भारत के साहित्यिक इतिहास में कई ऐसे महान और विद्वान कवी और साहित्यकार थे जिन्होंने अपनी रचनाओं से भारत मूल के देशवासियो को प्रोत्साहित और प्रेरित किया| कई ऐसे कवी हैं जिन्हे आज भी लोग उनकी रचनाओं की वजह से जानते हैं और जिनकी कविताए आज भी हमारे दिलो को छू जाती हैं| ऐसे ही एक महान साहित्यकार वासुदेव शरण अग्रवाल थे| वे 90 के दशक के जाने माने निबंध लेखक थे जिन्होंने कई सारे इतिहासिक ग्रंथो का हिंदी और संस्कृत में अनुवाद किया था| आज के इस पोस्ट में हम वासुदेव शरण अग्रवाल के निबंध, शरण अग्रवाल की रचनाए इन संस्कृत आदि की जानकारी देंगे जिसे पढ़कर आपको उनके बारे में अधिक जान्ने को मिलेगा|
वासुदेव शरण अग्रवाल जीवन परिचय इन हिंदी
वासुदेव शरण अग्रवाल भारत के एक जाने माने हिंदी गद्य के रचनाकार थे|
उन्होंने अपनी पूरी जीवन शयलि में लगभग २०० से २५० रचनाए लिखी|
उनका जन्म 6 अप्रैल 1904 में उत्तरप्रदेश के मेरठ जिले में हुआ था|
उनके माता और पिता लखनऊ जिले में रहते थे इसी वजह से उनका बचपन लखनऊ में बीता हैं|
वासुदेव शरण अग्रवाल के माता पिता का नाम क्या था इसके बारे में कोई ज़िक्र नहीं हैं|
बचपन से ही हिंदी साहित्य में उनकी खासी रूचि थी| उन्हें कबीर और रहीम की कविता और श्लोक इतने पसंद आते थे की बचपन में ही उन्होंने खुद ही एक कविता की रचना कर दी|
वासुदेव शरण अग्रवाल की जीवनी
उन्होंने अपनी माता और पिता की छत्रछाया में रहकर लखनऊ विश्वविद्यालय से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की| इसके बाद उन्होंने 1929 में अपनी ऍम.ए पूरी करि| एम.ए करने के बाद उन्होंने 1940 तक मथुरा पुरातत्व संग्रहालय के अध्यक्ष बने रहे| इसके बाद उन्होंने हिंदी साहित्य में 1941 में पी.एच.डी पूरी करि| इसके बाद उन्होंने संन 1947 में दी.लिट् पूरी करि| उस समय के बाद वासुदेव शरण अग्रवाल ने सेंट्रल एशियन एंटिक्विटीज म्यूजियम में सुपरिंटेंडेंट का पद ग्रहण किया|
इसके बाद वे 1951 तक भारतीय पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष बने रहे| 1951 में वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय कॉलेज फॉर इंडोलाॅजी के महाअध्यापक के पद पर नियुक्त हुए| 1952 में उन्हें राधाकुमुद मुखर्जी की ओर से लखनऊ में व्याख्याता आयोजित करि जिसमे उन्होंने शरद अग्रवाल को भी आमंत्रित किया|
वासुदेव शरण अग्रवाल साहित्यिक परिचय
वासुदेव जी ने अपना पूरा जीवन साहित्यिक रचनाओं को संस्कृत ओर हिंदी में लिखने में व्यतीत किया| उनकी भाषा खड़ी हिंदी बोली थी| हिंदी में रचनाए लिखने के साथ साथ उन्हें संस्कृत में निबंध, ग्रन्थ, अध्याय और अनुवाद लिखने का शोक था| उन्होंने अपनी कई प्रचलित कविता या ग्रन्थ को संस्कृत में अनुवाद किया हैं| मेघदूत, हर्षचरित, पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पद्मावत, कादम्बरी, मार्कण्डेय पुराण, कीर्तिलता, भारत सावित्री, Vedic Lectures, Vision in Long Darkness, Hymn of Creation (Nasadiya Sukta), The Deeds of Harsha, Indian Art, India – A Nation, उरु-ज्योति, कल्पवृक्ष, माताभूमि, कला और संस्कृति, भारतीय धर्ममीमांसा उनकी कुछ बहुत ही मशहूर रचनाओं में से एक हैं| संन 1967 में स्वास्थ खराब भोने के कारण उनकी मृत्यु हो गई|