फैज़ अहमद फैज़ भारत के एक विख्यात पंजाबी शायर थे जो की अपनी रचनाओं में रसिक भाव के लिए मशहूर थे | इन्हे नोबल पुरूस्कार से भी सम्मानित किया जा चूका है | फैज़ अहमद ने उर्दू शायरी को एक ऊंचाई पर पहुंचाया | जेल में रहने के दौरान उनके द्वारा लिखी गयी कवितायें “दस्त-ए-सबा (हवा का हाथ)” और “ज़िन्दान नामा (कारावास का ब्यौरा)” बहुत लोकप्रिय रहीं है| आइये अब हम आपको उनके द्वारा लिखीं गयीं कुछ शायरियों के बारे में जानकारी देते हैं |
Faiz ahmad faiz shayari
कटते भी चलो बढ़ते भी चलो बाज़ू भी बहुत हैं सर भी बहुत चलते भी चलो कि अब डेरे मंज़िल ही पे डाले जाएँगे Click To Tweet मय-ख़ाना सलामत है तो हम सुर्ख़ी-ए-मय से तज़ईन-ए-दर-ओ-बाम-ए-हरम करते रहें Click To TweetPoet faiz ahmed faiz poems
तुम न आए थे तो हर चीज़ वही थी कि जो है
आसमाँ हद्दे-नज़र, राहगुज़र राहगुज़र, शीशा-ए-मय शीशा-ए-मय
और अब शीशा-ए-मय, राहगुज़र, रंगे-फ़लक
रंग है दिल का मेरे “ख़ून-ए-जिगर होने तक”
चंपई रंग कभी, राहते-दीदार का रंग
सुरमई रंग की है सा’अते-बेज़ार का रंग
ज़र्द पत्तों का, खस-ओ-ख़ार का रंग
सुर्ख़ फूलों का, दहकते हुए गुलज़ार का रंग
ज़हर का रंग, लहू-रंग, शबे-तार का रंग
आसमाँ, राहगुज़र, शीशा-ए-मय
कोई भीगा हुआ दामन, कोई दुखती हुई रग
कोई हर लहज़ा बदलता हुआ आईना है
अब जो आए हो तो ठहरो कि कोई रंग, कोई रुत, कोई शै
एक जगह पर ठहरे
फिर से इक बार हर इक चीज़ वही हो कि जो है
आसमाँ हद्दे-नज़र, राहगुज़र राहगुज़र, शीशा-ए-मय शीशा-ए-मय
मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरी महबूब न माँग
मैंने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
तेरा ग़म है तो ग़मे-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है?तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
यूँ न था, मैंने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए
और भी दुख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं, वस्ल की राहत के सिवाअनगिनत सदियों के तारीक बहीमाना तिलिस्म
रेशम-ओ-अतलस-ओ-कमख़्वाब में बुनवाए हुए
जा-ब-जा बिकते हुए कूचा-ओ-बाज़ार में जिस्म
ख़ाक में लिथड़े हुए, ख़ून में नहलाए हुएजिस्म निकले हुए अमराज़ के तन्नूरों से
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मगर क्या कीजे!और भी दुख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवामुझसे पहली सी मुहब्बत मेरी महबूब न माँग
Faiz ahmad faiz two line shayari
मिरी चश्म-ए-तन-आसाँ को बसीरत मिल गई जब से
बहुत जानी हुई सूरत भी पहचानी नहीं जाती
फिर नज़र में फूल महके दिल में फिर शमएँ जलीं
फिर तसव्वुर ने लिया उस बज़्म में जाने का नाम
तेरे क़ौल-ओ-क़रार से पहले
अपने कुछ और भी सहारे थे
वो बुतों ने डाले हैं वसवसे कि दिलों से ख़ौफ़-ए-ख़ुदा गया
वो पड़ी हैं रोज़ क़यामतें कि ख़याल-ए-रोज़-ए-जज़ा गया
Faiz ahmad faiz quotes
मक़ाम ‘फ़ैज़’ कोई राह में जचा ही नहीं
जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले
बे-दम हुए बीमार दवा क्यूँ नहीं देते
तुम अच्छे मसीहा हो शिफ़ा क्यूँ नहीं देते
Faiz ahmad faiz shayari in hindi
वो आ रहे हैं वो आते हैं आ रहे होंगे शब-ए-फ़िराक़ ये कह कर गुज़ार दी हम ने Click To Tweet हम शैख़ न लीडर न मुसाहिब न सहाफ़ी जो ख़ुद नहीं करते वो हिदायत न करेंगे Click To Tweet वो बुतों ने डाले हैं वसवसे कि दिलों से ख़ौफ़-ए-ख़ुदा गया वो पड़ी हैं रोज़ क़यामतें कि ख़याल-ए-रोज़-ए-जज़ा गया Click To TweetFaiz ahmad faiz poetry in hindi
अब वही हर्फ़-ए-जुनूँ सबकी ज़ुबाँ ठहरी है
जो भी चल निकली है, वो बात कहाँ ठहरी है
आज तक शैख़ के इकराम में जो शै थी हराम
अब वही दुश्मने-दीं राहते-जाँ ठहरी है
है ख़बर गर्म के फिरता है गुरेज़ाँ नासेह
गुफ़्तगू आज सरे-कू-ए-बुताँ ठहरी है
है वही आरिज़े-लैला, वही शीरीं का दहन
निगाहे-शौक़ घड़ी भर को जहाँ ठहरी है
वस्ल की शब थी तो किस दर्जा सुबुक गुज़री थी
हिज्र की शब है तो क्या सख़्त गराँ ठहरी है
बिखरी एक बार तो हाथ आई है कब मौजे-शमीम
दिल से निकली है तो कब लब पे फ़ुग़ाँ ठहरी है
दस्ते-सय्याद भी आजिज़ है कफ़-ए-गुलचीं भी
बू-ए-गुल ठहरी न बुलबुल की ज़बाँ ठहरी है
आते आते यूँ ही दम भर को रुकी होगी बहार
जाते जाते यूँ ही पल भर को ख़िज़ाँ ठहरी है
हमने जो तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ की है क़फ़स में ईजाद
‘फ़ैज़’ गुलशन में वो तर्ज़-ए-बयाँ ठहरी है|
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
हदीसे-यार के उनवाँ निखरने लगते हैं
तो हर हरीम में गेसू सँवरने लगते हैं
हर अजनबी हमें महरम दिखाई देता है
जो अब भी तेरी गली से गुज़रने लगते हैं
सबा से करते हैं ग़ुर्बत-नसीब ज़िक्रे-वतन
तो चश्मे-सुबह में आँसू उभरने लगते हैं
वो जब भी करते हैं इस नुत्क़ो-लब की बख़ियागरी
फ़ज़ा में और भी नग़्में बिखरने लगते हैं
दरे-क़फ़स पे अँधेरे की मुहर लगती है
तो ‘फ़ैज़’ दिल में सितारे उतरने लगते हैं|
Faiz ahmad faiz ghazals
वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है| Click To Tweet सजाओ बज़्म ग़ज़ल गाओ जाम ताज़ा करो ''बहुत सही ग़म-ए-गीती शराब कम क्या है'' Click To TweetFaiz ahmad faiz poems
निसार मैं तेरी गलियों के ऐ वतन कि जहाँ
चली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले
जो कोई चाहनेवाला तवाफ़ को निकले
नज़र चुरा के चले, जिस्म-ओ-जाँ बचा के चलेहै अहले-दिल के लिए अब ये नज़्मे-बस्त-ओ-कुशाद
कि संगो-ख़िश्त मुक़य्यद हैं और सग आज़ादबहुत हैं ज़ुल्म के दस्त-ए-बहाना-जू के लिए
जो चंद अहले-जुनूँ तेरे नामलेवा हैं
बने हैं अहले-हवस मुद्दई भी, मुंसिफ़ भी
किसे वकील करें, किससे मुंसिफ़ी चाहेंमगर गुज़ारनेवालों के दिन गुज़रते हैं
तेरे फ़िराक़ में यूँ सुबह-ओ-शाम करते हैंबुझा जो रौज़ने-ज़िंदाँ तो दिल ये समझा है
कि तेरी माँग सितारों से भर गई होगी
चमक उठे हैं सलासिल तो हमने जाना है
कि अब सहर तेरे रुख़ पर बिखर गई होगीग़रज़ तसव्वुर-ए-शाम-ओ-सहर में जीते हैं
गिरफ़्त-ए-साया-ए-दीवार-ओ-दर में जीते हैंयूँ ही हमेशा उलझती रही है ज़ुल्म से ख़ल्क़
न उनकी रस्म नई है, न अपनी रीत नई
यूँ ही हमेशा खिलाए हैं हमने आग में फूल
न उनकी हार नई है न अपनी जीत नईइसी सबब से फ़लक का गिला नहीं करते
तेरे फ़िराक़ में हम दिल बुरा नहीं करतेगर आज तुझसे जुदा हैं तो कल ब-हम होंगे
ये रात भर की जुदाई तो कोई बात नहीं
गर आज औज पे है ताला-ए-रक़ीब तो क्या
ये चार दिन की ख़ुदाई तो कोई बात नहींजो तुझसे अह्द-ए-वफ़ा उस्तवार रखते हैं
इलाजे-गर्दिशे-लैल-ओ-निहार रखते हैं
बहार आई तो जैसे एक बार
लौट आए हैं फिर अदम से
वो ख़्वाब सारे, शबाब सारे
जो तेरे होंठों पे मर मिटे थे
जो मिट के हर बार फिर जिए थे
निखर गए हैं गुलाब सारे
जो तेरी यादों से मुश्कबू हैं
जो तेरे उश्शाक़ का लहू हैं
उबल पड़े हैं अज़ाब सारे
मलाले-अहवाले-दोस्ताँ भी
ख़ुमारे-आग़ोशे-महवशाँ भी
ग़ुबारे-ख़ातिर के बाब सारे
तेरे हमारे सवाल सारे, जवाब सारे
बहार आई तो खुल गए हैं

फैज़ अहमद फैज़ के शेर
शैख़ साहब से रस्म-ओ-राह न की शुक्र है ज़िंदगी तबाह न की Click To Tweet शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई दिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई Click To Tweetफैज अहमद फैज गजल
aur kyā dekhne ko baaqī hai aap se dil lagā ke dekh liyā Click To Tweet donoñ jahān terī mohabbat meñ haar ke vo jā rahā hai koī shab-e-ġham guzār ke Click To TweetShayari of Faiz Ahmad Faiz
हम अहल-ए-क़फ़स तन्हा भी नहीं हर रोज़ नसीम-ए-सुब्ह-ए-वतन यादों से मोअत्तर आती है अश्कों से मुनव्वर जाती है Click To Tweet हाँ नुक्ता-वरो लाओ लब-ओ-दिल की गवाही हाँ नग़्मागरो साज़-ए-सदा क्यूँ नहीं देते Click To TweetFaiz ahmad faiz shayari in urdu
ہمیں بتائیں کہ ملک کے باشندے، گردان چمنآپ اپنے نایکا نام کا ایک اچھا حصہ رکھیں Click To Tweet جب مری چشام ایین ٹین اسن نے آباد کیابہت سے مشہور خصوصیات کو بھی تسلیم نہیں کیا جاتا ہے Click To Tweetऊपर हमने आपको faiz ahmed faiz 2 line poetry, urdu poetry, shayari on love, 2 line poetry, faiz ahmad faiz two line shayari, poems in english, 100 poems by faiz ahmed faiz, 1911-1984, in urdu, poetry pdf, books आदि की जानकारी दी है जिसे आप किसी भी भाषा जैसे Hindi, हिंदी फॉण्ट, मराठी, गुजराती, Urdu, उर्दू, English, sanskrit, Tamil, Telugu, Marathi, Punjabi, Gujarati, Malayalam, Nepali, Kannada के Language Font में साल 2007, 2008, 2009, 2010, 2011, 2012, 2013, 2014, 2015, 2016, 2017 का full collection जिसे आप अपने friends & family whatsapp, facebook (fb) व instagram पर share कर सकते हैं |