वैसे तो सब लोग 2 अक्टूबर को गाँधी जयंती के रूप में मनाते है पर इस दिन हमारे देश के एक वरिष्टर राजनेता श्री लाल बहादुर शास्त्री का भी जन्मदिवस आता है| लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधान मंत्री और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस राजनीतिक दल के एक वरिष्ठ नेता थे। शास्त्री 1920 के दशक में और अपने मित्र निथिन एस्लावथ के साथ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए। महात्मा गांधी द्वारा गहराई से प्रभावित और होकर वह गांधी के पहले और फिर जवाहरलाल नेहरू के वफादार अनुयायी बन गए। यह जानकारी इन हिंदी, इंग्लिश, मराठी, बांग्ला, गुजराती, तमिल, तेलगु, आदि की जानकारी देंगे जिसे आप अपने स्कूल के निबंध प्रतियोगिता, कार्यक्रम या निबंध प्रतियोगिता में प्रयोग कर सकते है| ये निबंध कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए दिए गए है|
लाल बहादुर शास्त्री जयंती निबंध
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आज भारतीय राजनीति में फैले भ्रष्टाचार और उच्च संवैधानिक पदों के लिए नेताओं के बीच मची होड़ को देखकर यह विश्वास नहीं होता कि देश ने कभी किसी ऐसे महापुरुष को भी देखा होगा, जिसने अपनी जीत की पूर्ण सम्भावना के बाद भी यह कहा हो कि- “यदि एक व्यक्ति भी मेरे विरोध में हुआ, तो उस स्थिति में मैं प्रधानमन्त्री बनना नहीं चाहूँगा ।”
भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री श्री लालबहादुर शास्त्री ऐसे ही महान् राजनेता थे, जिनके लिए पद नहीं, बल्कि देश का हित सर्वोपरि था । 27 मई, 1964 को प्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद देश का साहस एवं निर्भीकता के साथ नेतृत्व करने वाले नेता की जरूरत थी ।
जब प्रधानमन्त्री पद के दावेदार के रूप में मोरारजी देसाई और जगजीवन राम जैसे नेता सामने आए, तो इस पद की गरिमा और प्रजातान्त्रिक मूल्यों को देखते हुए शास्त्री जी ने चुनाव में भाग लेने से स्पष्ट इनकार कर दिया ।
अन्ततः काँग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष कामराज ने काँग्रेस की एक बैठक बुलाई, जिसमें शास्त्री जी को समर्थन देने की बात कीं गई और 2 जून, 1964 को काँग्रेस के संसदीय दल ने सर्व सम्मति से उन्हें अपना नेता स्वीकार किया । इस तरह 9 जून, 1984 को लालबहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमन्त्री बनाए गए ।
लालबहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को उत्तर प्रदेश के बनारस जिले में स्थित मुगलसराय नामक गाँव में हुआ था । उनके पिता ही शारदा प्रसाद एक शिक्षक थे, जो शास्त्री जी के जन्म के केवल डेढ़ वर्ष बाद स्वर्ग सिधार गए । इसके बाद उनकी माँ रामदुलारी देवी उनको लेकर अपने मायके मिर्जापुर चली गईं । शास्त्री जी की प्रारम्भिक शिक्षा उनके नाना के घर पर ही हुई ।
पिता की मृत्यु के बाद उनके घर की माली हालत अच्छी नहीं थी, ऊपर से उनका स्कूल गंगा नदी के उस पार स्थित था । नाव से नदी पार करने के लिए उनके पास थोड़े-से पैसे भी नहीं होते थे । ऐसी परिस्थिति में कोई दूसरा होता तो अवश्य अपनी पढ़ाई छोड़ देता, किन्तु शास्त्री जी ने हार नहीं मानी, वे स्कूल जाने के लिए तैरकर गंगा नदी पार करते थे ।
इस तरह, कठिनाइयों से लड़ते हुए छठी कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वे अपने मौसा के पास चले गए । वहाँ से उनकी पढ़ाई हरिश्चन्द्र हाईस्कूल तथा काशी विद्यापीठ में हुई । वर्ष 1920 में गाँधीजी के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के लिए उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी, किन्तु बाद में उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने काशी विद्यापीठ में प्रवेश लिया और वहाँ से वर्ष 1926 में ‘शास्त्री’ की उपाधि प्राप्त की ।
शास्त्री की उपाधि मिलते ही उन्होंने जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द ‘श्रीवास्तव’ हमेशा के लिए हटा लिया तथा अपने नाम के आगे ‘शास्त्री’ लगा लिया । इसके बाद वे देश सेवा में पूर्णतः संलग्न हो गए ।गाँधीजी की प्रेरणा से ही शास्त्री जी अपनी पढ़ाई छोड़कर स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े थे और उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने बाद में काशी विद्यापीठ से ‘शास्त्री’ की उपाधि भी प्राप्त की ।
इससे पता चलता हे कि उनके जीवन पर गाँधीजी का काफी गहरा प्रभाव था और बापू को वे अपना आदर्श मानते थे । वर्ष 1920 में असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के कारण ढाई वर्ष के लिए जेल में भेज दिए जाने के साथ ही उनके स्वतन्त्रता संग्राम का अध्याय शुरू हो गया था ।
काँग्रेस के कर्मठ सदस्य के रूप में उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभानी शुरू की । वर्ष 1930 में नमक सत्याग्रह में भाग लेने के कारण उन्हें पुन: जेल भेज दिया गया । शास्त्री जी की निष्ठा को देखते हुए पार्टी ने उन्हें उत्तर प्रदेश कांग्रेस का महासचिव बनाया । ब्रिटिश शासनकाल में किसी भी राजनीतिक पार्टी का कोई पद काँटों की सेज से कम नहीं हुआ करता था, पर शास्त्री जी वर्ष 1935 से लेकर वर्ष 1938 तक इस पद पर रहते हुए अपनी जिम्मेदारियाँ निभाते रहे ।
इसी बीच वर्ष 1937 में वे उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुन लिए गए और उन्हें उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री का संसदीय सचिव भी नियुक्त किया गया । साथ ही वे उत्तर प्रदेश कमेटी के महामन्त्री भी चुने गए और इस पद पर वर्ष 1941 तक बने रहे ।
स्वतन्त्रता संग्राम में अपनी भूमिका के लिए देश के इस सपूत को अपने जीवनकाल में कई बार जेल की यातनाएँ सहनी पड़ी थी । वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने के कारण उन्हें पुन: जेल भेज दिया गया ।
वर्ष 1946 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमन्त्री पं. गोविन्द बल्लभ पन्त ने शास्त्री जी को अपना सभा सचिव नियुक्त किया तथा वर्ष 1947 में उन्हें अपने मन्त्रिमण्डल में शामिल किया । गोविन्द बल्लभ पन्त के मन्त्रिमण्डल में उन्हें पुलिस और परिवहन मन्त्रालय सौंपा गया ।
परिवहन मन्त्री के कार्यकाल में उन्होंने प्रथम बार महिला संवाहकों (कण्डक्टर्स) की नियुक्ति की थी । पुलिस मन्त्री के रूप में उन्होंने भीड़ को नियन्त्रित रखने के लिए लाठी की जगह पानी बौछार का प्रयोग प्रारम्भ करवाया ।
उनकी कर्त्तव्यनिष्ठा और योग्यता को देखते हुए वर्ष 1951 में उन्हें काँग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया । वर्ष 1952 में नेहरू जी ने उन्हें रेलमन्त्री नियुक्त किया । रेलमन्त्री के पद पर रहते हुए वर्ष 1956 में एक बड़ी रेल दुर्घटना की जिम्मेदारी लेते हुए नैतिक आधार पर मन्त्री पद से त्यागपत्र देकर उन्होंने एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया ।
वर्ष 1957 में जब वे इलाहाबाद से संसद के लिए निर्वाचित हुए, तो नेहरू जी ने उन्हें अपने मन्त्रिमण्डल में परिवहन एवं संचार मन्त्री नियुक्त किया । इसके बाद उन्होंने वर्ष 1958 में वाणिज्य और उद्योग मन्त्रालय की जिम्मेदारी सँभाली । वर्ष 1961 में पं. गोविन्द बल्लभ पन्त के निधन के उपरान्त उन्हें गृहमन्त्री का उत्तरदायित्व सौंपा गया ।
उनकी कर्त्तव्यनिष्ठा एवं योग्यता के साथ-साथ अनेक संवैधानिक पदों पर रहते हुए सफलतापूर्वक अपने दायित्वों को निभाने का ही परिणाम था कि 9 जून, 1964 को वे सर्वसम्मति से देश के दूसरे प्रधानमन्त्री बनाए गए । शास्त्री जी कठिन-से-कठिन परिस्थिति का सहजता से साहस, निर्भीकता एवं धैर्य के साथ सामना करने की अनोखी क्षमता रखते थे । इसका उदाहरण देश को उनके प्रधानमन्त्रित्व काल में देखने को मिला ।
वर्ष 1966 में पाकिस्तान ने जब भारत पर आक्रमण करने का दुस्साहस किया, तो शास्त्री जी के नारे ‘जय जबान, जय किसान’ से उत्साहित होकर जहाँ एक ओर वीर जवानों ने राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्राण हथेली पर रख लिए, तो दूसरी ओर किसानों ने अपने परिश्रम से अधिक-से-अधिक अन्न उपजाने का संकल्प लिया ।
परिणामतः न सिर्फ युद्ध में भारत को अभूतपूर्व विजय हासिल हुई, बल्कि देश के अन्न भण्डार भी पूरी तरह भर गए । अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ और साहस के बल पर अपने कार्यकाल में शास्त्री जी ने देश की कई समस्याओं का समाधान किया ।
वर्ष 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध की समाप्ति के बाद जनवरी, 1966 में सन्धि-प्रयत्न के सिलसिले में दोनों देशों के प्रतिनिधियों की बैठक ताशकन्द (वर्तमान उज्बेकिस्तान) में बुलाई गई थी । 10 जनवरी, 1966 को भारत के प्रधानमन्त्री के रूप में लालबहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अय्यूब खान ने एक सन्धि-पत्र पर हस्ताक्षर किए और उसी दिन रात्रि को एक अतिथि गृह में शास्त्री जी की रहस्यमय परिस्थितियों में आकस्मिक मृत्यु हृदय गीत रुक जाने के कारण हो गई ।
शास्त्री जी की अन्त्येष्टि पूरे राजकीय सम्मान के साथ शान्ति वन के पास यमुना के किनारे की गई और उस स्थल को विजय घाट नाम दिया गया । उनकी मृत्यु से पूरा भारत शोकाकुल हो गया । शास्त्री जी के निधन से देश की जो क्षति हुई उसकी पूर्ति सम्भव नहीं, किन्तु देश उनके तप, निष्ठा एवं कार्यों को सदा आदर और सम्मान के साथ याद करेगा ।
उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिए मृत्योपरान्त वर्ष 1966 में उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया । तीव्र प्रगति एवं खुशहाली के लिए आज देश को शास्त्री जी जैसे नि:स्वार्थ राजनेताओं की आवश्यकता है ।
Lal Bahadur Shastri Short Essay in Hindi
लाल बहादुर शास्त्री देश के सच्चे सपूत थे जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन देशभक्ति के लिए समर्पित कर दिया । एक साधारण परिवार में जन्मे शास्त्री जी का जीवन गाँधी जी के असहयोग आंदोलन से शुरू हुआ और स्वतंत्र भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री के रूप में समाप्त हुआ । देश के लिए उनके समर्पण भाव को राष्ट्र कभी भुला नहीं सकेगा ।
शास्त्री जी का जन्म 2 अक्यूबर 1904 ई॰ को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय नामक शहर में हुआ था । उनके पिता स्कूल में अध्यापक थे । दुर्भाग्यवश बाल्यावस्था में ही उनके पिता का साया उनके सिर से उठ गया । उनकी शिक्षा-दीक्षा उनके दादा की देखरेख में हुई । परंतु वे अपनी शिक्षा भी अधिक समय तक जारी न रख सके ।
उस समय में गाँधी जी के नेतृत्व में आंदोलन चल रहे थे । चारों ओर भारत माता को आजाद कराने के प्रयास जारी थे । शास्त्री जी स्वयं को रोक न सके और आंदोलन में कूद पड़े । इसके पश्चात् उन्होंने गाँधीजी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया । मात्र सोलह वर्ष की अवस्था में सन् 1920 ई॰ को उन्हें जेल भेज दिया गया ।
प्रदेश कांग्रेस के लिए भी उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता । 1935 ई॰ को राजनीति में उनके सक्रिय योगदान को देखते हुए उन्हें ‘उत्तर प्रदेश प्रोविंशियल कमेटी’ का प्रमुख सचिव चुना गया । इसके दो वर्ष पश्चात् अर्थात् 1937 ई॰ में प्रथम बार उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ा । स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् 1950 ई॰ तक वे उत्तर प्रदेश के गृहमंत्री के रूप में कार्य करते रहे ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् वे अनेक पदों पर रहते हुए सरकार के लिए कार्य करते रहे। 1952 ई॰ को वे राज्यसभा के लिए मनोनीत किए गए । इसके पश्चात् 1961 ई॰ में उन्होंने देश के गृहमंत्री का पद सँभाला । राजनीति में रहते हुए भी उन्होंने कभी अपने स्वयं या अपने परिवार के स्वार्थों के लिए पद का दुरुपयोग नहीं किया ।
निष्ठापूर्वक ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्यों के निर्वाह को उन्होंने सदैव प्राथमिकता दी । लाल बहादुर शास्त्री सचमुच एक राजनेता न होकर एक जनसेवक थे जिन्होंने सादगीपूर्ण तरीके से और सच्चे मन से जनता के हित को सर्वोपरि समझते हुए निर्भीकतापूर्वक कार्य किया । वे जनता के लिए ही नहीं वरन् आज के राजनीतिज्ञों के लिए भी एक आदर्श हैं । यदि हम आज उनके आदर्शों पर चलने का प्रयास करें तो एक समृद्ध भारत का निर्माण संभव है ।
नेहरू जी के निधन के उपरांत उन्होंने देश के द्वितीय प्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्र की बागडोर सँभाली । प्रधानमंत्री के रूप में अपने 18 महीने के कार्यकाल में उन्होंने देश को एक कुशल व स्वच्छ नेतृत्व प्रदान किया । सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार आदि को समाप्त करने के लिए उन्होंने कठोर कदम उठाए ।
उनके कार्यकाल के दौरान 1965 ई॰ को पाकिस्तान ने भारत पर अघोषित युद्ध थोप दिया । शास्त्री जी ने बड़ी ही दृढ़ इच्छाशक्ति से देश के युद्ध के लिए तैयार किया । उन्होंने सेना को दुश्मन से निपटने के लिए कोई भी उचित निर्णय लेने हेतु पूर्ण स्वतंत्रता दे दी थी । अपने नेता का पूर्ण समर्थन पाकर सैनिकों ने दुश्मन को करारी मात दी ।
ऐतिहासिक ताशकंद समझौता शास्त्री जी द्वारा ही किया गया परंतु दुर्भाग्यवश इस समझौते के पश्चात् ही उनका देहांत हो गया । देश उनकी राष्ट्र भावना तथा उनके राष्ट्र के प्रति समर्पण भाव के लिए सदैव उनका ऋणी रहेगा ।
उनके बताए हुए आदर्शों पर चलकर ही भ्रष्टाचार रहित देश की हमारी कल्पना को साकार रूप दिया जा सकता है । ‘ सादा जीवन, उच्च विचार ‘ की धारणा से परिपूरित उनका जीवन-चरित्र सभी के लिए अनुकरणीय है ।
Lal bahadur shastri essay in marathi
आज भारतीय राजकारणात भ्रष्टाचार आणि उच्च संवैधानिक पदासाठी नेत्यांमधील लोकप्रिय स्पर्धा पाहिल्यास असा विश्वास नाही की देशाने अशा महान व्यक्तीला कधीही पाहिलेले नाही, ज्याने आपल्या विजयाच्या पूर्ण क्षमतेनंतरही असे म्हटले की ” जर कोणी माझ्या विरोधात असेल तर त्या परिस्थितीत मी पंतप्रधान होऊ इच्छित नाही. ”
भारताचे इतर पंतप्रधान, श्री लाल बहादुर शास्त्री अशा महान नेत्यासारखे होते, ज्यांच्यासाठी देशाची स्थिती सर्वोच्च नव्हती परंतु देशाचा हित सर्वोपरि होता. 27 मे 1 9 64 रोजी पहिल्या पंतप्रधान पंडित जवाहरलाल नेहरू यांच्या निधनानंतर, एका नेत्याची गरज होती ज्याने देशाला धैर्य व धैर्याने नेतृत्व केले.
मोरारजी देसाई व राम नेता म्हणून पंतप्रधान उमेदवार पोस्ट आणि लोकशाही मूल्ये मोठेपण पाहण्यासाठी आले, तेव्हा शास्त्री स्पष्ट निवडणुकीत सहभागी नकार दिला.
मग काँग्रेस Kamaraj अध्यक्ष स्वीकारले शास्त्री समर्थन वचन दिले होते जे एक बैठक, काँग्रेस त्यांच्या नेता म्हणून त्यांनी 1964 काँग्रेस संसदीय पक्षाच्या एकमताने 2 जून गेला. अशाप्रकारे 9 जून 1 9 84 रोजी लाल बहादुर शास्त्री देशाचे दुसरे पंतप्रधान झाले.
लाल बहादुर शास्त्री यांचा जन्म 2 ऑक्टोबर 1 9 04 रोजी उत्तर प्रदेशातील बनारस जिल्ह्यातील मुगलसराय गावात झाला. त्यांचे वडील शारदा प्रसाद हे शिक्षक होते, शास्त्रीच्या जन्माच्या साडेतीन वर्षानंतर ते स्वर्गात गेले. त्यानंतर, त्यांची आई रामदुल्लारी देवी मिर्झापूरमध्ये तिच्या मामाच्या घरी गेली. शास्त्रीचा प्रारंभिक शिक्षण त्यांच्या आजोबांच्या घरात होता.
त्याच्या वडिलांच्या मृत्यूनंतर, त्याचे कुटुंब माळी चांगले नव्हते, त्याची शाळा गंगा नदीच्या वर वसलेली होती. नावेत नदी पार करण्यासाठी काही पैसेही त्यांच्याजवळ नव्हते. जर या परिस्थितीत दुसरा माणूस असेल तर त्याने आपले अभ्यास सोडले असते, परंतु शास्त्री हार मानली नाही, तो शाळेत जाऊन गंगा नदी पार करून गेला.
अशाप्रकारे, कठोर परिश्रम घेत असताना सहाव्या दर्जाचे उत्तीर्ण झाल्यावर ते पुढील अभ्यासासाठी त्यांच्या वारसांवर गेले. तिथून, त्यांचा अभ्यास हरिश्चंद्र हायस्कूल आणि काशी विद्यापीठात झाला. वर्ष ते 1920 मध्ये महात्मा गांधी च्या असहकार चळवळ सहभागी, त्याच्या अभ्यास अहवाल दिला, परंतु 1926 मध्ये ‘शास्त्री’ जुन्या शीर्षक तेथे तो प्रेरणा कशी शाळा त्या नंतर प्रवेश केला आणि बाकी.
शास्त्रींना त्यांचे पद मिळाले तेव्हा त्यांनी ‘श्रीवास्तव’ हा जन्मापासून काढला आणि नेहमीच ‘शास्त्री’ नावाचा उपयोग केला. मग ते शास्त्री Kgadhiji अभ्यास आणि स्वातंत्र्य प्रेरणा पूर्णपणे संलग्न आली आहे आलेली जमिनीसाठी आणि त्याच प्रेरणा ‘शास्त्री’ तो नंतर काशी शाळा वस्तू.
हे दर्शविते की गांधीजींचा त्यांच्या जीवनावर मोठा प्रभाव पडला आणि त्यांनी बापूंना आदर्श मानले. 1 9 20 मध्ये, सहकारिता चळवळीतील सहभागामुळे साडेतीन वर्षे तुरुंगात पाठविल्यानंतर, स्वातंत्र्य चळवळीचा एक अध्याय सुरू झाला.
काँग्रेसचे सदस्य म्हणून त्यांनी आपली जबाबदारी पूर्ण केली. 1 9 30 साली साल्ट सत्याग्रह मध्ये त्यांच्या सहभागामुळे त्यांना पुन्हा तुरुंगात पाठविण्यात आले. शास्त्री यांच्या निष्ठा पाहून पक्षाने उत्तर प्रदेश काँग्रेसचे सरचिटणीस केले. ब्रिटीश युगाच्या काळात, कोणत्याही राजकीय पक्षाचा कोणताही पोस्ट काटाच्या काटापेक्षा कमी होता असे नाही, परंतु शास्त्रीने 1 9 35 पासून 1 9 38 पर्यंत या पदावर राहिल्यानंतर आपली जबाबदारी सांभाळली.
दरम्यान, 1 9 37 मध्ये ते उत्तर प्रदेश विधानसभेवर निवडून आले आणि त्यांनी उत्तर प्रदेशचे मुख्यमंत्री म्हणून संसदीय सचिव म्हणून नियुक्ती केली. उत्तर प्रदेश समितीचे महामंत्री म्हणूनही त्यांची निवड झाली आणि 1 9 41 पर्यंत ते कार्यालयात राहिले.
स्वातंत्र्य चळवळीत या भूमिकेसाठी देशाच्या संताने आयुष्यभर अनेकदा तुरुंगात छळ सहन केला होता. 1 9 42 मध्ये भारत छोडो आंदोलनात त्यांचा सहभाग असल्यामुळे त्यांना पुन्हा तुरुंगात पाठविण्यात आले.
1 9 46 साली उत्तर प्रदेशचे तत्कालीन मुख्यमंत्री, गोविंद बल्लभ पंत यांनी शास्त्रीजींना त्यांचे बैठक सचिव म्हणून नियुक्त केले आणि 1 9 47 मध्ये त्यांना त्यांच्या मंत्रालयामध्ये समाविष्ट करण्यात आले. गोविंद बल्लभ पंत यांच्या मंत्रिमंडळात त्यांना पोलिस आणि वाहतूक मंत्रालय देण्यात आले.
परिवहन मंत्रालयाच्या कार्यकाळात त्यांनी पहिल्यांदा महिला कंडक्टर नेमले होते. पोलिस पत्रकारांच्या स्वरूपात तो गर्दीच्या नियंत्रणाखाली ठेवण्यासाठी स्टिकऐवजी पाणी शॉक वापरण्यास प्रारंभ करीत असे.
त्यांच्या कर्तृत्ववानपणा आणि मेरिट पाहून त्यांनी 1 9 51 मध्ये कॉंग्रेसचे राष्ट्रीय महासचिव बनले. 1 9 52 मध्ये नेहरूंनी त्यांना रेल्वे मंत्री म्हणून नेमले. 1 9 56 मध्ये नैतिक तत्त्वावर मंत्री पदावर राजीनामा देताना प्रमुख रेल्वे दुर्घटनेची जबाबदारी घेऊन त्यांनी एक उत्तम उदाहरण मांडले.
1 9 57 मध्ये ते अलाहाबाद येथून संसदेत निवडून आले तेव्हा नेहरू यांनी त्यांना त्यांच्या मंत्रालयामध्ये ट्रान्सपोर्ट व कम्युनिकेशन मंत्री म्हणून नियुक्त केले. त्यानंतर 1 9 58 साली त्यांनी वाणिज्य व उद्योग मंत्रालयाची जबाबदारी घेतली. 1 9 61 मध्ये पं. गोविंद बलभ पंत यांच्या निधनानंतर त्यांना गृहमंत्रालयाची जबाबदारी देण्यात आली.
9 0 जून, 1 9 64 रोजी अनेक संवैधानिक पदांवर असताना त्यांनी आपल्या जबाबदार्या यशस्वीपणे पार पाडण्यात यशस्वीरित्या यशस्वी झाले आणि त्यांनी देशाच्या दुसऱ्या पंतप्रधानांना सर्वसमावेशक पद्धतीने स्वीकारले.
Lal bahadur shastri essay in telugu
నేడు అవినీతి నాయకులు మరియు భారత రాజకీయాల్లో ఉన్నత రాజ్యాంగ పోస్ట్ మధ్య పరుగును చూసాయి, అది దేశం ఎప్పుడు వారి విజయం అని- “యొక్క పూర్తి సామర్థ్యాన్ని తరువాత చెప్పాడు ఒక గొప్ప వ్యక్తి, చూసింది నమ్ముతారు లేదు ఒక వ్యక్తి నాకు వ్యతిరేకంగా ఉంటే, ఆ పరిస్థితిలో నేను ప్రధాన మంత్రి కావాలని కోరుకోలేదు. ”
భారతదేశం యొక్క రెండవ ప్రధానమంత్రి లాల్ బహదూర్ శాస్త్రి ర్యాంకుల్లో లేని అటువంటి గొప్ప రాజకీయవేత్త, ఉంది, కానీ దేశం యొక్క పారామౌంట్ ఆసక్తి. మే 27, 1964 న, మొట్టమొదటి ప్రధాన మంత్రి పండిట్ జవహర్ లాల్ నెహ్రూ ధైర్యంతో దేశం మరియు నిర్భయముగా దారి అవసరం నాయకులు మరణించాడు.
మొరార్జీ దేశాయి రామ్ నాయకుడిలా వీళ్ళు పోస్ట్ మరియు ప్రజాస్వామ్య విలువలు గౌరవానికి చూడటానికి వచ్చినప్పుడు శాస్త్రి స్పష్టంగా ఎన్నికల్లో పాల్గొనేందుకు నిరాకరించారు.
కాబట్టి అప్పటి కాంగ్రెస్ కామరాజ్ అధ్యక్షుడు శాస్త్రి మద్దతు వాగ్దానం చేసిన ఒక సమావేశంలో, కాంగ్రెస్ తమ నేతగా వాటిని 1964 కాంగ్రెస్ పార్లమెంటరీ పార్టీ ఏకగ్రీవంగా జూన్ 2, వెళ్లిన అంగీకరించారు. ఆ విధంగా లాల్ బహదూర్ శాస్త్రి జూన్ 9, 1984 న దేశం యొక్క రెండవ ప్రధాన మంత్రి అయ్యారు.
లాల్ బహదూర్ శాస్త్రి ఉత్తరప్రదేశ్లోని బనారస్ జిల్లాలో ఉన్న మొఘల్సరై గ్రామంలో అక్టోబరు 2, 1904 న జన్మించాడు. అతని తండ్రి శారదా ప్రసాద్ ఒక గురువు, ఆయన శాస్త్రి జన్మించిన కేవలం ఒకటిన్నర సంవత్సరాల తరువాత స్వర్గానికి వెళ్ళారు. దీని తరువాత, అతని తల్లి రాముదురి దేవి మిర్జాపూర్ లో తన మాత మామ ఇంటికి వెళ్లారు. శాస్త్రి యొక్క ప్రారంభ విద్య అతని మాతృభూమి యొక్క ఇంటిలో ఉంది.
తన తండ్రి మరణం తరువాత, అతని కుటుంబ తోటమాలి మంచిది కాదు, అతని పాఠశాల గంగా నదికి పైన ఉంది. పడవ ద్వారా నదిని దాటడానికి కొంత డబ్బు కూడా లేదు. రిటర్న్స్ ఈ సందర్భంలో ఎవరూ డ్రాప్ అవుట్, కానీ శాస్త్రి అప్ ఇస్తాయి లేదు ఉండాలి, అతను పాఠశాల వెళ్ళడానికి నదిపై ఈదుకుంటూ వచ్చారు.
ఈ విధంగా, కష్టాలను ఎదుర్కొంటున్న సమయంలో ఆరవ తరగతికి వెళ్ళిన తరువాత, వారు మరింత అధ్యయనాలకు తమ మొటిమలకు వెళ్లారు. అక్కడ నుండి, ఆయన అధ్యయనాలు హరిశ్చంద్ర హై స్కూల్ మరియు కాశీ విద్యాపీఠ్లలో జరిగింది. సంవత్సరం వారు 1920 లో గాంధీజీ కాని సహకారం ఉద్యమంలో పాల్గొనేందుకు, తన అధ్యయనాలు పేర్కొన్నాయి, కాని 1926 లో అతను ప్రేరణ కాశీ స్కూల్ ఆ తరువాత ప్రవేశించి అక్కడ ‘శాస్త్రి’ పాత టైటిల్ వదిలి.
శాస్త్రి శీర్షికలను చూడండి అతను పుట్టిన కులం పదాలు “శ్రీవాత్సవ తిరిగి ఎత్తివేసింది ‘ఎల్లప్పుడూ మరియు పట్టింది’ వారి పేరు శాస్త్రి ‘తదుపరి. అప్పుడు వారు పూర్తిగా జత పడిపోయి శాస్త్రి Kgadhiji తన అధ్యయనాలు మరియు స్వేచ్ఛ ప్రేరణ అందించిన భూమి మరియు కూడా అదే ప్రేరణ అతను తరువాత కాశీ స్కూల్ ‘శాస్త్రి’ యొక్క కలిగి.
గాంధీజీ తన జీవితంపై తీవ్ర ప్రభావాన్ని కలిగి ఉన్నాడని మరియు బాపుగా తన ఆదర్శంగా భావించినట్లు ఇది చూపిస్తుంది. రెండు సంవత్సరాల మరియు 1920 లో కాని సహకారం ఉద్యమంలో పాల్గొనేందుకు కారణంగా మూడున్నర సంవత్సరాలు వారి స్వేచ్ఛ జైలుకు పంపబడుతుంది అలాగే ఇచ్చిన అధ్యాయం ఆరంభమైంది.
కాంగ్రెస్ సభ్యుడిగా ఆయన తన బాధ్యతను నెరవేర్చడం ప్రారంభించారు. 1930 లో ఉప్పు సత్యాగ్రహంలో పాల్గొన్నందుకు, అతను తిరిగి జైలుకు పంపబడ్డాడు. శాస్ర్తి విశ్వసనీయతను చూసి, పార్టీ అతన్ని ఉత్తరప్రదేశ్ కాంగ్రెస్ ప్రధాన కార్యదర్శిగా చేసింది. బ్రిటిష్ పాలన ఏ రాజకీయ పార్టీ యొక్క పోస్ట్ ముళ్ళ కంటే తక్కువ మంచం, కానీ సంవత్సరం 1938 శాస్త్రి సంవత్సరం 1935 నుండి పోస్ట్ మరియు దాని బాధ్యతలు నెరవేర్చడానికి అని ఉంది.
ఇంతలో, 1937 లో ఆయన ఉత్తరప్రదేశ్ శాసనసభకు ఎన్నికయ్యారు మరియు ఆయన ఉత్తర ప్రదేశ్ ముఖ్యమంత్రికి పార్లమెంటరీ కార్యదర్శిగా కూడా నియమించబడ్డారు. అతను ఉత్తరప్రదేశ్ కమిటీ మహామంత్రీగా ఎన్నికయ్యాడు మరియు 1941 వరకు పదవిలో కొనసాగారు.
స్వాతంత్ర్య పోరాటంలో ఈ పాత్ర కోసం, దేశం యొక్క ఈ సెయింట్ అతని జీవితకాలంలో అనేకసార్లు జైలు శిక్షలను ఎదుర్కొన్నారు. 1942 లో క్విట్ ఇండియా ఉద్యమంలో పాల్గొన్నందున వారు తిరిగి జైలుకు పంపబడ్డారు.
పశ్చిమ ఉత్తరప్రదేశ్ మాజీ ముఖ్యమంత్రి 1946 లో గోవింద్ శాస్త్రి వారి సమావేశంలో కార్యదర్శి వల్లభ్ పంత్ నియమించారు మరియు 1947 తన మంత్రి చేర్చారు. గోవింద్ బాల్లాభ్ పంత్ యొక్క మంత్రిత్వశాఖలో ఆయన పోలీస్ అండ్ ట్రాన్స్పోర్ట్ మినిస్ట్రీకి అప్పగించారు.
రవాణా మంత్రి పదవీకాలంలో, అతను మొదటిసారి మహిళా కండక్టర్లను నియమించారు. ఒక పోలీసు రిపోర్టర్ రూపంలో, అతను గుంపుకు బదులుగా నీటి షాక్ను ఉపయోగించడం ప్రారంభించాడు.