Kuvempu Information in Hindi

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कुप्पाली वी गौड़ा पुटप्पा उपनाम कुवेंपु  (ಕುಪ್ಪಳ್ಳಿ ವೆಂಕಟಪ್ಪಗೌಡ ಪುಟ್ಟಪ್ಪ) कन्नड़ भाषा के कवि थे ।इनका का जन्म 29 दिसम्बर 1904 को कर्नाटक राज्य के कुपपाली के शिमोगा में हुआ था। इनकी माता जी का नाम सीतमंबी  और इनके पिता जी का नाम वेंकटप्पा गौड़ा था | अपनी किताब ‘श्री रामायण दर्शनम’ में रामायणको आधुनिक नजरिये से पेश कियागया था काफी जायदा पसंद किया गया था.कुवेंपु के जन्मदिन पर गद्य और पद्य दोनों ही विधाओं में अपनी लेखनी चलाने वाले कवि कुवेंपु नाम कुवेंपु वैकटप्पा पूटप्पा था | इनका घर शिवमोग्गा जिले के तीर्थहल्ली स्थित था ,।इनको महाकाव्य पर 1955 में साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कार से सम्मानित किया गया था | कुवेंपु का विवाह हेमवती से 30 अप्रैल 1937 हुआ जिनसे इनके के दो पुत्र,और दो बेटियां भी हैं।आइये देखें kuvempu in hindi, information about kuvempu in hindi, कुवेंपु, kuvempu u की जानकारी हिंदी में |

कुवेम्पु का करिअर 

इन का सम्मान प्रतीक के साथ कुवेम्पु के जीवन का एक दुखद प्रसंग भी जुड़ा हुआ हैं | इनका घर शिवमोग्गा जिले के तीर्थहल्ली स्थित था ,एक दिन चोर घुस गए। कुवेम्पु के ज्ञानपीठ और पद्मश्री पुरस्कार सुरक्षित बच गया , लेकिन पद्मभूषण को चोर ले गए। कुवेम्पु कन्नड़ के राष्ट्रकवि माने जाते हैं,इनके साहित्य का सर्जनात्मक धरातल वैविध्यपूर्ण है इनके लोकप्रिय कृति ‘श्री रामायणदर्शनम्’ तथा विकसित महाकाव्य है,और रचनाकार के आभार का केन्द्रबिन्दु है।इनको महाकाव्य पर 1955 में साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कार से सम्मानित किया गया था | इन्हे यू.आर. अनन्तमूर्ति के अनुसार श्री रामायणदर्शनम् को लगातार परिश्रम के रूप में प्रस्तुत किया गया है।कर्नाटक राज्य गीत ”जय भारत की” भी रचना की इन्होने ने की थी | कुवेम्पु ने कन्नड़ और अंग्रेजी भाषाओं के अन्तर्गत अपनी शिक्षा समाप्त की तथा उसके पश्चात वे आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए के लिए मैसूर गए। उसके बाद उन्होंने मैसूर के महाराजा कॉलेज में अध्ययन किया तथा वर्ष 1929 में कन्नड़ में स्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली थी।

कुवेंपु की रचनाएं

इस के अलावा महाकवि कुवेंपु ने 1924 से 1981 के बीच अमलन कथे , कलासुंदरि,कृत्तिके, मरिविज्ञानि, पांचजन्य, इक्षु गंगोत्रि, मेघपुर, षष्ठि नमन, विभूति पूजे, पक्षिकाशि, कलासुंदरि, मरिविज्ञानिबिगिनर्’स् म्यूस्, अलियन् हार्प्, मोडण्णन तम्म, मलेगळल्लि मदुमगळु, जेनागुव, चंद्रमंचके बा, चकोरि!, इक्षु गंगोत्रि,कुटीचक, जनप्रिय वाल्मीकि रामायण ,होन्न होत्तारे, समुद्रलंघन, कोनेय तेने मत्तु विश्वमानव गीते,संन्यासि मत्तु इतर कथेगळु, नन्न देवरु मत्तु इतरे कथेगळु, मलेनाडिन चित्रगळु, विचार क्रांतिगे आह्वान, जनताप्रज्ञे मत्तु वैचारिक जागृति, पांचजन्यनविलु, चित्रांगदा, कोगिले मत्तु सोवियट् रष्या, कृत्तिके, अग्निहंस, किंकिणि, प्रेमकाश्मीर, षोडशि, नन्न मने, मनुजमत-विश्वपथ, श्री रामकृष्ण परमहंस, स्वामि विवेकानंद, वेदांत साहित्य, कथन कवनगळु,आदि की रचनाएं लिखी हैं |

काव्य

अमलन कथॆ (शिशुसाहित्य) (१९२४)
बॊम्मनहळ्ळिय किंदरिजोगि (शिशुसाहित्य) (१९२६)
हाळूरु (१९२६)
कॊळलु (१९३०)
पाञ्चजन्य (१९३३)
कलासुंदरि (१९३४)
नविलु (१९३४)
चित्रांगदा (१९३६) (खंडकाव्य)
कथन कवनगळु (१९३६)
कोगिलॆ मत्तु सोवियट् रष्या (१९४४)
कृत्तिकॆ (१९४६)
अग्निहंस (१९४६)
पक्षिकाशि (१९४६)
किंकिणि (१९४६)
प्रेमकाश्मीर (१९४६)
षोडशि (१९४७)
नन्न मनॆ (१९४७)
जेनागुव (१९५२)
चंद्रमंचकॆ बा, चकोरि! (१९५४)
इक्षु गंगोत्रि (१९५७)
अनिकेतन (१९६३)
अनुत्तरा (१९६३)
मंत्राक्षतॆ (१९६६)
कदरडकॆ (१९६७)
प्रेतक्यू (१९६७)
कुटीचक (१९६७)
हॊन्न हॊत्तारॆ (१९७६)
समुद्रलंघन (१९८१)
कॊनॆय तॆनॆ मत्तु विश्वमानव गीतॆ (१९८१)
मरिविज्ञानि (१९४७) (शिशुसाहित्य)
मेघपुर (१९४७) (शिशुसाहित्य)
श्री रामायण दर्शन० (१९४९) (महाकाव्य)

अंग्रेजी काव्यसंकलन

बिगिनर्’स् म्यूस् (१९२२)
अलियन् हार्प् (१९७३)

नाटक

मोडण्णन तम्म (१९२६)(मक्कळ नाटक)
जलगार (१९२८)
यमन सोलु (१९२८)
नन्न गोपाल (१९३०) (मक्कळ नाटक)
बिरुगाळि (१९३०)
स्मशान कुरुक्षेत्र (१९३१)
महारात्रि (१९३१)
वाल्मीकिय भाग्य (१९३१)
रक्ताक्षि (१९३२)
शूद्र तपस्वि (१९४४)
बॆरळ्गॆ कॊरळ् (१९४७)
बलिदान (१९४८)
चंद्रहास (१९६३)
कानीन (१९७४)

उपन्यास

कानूरु सुब्बम्म हॆग्गडति (१९३६)
मलॆगळल्लि मदुमगळु (१९६७)

कथा संकलन

संन्यासि मत्तु इतर कथॆगळु (१९३६)
नन्न देवरु मत्तु इतरॆ कथॆगळु (१९४०)

ललित प्रबंध

मलॆनाडिन चित्रगळु (१९३३)

गद्य/विचार/विमर्शॆ/प्रबंध

आत्मश्रीगागि निरंकुशमतिगळागि (१९४४)
साहित्य प्रचार (१९४४)
काव्य विहार (१९४७)
तपोनंदन (१९५०)
विभूति पूजॆ (१९५३)
द्रौपदिय श्रीमुडि १९६०)
रसोवैसः (१९६२)
षष्ठि नमन (१९६४)
इत्यादि (१९७०)
मनुजमत-विश्वपथ (१९७१)
विचार क्रांतिगॆ आह्वान (१९७४)
जनताप्रज्ञॆ मत्तु वैचारिक जागृति (१९७८)

(source: wikipedia)

कुवेंपु के पुरस्कार

इनको साहित्य ,बॆंगळूरु विश्वविद्यालयदिंद गौरव डि.लिट्, अकाडेमी प्रशस्ति, पद्मभूषण, मैसूरु विश्वविद्यानिलयदिंद गौरव डि.लिट्,कर्नाटक रत्न ‘राष्ट्रकवि’ पुरस्कार,ज्ञानपीठ प्रशस्ति,बॆंगळूरु विश्वविद्यालयदिंद गौरव डि.लिट्, कर्नाटक विश्वविद्यालयदिंद गौरव डि.लिट्, आदि प्रशस्ति एवं पुरस्कारों से सम्मान किया गया था | इनकी कवि कुवेंपू की 113 वीं जयंती पर सर्च इंजन गूगल ने आनंददायक डूडल बनाकर उन्हें याद किया। प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार द्वारा सम्मानित करने के साथ ही कन्नड़ साहित्य में उनके योगदान के लिए,कर्नाटक सरकार द्वारा 1958 में राष्ट्रकविक (राष्ट्रीय कवि)और 1992 में कर्नाटक रत्न (कर्नाटक के रत्न) से भी सम्मानित किया गया था | 29 दिसंबर, 1904 को मैसूर में जन्मे कुवेंपू पहले ऐसे कन्नड़ लेखक हैं |89 वर्ष की आयु में कुप्पली वेंकटप्पा पुट्टप्पा का भारत के कर्नाटक राज्य में मैसूर में 11 नवम्बर 1994 को निधन हो गया था |

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