गोस्वामी तुलसीदास हिंदी जगत के एक महान कवि थे इनका जन्म कासगंज जिले के सोरो के शूकरक्षेत्र में हुआ था | तथा इनका जन्म 1511 ईंसवी में हुआ इनकी महान रचनाये रामचरितमानस. हनुमान चालीसा, विनयपत्रिका, दोहावली, कवितावली, वैराग्य सन्दीपनी, जानकी मंगल तथा पार्वती मंगल है | इन्होने कई महान कविताये भी लिखी थी इसीलिए हम आपको तुलसीदास जी द्वारा रचित कविताओं के बारे में बताते है जिन्हे पढ़ कर आप काफी कुछ जान सकते है |
तुलसीदास के पद अर्थ सहित
Tulsida Ke Pad Arth Sahit : तुलसीदास जी द्वारा रचित पदों के बारे में जानने के लिए आप नीचे दी हुई जानकारी को पढ़ सकते है इससे आप तुलसीदास के पद पढ़ सकते है :
कहु केहि कहिय कृपानिधे! भव-जनित बिपति अति।
इंद्रिय सकल बिकल सदा, निज निज सुभाउ रति।1।
जे सुख-संपति, सरग-नरक संतत सँग लागी।
हरि! परिहरि सोइ जतन करत मन मोर अभागी।2।
मैं अति दीन, दयालु देव सुनि मन अनुरागे।
जो न द्रवहु रघुबीर धीर, दुख काहे न लागे।3।
जद्यपि… Share on X
है नीको मेरो देवता कोसलपति राम।
सुभग सरारूह लोचन, सुठि सुंदर स्याम।1।
सिय-समेत सोहत सदा छबि अमित अनंग।
भुज बिसाल सर धनु धरे, कटि चारू निषंग।2।
बलिपूजा चाहत नहीं , चाहत एक प्रीति।
सुमिरत ही मानै भलो, पावन सब रीति।3।
देहि सकल सुख, दुख दहै, आरत-जन… Share on X
कस न करहु करूना हरे! दुखहरन मुरारि!
त्रिबिधताप-संदेह-सोक-संसय-भय-हारि।1।
इक कलिकाल-जनित मल, मतिमंद, मलिन-मन।
तेहिपर प्रभु नहिं कर सँभार, केहि भाँति जियै जन।2।
सब प्रकार समरथ प्रभो, मैं सब बिधि दीन।
यह जिय जानि द्रवौ नहीं, मैं करम बिहीन।3।
भ्रमत अनेक… Share on X
तुलसीदास के पद हिंदी
बीर महा अवराधिये, साधे सिधि होय।
सकल काम पूरन करै, जानै सब कोय।1।
बेगि, बिलंब न कीजिये लीजै उपदेस।
बीज महा मंत्र जपिये सोई, जो जपत महेस।2।
प्रेम-बारि-तरपन भलो, घृत सहज सनेहु।
संसय-समिध, अगिनि-छमा, ममता-बलि देहु।3।
अघ -उचाटि, मन बस करै, मारै मद… Share on X
महाराज रामादर्यो धन्य सोई।
गरूअ, गुनरासि, सरबग्य, सुकृती, सूर, सील,-निधि, साधु तेहि सम न कोई।1।
उपल ,केवट, कीस,भालु, निसिचर, सबरि, गीध सम-दम -दया -दान -हीने।।
नाम लिये राम किये पवन पावन सकल, नर तरत तिनके गुनगान कीने।2।
ब्याध अपराध की सधि राखी कहा,… Share on X
तुलसीदास के दोहे हिंदी में | तुलसीदास की Dohe
अबलौं नसानी, अब न नसैहौं।
राम-कृपा भव-निसा सिरानी, जागे फिरि न डसैहौं।1।
पायेउ नाम चारू चिंतामनि, उर-कर तें न खसैहों।
स्यामरूप सुचि रूचिर कसौटी, चित कंचनहिं कसैहौं।2।
परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिन, निज बस ह्वै न हँसैहौं।
मन-मधुकर पनक तुलसी रघुपति-पद-कमल… Share on X
जानकी-जीवनकी बलि जैहौं।
चित कहै रामसीय-पद परिहरि अब न कहूँ चलि जैहौं।1।
उपजी उर प्रतीति सपनेहुँ सुख, प्रभु-पद-बिमुख न पैहौं।
मन समेत या तनके बासिन्ह, इहै सिखावन दैहौं।2।
श्रवननि और कथा नहिं सुनिहौं, रसना और न गैहौं।
रोकिहौं नसन बिलोकत औरहिं, सीस ईस ही… Share on X
तुलसीदास जी के पद | तुलसीदास Poems
यह बिनती रघुबीर गुसाईं।
और आस-विस्वास-भरोसो, हरो जीव-जड़ताई।1।
चहौं न सुगति, सुमति, संपति कछु, रिधि-सिधि बिपुल बड़ाई।
हेतु-रहित अनुराग राम-पद बढै़ अनुदिन अधिकाई।2।
कुटिल करम लै जाहिं मोहि, जहँ जहँ अपनी बरिआई।
तहँ तहँ जनि छिन छोह छाँड़ियो, कमठ-अंडकी… Share on X
हरि! तुम बहुत अनुग्रह कीन्हों।
साधन-धाम बिबुध दुरलभ तनु, मोहि कृपा करि दीन्हों।1।
कोटहुँ मुख कहि जात न प्रभुके, एक एक उपकार।
तदपि नाथ कछु और माँगिहौं, दीजै परम उदार।2।
बिषय-बारि मन -मीन भिन्न नहिं होत कबहुँ पल एक।
ताते सहौं बिपति अति दारून, जनमत जोनि… Share on X
कवितावली की व्याख्या
Kavitavali Ki Vyakhya : कवितावली तुलसीदास जी द्वारा रचित कविताओं का संग्रह है जिसके माध्यम से आप इसके बारे तुलसीदास जी की कविताओं को पढ़ कर जान सकते है :
अवधेस के द्वारे सकारे गई सुत गोद में भूपति लै निकसे ।
अवलोकि हौं सोच बिमोचन को ठगि-सी रही, जे न ठगे धिक-से ॥
'तुलसी' मन-रंजन रंजित-अंजन नैन सुखंजन जातक-से ।
सजनी ससि में समसील उभै नवनील सरोरुह-से बिकसे ॥
तन की दुति श्याम सरोरुह लोचन कंज की मंजुलताई… Share on X
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