बैसाखी पर कविता 2022 – Baisakhi Poems in Hindi & Punjabi Language – Poem on Vaisakhi Festival for Kids

Poems on Baisakhi in Hindi

Baisakhi 2022 : बैसाखी का त्यौहार एक बहुत ही पावन त्योहारों में से एक है| यह सिख धर्म का पर्व है जिसे वे बड़ी धूम धाम से मनाते है|बैसाखी शब्द वैशाख से बना है| बैसाखी को सर्दियों की फसल काटने के बाद नए साल के प्रारम्भ की ख़ुशी में मनाया जाता है| इसे सबसे ज्यादा हरयाणा और पंजाब में मनाया जाता है| यह दिन रबी फसल पकने की ख़ुशी में मनाया जाता है| इसी दिन दसवे गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्तापना करि थी| यह ही कारण है की इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है|आज के इस पोस्ट में हम आपको बैसाखी पर हिंदी कविताए, बैसाखी कविता इन हिंदी, बैसाखी पंजाबी काव्य, पंजाबी कविता ओन बैसाखी, आदि की जानकारी देंगे| बैसाखी इस वर्ष 14 अप्रैल 2022 को मनाई जाएगी|

Baisakhi par kavita in Hindi

अगर आप बैसाखी पर्व पर कविता अन्य भाषाओ जैसे Hindi, English, Urdu, Punjabi, Bengali, Tamil, Telugu, Malayalam, Kannada, English, Marathi, Nepali वाले Language Font में जानना चाहे व इसके अलावा baisakhi poems english and hindi, बैसाखी पर शायरी,  baisakhi festival poem in hindi, baisakhi festival poem in punjabi, baisakhi 2022 poem, Baisakhi Wishes in Hindi, baisakhi short poems के बारे में जानना चाहे तो यहाँ से जान सकते है :

उट्ठो सूरमा कोई करो मंग पूरी,
नक्का ज़ुलम दे हड़्ह ते लावने लई ।
पहलां तली ‘ते सिर तां रक्ख लईए,
फेर लड़ांगे धरम बचावने लई ।’
गुरां मंग कीती सारे चुप्प छाई,
भर्या पंडाल जापे भां-भां करदा ।
धरमी-रुक्ख सड़ रेहा दुपहर तिक्खी,
वेखो कौन है सिर दी छां करदा ।
घड़ी लंघी तां सिक्ख इक्क खड़ा होया,
उहनूं तम्बू विच्च गुरू लिजांवदे ने ।
लहू नुच्चड़दी हत्थ तलवार लै के,
उहनीं पैरीं फिर परतके आंवदे ने ।
गुरां दूसरे सिर दी मंग कीती,
कई खिसक के महलां नूं जान लग्गे ।
कई उत्थे ही नीवियां पाई बैठे,
विच्च हत्थां दे मूंह लुकान लग्गे ।
कई सोचदे प्यार्यां पुत्तरां तों,
क्युं सिक्खां नूं गुरू मुका रहे ने ।
तेग़ उन्हां नूं काली दी जीभ लग्गे,
गुरू जिसदी प्यास बुझा रहे ने ।
पंज वार इंज गुरां ने मंग कीती,
पंज सिक्ख कुरबानी लई खड़े होए ।
इहो जेहा कौतक मैं वी वेख्या ना,
भावें जग्ग विच्च कौतक बड़े होए ।
थोड़्हा समां लंघा गुरू पए नज़रीं,
पंजे सिक्ख पिच्छे टुरे आंवदे ने ।
उन्हां सभनां हथ्यार सजा रक्खे,
दसतारे वी सिरीं सुहांवदे ने ।
जल बाटे दे विच्च पवा सतिगुर,
उहनूं खंडे दे नाल हिलांवदे ने ।
नूरो-नूर चेहरा प्या चमक मारे,
मुक्खों आपने बानी अलांवदे ने ।
एने चिर नूं माता जी पहुंच गए,
पानी विच्च पतासे मिलांवदे ने ।
गुरां नज़र भर तक्क्या उहनां वल्ले,
चेहरे उत्ते मुसकान ल्यांवदे ने ।
अंमृत त्यार होया सतिगुरू जी ने,
पंजां सिक्खां नूं अंमृत छका दित्ता ।
भावें कोई किसे देश-भेख दा सी,
सभनूं खालसे सिंघ बना दित्ता ।
फेर पंजां नूं गुरू जी आप केहा,
‘मैनूं खालसे विच्च रलायो सिंघो ।
भेद गुरू ते चेले दा मेट देईए,
तुसीं मैनूं वी अंमृत छकायो सिंघो ।’
सारा दिन ही अंमृत दी होई वरखा,
चड़्हियां लालियां सभनां चेहर्यां ‘ते ।
गुरां सभनां ताईं समझ दित्ता,
ज़ुलम रुके ना अत्थरू केर्यां ‘ते ।
चिड़ियां बाज़ां दा रूप धार ल्या,
गिद्दड़ शेर बण भबकां मारदे ने ।
मेरे मन नूं इह यकीन होया,
हुन ना सूरमे ज़ुलम तों हारदे ने ।
जदों आपने बारे सोच्या मैं,
मेरी छाती वी मान दे नाल तण गई ।
पहलां रुत्त दा इक त्युहार सां मैं,
हुन खालसे दा जनम-दिन बण गई ।

Baisakhi short poems in english

अक्सर class 1, class 2, class 3, class 4, class 5, class 6, class 7, class 8, class 9, class 10, class 11, class 12 के बच्चो को कहा जाता है baisakhi festival poem लिखें| जिसके लिए हम पेश कर रहे हैं Vaisakhi kavita hindi Me. साथ ही आप बैसाखी एस्से इन पंजाबी लैंग्वेज व बैसाखी वॉलपेपर देख सकते हैं| आप सभी को बैसाखी की लख लख बधाइयां| Short poem on baisakhi in hindi & baisakhi poems in hindi language इस प्रकार है:

देखो है आया बैसाखी का त्यौहार
चारों तरफ है छाई फसल की बहार
बल्ले बल्ले है आया बैसाखी का त्यौहार !
चलो मिलके डालें भंगड़ा यार
अब कटेंगी फसलें हमारी
अब होंगी खुशियाँ न्यारी
वाह वाह आया बैसाखी का त्यौहार !
आओ सब मनाएं ये खुश्वार।

Baisakhi kavita in punjabi – baisakhi poem in punjabi

बैसाखी पर्व पर कविता

Baisakhi kavita in punjabi language व baisakhi poem in punjabi language इस प्रकार है:

रोज़ वांग जां नवां दिन चड़्हआ,
तित्थ बदली ते अक्खां खोल्हियां मैं ।
पंछी आपो आपने सुर कढ्ढण,
समझां उन्हां दियां प्यारियां बोलियां मैं ।
कोइल अम्ब दी टहनी ते कूक रही सी,
बुलबुल गावे गुलाब दे कोल बैठी ।
पिंड तक्के तां सभ थां दिस पई,
कोई सवानी वी चाटी दे कोल बैठी ।
सोन-रंगियां कणकां झूम रहियां,
वेख वेख जट्ट खीवा होई जावे ।
आउनी फ़सल ते एसदा की करना,
बैठा सद्धरां हार परोई जावे ।
बच्चे ख़ुश सन मेले जावना एं,
घर होर वी किन्नां सामान बणना ।
बस्स खान दियां डंझां लाहणियां ने,
कोई कंम नहीं अज्ज होर करना ।
जां पुरी अनन्द नूं वेख्या मैं,
कट्ठ लोकां दा अपर अपार दिस्से ।
बड़े गहु नाल तक्क्या सभ पासे,
मेले वाला ना इत्थे कोई आहर दिस्से ।
मैं वी सोच्या चलो मैं सुन आवां,
लोक की कुझ कह कहा रहे ने ।
कोई कंम दी गल्ल वी कर रहे ने,
जां ऐवें कावां रौली पा रहे ने ।
इक्क आखदा, ‘धरम्यां दस्स तां सही,
गुरां किस कंम सानूं बुलायआ ए ?
मैनूं लग्गदा अज्ज तां एस थां ‘ते,
सारा मुलक ही चल्लके आया ए ।’
धरमां बोल्या, ‘मैनूं वी पता कुझ नहीं,
चलो विच्च दरबार दे चल्लदे हां ।
गुरू कहन जो असीं वी सुन लईए,
नेड़े तखत दे जग्हा कोई मल्लदे हां ।’
निकल तम्बूयों गुरू जी बाहर आए,
हत्थ तेग़ नंगी मत्थे तेज़ दगदा ।
गुरां वल्ल जद सभनां निगाह कीती,
वेखन चेहरे ‘ते सूहा दर्या वगदा ।
फतेह कर सांझी केहा गुरू जी ने,
‘सिक्खो ! ज़ुलम दी कांग चड़्ह आ रही ए ।
इह भूतरे पशू दे वांग होई,
बेदोशे-मज़लूम इह खा रही ए ।
जेकर एस नूं किसे ना नत्थ पाई,
इहने धरम दा रुक्ख मरुंड जाना ।
फल, फुल्ल, पत्ते इहने खा जाणे,
बाकी बच्या मुलक रह टुंड जाना ।
इह तलवार ही इहनूं बचा सकदी,
असां एसदे नाल विचार कीती ।
नक्क ज़ुलम दा एसने वढ्ढने लई,
पहलां आप है सिर दी मंग कीती ।

Baisakhi poem in English

हर साल 2008, 2009, 2010, 2011, 2012, 2013, 2014, 2015, 2016, 2017, 18, 19, 20, 2022 के लिए Message, SMS, Quotes, Whatsapp Status, Saying, Slogans, Jokes 140 msg, Baisakhi Status in Hindi, baisakhi short poems punjabi language,  baisakhi poems in bengali, Baisakhi Lines in Punjabi, baisakhi poem written in punjabi, 120 Words Character के बारे में कोट्स यहाँ से जान सकते है :

See the festival of baisakhi
It is all around the crop
Bat bat is the festival of Baisakhi!
Let’s meet brandy man
Cutting Crops Now
Will be happy now
Wow, the festival of Baisakhi came!
Come, celebrate everything, this Khushar.

Baisakhi par kavita-बैसाखी पर्व पर Hindi कविता

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ਬਿਸਾਖੀ ਦਾ ਤਿਉਹਾਰ ਦੇਖੋ
ਫਸਲ ਦੇ ਆਲੇ ਦੁਆਲੇ ਸਾਰੇ
ਬੱਤਾ ਬਟ ਵਿਸਾਖੀ ਦਾ ਤਿਉਹਾਰ ਹੈ!
ਆਓ ਬਰਾਂਡੀ ਦੇ ਆਦਮੀ ਨੂੰ ਮਿਲਾਂ
ਹੁਣ ਫਸਲ ਕੱਟਣੇ
ਹੁਣ ਖੁਸ਼ੀ ਹੋਵੇਗੀ
ਵਾਹ, ਵਿਸਾਖੀ ਦਾ ਤਿਉਹਾਰ ਆ ਗਿਆ!
ਆਓ, ਹਰ ਚੀਜ਼ ਦਾ ਜਸ਼ਨ ਮਨਾਓ, ਇਹ ਖੁਸ਼ਰ

Poem On Vaisakhi In Hindi

आपको हमारी कविताओं की कलेक्शन में baisakhi poems english and hindi, baisakhi poem written in punjabi, baisakhi festival poem in hindi, baisakhi festival poem, आदि से सम्बंधित जानकारी मिलेगी|

Poem on baisakhi in hindi language

विसाखी ! तेरी बुक्कल दे विच,
छुपियां होईआं कई गल्लां नी ।
किते गभ्भरू पाउंदे भंगड़े ने,
किते कुरबानी दियां छल्लां नी ।
खड़ा गोबिन्द सानूं दिसदा ए,
गल्ल जिसदी नूं कन्न सुन रहे ने ।
खिंडरे-पुंडरे होए पंथ विच्चों,
कुझ लाल अमोलक चुन रहे ने ।
जिन्हां रुड़्हदे जांदे धरम ताईं,
पा दित्तियां सन ठल्लां नी ।
याद आवे बाग़ जल्ल्हआंवाला,
जित्थे हड़्ह सन ख़ून वगा दित्ते ।
आज़ादी दे शोले होर सगों,
उस ख़ून दी लाली मघा दित्ते ।
ख़ून डुल्हआ जो परवान्यां दा,
उसने पाईआं तरथल्लां नी ।
अज्ज वज्जदे किधरे ढोल सुणन,
किसान पए भंगड़े पाउंदे ने ।
मुट्यारां दे गिद्धे लोकां दे,
सोहल दिलां ताईं हिलाउंदे ने ।
इस खुशी दी लोर मेरा जिय करदा,
अज्ज नीर वांग वह चल्लां नी ।

Baisakhi Poem in Hindi – Baisakhi Kavita in Hindi

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फसलां दी कटाई है
गिद्धा पा कुड़िये
बैसाखी आई है
मुंडिया तू गाके विखा
गिद्धा पावांगी
पहले तू भंगड़ा पा
भावें मैं हाँ लंगड़ा
डुल-डुल जावेंगी
ले,वेख मेरा भंगड़ा
मस्ती विच बस्ती है
वाह री बैसाखी
बस्ती विच मस्ती है
ठंडा – ठंडा जल हो
बैसाखी दा हर
सोहणा-सोहणा पल हो
हो चानण ही चानण
अज दे शुभ दिन ते
लोकी खुशियां मानण
नित-नित बैसाखी हो
देस बणे निरभय
लोकां दी राखी हो

Hindi Poem on Baisakhi Festival

बैसाखी पर कविता

धरती के आँचल में
सजी हैं स्वर्ण रश्मियाँ
खेतों में आज
बिखरा है सोना
जिसे देख कर महका
कृषक मन का कोना-कोना
किया धरती ने सोलह श्रृंगार
चमचमाते नयन बार-बार
धानी चूनर में मोती सजे हैं
ढोल ताशे और बाजे बजे हैं
दिल की वीणा के झंकृत हैं तार
झूमें गाए है मन बार-बार
हुए आँखों के सपने साकार
फिर से जागी उम्मीदें हज़ार
अब प्रिया भी हुई है उदार
लेके आए वो सोने का हार
उनके गालों की रंगत जो देखूँ
बिन पिए ही चढे है खुमार
तेरी पूरी करूँ हर तमन्ना
दे- दे मुझको तू बाँहों के हार
आज दिल में उमंगें वो छाई
देखा नयनों में उनकी जो प्यार
आओ झूमें नाचें और गाएँ
रोज आती नहीं ये बहार

बैसाखी पर्व पर कविता

जदों कोई गल्ल करदा ए सिरलत्थे वीरां दी,
जदों कोई गल्ल करदा ए छाती खुभ्भे तीरां दी,
जदों कोई गल्ल करदा ए नंगियां शमशीरां दी,
अक्खां लाल हो जावन, दिलीं रोह ल्याउंदी ए ।
विसाखी याद आउंदी ए विसाखी याद आउंदी ए ।
जदों कोई गल्ल करदा ए तेग़ नचदी जवानी दी,
जदों कोई गल्ल करदा ए गुरू लई कुरबानी दी,
जदों कोई गल्ल करदा ए पुत्तरां दे दानी दी ।
सिर शरधा च झुकदा ए गुन ज़ुबान गाउंदी ए ।
विसाखी याद आउंदी ए विसाखी याद आउंदी ए ।
जदों कोई गल्ल करदा ए ज़ुलमां दे वेले दी,
जदों कोई गल्ल करदा ए शहीदी दे मेले दी,
जदों कोई गल्ल करदा ए सच्चे गुर-चेले दी ।
दिल फड़फड़ाउंदा ए रूहीं जान पाउंदी ए ।
विसाखी याद आउंदी ए विसाखी याद आउंदी ए ।
जदों कोई गल्ल करदा ए बाग़ चल्ली गोली दी,
जदों कोई गल्ल करदा ए खेडी ख़ूनी होली दी,
जदों कोई गल्ल करदा ए किदां जिन्द घोली दी ।
सूरे कुरबान हुन्दे ने आज़ादी हीर आउंदी ए।
विसाखी याद आउंदी ए विसाखी याद आउंदी ए ।

Poem on Baisakhi in Tamil

நீட்டி, கண்களைத் தேய்த்து,
ஒரு பரந்த ஆச்சரியத்துடன், நான் என் நுரையீரலை நிரப்புகிறேன்
புல்வெளிகளின் புத்துணர்ச்சியுடன்.
பறவைகளின் சிட்டர் உரையாடல்
மெதுவாக காற்றை நிரப்புகிறது
மூ மூவுடன் மிகவும் அன்பே.
ஒரு சரியான இயற்கை குறிப்பு
திடீரென்று உடைகிறது
படிப்படியாக நீர் உந்தி
மெதுவாக செய்தபின் கலத்தல்
டிரம்ஸின் தாள ஒலி,
அதன் வேகத்தை அதிகரிக்கும்
இனிப்பு நடனம் கன்னிப்பெண்கள்
அதே நேரத்தில்
அவற்றின் சுமையை துல்லியமாக சமநிலைப்படுத்துகிறது.
ஒரு தற்காலிக இடைநிறுத்தம் பின்னர்
அவற்றின் டிரின்கெட்டுகளுடன் ஏகபோகத்தை உடைத்தல்
தூசியை உதைத்தல், துடிப்பு முடித்தல்
உரத்த கிரெசெண்டோவில்.
வண்ணமயமான துப்பட்டா பாயும்
ஒளியுடன் கலத்தல்
பாரிய விரிவாக்கம்
மஞ்சள், பாயும், தாள புலங்கள்
இந்த குளிர்ந்த தென்றல் காலையில் நிரப்பவும்.
புதிய சீசன் வந்துவிட்டது. .

Vaisakhi da mela poem in Punjabi

ਰੋਜ਼ ਵਾਂਗ ਜਾਂ ਨਵਾਂ ਦਿਨ ਚੜ੍ਹਿਆ,
ਤਿੱਥ ਬਦਲੀ ਤੇ ਅੱਖਾਂ ਖੋਲ੍ਹੀਆਂ ਮੈਂ ।
ਪੰਛੀ ਆਪੋ ਆਪਣੇ ਸੁਰ ਕੱਢਣ,
ਸਮਝਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਪਿਆਰੀਆਂ ਬੋਲੀਆਂ ਮੈਂ ।
ਕੋਇਲ ਅੰਬ ਦੀ ਟਹਿਣੀ ਤੇ ਕੂਕ ਰਹੀ ਸੀ,
ਬੁਲਬੁਲ ਗਾਵੇ ਗੁਲਾਬ ਦੇ ਕੋਲ ਬੈਠੀ ।
ਪਿੰਡ ਤੱਕੇ ਤਾਂ ਸਭ ਥਾਂ ਦਿਸ ਪਈ,
ਕੋਈ ਸਵਾਣੀ ਵੀ ਚਾਟੀ ਦੇ ਕੋਲ ਬੈਠੀ ।

ਸੋਨ-ਰੰਗੀਆਂ ਕਣਕਾਂ ਝੂਮ ਰਹੀਆਂ,
ਵੇਖ ਵੇਖ ਜੱਟ ਖੀਵਾ ਹੋਈ ਜਾਵੇ ।
ਆਉਣੀ ਫ਼ਸਲ ਤੇ ਏਸਦਾ ਕੀ ਕਰਨਾ,
ਬੈਠਾ ਸੱਧਰਾਂ ਹਾਰ ਪਰੋਈ ਜਾਵੇ ।
ਬੱਚੇ ਖ਼ੁਸ਼ ਸਨ ਮੇਲੇ ਜਾਵਣਾ ਏਂ,
ਘਰ ਹੋਰ ਵੀ ਕਿੰਨਾਂ ਸਾਮਾਨ ਬਣਨਾ ।
ਬੱਸ ਖਾਣ ਦੀਆਂ ਡੰਝਾਂ ਲਾਹਣੀਆਂ ਨੇ,
ਕੋਈ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਅੱਜ ਹੋਰ ਕਰਨਾ ।

ਜਾਂ ਪੁਰੀ ਅਨੰਦ ਨੂੰ ਵੇਖਿਆ ਮੈਂ,
ਕੱਠ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਅਪਰ ਅਪਾਰ ਦਿੱਸੇ ।
ਬੜੇ ਗਹੁ ਨਾਲ ਤੱਕਿਆ ਸਭ ਪਾਸੇ,
ਮੇਲੇ ਵਾਲਾ ਨਾ ਇੱਥੇ ਕੋਈ ਆਹਰ ਦਿੱਸੇ ।
ਮੈਂ ਵੀ ਸੋਚਿਆ ਚਲੋ ਮੈਂ ਸੁਣ ਆਵਾਂ,
ਲੋਕ ਕੀ ਕੁਝ ਕਹਿ ਕਹਾ ਰਹੇ ਨੇ ।
ਕੋਈ ਕੰਮ ਦੀ ਗੱਲ ਵੀ ਕਰ ਰਹੇ ਨੇ,
ਜਾਂ ਐਵੇਂ ਕਾਵਾਂ ਰੌਲੀ ਪਾ ਰਹੇ ਨੇ ।

ਇੱਕ ਆਖਦਾ, ‘ਧਰਮਿਆਂ ਦੱਸ ਤਾਂ ਸਹੀ,
ਗੁਰਾਂ ਕਿਸ ਕੰਮ ਸਾਨੂੰ ਬੁਲਾਇਆ ਏ ?
ਮੈਨੂੰ ਲੱਗਦਾ ਅੱਜ ਤਾਂ ਏਸ ਥਾਂ ‘ਤੇ,
ਸਾਰਾ ਮੁਲਕ ਹੀ ਚੱਲਕੇ ਆਇਆ ਏ ।’
ਧਰਮਾਂ ਬੋਲਿਆ, ‘ਮੈਨੂੰ ਵੀ ਪਤਾ ਕੁਝ ਨਹੀਂ,
ਚਲੋ ਵਿੱਚ ਦਰਬਾਰ ਦੇ ਚੱਲਦੇ ਹਾਂ ।
ਗੁਰੂ ਕਹਿਣ ਜੋ ਅਸੀਂ ਵੀ ਸੁਣ ਲਈਏ,
ਨੇੜੇ ਤਖਤ ਦੇ ਜਗ੍ਹਾ ਕੋਈ ਮੱਲਦੇ ਹਾਂ ।’

ਨਿਕਲ ਤੰਬੂਓਂ ਗੁਰੂ ਜੀ ਬਾਹਰ ਆਏ,
ਹੱਥ ਤੇਗ਼ ਨੰਗੀ ਮੱਥੇ ਤੇਜ਼ ਦਗਦਾ ।
ਗੁਰਾਂ ਵੱਲ ਜਦ ਸਭਨਾਂ ਨਿਗਾਹ ਕੀਤੀ,
ਵੇਖਣ ਚਿਹਰੇ ‘ਤੇ ਸੂਹਾ ਦਰਿਆ ਵਗਦਾ ।
ਫਤਿਹ ਕਰ ਸਾਂਝੀ ਕਿਹਾ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ,
‘ਸਿੱਖੋ ! ਜ਼ੁਲਮ ਦੀ ਕਾਂਗ ਚੜ੍ਹ ਆ ਰਹੀ ਏ ।
ਇਹ ਭੂਤਰੇ ਪਸ਼ੂ ਦੇ ਵਾਂਗ ਹੋਈ,
ਬੇਦੋਸ਼ੇ-ਮਜ਼ਲੂਮ ਇਹ ਖਾ ਰਹੀ ਏ ।

ਜੇਕਰ ਏਸ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਨਾ ਨੱਥ ਪਾਈ,
ਇਹਨੇ ਧਰਮ ਦਾ ਰੁੱਖ ਮਰੁੰਡ ਜਾਣਾ ।
ਫਲ, ਫੁੱਲ, ਪੱਤੇ ਇਹਨੇ ਖਾ ਜਾਣੇ,
ਬਾਕੀ ਬਚਿਆ ਮੁਲਕ ਰਹਿ ਟੁੰਡ ਜਾਣਾ ।
ਇਹ ਤਲਵਾਰ ਹੀ ਇਹਨੂੰ ਬਚਾ ਸਕਦੀ,
ਅਸਾਂ ਏਸਦੇ ਨਾਲ ਵਿਚਾਰ ਕੀਤੀ ।
ਨੱਕ ਜ਼ੁਲਮ ਦਾ ਏਸਨੇ ਵੱਢਣੇ ਲਈ,
ਪਹਿਲਾਂ ਆਪ ਹੈ ਸਿਰ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ।

ਉੱਠੋ ਸੂਰਮਾ ਕੋਈ ਕਰੋ ਮੰਗ ਪੂਰੀ,
ਨੱਕਾ ਜ਼ੁਲਮ ਦੇ ਹੜ੍ਹ ਤੇ ਲਾਵਣੇ ਲਈ ।
ਪਹਿਲਾਂ ਤਲੀ ‘ਤੇ ਸਿਰ ਤਾਂ ਰੱਖ ਲਈਏ,
ਫੇਰ ਲੜਾਂਗੇ ਧਰਮ ਬਚਾਵਣੇ ਲਈ ।’
ਗੁਰਾਂ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਸਾਰੇ ਚੁੱਪ ਛਾਈ,
ਭਰਿਆ ਪੰਡਾਲ ਜਾਪੇ ਭਾਂ-ਭਾਂ ਕਰਦਾ ।
ਧਰਮੀ-ਰੁੱਖ ਸੜ ਰਿਹਾ ਦੁਪਹਿਰ ਤਿੱਖੀ,
ਵੇਖੋ ਕੌਣ ਹੈ ਸਿਰ ਦੀ ਛਾਂ ਕਰਦਾ ।

ਘੜੀ ਲੰਘੀ ਤਾਂ ਸਿੱਖ ਇੱਕ ਖੜਾ ਹੋਇਆ,
ਉਹਨੂੰ ਤੰਬੂ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਲਿਜਾਂਵਦੇ ਨੇ ।
ਲਹੂ ਨੁੱਚੜਦੀ ਹੱਥ ਤਲਵਾਰ ਲੈ ਕੇ,
ਉਹਨੀਂ ਪੈਰੀਂ ਫਿਰ ਪਰਤਕੇ ਆਂਵਦੇ ਨੇ ।
ਗੁਰਾਂ ਦੂਸਰੇ ਸਿਰ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ,
ਕਈ ਖਿਸਕ ਕੇ ਮਹਿਲਾਂ ਨੂੰ ਜਾਣ ਲੱਗੇ ।
ਕਈ ਉੱਥੇ ਹੀ ਨੀਵੀਆਂ ਪਾਈ ਬੈਠੇ,
ਵਿੱਚ ਹੱਥਾਂ ਦੇ ਮੂੰਹ ਲੁਕਾਣ ਲੱਗੇ ।

ਕਈ ਸੋਚਦੇ ਪਿਆਰਿਆਂ ਪੁੱਤਰਾਂ ਤੋਂ,
ਕਿਉਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਮੁਕਾ ਰਹੇ ਨੇ ।
ਤੇਗ਼ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕਾਲੀ ਦੀ ਜੀਭ ਲੱਗੇ,
ਗੁਰੂ ਜਿਸਦੀ ਪਿਆਸ ਬੁਝਾ ਰਹੇ ਨੇ ।
ਪੰਜ ਵਾਰ ਇੰਜ ਗੁਰਾਂ ਨੇ ਮੰਗ ਕੀਤੀ,
ਪੰਜ ਸਿੱਖ ਕੁਰਬਾਨੀ ਲਈ ਖੜੇ ਹੋਏੇ ।
ਇਹੋ ਜਿਹਾ ਕੌਤਕ ਮੈਂ ਵੀ ਵੇਖਿਆ ਨਾ,
ਭਾਵੇਂ ਜੱਗ ਵਿੱਚ ਕੌਤਕ ਬੜੇ ਹੋਏ ।

ਥੋੜ੍ਹਾ ਸਮਾਂ ਲੰਘਾ ਗੁਰੂ ਪਏ ਨਜ਼ਰੀਂ,
ਪੰਜੇ ਸਿੱਖ ਪਿੱਛੇ ਟੁਰੇ ਆਂਵਦੇ ਨੇ ।
ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਭਨਾਂ ਹਥਿਆਰ ਸਜਾ ਰੱਖੇ,
ਦਸਤਾਰੇ ਵੀ ਸਿਰੀਂ ਸੁਹਾਂਵਦੇ ਨੇ ।
ਜਲ ਬਾਟੇ ਦੇ ਵਿੱਚ ਪਵਾ ਸਤਿਗੁਰ,
ਉਹਨੂੰ ਖੰਡੇ ਦੇ ਨਾਲ ਹਿਲਾਂਵਦੇ ਨੇ ।
ਨੂਰੋ-ਨੂਰ ਚਿਹਰਾ ਪਿਆ ਚਮਕ ਮਾਰੇ,
ਮੁੱਖੋਂ ਆਪਣੇ ਬਾਣੀ ਅਲਾਂਵਦੇ ਨੇ ।

ਏਨੇ ਚਿਰ ਨੂੰ ਮਾਤਾ ਜੀ ਪਹੁੰਚ ਗਏ,
ਪਾਣੀ ਵਿੱਚ ਪਤਾਸੇ ਮਿਲਾਂਵਦੇ ਨੇ ।
ਗੁਰਾਂ ਨਜ਼ਰ ਭਰ ਤੱਕਿਆ ਉਹਨਾਂ ਵੱਲੇ,
ਚਿਹਰੇ ਉੱਤੇ ਮੁਸਕਾਨ ਲਿਆਂਵਦੇ ਨੇ ।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਤਿਆਰ ਹੋਇਆ ਸਤਿਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ,
ਪੰਜਾਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਛਕਾ ਦਿੱਤਾ ।
ਭਾਵੇਂ ਕੋਈ ਕਿਸੇ ਦੇਸ਼-ਭੇਖ ਦਾ ਸੀ,
ਸਭਨੂੰ ਖਾਲਸੇ ਸਿੰਘ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ।

ਫੇਰ ਪੰਜਾਂ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਜੀ ਆਪ ਕਿਹਾ,
‘ਮੈਨੂੰ ਖਾਲਸੇ ਵਿੱਚ ਰਲਾਓ ਸਿੰਘੋ ।
ਭੇਦ ਗੁਰੂ ਤੇ ਚੇਲੇ ਦਾ ਮੇਟ ਦੇਈਏ,
ਤੁਸੀਂ ਮੈਨੂੰ ਵੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਛਕਾਓ ਸਿੰਘੋ ।’
ਸਾਰਾ ਦਿਨ ਹੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਦੀ ਹੋਈ ਵਰਖਾ,
ਚੜ੍ਹੀਆਂ ਲਾਲੀਆਂ ਸਭਨਾਂ ਚੇਹਰਿਆਂ ‘ਤੇ ।
ਗੁਰਾਂ ਸਭਨਾਂ ਤਾਈਂ ਸਮਝ ਦਿੱਤਾ,
ਜ਼ੁਲਮ ਰੁਕੇ ਨਾ ਅੱਥਰੂ ਕੇਰਿਆਂ ‘ਤੇ ।

ਚਿੜੀਆਂ ਬਾਜ਼ਾਂ ਦਾ ਰੂਪ ਧਾਰ ਲਿਆ,
ਗਿੱਦੜ ਸ਼ੇਰ ਬਣ ਭਬਕਾਂ ਮਾਰਦੇ ਨੇ ।
ਮੇਰੇ ਮਨ ਨੂੰ ਇਹ ਯਕੀਨ ਹੋਇਆ,
ਹੁਣ ਨਾ ਸੂਰਮੇ ਜ਼ੁਲਮ ਤੋਂ ਹਾਰਦੇ ਨੇ ।
ਜਦੋਂ ਆਪਣੇ ਬਾਰੇ ਸੋਚਿਆ ਮੈਂ,
ਮੇਰੀ ਛਾਤੀ ਵੀ ਮਾਣ ਦੇ ਨਾਲ ਤਣ ਗਈ ।
ਪਹਿਲਾਂ ਰੁੱਤ ਦਾ ਇਕ ਤਿਉਹਾਰ ਸਾਂ ਮੈਂ,
ਹੁਣ ਖਾਲਸੇ ਦਾ ਜਨਮ-ਦਿਨ ਬਣ ਗਈ ।

Vaisakhi poem

जब बजे ढोल, नाचे कृषक

झूमी फसलें, उर में पुलक !

‘नब बर्ष’ हुआ बंगाल में जब

‘पुत्तांडु’ तमिल मनायें सब

केरल में है ‘पूरम विशु’

आसाम में ‘रंगाली बीहू’ !

गुरूद्वारों में रौनक छायी

तब प्यारी बैसाखी आयी !

धूम मचाती भाती हर मन

जन्म खालसा हुआ इसी दिन

अमृत छका पंच प्यारों ने

गुरुसाहब की याद दिलाने

भंगड़ा गिद्दा होड़ लगाते

घर बाहर रोशन हो जाते !

सब के मन पर मस्ती छायी

तब प्यारी बैसाखी आयी !

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