Ravidas Jayanti 2023 date: गुरु रविदास जयंती, गुरु रविदास के जन्मदिन का सम्मान करती है और यह त्योहार उत्तर भारत में, भारत के पंजाब राज्य में, अत्यधिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। गुरु रविदास या भगत रविदास एक प्रसिद्ध संत थे, जो बक्ती आंदोलन में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध थे। उनका जन्म भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के बनारस में हुआ था। गुरु रविदास पंद्रहवें सिख गुरुओं में से एक हैं और एक कवि, एक अध्यात्मवादी, एक यात्री, एक सुधारवादी और एक विचारक के रूप में असीम ख्याति अर्जित की है।
रविदास का जीवन परिचय
संत रैदास का जीवनी: रविदास का जन्म 14 वीं शताब्दी के अंत में भारत के उत्तर प्रदेश के सीर गोवर्धनपुर गाँव में हुआ था। उनका जन्म एक निम्न जाति के परिवार में हुआ था, जिन्हें अछूत माना जाता था। गुरु रविदास यह तर्क देने वाले पहले लोगों में से एक थे कि सभी भारतीयों के पास बुनियादी मानवाधिकारों का एक सेट होना चाहिए। वह भक्ति आंदोलन में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बन गए और उन्होंने आध्यात्मिकता सिखाई और भारतीय जाति व्यवस्था के उत्पीड़न से मुक्ति के आधार पर समानता का संदेश देने का प्रयास किया। उनके 41 भक्ति गीतों और कविताओं को सिख ग्रंथों, गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल किया गया है। कहा जाता है कि मीरा बाई, हिंदू अध्यात्म में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं, जिन्होंने गुरु रविदास को अपना आध्यात्मिक गुरु माना है।
रविदास के शब्द
रविदास की शिक्षाएँ अब रविदासिया धर्म का आधार बनती हैं। रविदासियों का मानना है कि रविदास को दूसरे गुरुओं की तरह ही एक संत के रूप में माना जाना चाहिए, क्योंकि वे पहले सिख गुरु के पास रहते थे और उनकी शिक्षाओं का अध्ययन सिख गुरुओं द्वारा किया जाता था। हाल के वर्षों में, इसने सिखों के साथ संघर्ष का कारण बना और रविदासिया को रूढ़िवादी सिख संरचना से अलग कर दिया। उनके जन्मदिन को चिह्नित करने के लिए, उनके चित्र ले जाने वाले जुलूस सड़कों पर होते हैं, विशेष रूप से सीर गोवर्धनपुर में, जो कई भक्तों के लिए एक केंद्र बिंदु बन जाता है। सिख ग्रंथों का पाठ किया जाता है और रविदास को समर्पित मंदिरों में प्रार्थनाएँ होती हैं।
रविदास के दोहे
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।
रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं।
तैसे ही अंतर नहीं हिन्दुअन तुरकन माहि।।
हिंदू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा।
दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।।
हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस।
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।।
वर्णाश्रम अभिमान तजि, पद रज बंदहिजासु की।
सन्देह-ग्रन्थि खण्डन-निपन, बानि विमुल रैदास की।।
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।
रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं।
तैसे ही अंतर नहीं हिन्दुअन तुरकन माहि।।
हिंदू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा।
दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।।
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।।
रविदास की रचनाएँ
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी , प्रभु जी तुम संगति सरन तिहारी, परचै राम रमै जै कोइ, अब मैं हार्यौ रे भाई , गाइ गाइ अब का कहि गाऊँ , राम जन हूँ उंन भगत कहाऊँ , अब मोरी बूड़ी रे भाई , तेरा जन काहे कौं बोलै , भाई रे भ्रम भगति सुजांनि , त्यूँ तुम्ह कारनि केसवे , आयौ हो आयौ देव तुम्ह सरनां , भाई रे रांम कहाँ हैं मोहि बतावो, ऐसौ कछु अनभै कहत न आवै , अखि लखि लै नहीं, नरहरि चंचल मति मोरी , राम बिन संसै गाँठि न छूटै, तब राम राम कहि गावैगा , संतौ अनिन भगति , ऐसी भगति न होइ रे भाई, भगति ऐसी सुनहु रे भाई, अब कुछ मरम बिचारा, नरहरि प्रगटसि, त्यू तुम्ह कारन केसवे, गौब्यंदे भौ जल, आदि उनकी कुछ प्रसिद्द रचनाए है|
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