भगत सिंह पर कविता 2022 – Bhagat Singh Poems in Hindi & Poetry – Bhagat Singh Kavita in Hindi

भगत सिंह पर कविता

बस 23 साल की उम्र में अपने देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर देने वाले भगत सिंह का नाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में सबसे पहले लिया जाता है | भारत की आज़ादी की लड़ाई में भगत सिंह का बहुत बड़ा योगदान रहा है | उस समय में वह सभी नौजवानों के लिए युथ आइकॉन थे जो उन्हें देश के के लिए कुछ कर गुजरने और देश के प्रति अपना योगदान प्रदान करने की प्रेरणा देते थे | भगत सिंह का जन्म सिख परिवार में हुआ और बचपन से ही इन्होने अपने आस पास अंग्रेजो द्वारा भरियों पर अत्याचार होता हुआ देखा था और तभी से इनके मन में देश के लिए कुछ करने की ज्वाला जाग गई थी | ये कविता खासकर कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए दिए गए है|

 

Bhagat Singh Poetry in Hindi

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मर्द-ए-मैदां चल दिया सरदार, तेईस मार्च को ।
मान कर फ़ांसी गले का हार, तेईस मार्च को।
आसमां ने एक तूफ़ान वरपा कर दिया,
जेल की बनी ख़ूनी दीवार, तेईस मार्च को।
शाम का था वक्त कातिल ने चराग़ गुल कर दिया,
उफ़ ! सितम, अफ़सोस, हा ! दीदार, तेईस मार्च को।
तालिब-ए-दीदार आए आख़री दीदार को,
हो सकी राज़ी न पर सरकार, तेईस मार्च को।
बस, ज़बां ख़ामोश, इरादा कहने का कुछ भी न कर,
ले हाथ में कातिल खड़ा तलवार, तेईस मार्च को।
ऐ कलम ! तू कुछ भी न लिख सर से कलम हो जाएगी,
गर शहीदों का लिखा इज़हार, तेईस मार्च को।
जब ख़ुदा पूछेगा फिर जल्लाद क्या देगा जवाब,
क्या ग़ज़ब किया है तूने सरकार, तेईस मार्च को।
कीनवर कातिल ने हाय ! अपने दिल को कर ली थी,
ख़ून से तो रंग ही ली तलवार, तेईस मार्च को।
हंसते हंसते जान देते देख कर ‘कुन्दन’ इनहें,
पस्त हिम्मत हो गई सरकार, तेईस मार्च को।

भगत सिंह जन्म दिवस पर कविता

सख़तियों से बाज़ आ ओ आकिमे बेदादगर,
दर्दे-दिल इस तरह दर्दे-ला-दवा हो जाएगा ।

बाएसे-नाज़े-वतन हैं दत्त, भगत सिंह और दास,
इनके दम से नखले-आज़ादी हरा हो जाएगा ।

तू नहीं सुनता अगर फर्याद मज़लूमा, न सुन,
मत समझ ये भी बहरा ख़ुदा हो जाएगा ।

जोम है कि तेरा कुछ नहीं सकते बिगाड़,
जेल में गर मर भी गए तो क्या हो जाएगा ।

याद रख महंगी पड़ेगी इनकी कुर्बानी तुझे,
सर ज़मीने-हिन्द में महशर बपा हो जाएगा ।

जां-ब-हक हो जाएंगे शिद्दत से भूख-ओ-प्यास की,
ओ सितमगर जेलख़ाना कर्बला हो जाएगा ।

ख़ाक में मिल जाएगा इस बात से तेरा वकार,
और सर अकवा में नीचा तेरा हो जाएगा ।

भगत सिंह की कविता

आज लग रहा कैसा जी को कैसी आज घुटन है
दिल बैठा सा जाता है, हर साँस आज उन्मन है
बुझे बुझे मन पर ये कैसी बोझिलता भारी है
क्या वीरों की आज कूच करने की तैयारी है?

हाँ सचमुच ही तैयारी यह, आज कूच की बेला
माँ के तीन लाल जाएँगे, भगत न एक अकेला
मातृभूमि पर अर्पित होंगे, तीन फूल ये पावन,
यह उनका त्योहार सुहावन, यह दिन उन्हें सुहावन।

फाँसी की कोठरी बनी अब इन्हें रंगशाला है
झूम झूम सहगान हो रहा, मन क्या मतवाला है।
भगत गा रहा आज चले हम पहन वसंती चोला
जिसे पहन कर वीर शिवा ने माँ का बंधन खोला।

झन झन झन बज रहीं बेड़ियाँ, ताल दे रहीं स्वर में
झूम रहे सुखदेव राजगुरु भी हैं आज लहर में।
नाच नाच उठते ऊपर दोनों हाथ उठाकर,
स्वर में ताल मिलाते, पैरों की बेड़ी खनकाकर।

पुनः वही आलाप, रंगें हम आज वसंती चोला
जिसे पहन राणा प्रताप वीरों की वाणी बोला।
वही वसंती चोला हम भी आज खुशी से पहने,
लपटें बन जातीं जिसके हित भारत की माँ बहनें।

उसी रंग में अपने मन को रँग रँग कर हम झूमें,
हम परवाने बलिदानों की अमर शिखाएँ चूमें।
हमें वसंती चोला माँ तू स्वयं आज पहना दे,
तू अपने हाथों से हमको रण के लिए सजा दे।

सचमुच ही आ गया निमंत्रण लो इनको यह रण का,
बलिदानों का पुण्य पर्व यह बन त्योहार मरण का।
जल के तीन पात्र सम्मुख रख, यम का प्रतिनिधि बोला,
स्नान करो, पावन कर लो तुम तीनो अपना चोला।

झूम उठे यह सुनकर तीनो ही अल्हण मर्दाने,
लगे गूँजने और तौव्र हो, उनके मस्त तराने।
लगी लहरने कारागृह में इंक्लाव की धारा,
जिसने भी स्वर सुना वही प्रतिउत्तर में हुंकारा।

खूब उछाला एक दूसरे पर तीनों ने पानी,
होली का हुड़दंग बन गई उनकी मस्त जवानी।
गले लगाया एक दूसरे को बाँहों में कस कर,
भावों के सब बाँढ़ तोड़ कर भेंटे वीर परस्पर।

मृत्यु मंच की ओर बढ़ चले अब तीनो अलबेले,
प्रश्न जटिल था कौन मृत्यु से सबसे पहले खेले।
बोल उठे सुखदेव, शहादत पहले मेरा हक है,
वय में मैं ही बड़ा सभी से, नहीं तनिक भी शक है।

तर्क राजगुरु का था, सबसे छोटा हूँ मैं भाई,
छोटों की अभिलषा पहले पूरी होती आई।
एक और भी कारण, यदि पहले फाँसी पाऊँगा,
बिना बिलम्ब किए मैं सीधा स्वर्ग धाम जाऊँगा।

बढ़िया फ्लैट वहाँ आरक्षित कर तैयार मिलूँगा,
आप लोग जब पहुँचेंगे, सैल्यूट वहाँ मारूँगा।
पहले ही मैं ख्याति आप लोगों की फैलाऊँगा,
स्वर्गवासियों से परिचय मैं बढ, चढ़ करवाऊँगा।

तर्क बहुत बढ़िया था उसका, बढ़िया उसकी मस्ती,
अधिकारी थे चकित देख कर बलिदानी की हस्ती।
भगत सिंह के नौकर का था अभिनय खूब निभाया,
स्वर्ग पहुँच कर उसी काम को उसका मन ललचाया।

भगत सिंह ने समझाया यह न्याय नीति कहती है,
जब दो झगड़ें, बात तीसरे की तब बन रहती है।
जो मध्यस्त, बात उसकी ही दोनों पक्ष निभाते,
इसीलिए पहले मैं झूलूं, न्याय नीति के नाते।

यह घोटाला देख चकित थे, न्याय नीति अधिकारी,
होड़ा होड़ी और मौत की, ये कैसे अवतारी।
मौत सिद्ध बन गई, झगड़ते हैं ये जिसको पाने,
कहीं किसी ने देखे हैं क्या इन जैसे दीवाने?

मौत, नाम सुनते ही जिसका, लोग काँप जाते हैं,
उसको पाने झगड़ रहे ये, कैसे मदमाते हें।
भय इनसे भयभीत, अरे यह कैसी अल्हण मस्ती,
वन्दनीय है सचमुच ही इन दीवानो की हस्ती।

मिला शासनादेश, बताओ अन्तिम अभिलाषाएँ,
उत्तर मिला, मुक्ति कुछ क्षण को हम बंधन से पाएँ।
मुक्ति मिली हथकड़ियों से अब प्रलय वीर हुंकारे,
फूट पड़े उनके कंठों से इन्क्लाब के नारे ।

इन्क्लाब हो अमर हमारा, इन्क्लाब की जय हो,
इस साम्राज्यवाद का भारत की धरती से क्षय हो।
हँसती गाती आजादी का नया सवेरा आए,
विजय केतु अपनी धरती पर अपना ही लहराए।

और इस तरह नारों के स्वर में वे तीनों डूबे,
बने प्रेरणा जग को, उनके बलिदानी मंसूबे।
भारत माँ के तीन सुकोमल फूल हुए न्योछावर,
हँसते हँसते झूल गए थे फाँसी के फंदों पर।

हुए मातृवेदी पर अर्पित तीन सूरमा हँस कर,
विदा हो गए तीन वीर, दे यश की अमर धरोहर।
अमर धरोहर यह, हम अपने प्राणों से दुलराएँ,
सिंच रक्त से हम आजादी का उपवन महकाएँ।

जलती रहे सभी के उर में यह बलिदान कहानी,
तेज धार पर रहे सदा अपने पौरुष का पानी।
जिस धरती बेटे हम, सब काम उसी के आएँ,
जीवन देकर हम धरती पर, जन मंगल बरसाएँ।

देशभक्ति कविता भगत सिंह पर

दाग़ दुश्मन का किला जाएँगे, मरते मरते ।
ज़िन्दा दिल सब को बना जाएंगे, मरते मरते ।
हम मरेंगे भी तो दुनिया में ज़िन्दगी के लिये,
सब को मर मिटना सिखा जाएंगे, मरते मरते ।
सर भगत सिंह का जुदा हो गया तो क्या हुया,
कौम के दिल को मिला जाएंगे, मरते मरते ।
खंजर -ए -ज़ुल्म गला काट दे परवाह नहीं,
दुक्ख ग़ैरों का मिटा जाएंगे, मरते मरते ।
क्या जलाएगा तू कमज़ोर जलाने वाले,
आह से तुझको जला जाएंगे, मरते मरते ।
ये न समझो कि भगत फ़ांसी पे लटकाया गया,
सैंकड़ों भगत बना जाएंगे, मरते मरते ।

Bhagat Singh Poem in Punjabi

ਸੁਖਦੇਵ, ਭਗਤ ਸਿੰਘ, ਰਾਜਗੁਰੂ, ਆਜ਼ਾਦੀ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਭਾਵਵਾਨ ਸਨ,
ਭਾਰਤ ਨੇ ਹੰਸ ਰਾਜ ਹੰਸ ਦੀ ਫਾਂਸੀ ਉੱਤੇ ਲਟਕਾਇਆ

ਉਹ ਮੇਰੇ ਨਹੀਂ ਹਨ, ਉਹ ਅਮਰ ਸ਼ਹੀਦ ਕਹਿਣਗੇ,
ਉਸ ਨੇ ਬਹਾਦਰ ਸ਼ਰਾਬ ਪੀਤੀ ਹੋਈ ਸੀ, ਉਹ ਨਾਇਕਾਂ ਵਿਚ ਸ਼ਰਾਬੀ ਹੋਈ ਸੀ.

ਇਹ ਇੱਛਾ ਉਸ ਮਾਸਟਰ ਤੋਂ ਸੀ, ਉਸਨੇ ਖੇਡ ਨੂੰ ਖੇਡਿਆ ਹੈ,
ਇਹ ਲਿਖਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ਕਿ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਕੁਰਬਾਨ ਕਰ ਦੇਣਾ, ਫਾਂਸੀ ਦੇਣ ਲਈ ਮੁਫ਼ਤ ਬਹਾਨੇ

ਬਰਤਾਨੀਆ ਨੇ ਮੁਆਫੀ ਮੰਗੀ, ਸ਼ਾਇਦ ਇਹ ਜੀਵਨ ਹੋਵੇਗਾ,
ਹੰਸ ਦੇ ਸਾਰੇ ਹੰਸ ਨੇ ਜਵਾਬ ਦਿੱਤਾ, ਹਸ਼ਰ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਦਾਗ਼ ਨਹੀਂ ਸੀ.

ਤੁਸੀਂ ਦਰਦ ਤੇ ਦਰਦ ਤੋਂ ਪੀੜਤ ਹੋ, ਕੁਝ ਅਜਿਹਾ ਕੰਮ ਜੋ ਤੁਸੀਂ ਨਹੀਂ ਆਏ,
ਤੁਹਾਨੂੰ ਆਜ਼ਾਦੀ ਨਹੀਂ ਜਾਣਾ ਪਿਆ, ਤੁਸੀਂ ਮਾਲਕ ਨਾਲ ਬਹਿਸ ਕਰ ਰਹੇ ਸੀ.

ਸੁਖਦੇਵ, ਭਗਤ ਸਿੰਘ, ਰਾਜਗੁਰੂ ਆਜ਼ਾਦੀ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਭਾਵਵਾਨ ਸਨ
ਭਾਰਤ ਨੇ ਹੰਸ ਰਾਜ ਹੰਸ ਦੀ ਫਾਂਸੀ ਉੱਤੇ ਲਟਕਾਇਆ

Bhagat Singh Poem in English

A man courageous and brave,
Had a role in removing the word slave,
From India and freeing it,
From the merciless rule of the British.

He sacrificed his life,
In the struggle to make India free,
A man devoted to his country,
Fought hard and made history.

While he was in jail he started,
A hunger strike and fasted,
For 116 days straight,
Without caring about his fate.

Arrested for the murder,
Of a British police officer,
John Saunders, he was arrested,
Subsequently hanged and convicted.

He was just 23 years of age,
When he was convicted and hanged,
By the merciless British’s rage,
He will be remembered till everlasting days.

When he was hanged,
He just smiled and passed,
Away from this world,
Leaving his revolting words.

A man courageous and brave,
Was not the British’s slave,
Devoted to his country,
He fought hard and made history

Bhagat singh Poem in Hindi Language

हुआ देश का तू दुलारा, भगत सिंह ।
झुके सर तेरे आगे हमारा, भगत सिंह ।

नौजवानों के हेतु हुए आप गांधी,
रहे राष्ट्र के एक गुवारा, भगत सिंह ।

किया काम बेशक है हिंसा का तुम ने,
यही दोष है इक तुम्हारा, भगत सिंह ।

मगर देश हित के लिए जान दे दी,
बढ़ा शान तेरा हमारा, भगत सिंह ।

तेरी देशभक्ति पे सब हैं निछावर,
“अभय” तेरा साहस है न्यारा, भगत सिंह ।

हुआ देश का तू दुलारा, भगत सिंह
झुके सर तेरे आगे हमारा, भगत सिंह ।

 

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