Gangaur 2022– भारत एक महान देश है जो अपनी समृद्ध संस्कृति और विविधता के लिए जाना जाता है। बहुत तरह के धार्मिक लोग होते हैं जिनकी अलग-अलग त्योहारों के साथ अपनी अलग परंपरा होती है। लोग अपने त्योहार को बहुत खुशी और उत्साह के साथ मनाते हैं। राजस्थान राज्य के क्षेत्रीय त्योहारों में से एक गणगौर है। इस पोस्ट में हम गणगौर त्योहार के बारे में सभी महत्वपूर्ण विवरणों जैसे इतिहास, व्रत विधि, महत्व, कैसे मनाएं,गणगौर की कहानी pdf आदि के बारे में चर्चा करेंगे। इस साल गणगौर का त्यौहार १८ मार्च २०२२ से ४ अप्रैल २०२२ तक मनाया जायेगा|
हम गणगौर क्यों मनाते हैं?-गणगौर कहां की प्रसिद्ध है?
गणगौर त्यौहार का राजस्थान स्टेट में बहुत महत्व है. लोग इससे बड़ी धूम धाम से मानते है| यह त्यौहार पारिवारिक प्रेम और सौहार्द को कायम रखने के लिए मनाया जाता है| गणगौर दो शब्दो से मिलकर बना है-गण और गौर| इसमें गण का अर्थ है भगवन शिव जी और गौर का अर्थ है माता पार्वती| यह त्यौहार राजस्थान के अलावा और भी राज्यों में मनाया जाता है| इस त्यौहार को लोग बड़ी आस्था के साथ मानते है और शिव जी और पारवती की पूजा करते है| इस दिन गणगौर तीज का व्रत भी रखा जाता है. औरतें मेंहंदी लगा कर अपनी श्रद्धा इस त्यौहार के लिए जाहिर करती है. मेहँदी designs के लिए देखे – Gangaur Mehndi designs.
गणगौर पूजा को लेकर के राजस्थान में एक बहुत ही प्रसिद्ध कहावत है “तीज तिवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर।” इस कहावत का यही अर्थ है कि सावन की तीज से त्यौहार का आगमन शुरू हो जाता है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही इस त्यौहार का समापन होता है।
गणगौर पूजा के विभिन्न नाम- गणगौर का त्योहार कब मनाया जाता है?
गणगौर त्यौहार को बाकी राज्यों में तीज के नाम से जाना जाता है. इस दिन गणगौर माता का पूजन किया जाता है| यह त्यौहार मुख्या रूप से सौहागणो के लिए होता है| इस दिन पत्नियां अपने पतियों के लिए व्रत रखती है और हाथो में मेहँदी लगाती है| बाकी राज्यों में इस त्यौहार का एक ही दिन महत्व होता है जबकि राजस्थान स्टेट में इससे १६ दिन तक मनाया जाता है | इस साल ये १८ मार्च से ४ अप्रैल तक मनाया जायेगा| कुवारी लड़किया भी गणगौर का व्रत रख सकती है ताकि उन्हें अपना मनचाहा वर मिले| भगवन शिव जी और माता पारवती जी को एक साथ गणगौर कहा जाता है और उनकी पूजा की जाती है|
गणगौर का इतिहास व् महत्व – gangaur puja ka shubh muhurat
ऐसा कहा जाता है की माता पारवती जी ने भगवन शिव जी को अपने पति के रूप में प्राप्त करने को बहुत तपस्या और व्रत किये थे. वह चाहती थी की उनका विविआह भगवन शिव जी से ही हो| उनके कठोर प्रेट्र और इच्छा से प्रसन्न होकर भगवन शिव जी ने उनसे एक वरदान मांगने को कहा| माता पार्वती जी के मना करने पर भी शिव जी ने उन्हें कुछ मांगने को कहा| तब माता पारवती जी ने शिव जी से विवाह करके की मंशा जताई और वह दोनों साथ हो गए|
इसके साथ साथ शिव जी ने माता पारवती को सदा भाग्यवती होने का वरदान भी दिया| तब माता पार्वती ने कहा की जो भी जोड़ा इस दिन शिवजी और पारवती जी की मैं से व्रत रख कर पूजा करेगा वह सभी महिलाये भी अखंड सौभाग्यवती का वरदान पाएंगी| इस तरह गणगौर त्रयोहार की शुरुआत हुई|
गणगौर पूजा और व्रत विधि- गणगौर पूजा कैसे की जाती है?
गणगौर की पूजा के लिए सबसे पहले आपको एक चौकी लगनी होगी| इसके बाद उस पर सखिया बनाया जाता है| पूजा की विधि शुरू करने के लिए एक पानी से भरा हुआ कलश दाहिनी और रखे और उसके ऊपर ५ पत्ते रखकर नारियल रखे| अब चौकी पर पैसे और सुपारी रखे| इसके बाद कुवारी कन्याओ और विवाहित कन्याओ को दिवार पर पेपर लगा कर टिक्की लगाती है| कुवारी लड़किया ८-८ और विवाहित लड़किया १६-१६ टिक्की लगाती है|
इसके बाद महिलाये पानी का कलश साथ रखकर और घास रख कर हाथ जोड़ती है और १६ बार गणगौर का गीत गति है | इस विधि को १६ दिन कर इसी प्रकार किया जाता है और कहानिया व् गीत गए जाते है| बिजोरा-फूलों से बना हुआ से अष्ठमी की तीज का प्रत्येक सुबह की जाती है|
गणगौर का गीत
गौर-गौर गणपति ईसर पूजे, पार्वती
पार्वती का आला टीला, गोर का सोना का टीला
टीला दे, टमका दे, राजा रानी बरत करे
करता करता, आस आयो मास आयो, खेरे खांडे लाडू लायो,
लाडू ले बीरा ने दियो, बीरों ले गटकायों
साडी मे सिंगोड़ा, बाड़ी मे बिजोरा,
सान मान सोला, ईसर गोरजा
दोनों को जोड़ा ,रानी पूजे राज मे,
दोनों का सुहाग मे
रानी को राज घटतो जाय, म्हारों सुहाग बढ़तों जाय
किडी किडी किडो दे, किडी थारी जात दे,
जात पड़ी गुजरात दे, गुजरात थारो पानी आयो,
दे दे खंबा पानी आयो, आखा फूल कमल की डाली,
मालीजी दुब दो, दुब की डाल दो
डाल की किरण, दो किरण मन्जे।
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