अनंत की गोद में खेला हुआ
चिरकाल न वास कहीं भी किया किसी आँधी से नित्य धकेला हुआ
न थका न रुका न हटा न झुका किसी फक्कड़ बाबा का चेला हुआ
मद चूता रहा तन मस्त बना अलबेला मैं ऐसा अकेला हुआ

जोरि जोरि अच्छर निचोरि चोरि औरन
सों सरस कबित्त नवराग को गढ़ैया हौं,
पंडित प्रसिद्ध पंडिताई बिना जानै कछू
तीसकम बत्तीसेक वेद को पढ़ैया हौं।
टाँय टाँय जानौं, कूकि कूकि पहिचानौं
तत्त्व चिकिर चिकिर करि सर को चढ़ैया हौं,
भाइयो भगिनीयो बताइये विचारि आजु
शुक बनौं पिक बनौं या कि गौरैया हौं।।

आगे खरौ लखि नंद कौ लाल हमने सखि पैंड तजे री
कुंजन ओट चली सकुचाइ उपाइ लगाइ तहौं तिन घेरी
मैं निदरे सखि रूप अनूपन कान्हर हू पर आँखि तरेरी
पै परी फास अरी मुसुकानि की प्रान बचाइ न लाख बचे री

चटकीले बहुत से पड़े विज्ञापनों के ठाट,
मैनेजरों ने दिए हैं पन्ने सभी ही पाट।
देख इश्तिहार चूर्ण का मोदक वरास्व (?) का,
दिलख़ुश का, सेंट–सोप का और कोकशास्त्र का।
यह झीन–सीन गेंद का आश्चर्य मलहम का,
सब चूर–चूर हो गया अभिमान कलम का।

छोड़ द्रुमों की मृदु छाया
तोड़ प्रकृति से भी माया
बाले तेरे बाल–जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन।

Hazari Prasad Dwivedi Kavita Kosh

कोकिल अति सुंदर चिड़िया है,
सच कहते हैं, अति बढ़िया है।
जिस रंगत के कुँवर कन्हाई,
उसने भी वह रंगत पाई।
बौरों की सुगंध की भाँती,
कुहू-कुहू यह सब दिन गाती।
मन प्रसन्न होता है सुनकर,
इसके मीठे बोल मनोहर।
मीठी तान कान में ऐसे,
आती है वंशी-धुनि जैसे।
सिर ऊँचा कर मुख खोलै है,
कैसी मृदु बानी बोलै है!
इसमें एक और गुण भाई,
जिससे यह सबके मन भाई।
यह खेतों के कीड़े सारे,
खा जाती है बिना बिचारे।

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