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महाशिवरात्रि श्लोक व मंत्र – Mahashivratri Shlok in Sanskrit & Hindi

महाशिवरात्रि 2023 : ओम नमः शिवाय! शिवजी को बहुत से नामों से जाना जाता है जैसे कि देवों के देव महादेव, भोलेनाथ, नीलकंठ आदि। हमारे हिंदू धर्म में तीन प्रमुख देवताओं में से भोलेनाथ को एक माना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव जी तीनों प्रमुख देवताओं में से एक है। इन तीन सर्वोच्च देवताओं में सबसे पहले आते हैं भगवान शिव दूसरा नंबर आता है ब्रह्मा और तीसरा विष्णु जी। इस साल महाशिवरात्रि 18 feb 2023 को मनाई जाएगी और इस दिन गुरुवार है। भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना करने के बाद जो भी भोलेनाथ का मंत्र उच्चारण करता है उसकी सारी इच्छाएं व मनोकामनाएं भोलेनाथ पूरी कर देते हैं।

महाशिवरात्रि श्लोक

महाशिवरात्रि की जानकारी लेने के लिए आप महाशिवरात्रि पर निबंध की भी जानकारी ले सकते है|आज हम आपके सामने भोलेनाथ के श्लोक व मंत्र प्रस्तुत करने जा रहे हैं जिन का उच्चारण करने से आपके सारे दुख दर्द प्रभु मिटा देंगे और आपके जीवन में खुशियां प्रदान करेंगे। आइए देखें शिव जी के ध्यान मंत्र व प्रार्थना मंत्र संस्कृत व हिंदी भाषा में। इन प्रार्थना व मंत्रों को आप अपने संबंधी व दोस्तों के साथ whatsapp, instagram व facebook जैसी social media apps पर अवश्य शेयर करें।

महाशिवरात्रि मंत्र

शिवलिंग के आगे नमन करके यह श्लोक पढ़ें:

शिवरात्रिव्रतं ह्येतत्‌ करिष्येऽहं महाफलम।
निर्विघ्नमस्तु से चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते।

यह मंत्र के पश्चात हाथ में लिए पुष्पाक्षत्‌ जल आदि को छोड़ने के पश्चात यह श्लोक को पढ़ें-

देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोऽस्तु सेकर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।
तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।
कामाशः शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि॥

इस article के माधयम से आप जानेंगे शिव प्रार्थना मंत्र शिव स्तुति श्लोक mp3, शिव सदा सहायते, How many days to महाशिवरात्रि, महाशिवरात्रि के तरीके, महा शिवरात्रि 2023 , महाशिवरात्रि फोटो डाउनलोड व महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं शायरी|

mahashivratri sloka

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं । विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं ॥

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं । चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं ॥1॥

हे मोक्षरूप, विभु, व्यापक ब्रह्म, वेदस्वरूप ईशानदिशा के ईश्वर और सबके स्वामी शिवजी, मैं आपको नमस्कार करता हूं. निज स्वरूप में स्थित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन, आकाश रूप शिवजी मैं आपको भजता हूं.
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं । गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशं ।

करालं महाकालकालं कृपालं । गुणागारसंसारपारं नतोऽहं ॥2॥

निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत) वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे परमेश्‍वर को मैं नमस्कार करता हूं.
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं । मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरं ॥

स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगंगा । लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा ॥3॥

जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सिर पर सुंदर नदी गंगाजी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीया का चन्द्रमा और गले में सर्प सुशोभित है.
चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं । प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं ॥

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं । प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥4॥

जिनके कानों में कुंडल शोभा पा रहे हैं. सुन्दर भृकुटी और विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्न मुख, नीलकण्ठ और दयालु हैं. सिंह चर्म का वस्त्र धारण किए और मुण्डमाल पहने हैं, उन सबके प्यारे और सबके नाथ श्रीशंकरजी को मैं भजता हूं.
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं । अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं ॥

त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं । भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं ॥5॥

प्रचंड, श्रेष्ठ तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोडों सूर्य के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किए, भाव के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकरजी को मैं भजता हूं.
कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी । सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ॥

चिदानन्दसंदोह मोहापहारी । प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥

कलाओं से परे, कल्याण स्वरूप, प्रलय करने वाले, सज्जनों को सदा आनंद देने वाले, त्रिपुरासुर के शत्रु, सच्चिदानन्दघन, मोह को हरने वाले, मन को मथ डालनेवाले हे प्रभो, प्रसन्न होइए, प्रसन्न होइए.
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं । भजन्तीह लोके परे वा नराणां ।

न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं । प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥7॥

जब तक मनुष्य पार्वतीजी के पति के चरणकमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इहलोक में, न ही परलोक में सुख-शान्ति मिलती है और अनके कष्टों का भी नाश नहीं होता है. अत: हे समस्त जीवों के हृदय में निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइए.
न जानामि योगं जपं नैव पूजां । नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यं ॥

जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं । प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥8॥

मैं न तो योग जानता हूं, न जप और न पूजा ही. हे शम्भो, मैं तो सदा-सर्वदा आप को ही नमस्कार करता हूं. हे प्रभो! बुढ़ापा तथा जन्म के दु:ख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दु:खों से रक्षा कीजिए. हे शम्भो, मैं आपको नमस्कार करता हूं.

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ॥।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥9॥

अगर आप इस स्तोत्र को भक्तिपूर्वक पढ़ेंगे तो निश्चित ही आप पर शिव शम्भु विशेष रूप से प्रसन्न होकर आप पर अपनी असीम कृपा बनाएंगे|

Mahashivratri shlok in sanskrit

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय। नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम: शिवाय ॥ भावार्थ- जो शिव नागराज वासुकि का हार पहिने हुए हैं, तीन नेत्रों वाले हैं, तथा भस्म की राख को सारे शरीर में लगाये हुए हैं, इस प्रकार महान् ऐश्वर्य… Share on X यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय। दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नम: शिवाय् ॥ भावार्थ जो शिव यक्ष के रूप को धारण करते हैं और लंबी–लंबी खूबसूरत जिनकी जटायें हैं, जिनके हाथ में ‘पिनाक’ धनुष है, जो सत् स्वरूप हैं अर्थात् सनातन हैं,… Share on X शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय। श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नम: शिवाय ॥ भावार्थ : जो शिव स्वयं कल्याण स्वरूप हैं, और जो पार्वती के मुख कमलों को विकसित करने के लिए सूर्य हैं, जो दक्ष–प्रजापति के यज्ञ को नष्ट करने वाले हैं, नील… Share on X

Mahashivratri shlok in hindi

वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय। चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नम: शिवायः ॥ भावार्थ : वसिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि श्रेष्ठ मुनीन्द्र वृन्दों से तथा देवताओं से जिनका मस्तक हमेशा पूजित है, और जो चन्द्र–सूर्य व अग्नि रूप तीन नेत्रों… Share on X मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय। मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मकाराय नम: शिवाय ॥ भावार्थ : जो शिव आकाशगामिनी मन्दाकिनी के पवित्र जल से संयुक्त तथा चन्दन से सुशोभित हैं, और नन्दीश्वर तथा प्रमथनाथ आदि गण विशेषों एवं षट्… Share on X

महाशिवरात्रि संस्कृत श्लोक

अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्। अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम् ॥ भावार्थ : जो भगवान् शंकर संतजनों को मोक्ष प्रदान करने के लिए अवन्तिकापुरी उज्जैन में अवतार धारण किए हैं, अकाल मृत्यु से बचने के लिए उन देवों के भी… Share on X ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥ भावार्थ : हम त्रि-नेत्रीय वास्तविकता का चिंतन करते हैं जो जीवन की मधुर परिपूर्णता को पोषित करता है और वृद्धि करता है। ककड़ी की तरह हम इसके तने से अलग (मुक्त)… Share on X

महाशिवरात्रि पर श्लोक

सदुपायकथास्वपण्डितो हृदये दु:खशरेण खण्डित:। शशिखण्डमण्डनं शरणं यामि शरण्यमीरम् ॥ भावार्थ : हे शम्भो! मेरा हृदय दु:ख रूपीबाण से पीडित है, और मैं इस दु:ख को दूर करने वाले किसी उत्तम उपाय को भी नहीं जानता हूँ अतएव चन्द्रकला व शिखण्ड मयूरपिच्छ का आभूषण… Share on X महत: परित: प्रसर्पतस्तमसो दर्शनभेदिनो भिदे। दिननाथ इव स्वतेजसा हृदयव्योम्नि मनागुदेहि न:॥ भावार्थ : हे शम्भो हमारे हृदय आकाश में, आप सूर्य की तरह अपने तेज से चारों ओर घिरे हुए, ज्ञानदृष्टि को रोकने वाले, इस अज्ञानान्ध्कार को दूर करने के लिए प्रकट हो… Share on X

साथ ही आप Maha Shivaratri Story in KannadaMaha Shivaratri Story in Tamil देख सकते हैं|

शिव ध्यान मंत्र

श्रीशैलशृंगे विबुधातिसंगे तुलाद्रितुंगेऽपि मुदा वसन्तम्। तमर्जुनं मल्लिकपूर्वमेकं नमामि संसारसमुद्रसेतुम् ॥ भावार्थ : ऊंचाई की तुलना में जो अन्य पर्वतों से ऊंचा है, जिसमें देवताओं का समागम होता रहता है, ऐसे श्रीशैलश्रृंग में जो प्रसन्नतापूर्वक निवास… Share on X दृशं विदधमि क करोम्यनुतिशमि कथं भयाकुल:। नु तिश्सि रक्ष रक्ष मामयि शम्भो शरणागतोस्मि ते ॥ भावार्थ : हे शम्भो! मैं अब किध्र देखूँ ;दृि लगाऊँद्ध क्या करूँ, भयभीत मैं कैसे यहां रहूँ? हे प्रभो! आप कहाँ हैं? मेरी रक्षा करें। मैं ;अबद्ध आपकी हीं शरण में हूँ… Share on X सविषोप्यमृतायते भवाछवमुण्डाभरणोपि पावन:। भव एव भवान्तक: सतां समदृखिवषमेक्षणोपि सन् ॥ भावार्थ : हे शम्भो! आप विषसहित होते हुए भी अमृत के समान हैं, शवों के मुण्डों से सुशोभित होते हुए भी पवित्रा हैं। स्वयं ;जगत् के उत्पादकद्ध भव होते हुए भी, सज्जनों के… Share on X सविषैरिव भोगपगैखवषयैरेभिरलं परिक्षतम्। अमृतैरिव संभ्रमेण मामभिषिाशु दयावलोकनै: ॥ भावार्थ : विषधरी भारी साँपों के समान इन सांसारिक विषयों ने मुझे भयभीत कर रखा है, अत: इनसे मैं परेशान हूँ। कृपया अमृत के समान ;जीवनदायक अथवा मुत्तिफसाध्कद्ध अपने… Share on X

ज्योतिर्लिंग स्तुति प्रार्थना

सौराष्ट्रे सोमनाथंच श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं परमेश्वरम्।। केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकियां भीमशंकरम्। वाराणस्यांच विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।। वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारूकावने। सेतूबन्धे च रामेशं घुश्मेशंच शिवालये। द्वादशैतानि… Share on X

रूद्र श्लोक

नमस्ते भगवान रुद्र भास्करामित तेजसे । नमो भवाय देवाय रसायाम्बुमयात्मने ॥ भावार्थ : हे भगवान ! हे रुद्र ! आपका तेज अनगिनत सूर्योंके तेज समान है । रसरूप, जलमय विग्रहवाले हे भवदेव ! आपको नमस्कार है । Share on X

केदारनाथ मंत्र

महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः। सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै: केदारमीशं शिवमेकमीडे ॥ भावार्थ : जो भगवान् शंकर पर्वतराज हिमालय के समीप मन्दाकिनी के तट पर स्थित केदारखण्ड नामक श्रृंग में निवास करते हैं, तथा मुनीश्वरों के द्वारा… Share on X

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