सामाजिक सुधारक राजा राम मोहन रॉय को ‘भारतीय पुनर्जागरण’ के पिता के रूप में भी जाना जाता है| उन्हें उस समय महिलाओं के अधिकारों के लिए उनकी लड़ाई के लिए याद किया जाता है जब देश कठोर सामाजिक मानदंडों और परंपराओं से पीड़ित था जिसमें सती के अभ्यास शामिल थे।राजा राम मोहन रॉय का जन्म 1772 में बंगाल प्रेसिडेंसी में राधानगर में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह बहुत कम उम्र में घर छोड़ गया और मूर्ति पूजा के प्रचलित प्रथाओं और उस समय के कई रूढ़िवादी प्रथाओं को छोड़ दिया। रॉय ने घर छोड़ा और संस्कृत के साथ फारसी और अरबी सीखते समय हिमालय और तिब्बत से यात्रा की। आज के इस पोस्ट में हम आपको राजा राममोहन राय पुस्तकें,राजा राममोहन राय जीवनी, राजा राममोहन राय के राजनीतिक विचार, राजा राममोहन राय माहिती, राजा राम मोहन राय मराठी, राजा राममोहन राय के सामाजिक विचार, राजा राममोहन राय को राजा की उपाधि किसने दी, सती: अ राइटअप ऑफ राजा राम मोहन राय अबाउट बर्निंग विडोज़ अलाइव, इन मराठी, हिंदी, इंग्लिश, बांग्ला, गुजराती, तमिल, तेलगु, आदि की जानकारी देंगे जिसे आप अपने स्कूल के निबंध प्रतियोगिता, कार्यक्रम या भाषण प्रतियोगिता में प्रयोग कर सकते है| ये निबंध खासकर कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए दिए गए है|
राजा राममोहन राय का निबंध
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राजाराममोहन राय आधुनिक भारत के जनक ही नहीं थे, वरन् वे नये युग के निर्माता थे । वे आधुनिक सचेत मानव थे और नये भारत के ऐसे महान् व्यक्तित्व थे, जिन्होंने पूर्व एवं पश्चिम की विचारधारा का समन्वय कर सौ वर्षों से सोये हुए भारत को जागृत किया ।
वे इस समाज एवं शताब्दी के ऐसे निर्माता थे, जिन्होंने उन सब बाधाओं को दूर किया, जो हमारी प्रगति के मार्ग में बाधक थीं । वे मानवतावाद के सच्चे पुजारी थे । उन्हें पुनर्जागरण व सुधारवाद का प्रथम प्रर्वतक कहा जाता है ।
राजाराममोहन राय का जन्म बंगाल के राधानगर में 22 मई सन् 1772 को हुआ था । उनके तीन विवाह हुए थे; क्योंकि दुर्भाग्यवश उनकी पूर्व पत्नियों का देहावसान हो गया था । 16 वर्ष की अवस्था में उन्होंने प्रचलित अन्धविश्वासों पर एक निबन्ध लिखा था । राजाराममोहन राय बहुविवाह एवं बालविवाह के कट्टर विरोधी थे । वे ईस्ट इण्डिया कम्पनी के राजस्व विभाग में नौकरी करते थे ।
सन् 1809 में कलेक्टर के दीवान बन गये । जब वे रंगपुर में नियुक्त थे, तो वहां उन्हें अनेक धर्मावलम्बी मिले, जिनके बीच विचार गोष्ठियों के आधार पर ब्रह्मसमाज की नींव पड़ी । 1812 में उन्होंने सती प्रथा को समाप्त करने का संकल्प लिया ।
1814 में नौकरी से त्यागपत्र दे दिया । राजाराममोहन राय हिन्दू धर्म में मूर्तिपूजा, बहुविवाह, बाल विवाह, सती प्रथा, अनमेल विवाह के बोलबाले से काफी दुखी थे । इस बीच उन्होंने वेदान्त-सूत्र उपनिषद का बंगला अनुवाद किया । 1823 में हिन्दू नारी के अधिकारों का हनन नामक पुस्तक लिखी, जिसमें यह मांग की गयी कि हिन्दू नारी को अपने पति की सम्पत्ति में हिस्सा मिलना चाहिए ।
1827 में वर्ण व्यवस्था के विरुद्ध वजसूचि नामक पुस्तक लिखी । राजाराममोहन राय ने हिन्दू कॉलेज की स्थापना की । इस कार्य में उन्हें सर एडवर्ड व डेविड हाल तथा हरिहरानन्द का साथ भी मिला । यद्यपि हरिहरानन्द संन्यासी थे, तथापि उन्होंने हिन्दू समाज के लिए बहुत कुछ किया ।
राजा राममोहन राय पर छोटा निबंध
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राजा राम मोहन राय एक भारतीय सामाजिक-शिक्षा सुधारक थे, जिन्हें “आधुनिक भारत के निर्माता” और “आधुनिक भारत के पिता” और “बंगाल पुनर्जागरण के पिता” के नाम से भी जाना जाता था। जिन्होंने 18 वीं शताब्दी के दौरान समाज में प्रचलित सामाजिक बुराइयों को खत्म करने में बहुत योगदान दिया। उन्होंने आने वाली पीढ़ियों के लिए अपनी मातृभूमि को बेहतर जगह बनाने का हर संभव प्रयास किया।
राजा राम मोहन राय एक महान ऐतिहासिक व्यक्ति थे। जिन्होंने भारत को बदलने के लिए सहरानीय प्रयास किए और पुरानी हिंदू परंपराओं को चुनौती देने की हिम्मत दिखाई। उन्होंने समाज को बदलने के लिए बहुत सारे सामाजिक सुधार किए और भारत में महिलाओं की स्थिति को सुधारने के भी कई सारे प्रयास किये। राय ने सती प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ी। वह एक महान विद्वान भी थे। जिन्होंने कई किताबें, धार्मिक और दार्शनिक कार्यों और शास्त्रों को बंगाली में अनुवाद किया और वैदिक ग्रंथों का अनुवाद अंग्रेजी में किया।
राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 ई. को राधा नगर नामक बंगाल के एक गाँव में, पुराने विचारों से संपन्न एक बंगाली ब्राम्हण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम रमाकान्त राय एवं माता का नाम तारिणी देवी था। इनकी माँ भारतीय इतिहास के सबसे अंधाकारमय युग में रह रहीं थीं। उस समय, देश कई सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं से पीड़ित था, जिसने धर्म के नाम पर विवाद पैदा कर रखे थे।
इनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के ही एक स्कूल में संस्कृत और बंगाली भाषाओं के साथ शुरू हुई थी। जिसके बाद आगे की पढ़ाई पूरी करने के उद्देश्य से इन्हें पटना के मद्रास में भेजा गया, जहाँ पर इन्होंनें अरबी और फारसी सीखी। बाद में, वे वेदों और उपनिषद जैसे संस्कृत और हिंदू ग्रंथों की जटिलता को जानने के लिए काशी चले गए। उन्होंने 22 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी भाषा सीखी।
Ram Mohan Roy Biography in Bengali
রাজারাম মোহন রায় আধুনিক ভারতের পিতা ছিলেন না, তবে তিনি একটি নতুন যুগের স্রষ্টা ছিলেন। তারা উন্নত সতর্কতা মানুষের ছিল এবং নতুন ভারত, যারা ঘুমিয়ে ছিল একটি মহান ব্যক্তিত্ব ছিল উদ্বুদ্ধ ভারত স্থানাঙ্ক পূর্ব ও পশ্চিম মতাদর্শ একশ বছর।
তারা এই সমাজ এবং শতাব্দীর এমন একটি প্রযোজক ছিল, যারা আমাদের অগ্রগতির পথে বাধা ছিলো এমন সব বাধাগুলি সরিয়ে দিয়েছিল। তারা মানবতার সত্যিকারের পুরোহিত ছিলেন। তিনি রেনেসাঁ এবং সংস্কারবাদী প্রথম উদ্ভাবক বলা হয়।
রাজারাম মোহন রায়ের জন্ম 22 মে, 177২ খ্রিস্টাব্দে রাধানগরে, বাংলায়। তাদের তিনটি বিবাহ ছিল; কারণ, দুর্ভাগ্যবশত, তাদের প্রাক্তন স্ত্রী মারা গিয়েছিল। 16 বছর বয়সে, তিনি প্রচলিত কুসংস্কার উপর একটি রচনা লিখেছেন। রাজারাম মোহন রায় বহুবিবাহ ও বাল্যবিবাহের দৃঢ় প্রতিদ্বন্দ্বী ছিলেন। তিনি ইস্ট ইন্ডিয়া কোম্পানির রাজস্ব বিভাগে কাজ করতেন।
1809 সালে, সংগ্রাহক দীউয়ান হয়ে ওঠে। যখন তিনি রংপুরে কর্মরত ছিলেন তখন তিনি সেখানে অনেক ধর্ম দেখেছিলেন, যার মধ্যে সেমিনারের ভিত্তিতে ব্রাহ্ম সমাজের ভিত্তি পাওয়া যায়। 181২ সালে তিনি সটি’র অনুশীলন শেষ করার সিদ্ধান্ত নেন।
1814 সালে চাকরি থেকে পদত্যাগ করেন। রাজরাম মোহন রায় মূর্তি পূজা, বহুবিবাহ, বাল্যবিবাহ, সটি কাস্টম, অপ্রতিরোধ্য বিবাহের সাথে খুব অপছন্দ ছিল। এদিকে, তিনি বেদান্ত-সূত্র উপনিষদ বাঙ্গালা অনুবাদ করেছেন। একটি বই 1823 হিন্দু নারীদের অধিকার লঙ্ঘনের বলা হয়, যা দাবি করেন যে হিন্দু নারীরা স্বামীর সম্পত্তিতে ভাগ করা উচিত লিখেছেন।
18২7 সালে, তিনি অক্ষর সিস্টেমের বিরুদ্ধে Vajasuchi নামক একটি বই লিখেছিলেন। রাজারাম মোহন রায় হিন্দু কলেজ প্রতিষ্ঠা করেন। এই কর্মে তিনি স্যার এডওয়ার্ড এবং ডেভিড হল এবং হরিহারানন্দের সমর্থন লাভ করেন। যদিও হরিহরানন্দ ছিলেন একজন সন্ন্যাসী, তিনি হিন্দু সমাজের জন্য অনেক করেছেন
Raja Ram Mohan Roy Short Essay in Hindi
राजा राममोहन राय एक सामाजिक और शैक्षिक सुधारक राजा थे। वे आधुनिक भारत के निर्माता थे। राजा राममोहन राय एक दूरदर्शी थे, जो भारत के सबसे गहरे सामाजिक चरणों में से एक के दौरान थे, उन्होंने आने वाली पीढ़ियों के लिए अपनी मातृभूमि को बेहतर स्थान बनाये रखने की अपनी पूरी कोशिश की।
उन्होंने ब्रिटिश भारत में एक बंगाली परिवार में जन्म लिया। उन्होंने द्वारकानाथ टैगोर जैसे अन्य प्रमुख बंगालियों के साथ हाथ मिलाकर सामाजिक धार्मिक संगठन ब्राह्मो समाज की स्थापना की। हिंदू धर्म के पुनर्जागरण आंदोलन के गठन के लिए बंगाली ज्ञान के लिए गति की स्थापना की। तथ्यों के अनुसार राम मोहन रॉय का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था जो धार्मिक विविधता प्रदर्शित करता था।
वह विशेष रूप से “सती” प्रथा के बारे में चिंतित थे, जिसमें एक विधवा को अपने पति की चिता में खुद को बलिदान करने की प्रथा थी। अन्य सुधारकों और दूरदर्शिताओं के साथ-साथ उन्होंने उस समय भारतीय समाज में प्रचलित बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और उनमें से कई को खत्म करने में मदद भी की थी। उन्होंने राजनीति और शिक्षा के क्षेत्र में भी गहरा प्रभाव डाला।
प्रारंभिक जीवन Early Life
राजा राममोहन राय पश्चिम बंगाल में एक उच्च कोटि के ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। उनके पिता रामकांत राय एक वैष्णव थे, जबकि उनकी मां तेरणीदेवी एक शैव थीं। विभिन्न धार्मिक उप-पंथों के बीच विवाह उन दिनों के दौरान बहुत ही असामान्य था। राजा राममोहन राय परिवार ने तीन पीढ़ियों तक शाही मुगलों की सेवा की।उनका जन्म एक ऐसे युग में हुआ था जो भारत के इतिहास में सबसे गहरे समय के रूप में चिह्नित था। देश कई सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं से ग्रस्त था, और धर्मों के नाम पर बनाई गई अराजकता से भरपूर था।
उन्होंने गांव के स्कूल में संस्कृत और बंगाली में अपनी शुरूआती शिक्षा प्राप्त की उसके बाद उन्हें एक मदरसा में अध्ययन करने के लिए पटना भेजा गया जहां उन्होंने फारसी और अरबी भाषा सीख ली। राजा राममोहन राय ने अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के बाद वे संस्कृत और वेदों और उपनिषद जैसे हिंदू शास्त्रों की जटिलताओं को जानने के लिए काशी गए। 22 सालकी उम्र में उन्होंने अंग्रेजी भाषा सीखी।।
Essay on Raja Ram Mohan Roy in 200 Words
राजा राममोहन राय (अंग्रेज़ी: Raja Ram Mohan Roy, जन्म: 22 मई, 1772; मृत्यु: 27 सितम्बर, 1833) को ‘आधुनिक भारतीय समाज का जन्मदाता’ कहा जाता है। वे ब्रह्म समाज के संस्थापक, भारतीय भाषायी प्रेस के प्रवर्तक, जनजागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता तथा बंगाल में नव-जागरण युग के पितामह थे। धार्मिक और सामाजिक विकास के क्षेत्र में राजा राममोहन राय का नाम सबसे अग्रणी है। राजा राम मोहन राय ने तत्कालीन भारतीय समाज की कट्टरता, रूढ़िवादिता एवं अंध विश्वासों को दूर करके उसे आधुनिक बनाने का प्रयास किया।
राजा राममोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 ई. को राधा नगर नामक बंगाल के एक गाँव में, पुराने विचारों से सम्पन्न बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन में अरबी, फ़ारसी, अंग्रेज़ी, ग्रीक, हिब्रू आदि भाषाओं का अध्ययन किया था। हिन्दू, ईसाई, इस्लाम और सूफ़ी धर्म का भी उन्होंने गम्भीर अध्ययन किया था। 17 वर्ष की अल्पायु में ही वे मूर्ति पूजा विरोधी हो गये थे। वे अंग्रेज़ी भाषा और सभ्यता से काफ़ी प्रभावित थे। उन्होंने इंग्लैंड की यात्रा की। धर्म और समाज सुधार उनका मुख्य लक्ष्य था। वे ईश्वर की एकता में विश्वास करते थे और सभी प्रकार के धार्मिक अंधविश्वास और कर्मकांडों के विरोधी थे। अपने विचारों को उन्होंने लेखों और पुस्तकों में प्रकाशित करवाया। किन्तु हिन्दू और ईसाई प्रचारकों से उनका काफ़ी संघर्ष हुआ, परन्तु वे जीवन भर अपने विचारों का समर्थन करते रहे और उनके प्रचार के लिए उन्होंने ब्रह्मसमाज की स्थापना की।