विजया एकादशी 2022-23 | Vijaya Ekadashi Vrat Katha, Shubh Muhrat & Puja Vidhi

विजया एकादशी

एकादशी व्रत का हिन्दू धर्म मे बड़ा महत्व है।इस आर्टिकल  से आप जान पाएंगे की vijaya ekadashi ki katha क्या होती हैं, Legends of Vijaya Ekadashi,fasting date and time,विजया एकादशी व्रत कथा आदि।विजय एकादशी Celebrations of Vijay Ekadashi Across India पूरे भारत में बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं।

Vijaya Ekadashi Importance | Benefits

यह व्रत भक्ति ओर पुण्य कार्य को बहुत ही खास है।यह बताया गया है की कृष्णपक्ष में फाल्गुन महीने की एकादशी को विजय एकादशी के नाम से जाना जाता हैं।इस दिन भगवान विष्णु का व्रत किया जाता है। इस व्रत को करने मात्र से मनुष्य सभी कार्यों पर विजय पा लेता हैं।

यह भी प्रचिलित है की भगवान राम ने लंका पर विजय पाने के लिए एकादशी व्रत किया था।इस दिन जो भी प्राणी भगवान विष्णु की pooja आराधना करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है । उसके सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती हैं, धन धान्य का लाभ होता है।vijay ekadashi का व्रत का पुण्यफल अत्यधिक लाभकारी होता है ओर व्रत करने वाले को बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।

एकादशी व्रत करने से फायदे:

व्रत करने से व्यक्ति निरोगी रहता है, राक्षस, भूत-पिशाच आदि से छुटकारा मिलता है, पापों का नाश होता है, संकटों से मुक्ति मिलती है, सभी कार्य पूरे होते हैं, सौभाग्य प्राप्त होता है, मोक्ष की प्राप्ति है,सुख ओर समृद्धि आती है,शांति मिलती है, मोह-माया और बंधनों से मुक्ति मिलती है, हर प्रकार के मनोकामना पूर्ण होती हैं,खुशियां मिलती हैं, सिद्धि प्राप्त होती है,दरिद्रता दूर होती हैं, खोया हुआ सबकुछ फिर से प्राप्त हो जाता है,भाग्य उदय होता है, शौर्य ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है,पुत्र प्राप्ति होती है, शत्रुओं का विनाश होता है, सभी रोगों का नाश होता है, कीर्ति और प्रसिद्धि प्राप्त होती है और हर कार्य में सफलता प्राप्त होती हैं।

Vijaya Ekadashi Date and Parana Time

Vijaya Ekadashi on बुधवार 19 February 2020

20th Feb, Prana Time – 6:56 AM to 9:11 AM

Ekadashi तिथि की शुरुआत  – 2:32 PM 18 Feb 2020
Ekadashi तिथि की समाप्ति  – 3:02 PM 19 Feb 2020

Vijaya Ekadashi Vrat Vidhi

नारदपुराण के हिसाब से यह माना जाता है की इस दिन व्रत करने वाले को ब्रह्म मुहूर्त में नहाना चाहिए ओर व्रत का संकल्प लेना चाहिए।इसके बाद उनकी चौकी लगाए ओर उनकी स्थापना करे। भगवान श्री हरी विष्णु ओर माता लक्ष्मी की फोटो गंगाजल से शुद्ध करे ओर रोली, चावल,लगाकर भोग लगाएँ। इसके बाद भगवान की मूर्त के समक्ष दीप जलाएँ ओर आरती करे, इसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करे ओर भगवान का ध्यान करे। दिन भर विष्णु जी ओर माता लक्ष्मी का ध्यान लगाएँ ओर शाम को आरती करने के बाद फलाहार कर सकते हैं। इसके पश्चात अगले दिन सुबह भगवान की पूजा आराधना करके उनको भोग लगाकर ब्राह्मण को भोजन कराएँ ओर दक्षिणा दे ओर फिर खुद व्रत को खोले ओर पूर्ण करे।

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व‍िजया एकादशी की कथा | Vijaya Ekadashi Vrat Katha in Hindi | Story

धर्मराज युधिष्‍ठिर बोले – हे जनार्दन! कृपा करके आप मुझे बताइए की व्रत कथा क्या है।श्री भगवान बोले हे राजन् – फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया एकादशी है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्‍य को विजय प्राप्त‍ होती है। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत है। इस विजया एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पठन से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं। एक समय देवर्षि नारदजी ने जगत् पिता ब्रह्माजी से कहा फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी की महत्वता बताने को कहा तो ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद! विजया एकादशी का व्रत पुराने तथा नए पापों को नाश करने वाला है। इस विजया एकादशी की विधि मैंने आज तक किसी से भी नहीं कही। यह समस्त मनुष्यों को विजय प्रदान करती है। त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्रजी को जब चौदह वर्ष का वनवास हो गया, तब वे श्री लक्ष्मण तथा सीताजी ‍सहित पंचवटी में निवास करने लगे। वहाँ पर दुष्ट रावण ने जब सीताजी का हरण ‍किया तब इस समाचार से श्री रामचंद्रजी तथा लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए औरसीताजी की खोज में चल दिए।
घूमते-घूमते जब वे मरणासन्न जटायु के पास पहुँचे तो जटायु उन्हें सीताजी का वृत्तांत सुनाकर स्वर्गलोक चला गया। कुछ आगे जाकर उनकी सुग्रीव से मित्रता हुई और बाली का वध किया। हनुमानजी ने लंका में जाकर सीताजी का पता लगाया और उनसे श्री रामचंद्रजी और सुग्रीव की‍ मित्रता का वर्णन किया। वहाँ से लौटकर हनुमानजी ने भगवान राम के पास आकर सब समाचार कहे।
श्री रामचंद्रजी ने वानर सेना सहित सुग्रीव की सम्पत्ति से लंका को प्रस्थान किया। जब श्री रामचंद्रजी समुद्र से किनारे पहुँचे तब उन्होंने मगरमच्छ आदि से युक्त उस अगाध समुद्र को देखकर लक्ष्मणजी से कहा कि इस समुद्र को हम किस प्रकार से पार करेंगे।श्री लक्ष्मण ने कहा हे पुराण पुरुषोत्तम, आप आदिपुरुष हैं, सब कुछ जानते हैं। यहाँ से आधा योजन दूर पर कुमारी द्वीप में वकदालभ्य नाम के मुनि रहते हैं। उन्होंने अनेक ब्रह्मा देखे हैं, आप उनके पास जाकर इसका उपाय पूछिए। लक्ष्मणजी की बातों को सुनकर श्री रामचंद्रजी वकदालभ्य ऋषि के स्थान पर गए और उनको प्रमाण करके बैठ गए।
मुनि ने भी उनको मनुष्य रूप धारण किए हुए पुराण पुरुषोत्तम समझकर उनसे पूछा कि हे राम! आपका आना कैसे हुआ? रामचंद्रजी कहने लगे कि हे ऋषे! मैं अपनी सेना ‍सहित यहाँ आया हूँ और राक्षसों को जीतने के लिए लंका जा रहा हूँ। आप कृपा करके समुद्र पार करने का कोई उपाय बतलाइए। मैं इसी कारण आपके पास आया हूँ।कदालभ्य ऋषि बोले कि हे राम! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का उत्तम व्रत करने से निश्चय ही आपकी विजय होगी, साथ ही आप समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे।
इस व्रत की विधि यह है कि दशमी के दिन स्वर्ण, चाँदी, ताँबा या मिट्‍टी का एक घड़ा बनाएँ। उस घड़े को जल से भरकर तथा पाँच पल्लव रख वेदिका पर स्थापित करें। उस घड़े के नीचे सतनजा और ऊपर जौ रखें। उस पर श्रीनारायण भगवान की स्वर्ण की मूर्ति स्थापित करें। एका‍दशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल आदि से भगवान की पूजा करें।
तत्पश्चात घड़े के सामने बैठकर दिन व्यतीत करें ‍और रात्रि को भी उसी प्रकार बैठे रहकर जागरण करें। द्वादशी के दिन नित्य नियम से निवृत्त होकर उस घड़े को ब्राह्मण को दे दें। हे राम! यदि तुम भी इस व्रत को सेनापतियों सहित करोगे तो तुम्हारी विजय अवश्य होगी। श्री रामचंद्रजी ने ऋषि के कथनानुसार इस व्रत को किया और इसके प्रभाव से दैत्यों पर विजय पाई।
अत: हे राजन्! जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करेगा, दोनों लोकों में उसकी अवश्य विजय होगी। श्री ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था कि हे पुत्र! जो कोई इस व्रत के महात्म्य को पढ़ता या सुनता है, उसको वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

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