Sambhaji Maharaj Speech in Marathi – संभाजी राजे जयंती भाषण – Chatrapati shambhu raje Speech in Pdf & Mp3

Sambhaji maharaj speech in Marathi

संभाजी महाराज जयंती 2020: छत्रपति संभाजी महाराज मराठा साम्राज्य के दुसरे महान शाशको में से एक थे| उनसे पहले छत्रपति शिवाजी महाराज जो की उनके पिता थे उनका नाम सबसे प्रथम स्थान पर आता है| वे शिवाजी महाराज के सबसे बड़े बेटे और उनके राज्य गद्दी के उत्तराधिकारी थे| शंभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 में पुरंदर दुर्ग नामक स्थान पर हुआ था जो की भारत के पुणे में था| उनको पूरा भारत उनकी वीरता एवं निडरता के लिए जानता है| उन्होंने अपने शाशन काल में कुल 140 युद्ध लड़े थे| आज के इस पोस्ट में हम आपको shivaji maharaj speech in marathi, छत्रपति संभाजी राजे भाषण nitin bangude patil sambhaji maharaj full speech download, आदि की जानकारी देंगे|जय शम्भू राजे! 

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संभाजी भोसले मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज और उनकी पहली पत्नी सईबाई के बड़े बेटे थे। अपने पिता की मृत्यु के बाद वे उनके राज्य के वारिस थे। संभाजी राजे का साम्राज्य ज्यादातर हमें मुघलो और मराठाओ के युद्ध के बिच ही दिखाई देता है, बचपन से ही वे मुघल साम्राज्य के विरुद्ध थे। उनका साम्राज्य मुग़ल, सिध्दि, मैसूर और पुर्तगाल के बिच फैला था।

संभाजी महाराज का जन्म शिवाजी पुरंदर किले पर हुआ था। जब संभाजी 2 साल के थे तभी उनकी माता का देहांत हो गया था। और उनकी दादी जीजाबाई ने उनका पालनपोषण किया। 9 साल की आयु में ही संभाजी राजे को अम्बेर के राजा जय सिंह के साथ रहने के लिये भेजा गया, ताकि वे मुघलो द्वारा 11 जून 1665 की धोखेबाजी को जान सके और उनके राजनैतिक दावों को समझ सके।

संभाजी महाराज ने राजनैतिक समझौते के चलते जीवूबाई से विवाह कर लिया और मराठा रीती रिवाजो के अनुसार उन्होंने उनका नाम येसुबाई रखा।

सम्भाजी राजे अपनी शौर्यता के लिये काफी प्रसिद्ध थे। सम्भाजी राजे ने अपने कम समय के मराठा साम्राज्य के शासन काल मे १२० युद्ध किये और इसमे एक प्रमुख बात ये थी कि उनकी सेना एक भी युद्ध मे पराभूत नहीं हुई। इस तरह का पराक्रम करने वाले वह शायद एकमात्र योद्धा होंगे।

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Sambhaji Maharaj Speech in English

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Chatrapati shambhu raje Speech

Sambhaji Maharaj was ascended to the throne on 30th July, 1680 and rewarded his other followers. The formal ceremony of coronation took place on 20th January, 1681.

There was the alienation of his nobles and officers against whom Sambhaji had to take strict measures. He grew distrustful of his father’s faithful servants and therefore appointed Kavi Kalash, a Brahman of Kanauj, who was a good Sanskrit and Hindi scholar and poet, as his adviser, and placed him above the Peshwa. As he was an outsider, Maratha nobles and officers did not liked him. Owing to these circumstances, Sambhaji’s reign did not proved to be very successful.

Chatrapati Sambhaji gave shelter to Prince Akbar, fourth son of Aurangzeb, who was seeking Sambhaji’s cooperation to wrest the throne of Hindustan from his father. On crossing the Narmada, Prince Akbar informed Sambhaji of his resolution to depose Aurangzeb in alliance with the Maratha king and seeking his cooperation in the enterprise. Sambhaji met him on 23rd November, but no alliance was entered into between them.

Sambhaji Raje bhosale speech

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संभाजी राज जयंती भाषण

ज्याप्रमाणे प्रभू रामचंद्राने लंकेवर स्वारी करण्यासाठी रामसेतू बांधला, त्याप्रमाणे उसळत्या सागरामध्ये ८०० मीटरचा सेतू संभाजी महाराजांनी बांधला. जंजिरा ९०% नेस्तानाबूत केला होता.

जंजिरा किल्ला हबशी सिद्धी बंधूंच्या ताब्यात होता. या वेळी जंजीर्यावर सिद्दी खैरत खान, सिद्दी कासम खान होते. हे आफ्रिकेतून आलेले हबशी होते. हे हबशी जंजीऱ्यातून बाहेर यायचे, तटावरची माणसे पकडायचे, त्यांचे कान नाक कापायचे. कोकणातील बायका पाळावयाचे. या जाचाने त्रासलेले लोक शंभूराज्याकडे आले, आपले संकट त्यांनी राजांना सांगितले. हे सगळे भयानक प्रकार ऐकून संभाजी राजे खूप क्रोधीत झाले.
त्यांनी जंजिरेकर सिद्धांच्यावर आक्रमण करण्याचे ठरवले. पण त्यांना माहित होते कि जंजिरा सरळ लढाईत जिंकणे अवघड होते, कारण खवळलेला समुद्र त्या जंजिर्याच्या मदतीला होता. त्यामुळे राजांनी ठरवले कि या जंजिराच्या पोटात घुसून त्याचा कोथळा बाहेर काढला पाहिजे.

याच बेतासाठी त्यांनी बोलावणे धाडले कोंडाजी फर्जद याला. कोण होता हा कोंडोजी फर्जद ? हा होता हिरोजी फर्जदांचा मुलगा. आग्रा भेटीत शिवाजी महाराजांचे सोंग घेवून झोपलेले हिरोजी. संभाजी राजांनी कोंडोजी च्या कानात आपला बेत सांगितला. आणि मग निघाला कोंडाजी. आपल्या सोबतीला ४० / ५० मावळे घेवून निघाला. आणि थेट जंजिऱ्याच्या सिद्धी समोर आला, आणि त्याने सिद्धी ला त्याची चाकरी स्वीकारण्याची इच्छा सांगितली. सिद्धी ला आश्चर्याचा धक्का बसला. तो आनंदून गेला. कारण शंभू राजांचा एक शूर मावळ त्यांना येवून मिळाला होता. सिद्धी ने त्याला आपली चाकरी दिली. आणि मग काय, कोंडाजी सिद्धी ची सेवा करू लागला. पण त्या कोंडाजी च्या काळजात वेगळाच डाव होता, त्याच्या शंभू राजांचा. कोंडाजी चे मन मात्र शंभू राज्यांकडे होते.

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