भारत के साहित्यिक इतिहास की बात की जाए तो बहुत से ऐसे रचनाकार और निबंधकारों का नाम सामने आता है जिन्होंने अपनी रचनाओं के चलते भारत देश को एक नै पहचान दी और कई दिग्गज साहित्यकारों को प्रभावित किया| ऐसे ही एक निबंधकार है जिन्होंने अपने सकारात्मक लेखो और अपनी रचनाओं से समूचे भारत में अपनी एक अलग पहचान बनाई| हजारी प्रसाद द्विवेदी हिंदी साहित्य के जाने माने उपन्यासकार कहलाए जाते है| उन्होंने अपनी बहुत सी रचनाओं से सभी का दिल जीता था| वे हिंदी साहित्य के खड़ी बोली के बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रथम लेखकार माने जाते थे| आज के इस पोस्ट में हम आपको आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का जीवन परिचय, हजारी प्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक परिचय, हजारी प्रसाद द्विवेदी निबंध, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी पुस्तकें, हजारी प्रसाद द्विवेदी का बचपन का नाम, हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध संग्रह, हजारी प्रसाद द्विवेदी की कहानियाँ, आदि की जानकारी देंगे जो की खासकर कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों व प्रशंसकों के लिए दिए गए है|
Hazari Prasad Dwivedi Biography in Hindi
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आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म संन 1907 में उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के आरत दुबे का छपरा नाम के गांव में हुआ था| अपने बचपन से ही उन्हें हिंदी साहित्य में बहुत रूचि थी| उनके पिता पंडित अनमोल द्विवेदी जी संस्कृत के जानेमाने अध्यापक थे| 1920 में उन्हें वसरियापुर के मिडिल स्कूल से प्रथम श्रेणी से मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण करि थी| इन सब के बाद उन्होंने अपने गांव के निकट ही पराशर ब्रह्मचर्य आश्रम से संस्कृत की अध्यन की शिक्षा प्राप्त करना प्रारम्भ की| इसके बाद वे विद्याध्ययन के कारण से काशी गए| उधर आचार्य ने रणवीर संस्कृत पाठशाला कमच्छा से प्रवेशिका परीक्षा प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त किया| उन्होंने अपनी प्रवेशिका, इंटर व ज्योतिष में आचार्य की पढ़ाई काशी में रहकर की थी| इंटर हो जाने के बाद प्रारम्भ में उन्होंने एक विद्यालय में अध्यापक के रूप में कार्य किया जहा उनकी बेठ आचार्य क्षितिजमोहन सेन जी से हुई| उनसे मिलकर आचार्य बहुत प्रभावित हुए और उन्हें अपने साथ शान्ति निकेतन ले गए| शान्ति निकेतन में उन्होंने 20 वर्षो तक अध्यापक के रूप में कार्य करा|
हजारी प्रसाद द्विवेदी की जीवनी
शान्ति निकेतन में अध्यापक के तौर पर कार्य करने के बाद वे वापस काशी चले गए| वहा उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी विश्वविद्यालय एवं पंजाब विश्वविद्यालय के हिन्दी-विभाग के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया| इसके बाद सन् 1949 में हज़्ज़ारी प्रसाद जी के पांडित्य एवं साहित्य सेवा का सम्मान करते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय ने उन्हें डाक्टर ऑफ लिटरेचर की उपाधि से सम्मानित किया| सूर साहित्य, कबीर, सूरदास और उनका काव्य, विचार वितर्क, अशोक के फूल, प्राचीन भारत का कला विकास नाथ सम्प्रदाय, बाणभट्ट की आत्मकथा, हिन्दी साहित्य की भूमिका, अनामदास का पोथा आदि उनके महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं।
Hazari Prasad Dwivedi Jivani in Hindi
उनकी एक रचना हिंदी साहित्य की भूमिका आचार्य जी की सिद्धान्तों की बुनियादी पुस्तक है| इस पुस्तक का हिंदी साहित्य में बहुत महत्व है| इस पुस्तक में उन्होंने हिंदी और संस्कृत साहित्य को अविच्छिन्न परम्परा एवं प्रतिफलित क्रिया एवं प्रतिक्रियाओं रुपी दर्शाया है| यू तो हज़ारी प्रसाद जी की शुरुवात से आलोचक, इतिहासकार और निबंधकार के रूप में जाने जाते थे| उनके सभी हिंदी निबंध और उपन्यास आलोचना के साथ साथ ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है| हज़ारी प्रसाद जी की भारत सरकार द्वारा उनकी विद्वत्ता और साहित्यिक सेवाओं के लिए धन्यवाद कहने के रूप में 1957 में पद्म भूषण से सम्मानित किया| 19 मई 1979 में हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी स्वास्थय बिगड़ने के कारण इस संसार को त्याग गए|