हिंदी दिवस 2023: हमारे देश में हिंदी दिवस हर साल 14 सितम्बर को मनाया जाता है | हिन्दी दिवस के दौरान शैक्षिक संसथान, सरकारी ऑफिस व अन्य संस्थानों में कई कार्यक्रम मनाये जाते हैं। इस दिन छात्र-छात्राओं को हिन्दी के प्रति सम्मान और दैनिक व्यवहार में हिन्दी के उपयोग करने आदि की शिक्षा दी जाती है। यह दिवस हमारी मातृ भाषा, हिंदी के सम्मान में समर्पित होता है| आज के इस पोस्ट में हम आपको हिंदी दिवस का वृत्तांत लेखन समारोह के लिए प्रदान कर रहे हैं| जिसे आप अपने संस्थानों में समारोह प्रतियोगिता, कार्यक्रम या भाषण प्रतियोगिता में प्रयोग कर सकते है|
हिंदी दिवस कब मनाया जाता है
हिंदी दिवस को प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को मनाया जाता है | यह हिंदी भाषा को बढ़ावा प्रदान करने के लिए मनाये जाने वाला एक वार्षिक समारोह है। यह दिवस पूरे भारत में हिंदी भाषी क्षेत्रों में मनाया जाता है। भारत में इस दिन एक प्रायोजित कार्यक्रम कार्यालयों, स्कूलों, फर्मों आदि में अत्यधिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस अवसर का जश्न मनाने के पीछे सरकार का प्राथमिक उद्देश्य हिंदी भाषा की संस्कृति को बढ़ावा देना और फैलाना है।
वृत्तांत लेखन हिंदी दिवस
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विद्यालय में मनाया गया हिंदी दिवस
उदाहरण 1
नमस्कार मैं {आपका नाम}
हिन्दी किसी संप्रदाय विशेष की भाषा नहीं, यह जन-जन की भाषा है।
हिन्दी हमारे ह्रदय की भाषा है।
लोगों को आकर्षित करती है हिन्दी की मधुरता।
विश्व की सबसे बड़ी भाषा है हिंदी।
नालंदा जिला मुख्यालय के मध्य विद्यालय ककड़िया में विद्यालय के चेतना सत्र में हिंदी दिवस बड़े उत्साह से प्रधानाध्यापक शिवेन्द्र कुमार की अध्यक्षता में मनाया गया।जबकि कार्यक्रम का संचालन सहायक शिक्षक सच्चिदानंद प्रसाद ने किया। विद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में “देश में हिंदी भाषा का महत्व व संस्कृति में योगदान” विषय पर शिक्षकों तथा छात्रों ने अपने विचार प्रकट किए।
अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में प्रधानाध्यापक ने कहा कि हिंदी देश को जोड़ने वाली भाषा है।
मौके पर शिक्षक संघ के नेता साहित्यानुरागी राकेश बिहारी शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि 14 सितंबर को देश भर में हिंदी दिवस मनाया जाता है। आजादी मिलने के दो साल बाद 14 सितबंर 1949 को संविधान सभा में एक मत से हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया था और इसके बाद से हर साल 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। देश की स्वतंत्रता और विकास में हिंदी भाषा का अहम योगदान है। हिंदी से ही हिंद है। विश्व की सबसे बड़ी भाषा हिंदी है।
उन्होंने कहा कि अब हिंदी राष्ट्र भाषा की गंगा से विश्व भाषा का महासागर बन रही है। विद्यार्थियों को आधुनिकता एवं अंग्रेजीयत से अलग होकर हिन्दी की रोचकता और महत्ता को जानने पहचानने की जरूरत है। आज हिंदी भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में बोली समझी जाने वाली विश्व भाषाओं में अपनी पहचान स्थापित कर चुकी है और शब्दों की संख्या के आधार पर भी विश्व की सबसे बड़ी भाषा हिंदी बन गई है।आज विद्यार्थियों के बीच अंग्रेजी भाषा के प्रति बढ़ते लगाव और हिंदी भाषा की अनदेखी करने की वजह से हिंदी प्रेमी बेहद निराश हैं। यही वजह है कि हर साल देशभर के लोगों को अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति जागरूक करने के लिए हिंदी दिवस मनाया जाता है।
भारत में भले ही अंग्रेज़ी बोलना सम्मान की बात मानी जाती हो, पर विश्व के बहुसंख्यक देशों में अंग्रेज़ी का इतना महत्त्व नहीं है। हिंदी बोलने में हिचक का एकमात्र कारण पूर्व प्राथमिक शिक्षा के समय अंग्रेज़ी माध्यम का चयन किया जाना है। आज भी भारत में अधिकतर अभिभावक अपने बच्चों का दाख़िला ऐसे स्कूलों में करवाना चाहते हैं, जो अंग्रेज़ी माध्यम से शिक्षा प्रदान करते हैं। जबकि मनोवैज्ञानिकों के अनुसार शिशु सर्वाधिक आसानी से अपनी मातृभाषा को ही ग्रहण कर पाता है और मातृभाषा में किसी भी बात को भली-भांति समझ सकता है।
अंग्रेज़ी भारतीयों की मातृभाषा नहीं है। अत: भारत में बच्चों की शिक्षा का सर्वाधिक उपयुक्त माध्यम हिंदी ही है। सबसे बड़ी बात हिंदी भाषा जैसे लिखी जाती है, वैसे बोली भी जाती है। दूसरी भाषाओं में कई अक्षर साइलेंट होते हैं और उनके उच्चारण भी लोग अलग-अलग करते हैं, लेकिन हिंदी के साथ ऐसा नहीं होता, इसीलिए हिंदी को बहुत सरल भाषा कहा जाता है।
हिंदी कोई भी बहुत आसानी से सीख सकता है। हिंदी अति उदार, समझ में आने वाली सहिष्णु भाषा होने के साथ भारत की राष्ट्रीय चेतना की संवाहिका भी है। भारत की मौजूदा शिक्षा पद्धति में बालकों को पूर्व प्राथमिक स्कू्ल ही अंग्रेज़ी के गीत रटाये जाते हैं। यदि घर में बालक बिना अर्थ जाने ही आने वाले अतिथियों को अंग्रेज़ी में कविता सुना दे तो माता-पिता का मस्तक गर्व से ऊंचा हो जाता है।इस मौके पर { धन्यवाद देने वालो का नाम } सहित सैकड़ों छात्र-छात्राएं चेतना सत्र में शामिल होकर कार्यक्रम को सफल बनाया।
Hindi Diwas par Vrutant Lekhan
उदाहरण 2
14 सितंबर को पूरे देश में हिंदी दिवस मनाया जाता है। सरकारी विभागों में हिंदी की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। साथ ही हिंदी प्रोत्साहन सप्ताह का आयोजन किया जाता है। स्कूलों में भी हिंदी प्रतियोगिताएं आयोजित करायी जाती है।
हिंदी भारत में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा है और इसे राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था। हिंदी के महत्व को बताने और इसके प्रचार प्रसार के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के अनुरोध पर 1953 से प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के तौर पर मनाया जाता है।
1918 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन में भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए पहल की थी। गांधी जी ने हिंदी को जनमानस की भाषा भी बताया था।
इस पर साल 1949 में स्वतन्त्र भारत की राजभाषा के प्रश्न पर 14 सितंबर 1949 को काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जिसे भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343(1) में बताया गया है कि राष्ट्र की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। क्योंकि यह निर्णय 14 सितंबर को लिया गया था। इसी वजह से इस दिन को हिन्दी दिवस के रूप में घोषित कर दिया गया।
लेकिन जब राजभाषा के रूप में हिंदी को चुना गया और तो गैर हिन्दी भाषी राज्य खासकर दक्षिण भारत के लोगों ने इसका विरोध किया फलस्वरुप अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा देना पड़ा।
लेकिन आज के समय में हिंदी भाषा लोगों के बीच से कहीं-न-कहीं गायब होती जा रही है और इंग्लिश ने अपना प्रभुत्व जमा लिया है। यदि हालात यही रहे तो वो दिन दूर नहीं जब हिंदी भाषा हमारे बीच से गायब हो जाएगी। हमें यदि हिंदी भाषा को संजोए रखना है तो इसके प्रचार-प्रसार को बढ़ाना होगा। सरकारी कामकाज में हिंदी को प्राथमिकता देनी होगी।
स्वच्छ भारत मिशन के तहत ये शौचालय बनाये जाएंगे।नगर निगम के मेयर आलोक शर्मा ने कहा कि शहर के मंगलवाड़ा क्षेत्र में ये शौचालय बनाएं जाएंगे।इसकी डिटेल्ट प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार कर दी गई है।उन्होंने बताया कि यहां के बाद शहर के अन्य इलाकों में भी ऐसे शौचालय बनाएं जाएंगे।शौचलयों मे ऐसे शौचालय बनाएं जाएंगे।शौचलयों में उम्दा सुविधायें लगाई जाएंगी।इसकी लागत 25-30 लाख रुपये होगी।जिन इलाकों में किन्नरों की ज्यादा आबादी होगी,वहां शौचालयों का निर्माण किया जाएगा।
वृत्तांत लेखन हिंदी दिवस समारोह
आज हिन्दी का दिन है। हिन्दी दिवस। आज ही के दिन हिन्दी को संवैधानिक रूप से भारत की आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला था। दो सौ साल की ब्रिटिश राज की गुलामी से आजाद हुए देश ने तब ये सपना देखा था कि एक दिन पूरे देश में एक ऐसी भाषा होगी जिसके माध्यम से कश्मीर से कन्याकुमारी तक संवाद संभव हो सकेगा। आजादी के नायकों को इस बात में तनिक संदेह नहीं था कि हिन्दुस्तान की संपर्क भाषा बनने का महती दायित्व केवल और केवल हिन्दी उठा सकती है।
इसीलिए इस संविधान निर्माताओं ने देवनागरी में लिखी हिन्दी को नए देश की आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया। संविधान निर्माताओं ने तय किया था कि जब तक हिन्दी वास्तविक अर्थों में पूरे देश की संपर्क भाषा नहीं बना जाती तब तक अंग्रेजी भी देश की आधिकारिक भाषा रहेगी।
संविधान निर्माताओं का अनुमान था कि आजादी के बाद अगले 15 सालों में हिन्दी पूरी तरह अंग्रेजी की जगह ले लेगी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हों या देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, सभी इस बात पर एकमत थे कि ब्रिटेन की गुलामी की प्रतीक अंग्रेजी भाषा को हमेशा के लिए देश की आधिकारिक भाषा नहीं होना चाहिए। लेकिन अंग्रेजों के जाने के बाद भी उनकी “फूट डालो और राज करो” की नीति भाषा के क्षेत्र में चलती रही। हिन्दी को एकमात्र आधिकारिक भाषा के खिलाफ उसकी बहनों ने ही बगावत कर दी। उन्होंने एक परायी भाषा “अंग्रेजी” के पक्ष में खड़ा होकर अपनी सहोदर भाषा का विरोध किया। जबकि उनका भय पूरी तरह निराधार था।
हिन्दी किसी भी दूसरी भाषा की कीमत पर राष्ट्रभाषा नहीं बनना चाहती। देश की सभी राज्य सरकारें अपनी-अपनी राजभाषाओं में काम करने के लिए स्वतंत्र थीं। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का विचार परस्पर सह-अस्तित्व पर आधारित था, न कि एक भाषा की दूसरी भाषा की अधीनता पर।आजादी के 70 साल बाद भी स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों की वह इच्छा अधूरी है।
आज पूरे देश में शायद ही ऐसा कोना हो जहां दो-चार हिन्दी भाषी न हों। शायद ही ऐसा कोई प्रदेश हो जहां आम लोग कामचलाऊ हिन्दी न जानते हों। भले ही आधिकारिक तौर पर हिन्दी देश की राष्ट्रभाषा न हो केवल राजभाषा हो, व्यावाहरिक तौर पर वो इस देश की सर्वव्यापी भाषा है। ऐसे में जरूरत है हिन्दी को उसका वाजिब हक दिलाने की जिसका सपना संविधान निर्माताओं ने देखा था।
हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की माँग कमोबेश हर हिन्दी भाषी को सुहाती है। लेकिन इसकी आलोचना पर बहुत से लोग मुँह बिचकाने लगते हैं। आज हम हिन्दी की ऐसी दो खास समस्याओं पर बात करेंगे जिन्हें दूर किए बिना हिन्दी सही मायनों में राष्ट्रभाषा नहीं बन सकती। अंग्रेजी, चीनी, अरबी, स्पैनिश, फ्रेंच इत्यादि के साथ ही हिन्दी दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में एक है।
लेकिन इसकी तुलना अगर अन्य भाषाओं से करें तो ये कई मामलों में पिछड़ी नजर आती है और इसके लिए जिम्मेदार है कुछ हिन्दी प्रेमियों का संकीर्ण नजरिया। हिन्दी के विकास में सबसे बड़ी बाधा वो शुद्धतावादी हैं जो इसमें से फारसी, अरबी, तुर्की और अंग्रेजी इत्यादि भाषाओं से आए शब्दों को निकाल देना चाहते हैं। ऐसे लोग संस्कृतनिष्ठ तत्सम शब्दों के बोझ तले कराहती हिन्दी को “सच्ची हिन्दी” मानते हैं। लेकिन यहाँ मशहूर भाषाविद प्रोफेसर गणेश देवी को याद करने की जरूरत है जो कहते हैं भाषा जितनी भ्रष्ट होती है उतनी विकसित होती है।
प्रोफेसर देवी का सीधा आशय है कि जिस भाषा में जितनी मिलावट होती है वो उतनी समृद्धि और प्राणवान होती है। अंग्रेजों को लूट, डकैती, धोती और पंडित जैसे खालिस भारतीय शब्द अपनी भाषा में शामिल करने में कोई लाज नहीं आती लेकिन भारतीय शुद्धतावादी लालटेन, कम्प्यूटर, अस्पताल, स्कूल, इंजन जैसे शब्दों को देखकर भी मुँह बिचकाते हैं जिनका प्रयोग अनपढ़ और गंवई भारतीय भी आसानी से कर लेते हैं। तो हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने के लिए जरूरी है कि वो समस्त भारतीय भाषाओं और अन्य भाषाओं से अपनी जरूरत के हिसाब से शब्दों को लेने में जरा भ संकोच न करे। हम परायी भाषा के शब्दों को हिन्दी में जबरन घुसेड़ने की वकालत नहीं कर रहे। लेकिन जो शब्द सहज और सरल रूप से हिन्दी में रच-बस गये हों उन्हें गले लगाने की बात कर रहे हैं।
हिन्दी के राष्ट्रभाषा बनने में दूसरी बड़ी दिक्कत है इसका ज्ञान-विज्ञान में हाथ तंग होना। कोई भाषा केवल अनुपम साहित्य के बल पर राष्ट्रभाषा का दायित्व नहीं निभा सकती। भाषा को ज्ञान, विज्ञान, व्यापार और संचार इत्यादि क्षेत्रों के लिए भी खुद को तैयार करना होता है। आज हिन्दी इन क्षेत्रों में दुनिया की अन्य बड़ी भाषाओं से पीछे है। गैर-साहित्यिक क्षेत्रों में हिन्दी में उच्च गुणवत्ता के चिंतन और पठन सामग्री के अभाव से हिन्दी बौद्धिक रूप से विकलांग प्रतीत होती है। आज जरूरत है कि विज्ञान और समाज विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दुस्तानी को बढ़ावा दिया जाए। तभी सही मायनो में हिन्दी देश की राष्ट्रभाषा बन सकेगी। अगर इन दो बातों पर पर्याप्त ध्यान दिया जाए तो हिन्दी को वैश्विक स्तर पर पहचान और प्रतिष्ठा पाने से कोई नहीं रोक सकेगा।