अम्बेडकर जयंती पर निबंध 2022 – Short Essay on Ambedkar Jayanti in Hindi & Marathi – डॉ. भीमराव बाबासाहेब आंबेडकर पर भाषण व स्पीच

अम्बेडकर जयंती पर निबंध 2018

Ambedkar Jayanti 2022 : भीम राव अम्बेडकर जी हमारे देश के बहु प्रसिद्ध राजनेता, शिल्पकार, समाज सुधारक तथा अर्थशास्त्री थे इनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को हुआ था वह समाज में फैले जाती के भेदभाव को दूर करना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने दलित वर्ग के लोगो की तरक्की के लिए उन्हें आरक्षण दिलवाया था | भीमराव अम्बेडकर जी ने हमारे देश का संविधान भी लिखा था जिसके लिए उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था | हर साल 14 अप्रैल को अम्बेडकर जयंती के नाम से जाना जाता है जिसके बारे में आप यहाँ से जान सकते है |

Essay on Dr BR Ambedkar Jayanti in Hindi

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1. प्रस्तावना:
स्वतन्त्र भारत के संविधान निर्माता, दलितों के मसीहा, समाज सुधारक डॉ० भीमराव अम्बेडकर एक राष्ट्रीय नेता भी थे । सामाजिक भेदभाव, अपमान की जो यातनाएं उनको सहनी पड़ी थीं, उसके कारण वे उसके विरुद्ध संघर्ष करने हेतु संकल्पित हो उठे । उन्होंने उच्चवर्गीय मानसिकता को चुनौती देते हुए निम्न वर्ग में भी ऐसे महान् कार्य किये, जिसके कारण सारे भारतीय समाज में वे श्रद्धेय हो गये ।

2. जीवन परिचय:
डॉ० अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू इन्दौर (म०प्र०) में हुआ था । उनके बचपन का नाम भीम सकपाल था । उनके पिता रामजी मौलाजी सैनिक स्कूल में प्रधानाध्यापक थे । उन्हें मराठी, गणित, अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान था ।

भीम को भी यही गुण अपने पिता से विरासत में मिले थे । उनकी माता का नाम भीमाबाई था । अम्बेडकर जिस जाति में पैदा हुए थे, वह बहुत निम्न व हेय समझी जाने वाली जाति थी । जब वे 5 वर्ष के थे, तब उनकी माता का देहान्त हो गया था । उनका पालन-पोषण चाची ने किया । वे अपने माता-पिता की 14वीं सन्तान थे । भीमराव संस्कृत पढ़ना चाहते थे, किन्तु अछूत होने के कारण उन्हें संस्कृत पढ़ने का अधिकारी नहीं समझा गया । प्रारम्भिक शिक्षा में उन्हें बहुत अधिक अपमानित होना पड़ा ।

अध्यापक उनके किताब, कॉपी को नहीं छूते थे । जिस स्थान पर अन्य लड़के पानी पीते थे, वे उस स्थान पर नहीं जा सकते थे । कई बार उन्हें प्यासा ही रहना पड़ता था । इस प्रकार की छुआछूत की भावना से वे काफी दुखी रहा करते थे । एक बार तो भीम तथा उनके दोनों भाइयों को बैलगाड़ी वाले ने उनकी जाति जानते ही नीचे धकेल दिया ।

ऐसे ही मकान की छत के नीचे बारिश से बचने के लिए वे खड़े थे, तो मकान मालिक ने उनकी जाति जानते ही कीचड़ सने पानी में उन्हें धकेल दिया । अछूत होने के कारण नाई भी उनके बाल नहीं काटता था । अध्यापक उन्हें पढ़ाते नहीं थे ।पिता की मृत्यु के बाद बालक भीम ने अपनी पढ़ाई पूर्ण की । वे एक प्रतिभाशाली छात्र थे । अत: बड़ौदा के महाराज ने उन्हें 25 रुपये मासिक छात्रवृत्ति भी दी ।

1907 में मैट्रिक व 1912 में बी०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की । बड़ौदा के महाराज की ओर से कुछ मेधावी छात्रों को विदेश में पढ़ने की सुविधा दी जाती थी, सो अम्बेडकर को यह सुविधा मिल गयी ।अम्बेडकर ने 1913 से 1917 तक अमेरिका और इंग्लैण्ड में रहकर अर्थशास्त्र, राजनीति तथा कानून का गहन अध्ययन किया । पी०एच०डी० की डिग्री भी यहीं से प्राप्त की ।

बड़ौदा नरेश की छात्रवृत्ति की शर्त के अनुसार उनकी 10 वर्ष सेवा करनी थी ।उन्हें सैनिक सचिव का पद दिया गया । सैनिक सचिव के पद पर होते हुए भी उन्हें काफी अपमानजनक घटनाओं का सामना करना पड़ा । जब वे बड़ौदा नरेश के स्वागतार्थ उन्हें लेने पहुंचे, तो अछूत होने के कारण उन्हें होटल में नहीं आने दिया ।सैनिक कार्यालय के चपरासी तक उन्हें रजिस्टर तथा फाइलें फेंककर देते थे । कार्यालय का पानी भी उन्हें पीने नहीं दिया जाता था ।

जिस दरी पर वे चलते थे, अशुद्ध होने के कारण उस पर कोई नहीं चलता था । अपमानित होने पर उन्होंने यह पद त्याग दिया ।बम्बई आने पर भी छुआछूत की भावना से उन्हें छुटकारा नहीं मिला । यहां रहकर उन्होंने ”वार एट लॉं’ की उपाधि ग्रहण की । वकील होने पर भी उन्हें कोई कुर्सी नहीं देता था । उन्होंने कत्ल का मुकदमा जीता था । उनकी कशाग्र बुद्धि की प्रशंसा मन मारकर सबको करनी ही पड़ी ।

3. उनके कार्य:
बचपन से लगातार छुआछूत और सामाजिक भेदभाव का घोर अपमान सहते हुए भी उन्होंने वकालत का पेशा अपनाया । छुआछूत के विरुद्ध लोगों को संगठित कर अपना जीवन इसे दूर करने में लगा दिया । सार्वजनिक कुओं से पानी पीने व मन्दिरों में प्रवेश करने हेतु अछूतों को प्रेरित किया ।

अम्बेडकर हमेशा यह पूछा करते थे- ”क्या दुनिया में ऐसा कोई समाज है जहां मनुष्य के छूने मात्र से उसकी परछाई से भी लोग अपवित्र हो जाते हैं?”पुराण तथा धार्मिक ग्रन्थों के प्रति उनके मन में कोई श्रद्धा नहीं रह गयी थी । बिल्ली और कुत्तों की तरह मनुष्य के साथ किये जाने वाले भेदभाव की बात उन्होंने लंदन के गोलमेज सम्मेलन में भी कही । डॉ० अम्बेडकर ने अछूतोद्धार से सम्बन्धित अनेक कानून बनाये । 1947 में जब वे भारतीय संविधान प्रारूप निर्माण समिति के अध्यक्ष चुने गये, तो उन्होंने कानूनों में और सुधार किया ।

उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तकों में (1) द अनटचेबल्स हू आर दे?, (2) हू वेयर दी शूद्राज, (3) बुद्धा एण्ड हीज धम्मा, (4) पाकिस्तान एण्ड पार्टिशन ऑफ इण्डिया तथा (5) द राइज एण्ड फॉल ऑफ हिन्दू वूमन प्रमुख हैं । इसके अलावा उन्होंने 300 से भी अधिक लेख लिखे । भारत का संविधान भी उन्होंने ही लिखा ।

4. उपसंहार:
डॉ० भीमराव अम्बेडकर आधुनिक भारत के प्रमुख विधि वेत्ता, समाजसुधारक थे । सामाजिक भेदभाव व विषमता का पग-पग पर सामना करते हुए अन्त तक वे झुके नहीं । अपने अध्ययन, परिश्रम के बल पर उन्होंने अछूतों को नया जीवन व सम्मान दिया ।

उन्हें भारत का आधुनिक मनु भी कहां जाता है । उन्होंने अपने अन्तिम सम्बोधन में पूना पैक्ट के बाद गांधीजी से यह कहा था- ”मैं दुर्भाग्य से हिन्दू अछूत होकर जन्मा हूं, किन्तु मैं हिन्दू होकर नहीं मरूंगा ।” तभी तो 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर के विशाल मैदान में अपने 2 लाख अनुयायियों के साथ उन्होंने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया।

Essay on Dr BR Ambedkar Jayanti in Hindi

Dr. Bhim Rao Ambedkar Jayanti Essay in Hindi

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भारत के महान् सपूत डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर ने अपने जीवन की असंक्य कठिनाइयों कि बीच कठिन परिश्रम करके महानता अर्जित की। वह न केवल भारतीय संविधान के निर्माता थे अपितु भारत में दलितों के रक्षक भी थे। इसके अतिरिक्त वे एक योग्य प्रशासक ¸ शिक्षाविद्¸ राजनेता और विद्वान भी थे।डॉ. भीमराव का जन्म 14 अप्रैल 1891 में महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में अम्बावडे नामक एक छोटे से गाँव में महार परिवार में हुआ था।

महार जाति को अस्पृश्यܷ गरिमा रहित और गौरवविहीन समझा जाता था। अतः उनका बचपन यातनाओं से भरा हुआ था। उन्हें सभी जगह अपमानित होना पड़ता था। अस्पृश्यता के अभिशाप ने उन्हें मजबूर कर दिया था कि वे जातिवाद के इस दैत्य को नष्ट कर दें और अपने भाइयों को इससे मुक्ति दिलाएँ। उनका विश्वास था कि भाग्य बदलने के लिए एकमात्र सहारा शिक्षा है और ज्ञान ही जीवन का आधार है।

उन्होंने एम.ए.¸पी.एच.डी.¸डी.एस.सी. और बैरिस्टर की उपाधियाँ हासिल की।अस्पृश्यों और उपेक्षितों का मसीहा होने के कारण उन्होंने बड़ी ही निष्ठा¸ईमानदारी और लगन के साथ उनके लिए संघर्ष किया। डॉ. अमबेडकर ने दलितों को सामाजिक व आर्थिक दर्जा दिलाया और उनके अधिकारों की संविधान में व्यवस्था कराई।डॉ. अम्बेडकर ने अपने कार्यों की बदौलत करोड़ों लोगों के दिलों में जगह बनाई। उन्होंने स्वतंत्र भारत के संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उनका बनाया हुआ विश्व का सबसे बडा लिखित संविधान 26 नवंबर 1949 को स्वीकार कर लिया गया।

एक सजग लेखक के रूप में उन्होंने विभिन्न मानवीय विषयों पर पुस्तकें लिखीं। इनमें लोक प्रशामन¸ मानवशास्त्र¸वित्त¸धर्म्¸समाजशास्त्र¸राजनीति आदि विषय शामिल हैं। उनकी प्रमुख कृतियों में ‘ऐनिहिलेशन ऑफ कास्ट्स’ (1936)¸ ‘हूवर द शूद्र’ (1946)¸ ‘द अनटचेबल’ (1948)¸ ‘द बुद्ध एंड हिज धम्म’ (1957) शामिल हैं।

डॉ. अम्बेडकर ने अपना अधिकांश समय अस्पृश्यों के उद्धार मेंही लगाया और उन्होंने महिलाओं की कठिनाइयों को दूर करने में भी हमेशा अपना योगदान दिया। उन्होंने महिलाओं को संपत्ति का अधिकार देने और पुत्र गोद लेने के अधिकारों के संबंध में एक हुन्दू कोड बिल बनाया किंतु अंततः वह पारित नहीं हो पाया। किन्तु बाद में इस विधेयक को चार भागों में विभाजित करके पारित कराया गया।

ये थे-हिन्दू विवाह अधिनियम (1955)¸हिन्दू उतराधिकार अधिनियम (1956)¸ हिन्दू नाबालिग और अभिभावक अधिनियम (1956) और हिन्दू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधियम (1956)। महान त्यागपूर्ण जीवन जीते हुए दलितों के कल्याण के लिए संघर्ष करते हुए डॉ. अम्बेडकर 6 दिसंबर 1956 को स्वर्ग सिधार गए। उनके महान कार्यों और उपलब्धियों के बदले में उन्हें (मरणोंपरांत) भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

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भीमराव अम्बेडकर के बारे में

डॉ भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को ब्रिटिश भारत (मध्य प्रदेश) के केन्द्रीय प्रांत के महू जिले में एक गरीब महार परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल था और माता का नाम भीमाबाई था। इनका निधन 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में हुआ था। भारतीय समाज में अपने दिये महान योगदान के लिये वो लोगों के बीच बाबासाहेब नाम से जाने जाते थे। आधुनिक बौद्धधर्मी आंदोलन लाने के लिये भारत में बुद्ध धर्म के लिये धार्मिक पुनरुत्थानवादी के साथ ही अपने जीवन भर उन्होंने एक विधिवेत्ता, दर्शनशास्त्री, समाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिज्ञ, इतिहासकार, मनोविज्ञानी और अर्थशास्त्री के रुप में देश सेवा की।

वो स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री थे और भारतीय संविधान का ड्रॉफ्ट तैयार किया था। भारत में सामाजिक भेदभाव और जातिवाद को जड़ से हटाने के अभियान के लिये उन्होंने अपने पूरे जीवनभर तक संघर्ष किया। निम्न समूह के लोगों को प्रेरणा देने के लिये उन्होंने खुद से बौद्ध धर्म को अपना लिया था जिसके लिये भारतीय बौद्धधर्मियों के द्वारा एक बोधिसत्व के रुप में उन्हें बताया गया था। उन्होंने अपने बचपन से ही सामाजिक भेदभाव को देखा था जब उन्होंने सरकारी स्कूल में दाखिला लिया था। उन्हें और उनके दोस्तों को उच्च वर्ग के विद्यार्थियों से अलग बैठाया जाता था और शिक्षक उनपर कम ध्यान देते थे।

यहाँ तक कि, उन्हें कक्षा में बैठने और पानी को छूने की अनुमति भी नहीं थी। उन्हें उच्च जाति के किसी व्यक्ति के द्वारा दूर से ही पानी दिया जाता था।अपने शुरुआती दिनों में उनका उपनाम अंबावेडेकर था, जो उन्हें रत्नागिरी जिले में “अंबावड़े” के अपने गाँव से मिला था, जो बाद में उनके ब्राह्मण शिक्षक, महादेव अंबेडकर के द्वारा अंबेडकर में बदल दिया गया था। उन्होंने 1897 में एकमात्र अस्पृश्य के रुप में बॉम्बे के एलफिनस्टोन हाई स्कूल में दाखिला लिया था।

इन्होंने 1906 में 9 वर्ष की रामाबाई से शादी की थी। 1907 में अपनी मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने सफलता पूर्वक दूसरी परीक्षा के लिये कामयाबी हासिल की।अंबेडकर साहब ने वर्ष 1912 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में डिग्री हासिल की। बाबा साहेब 3 साल तक हर महीने 11.50 यूरो के बड़ौदा राज्य छाज्ञवृत्ति से पुरस्कृत होने के बाद न्यू यार्क शहर में कोबंबिया विश्वविद्यालय में अपने परास्नातक को पूरा करने के लिये 1913 में अमेरिका चले गये थे। उन्होंने अपनी एमए की परीक्षा 1915 में और अर्थशास्त्र में पीएचडी की डिग्री 1917 में प्राप्त की। उन्होंने दोबारा से 1921 में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स अपनी मास्टर डिग्री और 1923 अर्थशास्त्र में डी.एससी प्राप्त की।

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Essay on Ambedkar Jayanti in Hindi

Essay on Babasaheb Ambedkar Jayanti

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भारत के लोगों के लिये उनके विशाल योगदान को याद करने के लिये बहुत ही खुशी से भारत के लोगों द्वारा अंबेडकर जयंती मनायी जाती है। डॉ भीमराव अंबेडकर भारतीय संविधान के पिता थे जिन्होंने भारत के संविधान का ड्रॉफ्ट (प्रारुप) तैयार किया था। वो एक महान मानवाधिकार कार्यकर्ता थे जिनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को हुआ था। उन्होंने भारत के निम्न स्तरीय समूह के लोगों की आर्थिक स्थिति को बढ़ाने के साथ ही शिक्षा की जरुरत के लक्ष्य को फैलाने के लिये भारत में वर्ष 1923 में “बहिष्कृत हितकरनी सभा” की स्थापना की थी।

इंसानों की समता के नियम के अनुसरण के द्वारा भारतीय समाज को पुनर्निर्माण के साथ ही भारत में जातिवाद को जड़ से हटाने के लक्ष्य के लिये “शिक्षित करना-आंदोलन करना-संगठित करना” के नारे का इस्तेमाल कर लोगों के लिये वो एक सामाजिक आंदोलन चला रहे थे। अस्पृश्य लोगों के लिये बराबरी के अधिकार की स्थापना के लिये महाराष्ट्र के महाड में वर्ष 1927 में उनके द्वारा एक मार्च का नेतृत्व किया गया था जिन्हें “सार्वजनिक चॉदर झील” के पानी का स्वाद या यहाँ तक की छूने की भी अनुमति नहीं थी।

जाति विरोधी आंदोलन, पुजारी विरोधी आंदोलन और मंदिर में प्रवेश आंदोलन जैसे सामाजिक आंदोलनों की शुरुआत करने के लिये भारतीय इतिहास में उन्हें चिन्हित किया जाता है। वास्तविक मानव अधिकार और राजनीतिक न्याय के लिये महाराष्ट्र के नासिक में वर्ष 1930 में उन्होंने मंदिर में प्रवेश के लिये आंदोलन का नेतृत्व किया था। उन्होंने कहा कि दलित वर्ग के लोगों की सभी समस्याओं को सुलझाने के लिये राजनीतिक शक्ति ही एकमात्र तरीका नहीं है, उन्हें समाज में हर क्षेत्र में बराबर का अधिकार मिलना चाहिये। 1942 में वाइसराय की कार्यकारी परिषद की उनकी सदस्यता के दौरान निम्न वर्ग के लोगों के अधिकारों को बचाने के लिये कानूनी बदलाव बनाने में वो गहराई से शामिल थे

भारतीय संविधान में राज्य नीति के मूल अधिकारों (सामाजिक आजादी के लिये, निम्न समूह के लोगों के लिये समानता और अस्पृश्यता का जड़ से उन्मूलन) और नीति निदेशक सिद्धांतों (संपत्ति के सही वितरण को सुनिश्चित करने के द्वारा जीवन निर्वाह के हालात में सुधार लाना) को सुरक्षा देने के द्वारा उन्होंने अपना बड़ा योगदान दिया। बुद्ध धर्म के द्वारा अपने जीवन के अंत तक उनकी सामाजिक क्रांति जारी रही। भारतीय समाज के लिये दिये गये उनके महान योगदान के लिये 1990 के अप्रैल महीने में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

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गीता में कहा गया है- “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत: अभ्युथानम् अधर्मस्य तदात्मानम सृजाम्यहम् |” अर्थात ‘जब-जब पृथ्वी पर अधर्म का साम्राज्य स्थापित हो जाता है, तब-तब अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करने के लिए ईश्वर अवतार लेते हैं |’

अंग्रेजों के शासनकाल में जब भारतमाता गुलामी की जंजीरों में जकड़ी कराह रही थीं, तब उस घड़ी में भी दकियानूसी एंव गलत विचारधारा के लोग मातृभूमि को विदेशियों के चंगुल से मुक्त कराने के लिए संघर्ष करने के बजाय मानव-मानव में जाति के आधार पर विभेद करने से नहीं हिचकते थे |ऐसी प्रतिकूल परिस्थिति में कट्टरपंथियों का विरोध कर दलितों का उद्धार करने एवं भारत के स्वतंत्रता संग्राम को सही दिशा देने के लिए जिस महामानव का जन्म हुआ, उन्हें ही दुनिया डॉ. भीमराव अम्बेडकर के नाम से जानती है |

वे अपने कर्मों के कारण आज भी दलितों के बीच ईश्वर के रुप में पूजे जाते हैं |भीमराव अम्बेडकर का जन्म 16 अप्रैल 1891 को केंद्रीय प्रांत (अब मध्यप्रदेश) के म्हो में हुआ था | उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल सेना में सूबेदार मेजर थे तथा उस समय म्हो छावनी में तैनात थे | उनकी माता का नाम भीमाबाई मुरबादकर था | भीमराव का परिवार हिन्दू धर्म के महार जाति से संबंधित था, उस समय कुछ कट्टरपंथी स्वर्ण इस जाति के लोगों को अस्पर्श्य समझकर उनके साथ भेदभाव एंव बुरा व्यवहार करते थे |

यही कारण है कि भीमराव को भी बचपन में सवर्णों के बुरे व्यवहार एंव भेदभाव का शिकार होना पड़ा | स्कूल में उन्हें अस्पर्श्य जानकर अन्य बच्चों से अलग एंव कक्षा से बाहर बैठाया जाता था | अध्यापक उन पर ध्यान भी नहीं देते थे | उन्हें प्यास लगने पर स्कूल में रखे पानी के बर्तन को छूकर पानी पीने की अनुमति नहीं थी, चपरासी या कोई अन्य व्यक्ति ऊंचाई से उनके हाथों पर पानी डालता था | यदि कभी चपरासी नहीं होता या कोई अन्य व्यक्ति ऐसा नहीं करना चाहता था, तो ऐसी स्थिति में उन्हें प्यासा ही रहना पड़ता था |

लोगों के इस भेदभाव एंव बुरे व्यवहार का प्रभाव उन पर ऐसा पड़ा कि दलितों एंव अस्पर्श माने जाने वाले लोगों के उत्थान के लिए उन्होंने उनका नेतृत्व करने का निर्णय लिया तथा उनके कल्याण हेतु एंव उन्हें उनके वास्तविक अधिकार व सम्मान दिलाने के लिए दकियानूसी तथा कट्टरपंथी लोगों के विरुद्ध वे जीवनभर संघर्ष करते रहे |अम्बेडकर ने बचपन से ही अपने प्रति समाज के भेदभाव रूपी अपमान को सहा था | इसलिए उन्होंने इसके खिलाफ संघर्ष की शुरुआत की | इस उद्देश्य हेतु उन्होंने 1927 ई. में ‘बहिष्कृत भारत’ नामक मराठी पाक्षिक समाचार पत्र निकालना प्रारंभ किया | इस पत्र ने शोषित समाज को जगाने का अभूतपूर्व कार्य किया |

उस समय दलितों को अछूत समझकर मन्दिरों में प्रवेश नहीं करने दिया जाता था | उन्होंने मन्दिरों में अछूतों के प्रवेश की मांग की और 1930 में 30 हजार दलितों को साथ लेकर नासिक के कालाराम मन्दिर में प्रवेश के लिए सत्याग्रह किया | इस अवसर पर उच्च वर्णों के लोगों की लाठियों की मार से अनेक लोग घायल हो गए, किन्तु उन्होंने सबको मन्दिर में प्रवेश करा कर ही दम लिया | इस घटना के बाद लोग उन्हें ‘बाबा साहब’ कहने लगे | उन्होंने 1935 ई. में ‘इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी’ की स्थापना की, जिसके द्वारा उन्होंने दलित एवं अछूत समझे जाने वाले लोगों की भलाई के लिए कट्टरपंथियों के विरुद्ध संघर्ष प्रारंभ किया | सन 1937 ई. में बम्बई के चुनावों में इनकी पार्टी को 15 में से 13 स्थानों पर जीत हासिल हुई |

हालाँकि अम्बेडकर गांधी जी के दलितोद्धार के तरीकों से सहमत नहीं थे, लेकिन अपनी विचारधारा के कारण उन्होंने कांग्रेस के जवाहरलाल नेहरू एवं सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे बड़े नेताओं को अपनी ओर आकर्षित किया |जब 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ तो उन्हें स्वतंत्र भारत का प्रथम कानून मंत्री बनाया गया | इसके बाद उन्हें भारत की संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया | भारत के संविधान को बनाने में अम्बेडकर ने मुख्य भूमिका निभाई, इसलिए उन्हें भारतीय संविधान का निर्माता भी कहा जाता है |

Babasaheb ambedkar nibandh

डॉ। भीम राव अम्बेडकर, जिन्हें बाबासाहेब अम्बेडकर के नाम से जाना जाता है, एक प्रसिद्ध नेता हैं, जिन्होंने ‘भारत के संविधान’ को हरी झंडी दिखाई। वह एक प्रसिद्ध राजनेता थे जिन्होंने दलितों और अन्य सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी।

२०२१ अम्बेडकर (१४ अप्रैल १ 131 ९ १) की १३१ वीं जयंती वर्ष होगा, जिसे भारतीय संविधान के पिता के रूप में जाना जाता है, सरकार ने वर्ष को बड़े पैमाने पर मनाने का फैसला किया।

इस प्रकार 2015 में केंद्र ने 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में घोषित किया। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 19 नवंबर 2015 को, भारत सरकार के 26 नवंबर को ‘संविधान दिवस’ के रूप में मनाने के निर्णय को अधिसूचित किया।

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