भारत के इतिहास में कई ऐसे राजा और रानियां थी जिनकी वीरता की गाथा आज भी सुनाई जाती हैं| इतिहास में बहुत से वीर और पराक्रमी पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, रानी लक्ष्मी बाई आदि जैसे वीर थे जिन्होंने अपनी प्रजा और अपने परिवार को बचाने के कारण बहुत त्याग और परिश्रम किआ था| चाहे आप मराठा को ले लीजिए या राजपूत इतिहास में ऐसे विरो की गाथा सुनकर आज भी इन्हे शत शत नमन करने का दिल करता हैं| आज इस पोस्ट में हम ऐसे ही दो वीर भाई आल्हा-ऊदल की गाथा, आल्हा-ऊदल स्टोरी, आल्हा-ऊदल और पृथ्वीराज, आल्हा-ऊदल जंग की जानकारी लाए हैं|
आल्हा ऊदल की लड़ाई
आल्हा ऊदल बुन्देलखण्ड राज्य के महोबा के दो वीर योद्धा थे जिनकी वीरता की कहानी आज भी सुनाई जाती हैं| आज भी जब भी हम इतिहास के विरो की बात करते हैं तो उनमे से इन दोनों का नाम भी आता हैं| बुन्देलखण्ड की पावन धरती पर आज भी इनकी वीरता को याद किया जाता हैं| इन दोनों का जन्म बुन्देलखण्ड के महोबा में हुआ था| यह दोनों भाई बचपन से ही भौतिक ज्ञान और शास्ता ज्ञान दोनों में उत्तीण थे| खा जाता हैं की यह दोनों पांडवो में से युधिस्ठिर और भीम के अवतार थे|
आल्हा ऊदल की लड़ाई डाउनलोड
कहा जाता हैं की आल्हा देवी माँ के भक्त थे और बचपन से उनकी पूजा करते थे| एक बार उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर माँ ने उन्हें पराक्रम और अमर होने का वरदान दिया| दोनों भाई बचपन से ही युद्ध में माहिर थे उन्होंने अपने जीवन काल में करीब 50 से ज्यादा लड़ाई करि थी जिसमे से वे साड़ी जीते थे| बुन्देलखण्ड के यह दोनों भाई की एक्ला की आज भी मिसाल दी जाती हैं| जब भी एक भाई मुसीबत में पड़ता था तो दूसरा भाई उसकी ढाल बनकर उसकी रक्षा करता था| उन दोनों का जन्म 12 विक्रमी शताव्दी में हुआ था| कह जाता हैं की यह शताव्दी वीरो की शताव्दी थी| पृथ्वी राज से लेकर माहाराणा प्रताप तक सब का जन्म इसी शताव्दी में हुआ था| उस सदी के एक कवी जगनिक की एक कविता आल्हा खण्ड में उन दोनों भाइयो की वीरता की सारे किस्से और उनकी साड़ी 52 लड़ाइयों का वर्णन हैं|
आल्हा की तलवार
कहा जाता हैं की इन दोनों की आंखरी लड़ाई पृथ्वीराज चौहान से हुई थी| पृथ्वीराज उस समय दिल्ली के शासक थे| वो भी एक उचच कोटि के निडर योद्धा थे| कहा जाता हैं की पृथ्वीराज और आल्हा ऊदल के बीच में बहुत रोमांचक और बहुत भयानक युद्ध हुआ जिसमे उन्होंने दोनों में से एक भाई ऊदल की हत्या कर दी| अपने भाई आल्हा की रक्षा करने के कारण वो वीरगति को प्राप्त हो गए| इसके बाद उद्दार ने अपने भाई की मौत का बदला पृथ्वीराज चौहान को पराजित करके लिया| आल्हा माँ के भक्त थे इसी के कारण उन्होंने पृथ्वीराज चौहान को जीवित छोड़ दिया| यह युद्ध उनकी जीवन का आखरी युद्ध था| इसके बाद उन्होंने सान्या लेकर माँ की भक्ति में लीन हो गए| कहा जाता हैं की आज भी बुन्देलखण्ड के माँ के मंदिर में आल्हा की मौजूदगी महसूस की जाती है और जैसे ही मंदिर के कपाट बंद को जाते हैं तो रात्रि में आल्हा आकर माँ की पूजा करते हैं| क्योकि उन्हें अमर होने का वरदान था इसलिए बुन्देलखण्ड के कुछ लोग आज भी मानते हैं की वे जिन्दा हैं|