मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएँ – Maithili Sharan Gupt ki Rachna in Hindi Pdf

Maithili Sharan Gupt ki Rachnae

भारत के साहित्य इतिहास की चर्चा की जाए तो बहुत से ऐसे लेखकार या हिंदी साहित्य के अनभवी कवियों के नाम आइए जिन्होंने भारत के गौरव को और ऊचा कर दिया| ऐसा ही एक नाम है मैथिलीशरण गुप्त जी का| मैथिलीशरण गुप्त हिंदी साहित्य के जाने माने कवी कहलाए जाते है| उन्होंने अपनी बहुत सी रचनाओं से सभी का दिल जीता था| वे हिंदी साहित्य के कड़ी बोली के बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रथम कवी माने जाते है| उनका पहला कविता संग्रह “रंग में भंग” तथा इसके बाद “जयद्रथ वध” नामक साहित्य प्रकाशित हुआ| उन्होंने बंगाली में भी बहुत सी साहित्य रचनाए की जो की “मेघनाथ वध” एवं “ब्रजांगना” का अनुवाद है| आज के इस पोस्ट में हम आपको राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की कविता, मैथिलीशरण गुप्त ki rachnaye, मैथिलीशरण गुप्त ki rachna, मैथिलीशरण गुप्त की रचनाओं के नाम, मैथिलीशरण गुप्त की प्रमुख रचनाएँ, मैथिलीशरण गुप्त रचनाएँ, आदि की जानकारी देंगे जो की खासकर कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों व प्रशंसकों के लिए दिए गए है|

मैथिलीशरण गुप्त की 5 कविता

यह रचनाओं का कलेक्शन class 1, class 2, class 3, class 4, class 5, class 6, class 7, class 8, class 9, class 10, class 11, class 12 के बच्चो के लिए है जो की हर साल 2009, 2010, 2011, 2012, 2013, 2014, 2015, 2016, 2017 व 2018 का collection है जिसे आप whatsapp, facebook व instagram पर अपने groups में share कर सकते हैं| साथ ही आप मैथिलीशरण गुप्त की कविताएं व मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय भी देख सकते हैं|

प्रारंभ में मैथिलीशरण गुप्त की कविता का नाम सरस्वती था जो की ब्रज भाषा में प्रकाशित हुई थी| उनका पहला कविता संग्रह “रंग में भंग” तथा इसके बाद “जयद्रथ वध” नामक साहित्य प्रकाशित हुआ| उन्होंने बंगाली में भी बहुत सी साहित्य रचनाए की जो की “मेघनाथ वध” एवं “ब्रजांगना” का अनुवाद है उनकी बाकी रचनाएँ ज्यादातर खरी बोली में थी जो की जयद्रथ-वध, भारत-भारती , पंचवटी, यशोधरा, द्वापर, सिद्धराज, नहुष, अंजलि और अर्ध्य , अजित, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला किसा ,कुणाल गीत, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल, जय भारत, झंकार, पृथ्वीपुत्र, मेघनाद वध, सैरन्ध्री , साकेत, आदि थी|

मैथिलीशरण गुप्त की कविता यशोधरा

“माँ कह एक कहानी।”
बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?”
“कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी
कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?
माँ कह एक कहानी।”

“तू है हठी, मानधन मेरे, सुन उपवन में बड़े सवेरे,
तात भ्रमण करते थे तेरे, जहाँ सुरभि मनमानी।”
“जहाँ सुरभि मनमानी! हाँ माँ यही कहानी।”

वर्ण वर्ण के फूल खिले थे, झलमल कर हिमबिंदु झिले थे,
हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।”
“लहराता था पानी, हाँ-हाँ यही कहानी।”

“गाते थे खग कल-कल स्वर से, सहसा एक हंस ऊपर से,
गिरा बिद्ध होकर खग शर से, हुई पक्षी की हानी।”
“हुई पक्षी की हानी? करुणा भरी कहानी!”

चौंक उन्होंने उसे उठाया, नया जन्म सा उसने पाया,
इतने में आखेटक आया, लक्ष सिद्धि का मानी।”
“लक्ष सिद्धि का मानी! कोमल कठिन कहानी।”

“मांगा उसने आहत पक्षी, तेरे तात किन्तु थे रक्षी,
तब उसने जो था खगभक्षी, हठ करने की ठानी।”
“हठ करने की ठानी! अब बढ़ चली कहानी।”

हुआ विवाद सदय निर्दय में, उभय आग्रही थे स्वविषय में,
गयी बात तब न्यायालय में, सुनी सभी ने जानी।”
“सुनी सभी ने जानी! व्यापक हुई कहानी।”

राहुल तू निर्णय कर इसका, न्याय पक्ष लेता है किसका?
कह दे निर्भय जय हो जिसका, सुन लँ तेरी बानी”
“माँ मेरी क्या बानी? मैं सुन रहा कहानी।

कोई निरपराध को मारे तो क्यों अन्य उसे न उबारे?
रक्षक पर भक्षक को वारे, न्याय दया का दानी।”
“न्याय दया का दानी! तूने गुनी कहानी।”

मैथिलीशरण गुप्त की कविता की विषयवस्तु

यद्यपि हम हैं सिध्द न सुकृती, व्रती न योगी,
पर किस अघ से हुए हाय ! ऐसे दुख-भोगी?
क्यों हैं हम यों विवश, अकिंचन, दुर्बल, रोगी?
दयाधाम हे राम ! दया क्या इधर न होगी ? ।।१।।

देव ! तुम्हारे सिवा आज हम किसे पुकारें?
तुम्हीं बता दो हमें कि कैसे धीरज धारें?
किस प्रकार अब और मरे मन को हम मारें?
अब तो रुकती नहीं आँसुयों की ये धारें! ।।२।।

ले ले कर अवतार असुर तुम ने हैं मारे,
निष्ठुर नर क्यों छोड़ दिये फिर बिना विचारे?
उनके हाथों आज देख लो हाल हमारे,
हम क्या कोई नहीं दयामय कहो, तुम्हारे? ।।३।।

पाया हमने प्रभो! कौन सा त्रास नहीं है?
क्या अब भी परिपूर्ण हमारा ह्रास नहीं है?
मिला हमें क्या यहीं नरक का वास नहीं है,
विष खाने के लिए टका भी पास नहीं है! ।।४।।

नहीं जानते, पूर्व समय क्या पाप किया है,
जिसका फल यह आज दैव ने हमें दिया है:
अब भी फटता नहीं वज्र का बना हिया है,
इसीलिए क्या हाय ! जगत में जन्म लिया है! ।।५।।

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