सुमित्रानंदन पंत Poems In Hindi – सुमित्रानंदन पंत की कविताएं

सुमित्रानंदन पंत Poems In Hindi

सुमित्रानंदन पंत जी का नाम हिंदी साहित्य में बड़े ही शान से लिया जाता है यह हिंदी साहित्य के एक बहुत बड़े कवी थी जिन्होंने मात्र 7 साल की उम्र से ही कविताये लिखना प्रारम्भ कर दिया था | इनका जन्म २० मई १९०० में बागेश्वर में हुआ था तथा इनकी मृत्यु २८ दिसम्बर १९७७ को हो गयी थी | सुमित्रानंदन पंत जी छायावाद युग के महान कवियों में से एक कवी थे इसीलिए हम आपको सुमित्रानंदन पंत जी द्वारा कही गयी कुछ रचनाओं के बारे में बताते है जिन रचनाओं को पढ़ कर आप इनके बारे में काफी कुछ जान सकते है इनके द्वारा लिखी गयी कविताये हमारे लिए बहुत रोचक होती है |

सुमित्रानंदन पंत की कविता चींटी

चींटी को देखा? वह सरल, विरल, काली रेखा तम के तागे सी जो हिल-डुल, चलती लघु पद पल-पल मिल-जुल, यह है पिपीलिका पाँति! देखो ना, किस भाँति काम करती वह सतत, कन-कन कनके चुनती अविरत। गाय चराती, धूप खिलाती, बच्चों की निगरानी करती लड़ती, अरि से तनिक न डरती, दल के… Click To Tweet
सुमित्रानंदन पंत की कविता बादल

सुमित्रानंदन पंत की कविता भारत माता

Sumitranandan pant poems -bharatmata gramvasini
भारत माता ग्रामवासिनी। खेतों में फैला है श्यामल धूल भरा मैला सा आँचल, गंगा यमुना में आँसू जल, मिट्टी कि प्रतिमा उदासिनी। दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन, अधरों में चिर नीरव रोदन, युग युग के तम से विषण्ण मन, वह अपने घर में प्रवासिनी। तीस कोटि संतान नग्न… Click To Tweet

सुमित्रानंदन पंत रचना संचयन

जीना अपने ही में… एक महान कर्म है जीने का हो सदुपयोग… यह मनुज धर्म है अपने ही में रहना… एक प्रबुद्ध कला है जग के हित रहने में… सबका सहज भला है जग का प्यार मिले… जन्मों के पुण्य चाहिए जग जीवन को… प्रेम सिन्धु में डूब थाहिए ज्ञानी बनकर… मत नीरस उपदेश… Click To Tweet
झर पड़ता जीवन-डाली से मैं पतझड़ का-सा जीर्ण-पात!– केवल, केवल जग-कानन में लाने फिर से मधु का प्रभात! मधु का प्रभात!–लद लद जातीं वैभव से जग की डाल-डाल, कलि-कलि किसलय में जल उठती सुन्दरता की स्वर्णीय-ज्वाल! नव मधु-प्रभात!–गूँजते मधुर उर-उर में नव… Click To Tweet

सुमित्रानंदन पंत की कविता On Nature

छोड़ द्रुमों की मृदु-छाया, तोड़ प्रकृति से भी माया, बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन? भूल अभी से इस जग को! तज कर तरल-तरंगों को, इन्द्र-धनुष के रंगों को, तेरे भ्रू-भंगों से कैसे बिंधवा दूँ निज मृग-सा मन? भूल अभी से इस जग को! कोयल का वह… Click To Tweet

About the author

admin