संस्कृत दिवस भाषण – Sanskrit Day Speech in Sanskrit for Assembly Welcome in School Pdf Download

Sanskrit Day Speech

World Sanskrit Day 2018: विश्व संस्कृत दिवस, जिसे संस्कृत दिवस के नाम से भी जाना जाता है, वह दिन है जो संस्कृत की प्राचीन भारतीय भाषा के ऊपर केंद्रित है| जिसमें संस्कृत भाषा के बारे में व्याख्यान शामिल है और इसका उद्देश्य अपने पुनरुद्धार और रखरखाव को बढ़ावा देना है। यह श्रवणपुर्णिमा पर मनाया जाता है, जो हिंदू कैलेंडर में श्रवण महीने का पूर्णिमा दिवस है। विश्व संस्कृत दिवस 7 अगस्त, 2017 को मनाया गया था। संस्कृत संगठन संस्कार भारती दिन को बढ़ावा देने में शामिल है। आज हम आपके सामने संस्कृत डे स्पीच, Sanskrit Diwas speech, World Sanskrit Day speech, sanskrit day 2018, speech on sanskrit diwas in sanskrit, sanskrit day speech in sanskrit, sanskrit bhasha mahatvam in sanskrit language, sanskrit diwas kab manaya jata hai, संस्कृत दिवस पर भाषण इन मराठी, हिंदी, इंग्लिश, बांग्ला, नेपाली, गुजराती, तमिल, तेलगु, आदि की जानकारी देंगे जिसे आप अपने स्कूल के स्पीच प्रतियोगिता, debate competition, कार्यक्रम या भाषण प्रतियोगिता में प्रयोग कर सकते है| ये स्पीच कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए दिए गए है|

Sanskrit Day Speech 2018

संस्कृत दिवस कब मनाया जाता है: संस्कृत दिवस को श्रवणपुर्णिमा पर मनाया जाता है, जो हिंदू कैलेंडर में श्रवण महीने का पूर्णिमा दिवस है| इस साल संस्कृत डे यानी विश्व संस्कृत दिवस 26 अगस्त के दिन मनाया जाएगा| आज हमारे द्वारा दिए गए संस्कृत दिवस पर कुछ संक्षिप्त भाषण (short speech) और लंबे भाषण (long speech), संस्कृत दिवस पर निबंध, sanskrit day speech in sanskrit language, study mode sanskrit day speech, sanskrit day speech in malayalam, sanskrit day information in sanskrit, sanskrit day speech in english, दिए गए हैं। ये संस्कृत डे पर स्पीच, संस्कृत दिवस भाषण (speech recitation activity) निश्चित रूप से आयोजन समारोह या बहस प्रतियोगिता (debate competition) यानी स्कूल कार्यक्रम में स्कूल या कॉलेज में भाषण में भाग लेने में छात्रों की सहायता करेंगे। इन संस्कृत दिवस पर हिंदी स्पीच हिंदी में 100 words, 150 words, 200 words, 400 words जिसे आप pdf download भी कर सकते हैं|

संस्कृत भाषा भारत देश की सबसे प्राचीन भाषा है, इसी से देश में दूसरी भाषाएँ निकली है. सबसे पहले भारत में संस्कृत ही बोली गई थी. आज इसे भारत के 22 अनुसूचित भाषाओं में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. उत्तराखंड राज्य की यह एक आधिकारिक भाषा है. भारत देश के प्राचीन ग्रन्थ, वेद आदि की रचना संस्कृत में ही हुई थी. यह भाषा बहुत सी भाषा की जननी है, इसके बहुत से शब्दों के द्वारा अंग्रेजी के शब्द बने है. महाभारत काल में वैदिक संस्कृत का प्रयोग होता है. संस्कृत आज देश की कम बोले जानी वाली भाषा बन गई है, लेकिन इस भाषा की महत्ता को हम सब जानते है, इसके द्वारा ही हमें दूसरी भाषा सीखने बोलने में मदद मिली, इसकी सहायता से बाकि भाषा की व्याकरण समझ में आई|

Sanskrit Day Date 2018

भारतीय कैलेंडर के अनुसार संस्कृत दिवस की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. संस्कृत दिवस की शुरुआत 1969 में हुई थी. इस बार संस्कृत दिवस 26 अगस्त 2018, दिन रविवार को है.

संस्कृत दिवस मनाने का उद्देश्य

संस्कृत दिवस पूरी दुनिया में मनाया जाता है. इसके मनाने का उद्देश्य यही है कि इस भाषा को और अधिक बढ़ावा मिले. इसे आम जनता के सामने लाया जाये, हमारी नयी पीढ़ी इस भाषा के बारे में जाने, और इसके बारे में ज्ञान प्राप्त करे. आजकल के लोगों को लगता है, संस्कृत भाषा पुराने ज़माने की भाषा है, जो समय के साथ पुरानी हो गई, इसे बोलने व पढने में भी लोगों को शर्म आती है. लोगों की इसी सोच को बदलने के लिए इसे एक महत्वपूर्ण दिवस के रूप में मनाया जाता है.

संस्कृत भाषा का महत्व

संस्कृत भाषा बहुत सुंदर भाषा है, ये कई सालों से हमारे समाज को समृद्ध बना रही है. संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति के विरासत का प्रतीक है. यह ऐसी कुंजी है, जो हमारे प्राचीन ग्रंथों में और हमारे धार्मिक-सांस्कृतिक परंपराओं के असंख्य रहस्यों को जानने में मदद करती है. भारत के इतिहास में सबसे अधिक मूल्यवान और शिक्षाप्रद सामग्री, शास्त्रीय भाषा संस्कृत में ही लिखे गए है. संस्कृत के अध्ययन से, विशेष रूप से वैदिक संस्कृत के अध्ययन से हमें मानव इतिहास के बारे में समझने और जानने का मौका मिलता है, और ये प्राचीन सभ्यता को रोशन करने के लिए भी सक्षम है। हाल के अध्ययनों में यह पाया गया है कि संस्कृत हमारे कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए सबसे अच्छा विकल्प है.

संस्कृत दिवस मनाने का तरीका

सरकार संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए अपने इस कार्यक्रम से स्कूल, कॉलेज को भी जोड़ती है. स्कूल कॉलेज में अलग अलग कार्यक्रम होते है. शहर के सभी स्कूलों के बीच संस्कृत भाषा में निबंध, श्लोक, वाद-विवाद, गायन, पेंटिंग की प्रतियोगिता होती है. कुछ सामाजिक संसथान व मंदिरों के द्वारा भी इस दिन कार्यक्रम कराये जाते है. संस्कृत की रचना, श्लोक, पुस्तक लोगों में बाँटें जाते है. सरकार के द्वारा संस्कृत की भाषा को बढ़ाने के लिए किसी नई योजना की घोषणा होती है.

Sanskrit Day Speech in Sanskrit

Sanskrit Day Speech in sanskrit

संस्कृत भाषायाः महत्वम् निबंध। Importance of Sanskrit Essay in Sanskrit

सम्यक् परिष्कृतं शुद्धमर्थाद् दोषरहितं व्याकरणेन संस्कारितं वा यत्तदेव संस्कृतम्। एवञ्च सम्-उपसर्गपूर्वकात् कृधातोर्निष्पन्नोSयं शब्द संस्कृतभाषेति नाम्रा सम्बोध्यते। सैव देवभाषा गीर्वाणवाणी, देववाणी, अमरवाणी, गीर्वागित्यादिभिर्नामभिः कथ्यते। इयमेव भाषा सर्वासां भारतीयभाषाणां जननी, भारतीयसंस्कृतेः प्राणस्वरूपा, भारतीयधर्मदर्शनादिकानां प्रसारिका, सर्वास्वपि विश्वभाषासु प्राचीनतमा सर्वमान्या च मन्यते। अस्माकं समस्तमपि प्राचीनं साहित्यं संस्कृतभाषायामेव रचितमस्ति, समस्तमपि वैदिक साहित्यं रामायणं महाभारतं पुराणानि दर्शनग्रन्थाः स्मृतिग्रन्थाः काव्यानि नाटकानि गद्य-नीति-आख्यानग्रन्थाश्च अस्यामेव भाषायां लिखिताः प्राप्यन्ते। गणितं, ज्योतिषं, काव्यशास्त्रमायुर्वेदः, अर्थशास्त्रं राजनीतिशास्त्रं छन्दःशास्त्रं ज्ञान-विज्ञानं तत्वजातमस्यामेव संस्कृतभाषायां समुपलभ्यते। अनेन संस्कृतभाषायाः विपुलं गौरवं स्वमेव सिध्यति।

संस्कृत दिवस स्पीच

अक्सर छोटे बच्चो Kids को स्कूलों में संस्कृत दिवस के बारे में लिखना होता है (संस्कृत दिवस के ऊपर दस लाइन लिखें) पढ़ाया जाता है तथा उसमे हर क्लास के बच्चे जैसे की class 1, class 2, class 3, class 4, class 5, class 6, class 7, class 8, class 9, class 10, class 11 और class 12 इस तरह से इंटरनेट पर सर्च करते है व स्कूलों के प्रोग्राम व कम्पटीशन में भाग लेते है| ऊपर दी हुई जानकारी में शामिल है इन निबंधों में शामिल है लेख एसेज, anuched, short paragraphs, pdf, Composition, Paragraph, Article हिंदी, निबन्ध (Nibandh) आदि की जानकारी पाएंगे|

संस्कृत देवभाषा है। यह सभी भाषाओँ की जननी है। विश्व की समस्त भाषाएँ इसी के गर्भ से उद्भूत हुई है। वेदों की रचना इसी भाषा में होने के कारण इसे वैदिक भाषा भी कहते हैं। संस्कृत भाषा का प्रथम काव्य-ग्रन्थ ऋग्वेद को माना जाता है। ऋग्वेद को आदिग्रन्थ भी कहा जाता है। किसी भी भाषा के उद्भव के बाद इतनी दिव्या एवं अलौकिक कृति का सृजन कहीं दृष्टिगोचर नहीं होता है।ऋग्वेद की ऋचाओं में संस्कृत भाषा का लालित्य, व्याकरण, व्याकरण, छंद, सौंदर्य, अलंकर अद्भुत एवं आश्चर्यजनक है। दिव्य ज्ञान का यह विश्वकोश संस्कृत की समृद्धि का परिणाम है। यह भाषा अपनी दिव्य एवं दैवीय विशेषताओं के कारण आज भही उतनी ही प्रासंगिक एवं जीवंत है।

संस्कृत का तात्पर्य परिष्कृत, परिमार्जित,पूर्ण, एवं अलंकृत है। यह भाषा इन सभी विशेषताओं से पूर्ण है। यह भाषा अति परिष्कृत एवं परिमार्जित है। इस भाषा में भाषागत त्रुटियाँ नहीं मिलती हैं जबकि अन्य भाषाओँ के साथ ऐसा नहीं है। यह परिष्कृत होने के साथ-साथ अलंकृत भी है। अलंकर इसका सौंदर्य है। अतः संस्कृत को पूर्ण भाषा का दर्जा दिया गया है। यह अतिप्राचीन एवं आदि भाषा है। भाषा विज्ञानी इसे इंडो-इरानियन परिवार का सदस्य मानते है। इसकी प्राचीनता को ऋग्वेद के साथ जोड़ा जाता है। अन्य मूल भारतीय ग्रन्थ भी संस्कृत में ही लिखित है।

संस्कृत का प्राचीन व्याकरण पाणिनि का अष्टाध्यायी है। संस्कृत को वैदिक एवं क्लासिक संस्कृत के रूप में प्रमुखतः विभाजित किया जाता है। वैदिक संस्कृत में वेदों से लेकर उपनिषद तक की यात्रा सन्निहित है, जबकि क्लासिक संस्कृत में पौराणिक ग्रन्थ, जैसे रामायण, महाभारत आदि हैं। भाषा विज्ञानी श्री भोलानाथ तिवारी जी के अनुसार इसके चार भाग किये गए हैं — पश्चिमोत्तरी, मध्यदेशी, पूर्वी, एवं दक्षिणी।

संस्कृत की इस समृद्धि ने पाश्चात्य विद्वानों को अपनी ओर अक्स्र्षित किया। इस भाषा से प्रभावित होकर सर विलियम जोन्स ने २ फरवरी, १७८६ को एशियाटिक सोसायटी, कोल्कता में कहा- “संस्कृत एक अद्भुत भाषा है।

यह ग्रीक से अधिक पूर्ण है, लैटिन से अधिक समृद्ध और अन्य किसी भाषा से अधिक परिष्कृत है।” इसी कारण संस्कृत को सभी भाषाओँ की जननी कहा जाता है। संस्कृत को इंडो-इरानियन भाषा वर्ग के अंतर्गत रखा जाता है और सभी भाषाओँ की उत्पत्ति का सूत्रधार इसे माना जाता है।

समस्त विश्व की भाषाओँ को ११ वर्गों में बाँटा गया है :-

०१) इंडो इरानियन- इसके भी दो उपवर्ग है – एक में इंडो-आर्यन जिसमें संस्कृत एवं इससे उद्भूत भाषाएँ हैं, दूसरे वर्ग में ईरानी भाषा जिसमें अवेस्तन, पारसी एवं पश्तो भाषाएँ आती हैं।
०२) बाल्टिक : इसमें लुथी अवेस्तन लेटवियन आदि भाषाएँ आती हैं।
०३) स्लैविक : इसमें रसियन, पोलिश, सर्वोकोशिया, आदि भाषाएँ सम्मिलित हैं।
०४) अमैनियम : इसके अंतर्गत अल्बेनिया आती हैं।
०५) ग्रीक :
०६) सेल्टिक : इसके अंतर्गत आयरिश, स्कॉटिश गेलिक, वेल्स एवं ब्रेटन भाषाएँ आती है।
०७) इटालिक : इसमें लैटिन एवं इससे उत्पन्न भाषाएँ सम्मिलित हैं।
०८) रोमन : इटालियन, फ्रेंच, स्पेनिश, पोर्तुगीज, रोमानियन एवं अन्य भाषाएँ इसमें सम्मिलित हैं।
०९) जर्मनिक : जर्मन, अंग्रेजी, डच, स्कैनडीनेवियन भाषाएँ आती है इस वर्ग में।
१०) अनातोलियन : हिटीट पालैक, लाय्दियाँ, क्युनिफार्म, ल्युवियान, हाइरोग्लाफिक ल्युवियान और लायसियान।
११) लोचरीयन (टोकारिश) : इसे उत्तरी चीन में प्रयोग किया जाता है, इसकी लिपि ब्राह्मी लिपि से मिलती है।

भाषाविद मानते हैं कि इन सभी भाषाओँ की उत्पत्ति का तार कहीं-न-कहीं से संस्कृत से जुड़ा हुआ है; क्योंकि यह सबसे पुरानी एवं समृद्ध भाषा है। किसी भी भाषा की विकासयात्रा में उसकी यह विशेषता जुडी होती है कि वह विकसित होने की कितनी क्षमता रखती है। जिस भाषा में यह क्षमता विद्यमान होती है, वह दीर्घकाल तक अपना अस्तित्व बनाये रखती है, परन्तु जिसमें इस क्षमता का आभाव होता है उनकी विकासयात्रा थम जाती है। यह सत्य है कि संस्कृत भाषा आज प्रचालन में नहीं है परन्तु इसमें अगणित विशेषताएं मौजूद हैं। इन्हीं विशेषताओं को लेकर इसपर कंप्यूटर के क्षेत्र में भी प्रयोग चल रहा है। कंप्यूटर विशेषज्ञ इस तथ्य से सहमत है कि यदि संस्कृत को कंप्यूटर की डिजिटल भाषा में प्रयोग करने की तकनीक होजी जा सके तो भाषा जगत के साथ-साथ कंप्यूटर क्षेत्र में भी अभूतपूर्व परिवर्तन देखें जा सकते हैं। जिस दिन यह परिकल्पना साकार एवं मूर्तरूप लेगी, एक नए युग का उदय होगा। संस्कृत उदीयमान भविष्य की एक महत्वपूर्ण धरोहर है।

अपने देश में संस्कृत भाषा वैदिक भाषा बनकर सिमट गयी है। इसे विद्वानों एवं विशेषज्ञों कि भाषा मानकर इससे परहेज किया जाता है। किसी अन्य भाषा कि तुलना में इस भाषा को महत्त्व ही नहीं दिया गया, क्योंकि वर्तमान व्यावसायिक युग में उस भाषा को ही वरीयता दी जाती है जिसका व्यासायिक मूल्य सर्वोपरि होता है। कर्मकांड के क्षेत्र में इसे महत्त्व तो मिला है, परन्तु कर्मकांड कि वैज्ञानिकता का लोप हो जाने से इसे अन्धविश्वास मानकर संतोष कर लिया जाता है और इसका दुष्प्रभाव संस्कृत पर पड़ता है। यदि इसके महत्त्व को समझकर इसका प्रयोग किया जाये तो इसके अगणित लाभ हो सकते हैं।

संस्कृत की भाषा विशिष्टता को समझकर लन्दन के बीच बनी एक पाठशाला ने अपने जूनियर डिविजन में इसकी शिक्षा को अनिवार्य बना दिया है। श्री आदित्य घोष ने सन्डे हिंदुस्तान टाइम्स ( १० फरवरी, २००८ ) में इससे सम्बंधित एक लेख प्रकाशित किया था। उनके अनुसार लन्दन की उपर्युक्त पाठशाला के अधिकारीयों की यह मान्यता है कि संस्कृत का ज्ञान होने से अन्य भाषाओँ को सिखने व समझने की शक्ति में अभिवृद्धि होती है। इसको सिखने से गणित व विज्ञान को समझने में आसानी होती है। Saint James Independent school नामक यह विद्यालय लन्दन के कैनिंगस्टन ओलंपिया क्षेत्र की डेसर्स स्ट्रीट में अवस्थित है। पाँच से दस वर्ष तक की आयु के इसके अधिकांश छात्र काकेशियन है। इस विद्यालय की आरंभिक कक्षाओं में संस्कृत अनिवार्य विषय के रूप में सम्मिलित है।

इस विद्यालय के बच्चे अपनी पाठ्य पुस्तक के रुप में रामायण को पढ़ते हैं। बोर्ड पर सुन्दर देवनागरी लिपि के अक्षर शोभायमान होते हैं। बच्चे अपने शिक्षकों से संस्कृत में प्रश्नोत्तरी करते हैं और अधिकतर समय संस्कृत में ही वार्तालाप करते हैं। कक्षा के उपरांत समवेत स्वर में श्लोकों का पाठ भी करते हैं। दृश्य ऐसा होता है मानो यह पाठशाला वाराणसी एवं हरिद्वार के कसीस स्थान पर अवस्थित हो और वहां पर किसी कर्मकांड का पाठ चल रहा हो। इस पाठशाला के शिक्षकों ने अनेक शोध-परीक्षण करने के पश्चात् अपने निष्कर्ष में पाया कि संस्कृत का ज्ञान बच्चों के सर्वांगीण विकास में सहायक होता है। संस्कृत जानने वाला छात्र अन्य भाषाओँ के साथ अन्य विषय भी शीघ्रता से सीख जाता है। यह निष्कर्ष उस विद्यालय के विगत बारह वर्ष के अनुभव से प्राप्त हुआ है।

Oxford University से संस्कृत में Ph.D करने वाले डॉक्टर वारविक जोसफ उपर्युक्त विद्यालय के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष हैं। उनके अथक लगन ने संस्कृत भाषा को इस विद्यालय के ८०० विद्यार्थियों के जीवन का अंग बना दिया है। डॉक्टर जोसफ के अनुसार संस्कृत विश्व की सर्वाधिक पूर्ण, परिमार्जित एवं तर्कसंगत भाषा है। यह एकमात्र ऐसी भासा है जिसका नाम उसे बोलने वालों के नाम पर आधारित नहीं है। वरन संस्कृत शब्द का अर्थ ही है “पूर्ण भाषा”। इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक पॉल मौस का कहना है कि संस्कृत अधिकांश यूरोपीय और भारतीय भाषाओँ की जननी है। वे संस्कृत से अत्यधिक प्रभावित है। प्रधानाचार्य ने बताया कि प्रारंभ में संस्कृत को अपने पाठ्यक्रम का अंग बनाने के लिए बड़ी चुनौती झेलनी पड़ी थी।

प्रधानाचार्य मौस ने अपने दीर्घकाल के अनुभव के आधार पर बताया कि संस्कृत सिखने से अन्य लाभ भी हैं। देवनागरी लिपि लिखने से तथा संस्कृत बोलने से बच्चों की जिह्वा तथा उँगलियों का कडापन समाप्त हो जाता है और उनमें लचीलापन आ जाता है। यूरोपीय भाषाएँ बोलने से और लिखने से जिह्वा एवं उँगलियों के कुछ भाग सक्रिय नहीं होते है। जबकि संस्कृत के प्रयोग से इन अंगों के अधिक भाग सक्रिय होते हैं। संस्कृत अपनी विशिष्ट ध्वन्यात्मकता के कारण प्रमस्तिष्कीय (Cerebral) क्षमता में वृद्धि करती है। इससे सिखने की क्षमता, स्मरंशक्ति, निर्णयक्षमता में आश्चर्यजनक अभिवृद्धि होती है। संभवतः यही कारण है कि पहले बच्चों का विद्यारम्भ संस्कार कराया जाता था और उसमें मंत्र लेखन के साथ बच्चे को जप करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता था। संस्कृत से छात्रों की गतिदायक कुशलता (Motor Skills) भी विकसित होती है।

आज आवश्यकता है संस्कृत के विभिन्न आयामों पर फिर से नवीन ढंग से अनुसन्धान करने की, इसके प्रति जनमानस में जागृति लाने की; क्योंकि संस्कृत हमारी संस्कृति का प्रतीक है। संस्कृति की रक्षा एवं विकास के लिए संस्कृत को महत्त्व प्रदान करना आवश्यक है। इस विरासत को हमें पुनः शिरोधार्य करना होगा तभी इसका विकास एवं उत्थान संभव है।

Sanskrit Day Speech in Marathi

संस्कृत दिवस 2018

संस्कृत दिवस पहली बार वर्ष 1969 में मनाया गया था। यह संस्कृत भाषा के लिए जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है| यह सभी भारतीय भाषाओं की मां और सबसे पहले भारत में बोली जाने वाली प्राचीन भाषा है। यह सालाना श्रवण पूर्णिमा पर मनाया जाता है (हिंदू कैलेंडर के अनुसार श्रवण के महीने में)| संस्कृत दिवस के पालन का मुख्य उद्देश्य है, संस्कृत को बढ़ावा देना और आम जनता को शिक्षित करना| संस्कृत एक सुंदर भाषा है। इसने हमारे समाज को प्राचीन काल से समृद्ध किया है। संस्कृत समृद्ध भारतीय सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यह असली कुंजी है| हमारे अतीत के लिए और हमारे असंख्य रहस्यों को सुलझाने में मदद करता है| प्राचीन ग्रंथों और हमारी धार्मिक-सांस्कृतिक परंपराओं में से कुछ मनुष्यों के इतिहास में सबसे मूल्यवान और निर्देशक सामग्री भारत, संस्कृत की शास्त्रीय बोली में खजाने वाले हैं। संस्कृत, विशेष रूप से वैदिक संस्कृत हमें ज्ञान प्रदान करने में सक्षम है|

Sanskrit Day Welcome Speech

॥ संस्कृतस्य माहात्म्यम्, सङ्क्षिप्त, विश्वबन्धूलिखित ॥

In the words of Jawahar Lal Nehru, `the finest heritage of India
is the Sanskrit language and literature. This is a magnificent heritage and
as long as this endures and influences the life of our people, so long the
basic genius of India will continue.’ As William Jones declared about 200
years ago, Sanskrit is `more perfect than Greek, more copious than Latin, and
more exquisitely refined than either.’ Not only has it provided a rich medium
for the expression of the countless ideas and the highest ideals which the
people of India have conceived and pursued during the past ages, but it has
also deeply influenced and effectively moulded the varied cultural patterns
of millions upon millions of people living in so many other lands extending
in all the four directions, thousands of miles beyond the frontiers of India.

It is a veritable mirror of Indian civilization and culture, being the
repository of a mass of literature which has given expression to the
intellect and the spirit of India in her progressive march through the great
creative ages. This literature is copiously rich in religion, philosophy,
law, linguistics, aesthetics, fine arts, positive and technical sciences,
gnomic and didactic verse and belles-lettres. It easily transcends in extent
anything which any ancient or mediaeval literature could show. At the top of
it, a very large proportion of it possesses an extraordinarily high quality
which has to be taken into account in assessing its importance not only for
the people of India but for the entire mankind.

It is, however, not a merely classical language, just enshrining the
ancient literature of India. It is much more and something of much greater
significance. As a language it is an instrument of the greatest precision
in the delineation of all thought-processes, however deep and subtle, and
of all forms of aesthetic and motional perception as well as of spiritual
intuition and experience. Its study involving the rigorous dialectics of its
grammar and different systems of Philosophy forms an intellectual discipline
of the highest order. As a most sonorous and most musical language, it makes
a never-failing appeal to the deeper aesthetic sensibility of one and all. In
sooth, it has the power to lift us above ourselves, which is one of its most
subtle aesthetic and dynamic appeals. Up till very recent time, Sanskrit as
a force that welled out from within suifused all aspects of Indian life with
the waters of a hidden stream of power and beauty, making them flourish with
vigour. Intellect of India found its culmination in it and, in its turn, it
has been and still is the one common reservoir from which all the later Indian
and many Greater Indian languages have been drawing their sap and sustenance.

Sanskrit has always been effective in binding together, culturally, the People
living in all the parts of India. In this unifying force of Sanskrit lies its
paramount importance for India of the Present day. The more this perennial
substratum of emotional oneness and cultural harmony Will flourish, the less
the fissiparous propensities, which being a part of the game could not. be
totally ruled out, Will find it possible to exercise their evil influence
towards undermining the political unity of the country.

In view of all this, therefore, it augurs well for Bharat of today and
tomorrow that Sanskrit stands recognized in its constitution as one of
its National Languages, concurrently, alongwith its modern spoken regional
languages and that the Union Government are quite alive to the great need of
gradually adding more and more to the strength of Sanskrit in the educational
and cultural set-up in the country.

They have however yet to devise effective ways and means to secure for Sanskrit
its proper place in the Secondary Education Scheme, maybe, by re-interpreting
or, if need be, by recasting the Three Language Formula for this purpose. It
is feared that unless this is done, all other efforts in this direction,
otherwise, however commendable, might in the long run prove to have been
like spraying the leaves at the top and douching the trunk and branches in
the middle of a tree without watering its roots deep down in the ground below.

About the author

admin