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गुरु पूर्णिमा स्पीच 2023-24 Guru Purnima Speech in Hindi, Marathi, English & Gujarati pdf for students in School

गुरु पूर्णिमा स्पीच 2018

Guru Purnima 2023 : भारत में मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक गुरु पूर्णिमा है। यह बौद्धों के लिए एक त्यौहार है। गुरु पूर्णिमा मूल रूप से एक तरीका है जिसके द्वारा छात्र अपने गुरु या शिक्षक के प्रति अपना प्यार और कृतज्ञता दिखाते हैं। त्यौहार हिंदू कैलेंडर के अनुसार मनाया जाता है जो असध के पहले पूर्णिमा दिवस या अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार जुलाई के महीने के अनुसार मनाया जाता है। इस साल 2023 को यह पर्व 03 जुलाई शुक्रवार के दिन पड़ रहा है| यह पर्व हिन्दू धर्म के साथं जैन और बौद्ध धर्म का भी त्योहार है|

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Guru Purnima Speech in Hindi

 

गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर, विश्व के समस्त गुरुजनों को मेरा शत् शत् नमन। गुरु के महत्व को हमारे सभी संतो, ऋषियों एवं महान विभूतियों ने उच्च स्थान दिया है।संस्कृत में ‘गु’ का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान)एवं ‘रु’ का अर्थ होता है प्रकाश(ज्ञान)। गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं।

हमारे जीवन के प्रथम गुरु हमारे माता-पिता होते हैं। जो हमारा पालन-पोषण करते हैं, सांसारिक दुनिया में हमें प्रथम बार बोलना, चलना तथा शुरुवाती आवश्यकताओं को सिखाते हैं। अतः माता-पिता का स्थान सर्वोपरी है। जीवन का विकास सुचारू रूप से सतत् चलता रहे उसके लिये हमें गुरु की आवश्यकता होती है। भावी जीवन का निर्माण गुरू द्वारा ही होता है।

मानव मन में व्याप्त बुराई रूपी विष को दूर करने में गुरु का विषेश योगदान है। महर्षि वाल्मिकी जिनका पूर्व नाम ‘रत्नाकर’ था। वे अपने परिवार का पालन पोषण करने हेतु दस्युकर्म करते थे। महर्षि वाल्मिकी जी ने रामायण जैसे महाकाव्य की रचना की, ये तभी संभव हो सका जब गुरू रूपी नारद जी ने उनका ह्दय परिर्वतित किया। मित्रों, पंचतंत्र की कथाएं हम सब ने पढी या सुनी होगी। नीति कुशल गुरू विष्णु शर्मा ने किस तरह राजा अमरशक्ती के तीनों अज्ञानी पुत्रों को कहानियों एवं अन्य माध्यमों से उन्हें ज्ञानी बना दिया।

गुरू शिष्य का संबन्ध सेतु के समान होता है। गुरू की कृपा से शिष्य के लक्ष्य का मार्ग आसान होता है।

स्वामी विवेकानंद जी को बचपन से परमात्मा को पाने की चाह थी। उनकी ये इच्छा तभी पूरी हो सकी जब उनको गुरू परमहंस का आर्शिवाद मिला। गुरू की कृपा से ही आत्म साक्षात्कार हो सका।

छत्रपति शिवाजी पर अपने गुरू समर्थ गुरू रामदास का प्रभाव हमेशा रहा।

गुरू द्वारा कहा एक शब्द या उनकी छवि मानव की कायापलट सकती है। मित्रों, कबीर दास जी का अपने गुरू के प्रति जो समर्पण था उसको स्पष्ट करना आवश्यक है क्योंकि गुरू के महत्व को सबसे ज्यादा कबीर दास जी के दोहों में देखा जा सकता है।

एक बार रामानंद जी गंगा स्नान को जा रहे थे, सीढी उतरते समय उनका पैर कबीर दास जी के शरीर पर पङ गया। रामानंद जी के मुख से ‘राम-राम’ शब्द निकल पङा। उसी शब्द को कबीर दास जी ने दिक्षा मंत्र मान लिया और रामानंद जी को अपने गुरू के रूप में स्वीकार कर लिया। कबीर दास जी के शब्दों में— ‘हम कासी में प्रकट हुए, रामानंद चेताए’। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि जीवन में गुरू के महत्व का वर्णन कबीर दास जी ने अपने दोहों में पूरी आत्मियता से किया है।

गुरू गोविन्द दोऊ खङे का के लागु पाँव,

बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय।

गुरू का स्थान ईश्वर से भी श्रेष्ठ है। हमारे सभ्य सामाजिक जीवन का आधार स्तभ गुरू हैं। कई ऐसे गुरू हुए हैं, जिन्होने अपने शिष्य को इस तरह शिक्षित किया कि उनके शिष्यों ने राष्ट्र की धारा को ही बदल दिया।

आचार्य चाणक्य ऐसी महान विभूती थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया। गुरू चाणक्य कुशल राजनितिज्ञ एवं प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में विश्व विख्यात हैं। उन्होने अपने वीर शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य को शासक पद पर सिहांसनारूढ करके अपनी जिस विलक्षंण प्रतिभा का परिचय दिया उससे समस्त विश्व परिचित है।

गुरु हमारे अंतर मन को आहत किये बिना हमें सभ्य जीवन जीने योग्य बनाते हैं। दुनिया को देखने का नज़रिया गुरू की कृपा से मिलता है। पुरातन काल से चली आ रही गुरु महिमा को शब्दों में लिखा ही नही जा सकता। संत कबीर भी कहते हैं कि –

सब धरती कागज करू, लेखनी सब वनराज।

सात समुंद्र की मसि करु, गुरु गुंण लिखा न जाए।।

गुरु पूर्णिमा के पर्व पर अपने गुरु को सिर्फ याद करने का प्रयास है। गुरू की महिमा बताना तो सूरज को दीपक दिखाने के समान है। गुरु की कृपा हम सब को प्राप्त हो। अंत में कबीर दास जी के निम्न दोहे से अपनी कलम को विराम देते हैं।

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।

शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।।

धन्यवाद,

गुरु पूर्णिमा स्पीच इन हिंदी

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गुरू पूर्णिमा का पर्व पूरे देश मनाया जाना स्वाभाविक है। भारतीय अध्यात्म में गुरु का अत्ंयंत महत्व है। सच बात तो यह है कि आदमी कितने भी अध्यात्मिक ग्रंथ पढ़ ले जब तक उसे गुरु का सानिध्य या नाम के अभाव में ज्ञान कभी नहीं मिलेगा वह कभी इस संसार का रहस्य समझ नहीं पायेगा। इसके लिये यह भी शर्त है कि गुरु को त्यागी और निष्कामी होना चाहिये। दूसरी बात यह कि गुरु भले ही कोई आश्रम वगैरह न चलाता हो पर अगर उसके पास ज्ञान है तो वही अपने शिष्य की सहायता कर सकता है। यह जरूरी नही है कि गुरु सन्यासी हो, अगर वह गृहस्थ भी हो तो उसमें अपने त्याग का भाव होना चाहिये। त्याग का अर्थ संसार का त्याग नहीं बल्कि अपने स्वाभाविक तथा नित्य कर्मों में लिप्त रहते हुए विषयों में आसक्ति रहित होने से है।

हमारे यहां गुरु शिष्य परंपरा का लाभ पेशेवर धार्मिक प्रवचनकर्ताओं ने खूब लाभ उठाया है। यह पेशेवर लोग अपने इर्दगिर्द भीड़ एकत्रित कर उसे तालियां बजवाने के लिये सांसरिक विषयों की बात खूब करते हैं। श्रीमद्भागवतगीता में वर्णित गुरु सेवा करने के संदेश वह इस तरह प्रयारित करते हैं जिससे उनके शिष्य उन पर दान दक्षिण अधिक से अधिक चढ़ायें। इतना ही नहीं माता पिता तथा भाई बहिन या रिश्तों को निभाने की कला भी सिखाते हैं जो कि शुद्ध रूप से सांसरिक विषय है। श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार हर मनुष्य अपना गृहस्थ कर्तव्य निभाते हुए अधिक आसानी से योग में पारंगत हो सकता है। सन्यास अत्यंत कठिन विधा है क्योंकि मनुष्य का मन चंचल है इसलिये उसमें विषयों के विचार आते हैं। अगर सन्यास ले भी लिया तो मन पर नियंत्रण इतना सहज नहीं है। इसलिये सरलता इसी में है कि गृहस्थी में रत होने पर भी विषयों में आसक्ति न रखते हुए उनसे इतना ही जुड़ा रहना चाहिये जिससे अपनी देह का पोषण होता रहे। गृहस्थी में माता, पिता, भाई, बहिन तथा अन्य रिश्ते ही होते हैं जिन्हें तत्वज्ञान होने पर मनुष्य अधिक सहजता से निभाता है। हमारे कथित गुरु जब इस तरह के सांसरिक विषयों पर बोलते हैं तो महिलायें बहुत प्रसन्न होती हैं और पेशेवर गुरुओं को आजीविका उनके सद्भाव पर ही चलती है। समाज के परिवारों के अंदर की कल्पित कहानियां सुनाकर यह पेशेवक गुरु अपने लिये खूब साधन जुटाते हैं। शिष्यों का संग्रह करना ही उनका उद्देश्य ही होता है। यही कारण है कि हमारे देश में धर्म पर चलने की बात खूब होती है पर जब देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, अपराध तथा शोषण की बढ़ती घातक प्रवृत्ति देखते हैं तब यह साफ लगता है कि पाखंडी लोग अधिक हैं।

Guru Purnima Speech in English

Guru Purnima Speech in Hindi

The festival of Guru Purnima is celebrated with much gust and galore throughout India. It is a day when the students or the disciples celebrate the role of their Guru in their lives. This festival is normally celebrated in the month of Ashadh (according to the Hindu calendar) on a full moon day.
On this day various speeches are read out from the Gita and the puranas which tell us how important the Guru is in our lives. One of the most important lines from one of those speeches is given below:

Yasya deve para bhaktir yatha deve tatha gurau
Tasyaite kathitaa hi arthaaha prakashante mahatmanaha

What this line means is that one should worship the Guru in the same manner as he worships God. Guru is regarded as the other figure of Vishnu, Shiv and Brahma who are the Hindu gods and according to the stories that exist regarding Guru Purnima it suggests that one can get in touch with God if he worships his Guru. The above lines also indicate the same thing.
Apart from this there are other speeches too that are read out. In fact there are recitations on these speeches in the programs that are organized on the day of Guru Purnima. Another famous verse that is read out on this day is as follows:

Tilesu tailam, dahhiniva sarpih
Apah stroasu aranisu ca agnih

What this means is like there is butter in milk, there is water in every river stream and there is oil in every sesame seed there has to be a Guru in a person’s life. Otherwise the journey of that person remains incomplete. The Guru is the only person who will be able to remove the darkness in a person. This is the main reason why there are so much celebrations all around India one this day.
Here are some Guru Purnima Hindi Doha

A – “Yaha tan bish ki belri, guru amrit ki khan
Sish dio jo guru mile, toh bhi sasta jaan”

B – “Guru lobhi shish lalchi dono khele daon
Dono bure bapurei, chari pathar ki naon”

Guru Purnima Speech in Marathi

भारतीय गुरुपरंपरेत गुरु-शिष्यांच्या जोड्या प्रसिद्ध आहेत. जनक-याज्ञवल्क्य, शुक्राचार्य-जनक, कृष्ण, सुदामा-सांदिपनी, विश्वामित्र-राम, लक्ष्मण, परशुराम-कर्ण, द्रोणाचार्य-अर्जुन अशी गुरु-शिष्य परंपरा आहे. मात्र एकलव्याची गुरुनिष्ठा पाहिली की, सर्वांचेच मस्तक नम्र झाल्याशिवाय राहत नाही.

भगवान श्रीकृष्णांनी गुरूच्या घरी लाकडे वाहिली. संत ज्ञानेश्वरांनी वडीलबंधू निवृत्तीनाथ यांनाच आपले गुरु मानले, तर संत नामदेव साक्षात विठ्ठलाशी भाष्य करीत असत. त्या नामदेवांचे गुरु होते विसोबा खेचर. भारतीय संस्कृतीत गुरूला नेहमीच पूजनीय मानले आहे.

गुरुपौर्णिमा ही सद्गुरूंची पौर्णिमा मानली जाते. पौर्णिमा म्हणजे प्रकाश. गुरु शिष्याला ज्ञान देतात. तो ज्ञानाचा प्रकाश आपल्यापर्यंत पोहोचावा, म्हणून गुरूची प्रार्थना करावयाची, तो हा दिवस होय.

गुरु म्हणजे ज्ञानाचा सागर आहे. जलाशयात पाणी विपुल आहे, परंतु घटाने-घागरीने आपली मान खाली केल्याशिवाय म्हणजे विनम्र झाल्याशिवाय पाणी मिळू शकत नाही. त्याप्रमाणे गुरूजवळ शिष्याने नम्र झाल्याविना त्याला ज्ञान प्राप्त होणार नाही, हे सर्वांनी लक्षात ठेवावे. ‘गुरु बिन ज्ञान कहासे लाऊ?’ हेच खरे आहे.

गुरूंच्या उपकारांनी आपले मन कृतज्ञतेने भरून येते, तेव्हा आपल्या तोंडून श्लोक बाहेर पडतो –

गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः ll
गुरु साक्षात परब्रम्ह तस्मै श्री गुरवे नमः ll

अनेक विद्यालयांतून, महाविद्यालयांतून श्रद्धाशील विद्यार्थी आपापल्या गुरुजनांसमोर या दिवशी विनम्र भावनेने नतमस्तक होतात. वेगवेगळ्या पंथोपपंथांतून ईश्वरभक्तीकडे जाण्याचे मार्ग शोधणारे मुमुक्षू-पारमार्थिक या दिवशी आपल्या गुरुंचे भक्तिभावाने पूजन करतात. ज्यांना या ना त्या कारणांमुळे गुरुंचे समक्ष दर्शन वा सहवास घडू शकत नाही ते त्यांच्या प्रतिमेची पूजा करतात.

Guru Purnima Speech in 100 Words

गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर, विश्व के समस्त गुरुजनों को मेरा शत् शत् नमन। गुरु के महत्व को हमारे सभी संतो, ऋषियों एवं महान विभूतियों ने उच्च स्थान दिया है।संस्कृत में ‘गु’ का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान)एवं ‘रु’ का अर्थ होता है प्रकाश(ज्ञान)। गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं।

हमारे जीवन के प्रथम गुरु हमारे माता-पिता होते हैं। जो हमारा पालन-पोषण करते हैं, सांसारिक दुनिया में हमें प्रथम बार बोलना, चलना तथा शुरुवाती आवश्यकताओं को सिखाते हैं। अतः माता-पिता का स्थान सर्वोपरी है। जीवन का विकास सुचारू रूप से सतत् चलता रहे उसके लिये हमें गुरु की आवश्यकता होती है। भावी जीवन का निर्माण गुरू द्वारा ही होता है।

मानव मन में व्याप्त बुराई रूपी विष को दूर करने में गुरु का विषेश योगदान है। महर्षि वाल्मिकी जिनका पूर्व नाम ‘रत्नाकर’ था। वे अपने परिवार का पालन पोषण करने हेतु दस्युकर्म करते थे। महर्षि वाल्मिकी जी ने रामायण जैसे महाकाव्य की रचना की, ये तभी संभव हो सका जब गुरू रूपी नारद जी ने उनका ह्दय परिर्वतित किया। मित्रों, पंचतंत्र की कथाएं हम सब ने पढी या सुनी होगी। नीति कुशल गुरू विष्णु शर्मा ने किस तरह राजा अमरशक्ती के तीनों अज्ञानी पुत्रों को कहानियों एवं अन्य माध्यमों से उन्हें ज्ञानी बना दिया।

Guru Purnima Speech in Gujarati pdf

Guru Purnima 2023 date: आइये जाने की गुरु पूर्णिमा कब है? गुरु पूर्णिमा इस वर्ष 16 जुलाई 2023 को पूरे भारत में मनाया जाएगा| इस दिन शुक्रवार यानी friday का दिन है| अक्सर class 1, class 2, class 3, class 4, class 5, class 6, class 7, class 8, class 9, class 10, class 11, class 12 के बच्चो को कहा जाता है गुरु पूर्णिमा पर स्पीच लिखें| आइये अब हम आपको guru purnima par speech, Guru Purnima Status in hindi, guru purnima speech in gujarati, गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं, guru purnima speech in marathi pdf, गुरु पूर्णिमा पर कविता, guru purnima speech school, Guru Purnima Quotes, guru purnima speech school in gujarati, गुरु पूर्णिमा स्पीच, Guru Purnima images,guru purnima speech in hindi pdf, गुरु पूर्णिमा पर भाषण, guru purnima speech in kannada, गुरु पूर्णिमा निबंध, guru purnima speech in hindi language, गुरु पूर्णिमा श्लोक, guru purnima speech in english for students, guru purnima speech in sanskrit, guru purnima speech for teacher, guru purnima speech in telugu, (speech recitation activity) निश्चित रूप से आयोजन समारोह या बहस प्रतियोगिता (debate competition) यानी स्कूल कार्यक्रम में स्कूल या कॉलेज में भाषण में भाग लेने में छात्रों की सहायता करेंगे। इन गुरु पूर्णिमा पर हिंदी स्पीच हिंदी में 100 words, 150 words, 200 words, 400 words जिसे आप pdf download भी कर सकते हैं|

ભારતમાં યોજાયેલી સૌથી મહત્વપૂર્ણ તહેવારોમાં ગુરૂ પૂર્ણિમા છે. તે બૌદ્ધ માટે એક તહેવાર છે. ગુરુ પૂર્ણિમા મૂળભૂત રીતે એક રસ્તો છે જેના દ્વારા વિદ્યાર્થીઓ તેમના ગુરુ અથવા શિક્ષક પ્રત્યેના પ્રેમ અને કૃતજ્ઞતા દર્શાવે છે. આ તહેવાર હિન્દૂ કૅલેન્ડર મુજબ ઉજવાય છે, જે અશાદના પ્રથમ પૂર્ણ ચંદ્ર દિવસ પર છે અથવા અંગ્રેજી કૅલેન્ડર મુજબ જુલાઈનો મહિનો છે. ભારતીય વિજ્ઞાન મુજબ, ગુરુ શબ્દ બે સંસ્કૃત શબ્દો “ગુ” અને “રૂ” જેનો અર્થ ભૂતપૂર્વ અર્થ અજ્ઞાનતા અને એક વ્યક્તિમાં અંધકાર અને પછીનો અર્થ છે જે દૂર કરે છે એટલે ગુરુનો અર્થ એ વ્યક્તિ છે હિન્દુ ધર્મ અનુસાર, ગુરુ પૂર્ણિમાનો તહેવાર ગુરુ વ્યાસને ઉજવવામાં આવે છે. ગુરુ વ્યાસ એ વ્યક્તિ છે જેમણે 4 વેદ, 18 પુરાણ અને મહાભારત લખ્યા છે.

ગુરુ પૂર્ણિમાની ઉજવણી લોકો દ્વારા જોઈ શકાય તે કંઈક છે. ત્યાં ઘણી શાળાઓ છે જે પરંપરાગત રીતે આ તહેવારને ગુરુના પગ ધોવાથી ઉજવે છે, જેમાં હિનુ શબ્દને “પદપુજા” કહેવામાં આવે છે. તે પછી શિષ્યો દ્વારા આયોજીત ઘણા કાર્યક્રમો છે જેમાં શાસ્ત્રીય ગીતો, નૃત્ય, હવાન, કીર્તન અને ગિઆના પઠનનો સમાવેશ થાય છે. ફૂલોના સ્વરૂપમાં વિવિધ ભેટો અને ગુરુને આપવામાં આવેલા “ઉતરિયા” (એક પ્રકારનું ચોરી)
બીજી તરફ બૌદ્ધ લોકો તેમના આગેવાન ભગવાન બુદ્ધના માનમાં આ દિવસે ઉજવે છે. તેઓ આ દિવસે ચિંતન કરે છે અને ભગવાન બુદ્ધની ઉપદેશો વાંચે છે. તેઓ “ઉપોસ્તા” નું પણ પાલન કરે છે, જે આ દિવસે એક બૌદ્ધ સંપ્રદાય છે.

2020 update

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