महिला सक्षमीकरण निबंध 2022 – Women empowerment essay in Hindi & Marathi Pdf Download

महिला सक्षमीकरण निबंध

आज के समय में भी महिलाएं समाज और परिवार के बनाये गए दायरों के अंदर ही बंधीं हुई हैं | हमे लोगों को महिला शशक्तिकरण के बारे में जागरूक करना चाहिए की आज के दौर में महिलाओं को उनके निर्णय स्वयं लेने का मौका देना चाहिए और यह उनका हक़ भी है | आज के समय में महिलाएं पुरषों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चलने का दम रखती हैं | हमे बस महिलाओं के प्रति समाज की सोच को बदलना है | ये निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए दिए गए है

महिला सक्षमीकरण पर निबंध

अक्सर class 1, class 2, class 3, class 4, class 5, class 6, class 7, class 8, class 9, class 10, class 11, class 12 के बच्चो को कहा जाता है महिला सक्षमीकरण पर निबंध लिखें|  आइये अब हम आपको Women empowerment essay, महिला समानता पर भाषण, वीमेन एम्पावरमेंट एस्से, अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस निबंध, 1328 words essay on women’s empowerment in india in hindi, आदि की जानकारी  किसी भी भाषा जैसे Hindi, हिंदी फॉण्ट, मराठी, गुजराती, Urdu, उर्दू, English, sanskrit, Tamil, Telugu, Marathi, Punjabi, Gujarati, Malayalam, Nepali, Kannada के Language Font में साल 2007, 2008, 2009, 2010, 2011, 2012, 2013, 2014, 2015, 2016, 2017 का full collection whatsapp, facebook (fb) व instagram पर share कर सकते हैं|

लैंगिक असमानता भारत में मुख्य सामाजिक मुद्दा है जिसमें महिलाएँ पुरुषवादी प्रभुत्व देश में पिछड़ती जा रही है। पुरुष और महिला को बराबरी पर लाने के लिये महिला सशक्तिकरण में तेजी लाने की जरुरत है। सभी क्षेत्रों में महिलाओं का उत्थान राष्ट्र की प्राथमिकता में शामिल होना चाहिये। महिला और पुरुष के बीच की असमानता कई समस्याओं को जन्म देती है जो राष्ट्र के विकास में बड़ी बाधा के रुप में सामने आ सकती है। ये महिलाओं का जन्मसिद्ध अधिकार है कि उन्हें समाज में पुरुषों के बराबर महत्व मिले। वास्तव में सशक्तिकरण को लाने के लिये महिलाओं को अपने अधिकारों से अवगत होना चाहिये। न केवल घरेलू और पारिवारिक जिम्मेदारियों बल्कि महिलाओं को हर क्षेत्रों में सक्रिय और सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिये। उन्हें अपने आस-पास और देश में होने वाली घटनाओं को भी जानना चाहिये।

महिला सशक्तिकरण में ये ताकत है कि वो समाज और देश में बहुत कुछ बदल सकें। वो समाज में किसी समस्या को पुरुषों से बेहतर ढ़ंग से निपट सकती है। वो देश और परिवार के लिये अधिक जनसंख्या के नुकसान को अच्छी तरह से समझ सकती है। अच्छे पारिवारिक योजना से वो देश और परिवार की आर्थिक स्थिति का प्रबंधन करने में पूरी तरह से सक्षम है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाएँ किसी भी प्रभावकारी हिंसा को संभालने में सक्षम है चाहे वो पारिवारिक हो या सामाजिक।

Women empowerment essay in Hindi

महिला सशक्तिकरण के द्वारा ये संभव है कि एक मजबूत अर्थव्यवस्था के महिला-पुरुष समानता वाले वाले देश को पुरुषवादी प्रभाव वाले देश से बदला जा सकता है। महिला सशक्तिकरण की मदद से बिना अधिक प्रयास किये परिवार के हर सदस्य का विकास आसानी से हो सकता है। एक महिला परिवार में सभी चीजों के लिये बेहद जिम्मेदार मानी जाती है अत: वो सभी समस्याओं का समाधान अच्छी तरह से कर सकती है। महिलाओं के सशक्त होने से पूरा समाज अपने आप सशक्त हो जायेगा।

मनुष्य, आर्थिक या पर्यावरण से संबंधित कोई भी छोटी या बड़ी समस्या का बेहतर उपाय महिला सशक्तिकरण है। पिछले कुछ वर्षों में हमें महिला सशक्तिकरण का फायदा मिल रहा है। महिलाएँ अपने स्वास्थ्य, शिक्षा, नौकरी, तथा परिवार, देश और समाज के प्रति जिम्मेदारी को लेकर ज्यादा सचेत रहती है। वो हर क्षेत्र में प्रमुखता से भाग लेती है और अपनी रुचि प्रदर्शित करती है। अंतत: कई वर्षों के संघर्ष के बाद सही राह पर चलने के लिये उन्हें उनका अधिकार मिल रहा है।

वीमेन एम्पावरमेंट एस्से इन हिंदी

भूमिका : महिला सशक्तिकरण को समझने से पहले सशक्तिकरण को समझना बहुत जरूरी है। सशक्तिकरण से तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस क्षमता से होता है जिससे उसमें यह योग्यता आ जाती है जिसमें वह अपने जीवन से जुड़े सभी फैसलों को खुद ले सके।

महिला सशक्तिकरण में भी उसी क्षमता की बात होती है जहाँ पर महिलाएं परिवार और समाज के सभी बन्धनों से मुक्त होकर अपने फैसलों की निर्माता खुद होती है। महिला सशक्तिकरण संसार भर में महिलाओं को सशक्त बनाने की एक मुहीम है जिससे की महिलाएं खुद अपने फैसले ले सकें और हमारे इस समाज और अपने परिवार के बहुत से निजी दायरों को तोडकर अपने जीवन में आगे बढ़ सके।

महिला सशक्तिकरण : महिला सशक्तिकरण को बहुत ही आसान शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है। इससे महिलाएँ शक्तिशाली बनती हैं जिससे वो अपने जीवन से जुड़े हर फैसले को खुद ले सकती हैं और अपने परिवार तथा समाज में अच्छी तरह से रह सकती हैं। समाज में महिलाओं के वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिए उन्हें सक्षम बनाना महिला सशक्तिकरण कहलाता है।

महिला सशक्तिकरण का उद्देश्य होता है महिलाओं को शक्ति प्रदान करना जिससे वे हमारे समाज में पीछे न रह सके और पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर फैसलें ले सकें तथा अपना सिर उठाकर चल सकें। महिला सशक्तिकरण का मुख्य लक्ष्य महिलाओं को उनका अधिकार दिलाना है।

महिला सशक्तिकरण का तात्पर्य ऐसी सामाजिक प्रक्रिया से है जिसमें महिलाओं के लिए सर्वसम्पन्न तथा विकसित होने हेतु सम्भावनाओं के द्वार खुले , नए विकल्प तैयार हों , भोजन , पानी , घर , शिक्षा , स्वास्थ्य , सुविधाएँ , शिशु पालन , प्राकृतिक संसाधन , बैंकिंग सुविधाएँ , क़ानूनी हक तथा प्रतिभाओं के विकास हेतु पर्याप्त रचनात्मक अवसर प्राप्त हों।

महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता : हम सभी को पता है कि हमारा देश एक पुरुष प्रभुत्व वाला देश है जहाँ पर पुरुषों को महिलाओं की तुलना में अधिक सक्षम समझा जाता है जो उचित नहीं है। आज भी बहुत से स्थानों पर महिलाओं को पुरुषों की तरह काम करने नहीं दिया जाता है और उन्हें परिवार की देखभाल और घर से न निकलने की हिदायत दी जाती है।

भारत एक पुरुषप्रधान समाज है जहाँ पर पुरुष का प्रत्येक क्षेत्र मंक दखल होता है और महिलाएँ केवल घर-परिवार की जिम्मेदारी उठाती है साथ ही उन पर कई पाबंदियाँ भी होती हैं। भारत की लगभग 50% आबादी महिलाओं की है अथार्त सारे देश के विकास के लिए इस आधी आबादी की बहुत ज्यादा जरूरत है जो आज तक सशक्त नहीं है और बहुत से सामाजिक प्रतिबंधों से बंधी हुई है।

भविष्य में इस आधी आबादी को मजबूत किये बिना हमारे देश के विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। हमारे देश को विकसित करने के लिए यह आवश्यक है कि सरकार , पुरुष और स्वंय महिलाओं द्वारा महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया जाए। महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि प्राचीनकाल में भारत में लैंगिक असमानता थी और पुरुषप्रधान समाज था।

महिलाओं को उनके परिवार और समाज के द्वारा दबाया गया , उनके साथ बहुत प्रकार से हिंसा की गई तथा परिवार और समाज में भेदभाव किया गया ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुसरे देशों में भी दिखाई देता है। प्राचीनकाल से महिलाओं के साथ समाज में चल रहे गलत और पुराने चलन को नए रीती-रिवाजों और परम्पराओं में ढाल दिया गया है।

भारतीय समाज में महिलाओं को सम्मान देने के लिए माँ , बहन , पुत्री , पत्नी के रूप में महिला देवियों को पूजने की परम्परा है लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि सिर्फ महिलाओं के पूजने से देश के विकास की आवश्यकता को पूरा किया जा सकता है। आज के समय में आवश्यकता है कि देश की आधी आबादी यानि महिलाओं का प्रत्येक क्षेत्र में सशक्तिकरण किया जाये क्योंकि यही देश के विकास का आधार बनेंगी।

भारत एक सुप्रसिद्ध देश है जिसने विविधता में एकता के मुहावरे को साबित करके दिखाया है। भारत के समाज में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। महिलाओं को प्रत्येक धर्म में एक भिन्न स्थान दिया गया है जो लोगों की आँखों को ढके हुए पर्दे के रूप में और बहुत वर्षों से आदर्श के रूप में महिलाओं के विरुद्ध बहुत सारे गलत कामों को जारी रखने में सहायता कर रहा है।

प्राचीनकाल के भारतीय समाज में भेदभाव दस्तूरों के साथ-साथ सती प्रथा , नगर वधु व्यवस्था , दहेज प्रथा , यौन हिंसा , घरेलू हिंसा , गर्भ में बच्चियों की हत्या , पर्दा प्रथा , कार्य स्थल पर यौन शोषण , बाल मजदूरी , बाल विवाह , देवदासी प्रथा , कन्या भ्रूण हत्या आदि परम्परा थीं।

पुरुष पारिवारिक सदस्यों के द्वारा सामाजिक राजनीतिक अधिकारों को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है। महिलाओं के विरूद्ध बहुत से बुरे चलनों को खुले विचारों और महान भारतीय लोगों के द्वारा हटाया गया है और महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव पूर्ण कामों के लिए अपनी आवाज को उठाया। अंग्रेजों द्वारा सती प्रथा को खत्म करवाने के लिए राजा राम मोहन राय में लगातार कोशिशें की थीं जिसमें उन्हें सफलता प्राप्त हुई थी।

इसके बाद बहुत से भारतीय समाज सुधारकों ने भी महिला उत्थान के लिए अपनी आवाज को बुलंद किया और बहुत संघर्ष किया। भारत देश में विधवाओं की स्थिति को सुधारने के लिए ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने लगातार कोशिशों से विधवा पुर्न विवाह अधिनियम 1856 की शुरुआत करवाई थी।

पिछले कुछ सालों में महिलाओं के विरुद्ध होने वाले लैंगिक असमानता और बुरी प्रथाओं को हटाने के लिए सरकार द्वारा बहुत सारे सैवैधानिक और क़ानूनी अधिकार बनाये गये और उन्हें लागु किया गया है। ऐसे बड़े विषयों को सुलझाने के लिए महिलाओं सहित अभी के लगातार सहयोग की बहुत अधिक जरूरत है।

आधुनिक समाज महिलाओं के अधिकारों को लेकर अधिक जागरूक है जिसका परिणाम यह है कि बहुत सारे स्वयं-सेवी समूह और एनजीओ आदि सभी इस दिशा में अपने सफल प्रयास कर रहे हैं। महिलाएं अधिक खुले हुए दिमाग की होती हैं और सभी आयामों में अपने अधिकारों को पाने के लिए सभी सामाजिक बंधनों को तोड़ रही है।

क़ानूनी अधिकार के साथ महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए संसद द्वारा पास किए गए कुछ अधिनियम जैसे – एक बराबर पारिश्रमिक एक्ट 1976 , दहेज रोक अधिनियम 1961 , अनैतिक व्यापर रोकथाम अधिनियम 1956 , मेडिकल तर्म्नेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी एक्ट 1987 , बाल विवाह रोकथाम एक्ट 2006 , लिंग परीक्षण तकनीक एक्ट 1994 , कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण एक्ट 2013 आदि को चलाया गया है।

राष्ट्र निर्माण में भूमिका : महिलाएं हमारे देश की आबादी का लगभग आधा हिस्सा होती हैं। इसी वजह से राष्ट्र के विकास के इस महान काम में महिलाओं की भूमिका और योगदान को पूरी तरह और सही परिप्रेक्ष्य में रखकर ही राष्ट्र निर्माण के कामों को समझा जा सकता है।

समूची सभ्यता में व्यापक बदलाव के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में महिला सशक्तिकरण आन्दोलन 20 वीं शताब्दी के अंतिम दशक का एक बहुत ही महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक विकास कहा जा सकता है। राष्ट्र निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है जो सुव्यवस्थित रूप से तैयार की गयी विकास नीतियों के रूप में राजनीतिक इच्छा को रेखांकित करती है।

जिससे व्यक्ति अपनी पूरी क्षमता का प्रयोग करके अपनी कार्यक्षमता में वृद्धि कर सके, इसके लिए आर्थिक , सामाजिक , शैक्षिक तथा बुनियादी ढांचों का होना जरूरी होता है। जनता की खुशहाली तथा जीवन की गुणवत्ता में सुधार करके मानव विकास का मूलभूत लक्ष्य हमारी राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया का बहुत आवश्यक अंग है।

भारत में महिला सशक्तिकरण के बुनियादी तथ्य : भारत में महिला कल्याण से संबंधित गतिविधियों को संस्थागत ढांचा उपलब्ध कराने तथा संवैधानिक सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिए अनेक कदम उठाए गये हैं। स्वतंत्रता के बाद से ही महिलाओं का विकास भारतीय आयोजन प्रणाली का एक केन्द्रीय विषय रहा है।

पिछले 20 सालों में बहुत से नीतिगत बदलाव आये हैं। सन् 1970 में जहाँ पर कल्याण की अवधारणा महत्वपूर्ण थी वहीं 80 के दशक में विकास पर जोर दिया गया था। 1990 के दशक से हो महिला अधिकारिता अथार्त महिला सशक्तिकरण पर जोर दिया जा रहा है।

ऐसी कोशिशें की जा रही हैं , महिलाएँ फैसला लेने की प्रक्रिया में सम्मिलित हों तथा नीति निर्माण के स्तर पर भी उनकी सहभागिता हो। सिमित अर्थों में सामूहिक कार्यवाई से ही महिलाओं में शक्ति का संचार होता है। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। इस प्रकार से दमन का विरोध करने से उनकी क्षमता और इच्छा में भी वृद्धि होती है।

लेकिन व्यापक अर्थों में सामूहिक कार्यवाई सशक्तिकरण का ही एक जरिया है। इसके माध्यम से स्त्री-पुरुष असामनता को चुनौती देने के साथ-साथ उसे खत्म करने की कोशिश भी की जा सकती है। विचार , धर्म , आस्था और अंतरात्मा की स्वतंत्रता के साथ महिलाओं की प्रगति के प्रयासों से व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप से महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों की भी नैतिक , आध्यात्मिक तथा बौद्धिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। इससे समाज में उनकी पूर्ण क्षमता के उपयोग की संभावना सुनिश्चित होती है तथा अपनी आकांक्षाओं के अनुसार अपनी जिन्दगी को रूप देने की पक्की गारंटी भी देती है।

महिला सशक्तिकरण के प्रयास : भारत सरकार ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सहयोग से देश में महिलाओं को राजनैतिक , आर्थिक तथा सामाजिक विकास में बराबर भागीदारी के अवसर प्रदान करने के प्रमुख उद्देश्य को लेकर राष्ट्रिय महिला उत्थान नीति 2001 में घोषित की गयी थी।

सभी निर्णायक निकायों में निर्णय प्रक्रिया में नारी सहभागिता को सुनिश्चित किया गया है। वर्तमान कानून में संशोधन द्वारा नारी आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील तथा घरेलू हिंसा या वैयक्तिक आक्रमण की रोकथाम के लिए नए कानूनों का निर्माण एवं अपराधियों के लिए उचित दण्ड की व्यवस्था की गयी है।

गांवों एवं शहरों की आवस नीतियों एवं योजनाओं में महिला परिप्रेक्ष्य को सम्मिलित किया गया है। महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव को समाप्त करने के लिए समुदाय धार्मिक नेताओं एवं पणधारियों की पुरम भागीदारी एवं फल पर विवाह , तलाक , अनुक्षण तथा अभिभावकता जैसे व्यक्तिक कानूनों में परिवर्तन किया गया है।

महिलाओं के शिक्षा स्तर को बढ़ाने एवं अनुकूल शिक्षा प्रणाली के निर्माण के लिए विशेष नियम लागु किये गए हैं। महिला स्वास्थ्य पोषाहार , बालिका विवाह एवं विवाह के पंजीकरण को अनिवार्य बनाया गया है। महिलाओं को पुरुषों के समान संपत्ति में अधिकार दिलाने के लिए उससे संबंधित कानूनों में परिवर्तन किया गया है।

ग्लोबलाइजेशन उत्पन्न नकारात्मक एवं सामाजिक तथा आर्थिक प्रभावों के विरुद्ध महिलाओं की क्षमता में वृद्धि के साथ उन्हें पूर्ण सुरक्षा प्रदान करने की योजना है। महिलाओं को मुख्य धारा में लाने वाले तंत्रों की प्रगति का समय-समय पर मुल्यांकन करने के लिए समन्वय तथा प्रबन्धन तंत्र का निर्माण हुआ है।

पर्यावरण संरक्षण एवं बहाली कार्यक्रमों में महिलों को सम्मिलित किया गया है। गरीब महिलाओं के लिए आर्थिक सहायता हेतु कार्यक्रम चलाए गए हैं। उत्पादन में उपभोग के लिए ऋण सहायता तथा सामाजिक आर्थिक विकास में उत्पादकों एवं कार्यकर्ताओं के रूप में महिलाओं के योगदान को मान्यता दी गई है। सभी केंद्रीय तथा राज्य मंत्रालय केन्द्रियाराज्य महिला एवं बाल विकास विभागों तथा राष्ट्रियारस्य महिला आयोगों के साथ परामर्श की प्रतिभागी प्रक्रिया द्वारा नीति को ठोस कार्यवाही में बदलने की योजना तैयार की जाएगी।

उपसंहार : भारतीय समाज में सच में महिला सशक्तिकरण लाने के लिए महिलाओं के विरुद्ध बुरी प्रथाओं के मुख्य कारणों को समझना और उन्हें हटाना होगा जो समाज की पितृसत्तामक और पुरुष युक्त व्यवस्था है। यह बहुत आवश्यक है कि हम महिलाओं के विरुद्ध अपनी पुरानी सोच को बदलें और संवैधानिक तथा क़ानूनी प्रावधानों में भी बदलाव लाये।

Women’s empowerment essay in marathi

स्त्रिया सशक्तीकरणास अगदी सोप्या शब्दात परिभाषित करता येईल ज्यायोगे ती महिलांना शक्तिशाली बनविते जेणेकरून ते त्यांच्या आयुष्याबद्दल आणि कुटुंबातील आणि समाजातल्या स्वतःच्या निर्णयाबद्दल निर्णय घेऊ शकतील. स्त्रियांना समाजात त्यांचे खरे हक्क मिळविण्यास सक्षम बनविणे हे सशक्त आहे.

भारतात महिला सशक्तीकरण की आवश्यकता का आहे

आपण सर्वजण हे जाणतो की भारत एक पुरुष वर्चस्व असलेला देश आहे जेथे पुरुषांना प्रत्येक क्षेत्रात वर्चस्व आहे आणि महिलांना फक्त कौटुंबिक काळजीसाठी आणि इतर बर्याच निर्बंधांसह घरात राहण्यासाठी जबाबदार राहण्यास भाग पाडले जाते. भारतातील लोकसंख्येपैकी 50% लोक केवळ मादीच व्यापतात, म्हणून देशाचा पूर्ण विकास अर्धा लोकसंख्येवर अवलंबून असतो, ज्या स्त्रियांना अधिकार नसतात आणि तरीही बर्याच सामाजिक टॅबद्वारे प्रतिबंधित असतात. अशा स्थितीत, आपण असे म्हणू शकत नाही की आपल्या देशात अर्ध्या लोकसंख्येला सशक्त न करता भविष्यात विकसित केले जाईल. जर आपण आपला देश एक विकसित देश बनवू इच्छितो, तर सर्व प्रथम पुरुष, सरकारी, कायदे आणि महिला यांच्या प्रयत्नांनी महिलांना सशक्त करणे आवश्यक आहे.

प्राचीन काळापासून लैंगिक भेदभाव आणि भारतीय समाजात पुरुष वर्चस्व असल्यामुळे महिला सशक्तीकरणांची आवश्यकता निर्माण झाली. आपल्या कुटुंबातील सदस्यांना आणि समाजात अनेक कारणांमुळे महिलांना दडपशाही केली जात आहे. भारतातील आणि इतर देशांतील पुरुष व समाजातील पुरुष सदस्यांमार्फत त्यांना अनेक प्रकारचे हिंसा आणि भेदभाव करण्याचे लक्ष्य केले गेले आहे. प्राचीन काळातील समाजातील स्त्रियांसाठी चुकीची आणि जुनी पद्धत उत्तम विकसित रीतिरिवाज आणि परंपरा बनविली आहे. आई, बहीण, मुलगी, पत्नी आणि इतर महिला नातेवाईक किंवा मित्रांसारख्या स्त्रियांच्या स्त्रियांना आदर देणे यासह अनेक महिला देवींची पूजा करण्याची परंपरा आहे. परंतु, याचा अर्थ असा नाही की स्त्रियांचा आदर करणे किंवा सन्मान देणे ही देशातील विकासाची गरज पूर्ण करू शकते. देशाच्या उर्वरित अर्ध्या लोकसंख्येच्या सक्षमीकरणाची गरज आहे.

‘एकता विविधता’ सारख्या सामान्य म्हणी सिद्ध करणारा भारत एक प्रसिद्ध देश आहे, जेथे अनेक धार्मिक विश्वासांचे लोक भारतीय समाजात आहेत. प्रत्येक धर्मात स्त्रियांना एक विशेष स्थान देण्यात आले आहे जो लोकांच्या डोळ्यांसमोर एक मोठा पडदा म्हणून काम करीत आहे आणि बर्याच काळापासून स्त्रियांच्या विरूद्ध बर्याच आजारांच्या (शारीरिक आणि मानसिक समस्यांसह) निरंतर रहाण्यात मदत करतो. प्राचीन भारतीय समाजात, सती प्रथा, नगर वधू व्यवस्था, दहेज व्यवस्था, लैंगिक हिंसा, घरगुती हिंसा, स्त्री-बालकास, पारदा प्रथा, पत्नी बर्न करणे, कामाच्या ठिकाणी लैंगिक छळ, बाल विवाह, बालश्रम, देवदशी प्राथा इ. इतर भेदभाव पद्धतींसह. अशा सर्व प्रकारचे आजारपण पुरुष श्रेष्ठता कॉम्प्लेक्स आणि समाजाच्या पितृसत्तात्मक व्यवस्थेमुळे होते.

महिलांसाठी सामाजिक-राजकीय हक्क (कार्य करण्याचे अधिकार, शिक्षणाचा अधिकार, स्वत: साठी निर्णय करण्याचा अधिकार इ.) कुटुंबातील पुरुष सदस्यांनी पूर्णपणे प्रतिबंधित केले. स्त्रियांविरुद्धच्या काही भयानक कृत्यांमुळे खुल्या मनाच्या आणि महान भारतीय लोकांनी महिलांच्या विरोधात भेदभाव करण्याच्या आवाजासाठी आवाज उठविला आहे. राजा राम मोहन रॉय यांच्या सतत प्रयत्नांमुळे, ब्रिटीशांना सती पराठाच्या वाईट सवयी दूर करण्यास भाग पाडण्यात आले. पुढे, भारताच्या इतर प्रसिद्ध सामाजिक सुधारकांनी (ईश्वर चंद्र विद्यासागर, आचार्य विनोबा भावे, स्वामी विवेकानंद इत्यादी) देखील त्यांची आवाज उठविली आणि भारतीय समाजातील महिलांच्या उन्नतीसाठी मेहनत घेतली. भारतात, विधवा पुनर्विवाह कायदा, 1856 ही देशातील विधवांच्या परिस्थिती सुधारण्यासाठी ईश्वर चंद्र विद्यासागरच्या सतत प्रयत्नांनी सुरू करण्यात आली.

अलीकडील वर्षांत, स्त्रियांच्या विरूद्ध दुष्परिणाम आणि लैंगिक भेदभाव दूर करण्यासाठी भारत सरकारद्वारे विविध संवैधानिक आणि कायदेशीर अधिकार लागू केले गेले आहेत. तथापि, अशा मोठ्या समस्येचे निराकरण करण्यासाठी, महिलांसह प्रत्येकास सतत प्रयत्न करणे आवश्यक आहे. आधुनिक समाजाला महिला अधिकारांबद्दल अधिक जागरुक होत आहे ज्यामुळे या दिशेने काम करणार्या स्वयंसेवी गट, स्वयंसेवी संस्था, इ. ची संख्या वाढत आहे. गुन्हेगारीच्या बाजूने जात असताना देखील सर्व आयामांमध्ये त्यांचे हक्क साध्य करण्यासाठी महिला अधिक खुले विचारशील आहेत आणि सामाजिक अडथळ्यांना तोडत आहेत.

संसदेने पारित केलेल्या काही कार्ये समान पारिश्रमिक कायदा 1 9 76, दहेज प्रतिबंध अधिनियम -1 9 61, अनैतिक वाहतूक (रोकथाम) कायदा 1 9 56, गर्भधारणेचा कायदा-1 9 71 चा वैद्यकीय समाप्ती, मातृत्व लाभ अधिनियम -1 9 61, सती आयोग (निवारण) 1 9 87, बाल विवाह कायद्याचा 2006-प्रतिबंध, प्री-कॉन्सेप्शन आणि प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स (दुरुपयोग आणि प्रतिबंध दुरुस्ती) अधिनियम -1 99 4, कामाच्या ठिकाणी महिलांचे लैंगिक छळवणूक (प्रतिबंध, संरक्षण आणि) अधिनियम -2013 कायदेशीर अधिकार असलेल्या महिलांना सशक्त करण्यासाठी.

महिलांना सुरक्षा प्रदान करण्यासाठी आणि भारतातील महिलांविरुद्ध गुन्हेगारी कमी करण्यासाठी सरकारने बाल कायदा (मुलांचे संरक्षण व संरक्षण) विधेयक, 2015 (विशेषकर निर्भय प्रकरणानंतर आरोपी किशोरवयीन सोडल्यानंतर) दुसरा कायदा पार केला आहे. हे कृत्य ज्येष्ठ गुन्हेगारीच्या प्रकरणांमध्ये 18 ते 16 वर्षे वयोगटातील किशोरवयीन वय कमी करण्यासाठी 2000 (किशोर न्याय (संरक्षण व बाल संरक्षण कायदा), 2000 च्या भारतीय किशोरवयीन गुन्हेगारी कायद्याची बदली आहे.

निष्कर्ष

भारतीय समाजात महिला सशक्तीकरण खरोखर आणण्यासाठी, त्या समाजातील पितृसत्तात्मक आणि पुरुष वर्चस्व असलेल्या स्त्रियांच्या विरूद्ध झालेल्या आजारपणाच्या मुख्य कारणांना समजून घेणे आणि समाप्त करणे आवश्यक आहे. हे खुले विचाराने आणि संवैधानिक आणि इतर कायदेशीर तरतुदींसह महिलांच्या विरूद्ध वृद्ध मनाची गरज बदलली पाहिजे.

Mahila sakshamikaran nibandh in marathi

स्वातंत्र्य जवळजवळ सात दशकात भारतातील स्त्रियांनी महत्त्वपूर्ण प्रगती केली आहे हे तथ्य नाकारता येत नाही, परंतु नर-प्रभुत्व असलेल्या समाजात बर्याच अपंग आणि सामाजिक दुष्परिणामांविरुद्ध अजूनही त्यांना संघर्ष करावा लागतो. आधुनिक भारतीय समाजात बर्याच वाईट आणि मादक शक्ती अजूनही प्रचलित आहेत जे महिलांच्या पुढच्या मोर्चाला विरोध करते. लैंगिक असमानता निर्देशांकाच्या आधारे जगभरातील 146 देशांमध्ये 2 9 व्या क्रमांकावर आहे. या देशाने यापूर्वी मार्स मिशनची पूर्तता करण्यासाठी पहिल्या आशियाई देशाची स्थिती प्रशस्त केली आहे. महिलांच्या स्थितीत सुधारणा झाली आहे, परंतु त्यांचे खरे सशक्तीकरण अद्याप प्रतीक्षेत आहे.

भारतातील महान पुत्रांपैकी एक असलेल्या स्वामी विवेकानंद यांनी उद्धृत केले की, “महिलांची स्थिती सुधारल्याशिवाय जगाच्या कल्याणासाठी काहीच संधी नाही, पक्ष्यासाठी फक्त एकच पंख उडवणे शक्य नाही.” “म्हणून, आठ सहस्राब्दी विकास उद्दीष्टांपैकी मुख्य उद्दीष्टांपैकी” महिला सशक्तिकरण “समाविष्ट करणे या तथ्याशी संबंधित आहे. अशा प्रकारे, विकसित देशाची स्थिती प्राप्त करण्यासाठी, भारताला तिच्या प्रचंड स्त्रिया शक्तीला प्रभावी मानव संसाधन म्हणून बदलण्याची गरज आहे आणि हे केवळ महिला सक्षमीकरणाद्वारे शक्य आहे.

मजबूत अर्थव्यवस्थेची उभारणी करण्यासाठी, विकास आणि टिकून राहण्याच्या उद्देशाने आंतरराष्ट्रीय स्तरावर सहमत असलेल्या ध्येये साध्य करण्यासाठी आणि स्त्रिया, पुरुष, कुटूंब आणि समुदायांसाठी आयुष्याची गुणवत्ता सुधारण्यासाठी सर्व क्षेत्रांमध्ये आर्थिकदृष्ट्या पूर्ण आर्थिक सहभाग घेण्यासाठी महिलांना सशक्त करणे आवश्यक आहे.

महिला सशक्तीकरण काय आहे?
महिला सशक्तिकरण म्हणजे सामाजिक, आर्थिक, राजकीय, जाति आणि लैंगिक-आधारित भेदभाव यांच्या विषाणूच्या स्त्रियांकडून मुक्तता. याचा अर्थ स्त्रियांना जीवन निवडी करणे स्वातंत्र्य देणे होय. स्त्रिया सशक्तीकरण म्हणजे ‘महिलांना दोष देणे’ असा अर्थ नाही तर त्याऐवजी पितृसत्तांची जागा समानता दाखवणे. या बाबतीत, महिला सक्षमीकरणाच्या विविध पैलू आहेत, जसे की येथे दिलेली आहेत: –

मानवाधिकार किंवा वैयक्तिक अधिकार: स्त्री ही इंद्रिये, कल्पना आणि विचारांची एक जात आहे; तिला मुक्तपणे व्यक्त करण्यात सक्षम असावे. वैयक्तिक सशक्तीकरण म्हणजे वार्तालाप आणि निर्णय घेण्याची शक्ती व्यक्त करण्यासाठी आत्मविश्वास आणि आत्मविश्वास असणे.

सामाजिक स्त्रिया सशक्तिकरण महिलांचे सामाजिक सशक्तिकरण एक महत्त्वपूर्ण पैलू म्हणजे लैंगिक समानता. लैंगिक समानता म्हणजे असा समाज ज्यामध्ये स्त्रिया आणि पुरुष जीवनातील सर्व क्षेत्रात समान संधी, परिणाम, अधिकार आणि जबाबदार्यांचा आनंद घेतात.

शैक्षणिक महिला सशक्तिकरण याचा अर्थ विकास प्रक्रियेत पूर्णपणे भाग घेण्यासाठी आवश्यक ज्ञान, कौशल्य आणि आत्मविश्वास असलेल्या स्त्रियांना सशक्त करणे होय. याचा अर्थ स्त्रियांना त्यांच्या हक्कांविषयी जागरुक करणे आणि त्यांचा दावा करण्यासाठी आत्मविश्वास वाढविणे होय.

आर्थिक आणि व्यावसायिक सशक्तीकरण हे स्त्रियांच्या मालकीच्या आणि व्यवस्थापित निरंतर आजीविकांद्वारे भौतिक आयुष्याची उत्तम गुणवत्ता दर्शवते. याचा अर्थ मानवी स्त्रोतांचा त्यांचा एक महत्त्वाचा भाग बनवून त्यांच्या पुरुष समकक्षांवर त्यांचे आर्थिक निर्भरता कमी करणे होय.

कायदेशीर महिला सशक्तीकरण हे एक प्रभावी कायदेशीर संरचना तरतूद आहे जे महिला सशक्तीकरणास समर्थन देत आहे. याचा अर्थ काय काय ठरवते आणि प्रत्यक्षात काय होते यामधील फरक संबोधित करणे.

राजकीय महिला सक्षमीकरण याचा अर्थ राजकीय निर्णय घेण्याच्या प्रक्रियेच्या आणि शासनाच्या सहभागास सहभाग घेण्यावर आणि नियंत्रणास समर्थन देणारी राजकीय व्यवस्था अस्तित्वात आहे.

भारतातील महिलांची स्थिती: ऋग-वैदिक काळात स्त्रियांना मिळालेली स्थिती नंतरच्या वैदिक संस्कृतीत बिघडली. शिक्षणाचा अधिकार आणि विधवा पुनर्विवाह स्त्रियांना नाकारण्यात आले. त्यांचा वारसा आणि मालमत्तेची मालकी हक्क नाकारली गेली. बाल विवाह आणि दहेज प्रणाली सारख्या बर्याच सामाजिक दुष्परिणामांनी महिलांना आकर्षित करण्यास सुरुवात केली. गुप्त काळात, महिलांची स्थिती अत्यंत खराब झाली. दहेज एक संस्था बनली आणि सती प्राथ प्रमुख झाले.

ब्रिटिश राज्यादरम्यान, राजा राममोहन रॉय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर आणि ज्योतिराव फुले यांसारख्या अनेक सामाजिक सुधारकांनी महिला सशक्तीकरणासाठी आंदोलन सुरू केले. त्यांच्या प्रयत्नांमुळे सतीचा उन्मूलन आणि विधवा पुनर्विवाह कायदा तयार झाला. नंतर महात्मा गांधी आणि पं. नेहरूंनी महिला अधिकारांचे समर्थन केले. त्यांच्या केंद्रित प्रयत्नांमुळे सामाजिक, आर्थिक आणि राजकीय जीवनातील स्त्रियांची स्थिती भारतीय समाजात उंचावण्यास सुरवात झाली.

महिला सशक्तीकरण वर वर्तमान परिदृष्य -. आमच्या स्थापनेच्या वडिलांनी महिला सक्षमीकरणासाठी केलेल्या विचारांच्या आधारे भारतीय संविधानात अनेक सामाजिक, आर्थिक आणि राजकीय तरतुदींचा समावेश करण्यात आला. भारतात महिला आता शिक्षण, क्रीडा, राजकारण, माध्यम, कला आणि संस्कृती, सेवा क्षेत्र आणि विज्ञान आणि तंत्रज्ञान यासारख्या क्षेत्रांमध्ये भाग घेतात. परंतु भारतीय समाजातील खोल मूळ पितृसत्ताक मानसिकतेमुळे महिला अजूनही बळी पडतात, अपमानित करतात, छळ करतात आणि शोषण करतात. स्वातंत्र्य जवळजवळ सात दशकांनंतरही, तरीही स्त्रिया सामाजिक, आर्थिक आणि शैक्षणिक क्षेत्रात भेदभाव करतात.

महिला सक्षमीकरणासाठी शिक्षण हे सर्वात महत्वाचे आणि अपरिहार्य साधन आहे. यामुळे महिलांना त्यांच्या अधिकार आणि जबाबदार्यांबद्दल जागरुक होते. एखाद्या स्त्रीच्या शैक्षणिक उपलब्धतेमुळे कुटुंबासाठी आणि पिढ्यांकरिता तिप्पट परिणाम होऊ शकतात. त्यांच्यासाठी वेगवेगळ्या शौचालयांची अनुपलब्धता असल्यामुळे बहुतेक मुलींनी शाळा सोडल्या आहेत. नुकत्याच सुरू झालेल्या ‘स्वच्छ भारत मिशन’ मध्ये शाळांमध्ये स्वच्छता सुविधा आणि 201 9 पर्यंत प्रत्येक ग्रामीण घरगुती सुधारणा करण्यावर लक्ष केंद्रित केले जात आहे, ज्यायोगे मुलींना शाळेतून वगळण्याचे प्रमाण कमी करण्यात खूपच महत्त्वपूर्ण ठरू शकते.

राजकीय इच्छा: स्त्रियांकडे स्त्रोत, हक्क आणि हक्कांची उपलब्धता असणे आवश्यक आहे. त्यांना निर्णय घेण्याची शक्ती आणि प्रशासनात योग्य स्थान दिले पाहिजे. अशा प्रकारे, भारत राजकारणात महिलांच्या प्रभावी सहभागास शक्य तितक्या लवकर महिला आरक्षण विधेयक पारित केले जावे.

अंमलबजावणीचे अंतर वाढवणे: समाजाच्या कल्याणासाठी तयार केलेल्या कार्यक्रमांचे परीक्षण करण्यासाठी सरकारी किंवा समुदाय-आधारित संस्था स्थापन केल्या जाणे आवश्यक आहे. त्यांचे योग्य अंमलबजावणी आणि सामाजिक तपासणीद्वारे त्यांचे परीक्षण आणि मूल्यांकन यासाठी योग्य महत्त्व दिले पाहिजे.

न्यायाला विलंब झाल्याने न्याय नाकारला जातो. बलात्कार, ऍसिड हल्ले, लैंगिक उत्पीडन, तस्करी आणि घरगुती हिंसा यासारख्या गंभीर गुन्हेगारांना न्याय्य आणि वेळेवर न्याय देण्यासाठी कायदेशीर प्रक्रियेची पुनर्रचना करण्याचा प्रयत्न करावा. फास्ट ट्रॅक कोर्ट, बलात्काराच्या पीडितांना तीव्र न्याय देण्यासाठी आणि महिलांवरील इतर गुन्हेगारीची कल्पना, न्यायपालिका आणि भारत सरकारकडून घेतली जाणारी चांगली उपक्रम आहे.

निष्कर्ष: सामाजिक, आर्थिकदृष्ट्या, शैक्षणिकदृष्ट्या राजकीयदृष्ट्या आणि कायदेशीरदृष्ट्या स्त्रियांना सशक्त करणे हे एक अत्यंत विलक्षण कार्य ठरणार आहे. भारतीय समाजात खोलवर असलेल्या स्त्रियांकडे दुर्लक्ष करणार्या संस्कृतीत बदल करणे सोपे होणार नाही. परंतु याचा अर्थ असा नाही की हे अयोग्य आहे. केवळ क्रांती दिवसात बदल घडवते, परंतु सुधारणांमध्ये त्यांचा वेळ असतो. हे, विशेषतः, आपला वेळ देखील घेईल. महिला सक्षमीकरणाची कल्पना यार्डने कठोर परिमाणाने ऐकू शकते, परंतु एका इंचाइतकेच, हे फक्त एक शिंपले आहे. आपल्याला फक्त एका गोष्टीची गरज आहे जे योग्य दिशेने केंद्रित आहे जे केवळ स्त्रियांच्या सर्व प्रकारच्या दुष्कृत्यांपासून मुक्त होते.

Essay on Women Empowerment for Students

आज भी इस आधुनिक युग में 40 से 50% महिलाएं हैं जो शिक्षित होने पर भी घर पर ही बैठे हैं। यानी कि देश का आधा ज्ञान घर पर ही बैठे बैठे बेकार हो रहा है। हलाकि घर पर बच्चों की देखभाल या परिवार की देखभाल करना भी जीवन का एक हिस्सा है परंतु इसका मतलब यह तो नहीं कि जीवन वहीं पर सीमित है। महिलाओं को भी पुरुषों की तरह है ऑफिस जाना चाहिए और काम करना चाहिए क्योंकि इससे उनका ज्ञान और बढ़ता है और वह भी देश के लिए कुछ अच्छा कर सकती हैं।

भारत में महिला सशक्तिकरण की कमी एक सबसे बड़ा कारण है कि आज भी भारत विकासशील देशों में गिना जाता है। अगर हमारे देश की महिलाएं सशक्त बने और पुरुषों की तरह है अपने ज्ञान को विश्व के साथ बांटे और घर से बाहर निकलकर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करें तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा देश भारत भी विकसित देशों की लिस्ट में दिखेगा। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए पुरुषों की मदद तथा सरकार द्वारा महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई नियम और कानून लाने होंगे।

महिला सशक्तिकरण का नारा इसलिए समाज में उठा क्योंकि हमारे समाज में लिंग भेदभाव आज भी इस आधुनिक युग में हो रहा है जो कि एक बहुत ही शर्म की बात है। आज भी कई जगहों पर गैरकानूनी तरीके से लिंग की जांच करवा कर कन्या भ्रूण हत्या जैसे महापाप हो रहे हैं। बाकी लोग घर में लड़कियों को लड़कों से कम समझ रहे हैं तो कई जगहों पर विवाह के बाद लड़कियों के साथ अत्याचार हो रहा है। अगर हम सही नजरिए से देखेंगे तो पूर्ण रूप से महिलाओं के साथ अन्याय हो रहा है जो नहीं होना चाहिए क्योंकि इस दुनिया में हर किसी को स्वतंत्र रूप से जीने और जीवन में आगे बढ़ने का हक है।

हमारे रीति रिवाज, पूजा पाठ और परंपरा का सम्मान करना चाहिए परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि पौराणिक कथाओं का गलत मतलब निकाल कर महिलाओं के साथ अत्याचार किया जाए। आज भी हमारे देश भारत में जहां महिलाओं के रूप में माता पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, काली, की पूजा की जाती है पता नहीं क्यों वहां मां, बहन, बेटी, पत्नी, या किसी महिला मित्र के साथ अन्याय होता है? महिलाओं का सम्मान मात्र कर देने से काम नहीं चलेगा बल्कि हमें अपने समाज की महिलाओं को सशक्त बनाना होगा ताकि वह देश में निडरता के साथ चल पाएं और उन्हें कभी भी एहसास ना होने दिया जाए कि वह पुरुषों से कम है।

पौराणिक काल में भी महिलाओं के साथ अन्याय जैसे सती प्रथा, दहेज प्रथा, नगरवधू प्रणाली, यौन उत्पीड़न, पर्दा प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, लड़कियों से कम उम्र में काम करवाना, बाल विवाह होते थे। हांलाकि आज इनमें से ज्यादातर चीजें कम हो चुकी है परंतु आज भी कुछ ऐसी बाधाएं हैं जिनके कारण महिलाएं सशक्त नहीं हो पा रही है जिन्हें हमें दूर करना होगा। भारत में महिलाओं को काम करने का अधिकार, शिक्षा की भूमिका, स्वयं का फैसला करने का अधिकार,नहीं मिल पा रहा है जो हमें उन्हें दिलाना होगा।

कुछ महान सही सोच रखने वाले नेता जैसे राजा राममोहन राय ने सती प्रथा को दूर करने के लिए ब्रिटिश सरकार को मजबूर किया बाद में कुछ अन्य महान समाज सुधारक जैसी ईश्वर चंद्र विद्यासागर, आचार्य विनोबा भावे, स्वामी विवेकानंद ने महिलाओं के हक़ को समाज के समक्ष रखा और लोगों को सही मार्ग दिखाया। इन आने वाले सालों में सरकार ने भी महिला सशक्तिकरण के अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए कई नए नियम और कानून तैयार किए हैं। आशा करते हैं यह नियम कानून और लोगों की सोच महिलाओं को उनका हक दिलाने में मददगार साबित होंगे। हमें भी अपने महिला सशक्तिकरण के महत्व को समझना होगा और समाज की महिलाओं का सम्मान करना चाहिए तथा उन्हें उनका हक प्रदान करना चाहिए।

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