महर्षि दयानन्द सरस्वती जयंती 2022 | Maharshi Dayanand Saraswati Jayanti

वैसे तो भारत में कई सारे महात्मा, समाज सुधारक,महापुरुष आदि थे जिन्होंने हमारे देश के हित में कई महान कार्य करे हैं लेकिन इनमे से एक बहुत ही मशहूर नाम आता हैं श्री महर्षि दयानन्द सरस्वती जी का |श्री दयानन्द सरस्वती जी को हर कोई जानता हैं | हे अपने देशभक्ति और समाज सेवी कार्यो के लिए बहुत प्रसिद्ध हैं| उन इसलिए भी जाना जाता हैं क्योकि ओहि थे जिनके हातो आर्य समाज की स्तापना हुई थी

Swami Dayanand Saraswati Information

तो चलिए आपको हम अपने इस पोस्ट द्वारा श्री महर्षि दयानन्द सरस्वती के बारे में बेहद ही महत्वपूर्ण बाते बताते हैं| इनकी माताजी का नाम श्री यशोदा बाई था और पिताजी का नाम कृष्ण लाल था| इनका जनम गुजरात के राजकोट में काठियावाड़ क्षेत्र में हुआ था| इनका जनम 12 फरवरी को 1824 में हुआ था| उन्होंने 21 साल की उम्र में ही अपने घर का त्याग करके सन्यासी का रूप अपना लिए था| इसी समय से उनके अलग जीवन की सुरुवात हुई| संन्यास लेने से पहले उन्होंने संस्कृत,शास्त्रों और सारे धर्मो का ज्ञान बहुत सी पुस्तकों से प्राप्त किआ था| इसकी वजे से ही वो सन्यासी बने और उन्होंने शादी भी नहीं की|

संन्यास लेने के बाद उन्होंने बाकी के ज्ञान की प्राप्ति स्वामी विरजानंद जी से की थी जिनको उन्होंने अपना गुरु मना लिया था| जब गुरुदक्षिणा की बारी आई तो स्वामी विरजानंद जी ने गुरुदक्षिणा के रूप में उनसे एक प्रण लिए था की वे अपनी पूरे जीवन में जबतक जीवित हैं तबतक वेद आदि सत्य विद्याओं का प्रचार करते रहेंगे| जो उन्होंने प्रण लिए उसे बहुत बखूबी से निभाया भी था|

महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय

महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी, 1824 को टंकरा गाँव, राज्य गुजराट के काठियावाड़ में मोरवी के पास, राजकोट जिले में हुआ था। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म चांद के कृष्ण पक्ष के 10 वें दिन या फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष दशमी तिथि को हुआ था और यह दिन हर साल विविध होता है। क्योंकि महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्मदिन हिंदू कैलेंडर के अनुसार मनाया जाता है।

दयानंद सरस्वती का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम करशनजी लालजी तिवारी था और वे एक कर संग्रहकर्ता थे। उनकी माता का नाम यशोदाबाई था। दयानंद एक अच्छे अमीर ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे और एक आरामदायक जीवन जी रहे थे और उन्होंने अपनी शिक्षा पारंपरिक ब्राह्मण तरीके से प्राप्त की।

तो आइये महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के जयंती के इस पावन अवसर पर उनके बारे में कुछ बहुत ही रोचकमय और बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी बताएंगे जिससे सुनकर आपको उनके बारे में और अधिक जानकारी मिलेगी|

जैसे की आपको पता हैं की दयानन्द सरस्वती ही वह महापुरुष थे जिन्होंने आर्य समाज की स्तापना की थी | आर्य समाज की स्तापना सन 1875 में हुई थी| इन्हे चारो वेद जैसे रिग वेद,साम वेद,यजुर वेद और अथर्व वेद इन सभी का ज्ञान प्राप्त था| इन्हे कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य तथा सन्यास इन चार स्तंभो को अपना जीवन बनाया था| इस बार 2018 में महर्षि दयानन्द सरस्वती जयंती 21 तारिक को बुधवार को हैं|

हिन्दू धर्म में स्वामी जी का एक बहुत ही महत्वपूर्ण रोले हैं| वह एक धर्म के नेता थे| उनके पास जितना भी हिन्दू धर्म का ज्ञान था वे भारत देश में हर जगह बाटना चाहते थे| स्वामी जी का हिंदी धर्म में वैदिक परम्परा को आगे बढ़ाने के प्रति एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्तान था| स्वामी दयानन्द एक बहुत बड़े देशभक्त भी थे| हिन्दुस्तान के स्वतंत्रता संग्राम में स्वामी जी का भी बहुत ही बड़ा स्थान था| वे हिन्दू धर्म की एक अलग ही पहचान समाज में बनाना छाते थे| 30 अकटूबर 1883 को यही महापुरुष इस दुनिया हो हमेशा के लिए छोड कर चले गए|

दयानंद सरस्वती के चाचा और छोटी बहन की मृत्यु ने उन्हें जीवन और मृत्यु का अर्थ सिखाया। तब वह अपने माता-पिता के बारे में पूरी तरह चिंतित था। उसने शादी नहीं की और 1846 के वर्ष में, वह अपने घर से भाग गया।

दयानंद सरस्वती ने 1845 से 1869 के बीच अपना समय बिताया जो कि धार्मिक सत्य के बारे में अधिक जानने के लिए लगभग पच्चीस वर्ष था। इस वर्ष के दौरान वह एक सन्यासी बन गए और उन्होंने योग के विभिन्न रूपों को सीखा और विरजानंद दंडिधा नाम के एक धार्मिक गुरु बन गए।

उनके जीवन का मुख्य मकसद हिंदुओं को वेदों से अवगत कराना था और इस मकसद के लिए उन्होंने 1875 में मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की। 1883 में दयानंद सरस्वती को जोधपुर के महाराजा ने आमंत्रित किया और भारतीय इतिहास के अनुसार, 1883 30 अक्टूबर को वर्ष, दयानंद सरस्वती ने अपनी अंतिम सांस ली।

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