बुद्ध पूर्णिमा पर कविता – Poem on Buddha Purnima in Hindi – Buddha Poornima Kavita – वेसक बुद्ध कविता मराठी

बुद्ध पूर्णिमा पर कविता

Buddha Purnima 2021:  बुद्धा पूर्णिमा या बुद्धा जयंती का त्यौहार बौद्ध धर्म के लोगो के लिए के बहुत ही महत्वपूर्ण और धार्मिक त्यौहार है|गौतम बुद्धा का बौद्ध धर्म में बहुत ही महत्व है और उनके अनुयायी इस पर्व को बहुत श्रद्धा से मनाते है| इस दिन को बौद्ध धर्म के भगवान् गौतम बुद्धा के जन्मदिवस (Buddha’s Birthday) के रूप पर मनाया जाता है| इस त्यौहार का महत्व इतना इसलिए भी है क्युकी यह पर्व वैशाख पूर्णिमा वाले दिन आता है|कहा जाता है की इसी दिन गौतम बुद्धा का जन्म हुआ था और इसी दिन उनको ज्ञान की प्राप्ति भी हुई थी| आज के इस पोस्ट में हम आपको बुद्धा जयंती कविता, बुद्धा पूर्णिमा पर पोएम, वेसक पर कविता आदि की जानकारी देंगे|

बुद्ध पूर्णिमा पर कविता 2021

Buddha Purnima 2021 Date: इस वर्ष बुद्ध पूर्णिमा यानी की वैशाख पूर्णिमा 26 मई के दिन पद रही है | इस दिन बुधवार का दिन है| अक्सर class 1, class 2, class 3, class 4, class 5, class 6, class 7, class 8, class 9, class 10, class 11, class 12 के बच्चो को कहा जाता है बुद्ध पूर्णिमा पर कविता लिखें| जिसके लिए हम पेश कर रहे हैं हैप्पी बुद्धा जयंती, Buddha Day, Gautam Buddha Jayanti kavita hindi Me. साथ ही आप बुद्ध पूर्णिमा पर निबंध व Few Lines on Buddha Purnima in Hindi भी देख सकते हैं| आप सभी को बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामनाएं

यही धर्म है मोक्ष पथगामी
मध्यम मार्ग सरल
पाँच अनुशीलन हैं इसके
मानव पालन कर.
सत्कर्मों की पूँजी बना ले
प्रेम-भाव अविरल
कर्मों को अपना धर्म समझ ले
करना किसी से न छल.
प्राणीमात्र पर दया करना तू
जो हैं दीन-निर्बल
बुद्ध ने जो सन्देश दिया है
उस पर करना अमल.
राग-रंग नहीं करना तुझको
संयम है तेरा बल
मानव जीवन तुझे मिला है
रखना इसे निर्मल.
त्रिपिटक ग्रंथों में समाये
जीवन सार सकल
प्रज्ञा शील करुणा अपना ले
मोक्ष की कामना कर.
स्वर्ग-नर्क सब किसने देखा ?
किसने देखा कल ?
परम-धाम जाना है तुझको
बुद्ध की राह पर चल.
बुद्धं शरणम गच्छामि
धम्मं शरणम गच्छामि
संघम शरणम गच्छामि
पंचशील के अनुगामी.
बुद्ध पूर्णिमा की शुभकामनायें

Poem on Buddha Purnima in Hindi

Buddha Purnima Kavita in Hindi

यह दिन Arunachal, Meghalaya, Mizoram, Tripura, Manipur, Sikkim, Gangtok, Nagaland, UP, Punjab, Bhutan, Dehradun, Mussorie, West Bengal, Haryana, Himachal Pradesh, Bihar, Chhattisgarh, Delhi, Gujarat, Haryana, Jharkhand, Karnataka, mumbai, pune, Noida, Jaipur, Maharashtra, Madhya pradesh, Punjab, Rajasthan, Tamil Nadu, Uttarakhand, Uttar Pradesh, सहित अन्य राज्यों में मनाया जाता है| यही नहीं यह दिन Sri Lanka, China, Nepal व japan में भी मनाया जाता है|

“बुद्धं शरणं गच्छामि,
ध्मंबुद् शरणं गच्छाेमि,
संघं शरणं गच्छामि।”
बुद्ध भगवान,
जहाँ था धन, वैभव, ऐश्वछर्य का भंडार,
जहाँ था, पल-पल पर सुख,
जहाँ था पग-पग पर श्रृंगार,
जहाँ रूप, रस, यौवन की थी सदा बहार,
वहाँ पर लेकर जन्म ,
वहाँ पर पल, बढ़, पाकर विकास,
कहाँ से तुम्में् जाग उठा
अपने चारों ओर के संसार पर
संदेह, अविश्वापस?
और अचानक एक दिन
तुमने उठा ही तो लिया
उस कनक-घट का ढक्कगन,
पाया उसे विष-रस भरा।
दुल्हउन की जिसे पहनाई गई थी पोशाक,
वह तो थी सड़ी-गली लाश।
तुम रहे अवाक्,
हुए हैरान,
क्योंै अपने को धोखे में रक्खेा है इंसान,
क्योंै वे पी रहे है विष के घूँट,
जो निकलता है फूट-फूट?
क्याि यही है सुख-साज
कि मनुष्य खुजला रहा है अपनी खाज?
निकल गए तुम दूर देश,
वनों-पर्वतों की ओर,
खोजने उस रोग का कारण,
उस रोग का निदान।
बड़े-बड़े पंडितों को तुमने लिया थाह,
मोटे-मोटे ग्रंथों को लिया अवगाह,
सुखाया जंगलों में तन,
साधा साधना से मन,
सफल हुया श्रम,
सफल हुआ तप,
आया प्रकाश का क्षण,
पाया तुमने ज्ञान शुद्ध,
हो गए प्रबुद्ध।
देने लगे जगह-जगह उपदेश,
जगह-जगह व्यादख्या न,
देखकर तुम्हाजरा दिव्यय वेश,
घेरने लगे तुम्हेंश लोग,
सुनने को नई बात
हमेशा रहता है तैयार इंसान,
कहनेवाला भले ही हो शैतान,
तुम तो थे भगवान।
जीवन है एक चुभा हुआ तीर,
छटपटाता मन, तड़फड़ाता शरीर।
सच्चातई है- सिद्ध करने की जररूरत है?
पीर, पीर, पीर।
तीर को दो पहले निकाल,
किसने किया शर का संधान?-
क्यों किया शर का संधान?
किस किस्मा का है बाण?
ये हैं बाद के सवाल।
तीर को पहले दो निकाल।

Hindi Poem on Buddha Purnima

जगत है चलायमान,
बहती नदी के समान,
पार कर जाओ इसे तैरकर,
इस पर बना नहीं सकते घर।
जो कुछ है हमारे भीतर-बाहर,
दीखता-सा दुखकर-सुखकर,
वह है हमारे कर्मों का फल।
कर्म है अटल।
चलो मेरे मार्ग पर अगर,
उससे अलग रहना है भी नहीं कठिन,
उसे वश में करना है सरल।
अंत में, सबका है यह सार-
जीवन दुख ही दुख का है विस्तायर,
दुख की इच्छाद है आधार,
अगर इच्छा् को लो जीत,
पा सकते हो दुखों से निस्ताीर,
पा सकते हो निर्वाण पुनीत।
ध्वसनित-प्रतिध्वतनित
तुम्हाेरी वाणी से हुई आधी ज़मीन-
भारत, ब्रम्हाे, लंका, स्या म,
तिब्बात, मंगोलिया जापान, चीन-
उठ पड़े मठ, पैगोडा, विहार,
जिनमें भिक्षुणी, भिक्षुओं की क़तार
मुँड़ाकर सिर, पीला चीवर धार
करने लगी प्रवेश
करती इस मंत्र का उच्चाार :
“बुद्धं शरणं गच्छाीमि,
ध्मंधं श शरणं गच्छािमि,
संघं शरणं गच्छाछमि।”
कुछ दिन चलता है तेज़
हर नया प्रवाह,
मनुष्य उठा चौंक, हो गया आगाह।
वाह री मानवता,
तू भी करती है कमाल,
आया करें पीर, पैगम्बमर, आचार्य,
महंत, महात्माछ हज़ार,
लाया करें अहदनामे इलहाम,
छाँटा करें अक्लम बघारा करें ज्ञान,
दिया करें प्रवचन, वाज़,
तू एक कान से सुनती,
दूसरे सी देती निकाल,
चलती है अपनी समय-सिद्ध चाल।
जहाँ हैं तेरी बस्तियाँ, तेरे बाज़ार,
तेरे लेन-देन, तेरे कमाई-खर्च के स्था,न,
वहाँ कहाँ हैं
राम, कृष्णँ, बुद्ध, मुहम्मयद, ईसा के
कोई निशान।
इनकी भी अच्छी चलाई बात,
इनकी क्याच बिसात,
इनमें से कोई अवतार,
कोई स्वेर्ग का पूत,
कोई स्वेर्ग का दूत,
ईश्वसर को भी इनसे नहीं रखने दिया हाथ।
इसने समझ लिया था पहले ही
ख़दा साबित होंगे ख़तरनाक,
अल्लासह, वबालेजान, फज़ीहत,
अगर वे रहेंगे मौजूद
हर जगह, हर वक्तह।
झूठ-फरेब, छल-कपट, चोरी,
जारी, दग़ाबाजी, छोना-छोरी, सीनाज़ोरी
कहाँ फिर लेंगी पनाह;

Buddha Purnima Kavita in Hindi

Buddha Purnima Poem In Hindi

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अविष्कार हुई बुद्ध वाणी भूमध्य सागर के उस पार,
दूर समुन्दर के विस्तृत दृष्टि में, बुद्ध
दर्शन बन गया दिव्य शक्ति का आधार..
बुद्ध पूर्णिमा दिखाया जग को एक नए दिशा,
हिंसा मुक्त पृथ्वी में हुया अविष्कार रचनात्मक गुणों का आधार.
उज्जवलित हुई बुद्ध वाणी कितने ही देशो के मिट्टी में हर बार।
एक सूत्र में गाथI भिन्न देशो के कई मझहबो को,
बुद्ध दर्शन गुथा गया पुष्प माला में, हिंसा मुक्त, दया भाव पृथ्वी पर
एक सूत्र धार.
बुद्ध पूर्णिमा हुया चारो ओर प्रकाशमय,
गूंज उठी हर दिशा में एक सामान।
जन जागरण आया इस धरा में,
बन कर नए सूत्र धार

Buddha Purnima Kavita in Marathi

ग़रज़, कि बंद हो जाएगा दुनिया का सब काम,
सोचो, कि अगर अपनी प्रेयसी से करते हो तुम प्रेमालाप
और पहुँच जाएँ तुम्हागरे अब्बा जान,
तब क्याच होगा तुम्हाीरा हाल।
तबीयत पड़ जाएगी ढीली,
नशा सब हो जाएगा काफ़ूर,
एक दूसरे से हटकर दूर
देखोगे न एक दूसरे का मुँह?
मानवता का बुरा होता हाल
अगर ईश्वार डटा रहता सब जगह, सब काल।
इसने बनवाकर मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर
ख़ुदा को कर दिया है बंद;
ये हैं ख़ुदा के जेल,
जिन्हेंख यह-देखो तो इसका व्यंाग्यल-
कहती है श्रद्धा-पूजा के स्थाइन।
कहती है उनसे,
“आप यहीं करें आराम,
दुनिया जपती है आपका नाम,
मैं मिल जाऊँगी सुबह-शाम,
दिन-रात बहुत रहता है काम।”
अल्लाि पर लगा है ताला,
बंदे करें मनमानी, रँगरेल।
वाह री दुनिया,
तूने ख़ुदा का बनाया है खूब मज़ाक,
खूब खेल।”
जहाँ ख़ुदा की नहीं गली दाल,
वहाँ बुद्ध की क्या चलती चाल,
वे थे मूर्ति के खिलाफ,
इसने उन्हीं की बनाई मूर्ति,
वे थे पूजा के विरुद्ध,
इसने उन्हींक को दिया पूज,
उन्हेंन ईश्वकर में था अविश्वाास,
इसने उन्हींक को कह दिया भगवान,
वे आए थे फैलाने को वैराग्यद,
मिटाने को सिंगार-पटार,
इसने उन्हींि को बना दिया श्रृंगार।
बनाया उनका सुंदर आकार;
उनका बेलमुँड था शीश,
इसने लगाए बाल घूंघरदार;
और मिट्टी,लकड़ी, पत्थंर, लोहा,
ताँबा, पीतल, चाँदी, सोना,
मूँगा, नीलम, पन्नाग, हाथी दाँत-
सबके अंदर उन्हें डाल, तराश, खराद, निकाल
बना दिया उन्हेंू बाज़ार में बिकने का सामान।
पेकिंग से शिकागो तक
कोई नहीं क्यूारियों की दूकान
जहाँ, भले ही और न हो कुछ,
बुद्ध की मूर्ति न मिले जो माँगो।

बुद्ध पूर्णिमा कविता इन हिन्दी

बुद्ध भगवान,
अमीरों के ड्राइंगरूम,
रईसों के मकान
तुम्हाकरे चित्र, तुम्हाारी मूर्ति से शोभायमान।
पर वे हैं तुम्हा रे दर्शन से अनभिज्ञ,
तुम्हाहरे विचारों से अनजान,
सपने में भी उन्हेंि इसका नहीं आता ध्यामन।
शेर की खाल, हिरन की सींग,
कला-कारीगरी के नमूनों के साथ
तुम भी हो आसीन,
लोगों की सौंदर्य-प्रियता को
देते हुए तसकीन,
इसीलिए तुमने एक की थी
आसमान-ज़मीन?
और आज
देखा है मैंने,
एक ओर है तुम्हा री प्रतिमा
दूसरी ओर है डांसिंग हाल,
हे पशुओं पर दया के प्रचारक,
अहिंसा के अवतार,
परम विरक्तअ,
संयम साकार,
मची है तुम्हाारे रूप-यौवन के ठेल-पेल,
इच्छाै और वासना खुलकर रही हैं खेल,
गाय-सुअर के गोश्तु का उड़ रहा है कबाब
गिलास पर गिलास
पी जा रही है शराब-
पिया जा रहा है पाइप, सिगरेट, सिगार,
धुआँधार,
लोग हो रहे हैं नशे में लाल।
युवकों ने युवतियों को खींच
लिया है बाहों में भींच,
छाती और सीने आ गए हैं पास,
होंठों-अधरों के बीच
शुरू हो गई है बात,
शुरू हो गया है नाच,
आर्केर्स्ट्रा के साज़-
ट्रंपेट, क्लैसरिनेट, कारनेट-पर साथ
बज उठा है जाज़,
निकालती है आवाज़ :
“मद्यं शरणं गच्छा मि,
मांसं शरणं गच्छा मि,
डांसं शरणं गच्छा मि

Poem on Buddha Jayanti in Hindi

इस साल के साथ वर्ष 2007, 2008, 2009, 2010, 2011, 2012, 2013, 2014, 2015, 2016, 2017 के लिए Message, SMS, Quotes, Saying, Slogans, Jokes 140 msg, भगवान गौतम बुद्धा जयंती फोटो, भगवन बुद्धा के अनमोल विचार, Whatsapp Status, बुद्धा जयंती स्टेटस, buddha short poems in gujarati language, Gautam Buddha poems in marathi, Gautam Buddha poem written in Hindi, 120 Words Character के बारे में कोट्स यहाँ से जान सकते है|

कभी कभी मै सोचती हूँ
आशा के दीप जलाए
तुम्हे ढूंढ़ रही हूँ
हे -गौतम बुद्ध
तुम …एक भाव
जरुर हो ….
पर पूर्ण कविता नहीं
अपनी ही कैद से भागे
खुले आसमान के नीचे
क्या मिला वहाँ
विचार,एहसास ..अनुभव…
ज्ञान भी …बाँट लेने को
मानती हूँ मिला होगा
बहुत कुछ …..
पर ज्ञान वो नहीं जो
जो तुमने
किताबो में लिख दिया
और हमने पढ़ लिया ||
जन्म लिया था..
तो
कम से कम उसे
भोगते तो
देखते …
कितने उतार चड़ाव
है इस जीवन में
जीवन वो नहीं
जो तुमने जिया
एक पेड़ के नीचे …..
जीवन वो है
जो एक औरत जीती है
अपने परिवार के लिए
माँ,बहन,बेटी और पत्नी
बन के …
जीवन वो है जो
एक भाई जीता है
अपनी बहनों के लिए
उनके सामने एक आदर्श
रखने के लिए
कर देता है खुद की
इच्छायों का बलिदान
एक परिवार को
उनकी ख़ुशी देने
के लिए
जीवन वो है
जहां चार बाते हो
कुछ झगडा
कुछ प्यार हो
पति पत्नी में
मान- मुनहार हो
तकरार हो
जहाँ ..
इधर उधर की
कह लेने से
मन का गुबार
निकल जाता है
जैसे तैसे
हँसते-खेलते
लड़ते-झगड़ते
ये समय भी
खूब गुज़र जाता है
हे -गौतम बुद्ध
अफ़सोस है मुझे
की एक मिले जीवन को
तुमने यूँ ही
व्यर्थ गँवा दिया
देखे नहीं जीवन के सभी रंग
और ज्ञान के शब्दों में
संसार को बहा दिया

Buddha Purnima Poerm in Hindi

“माँ कह एक कहानी।”
“बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?”
“कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी
कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?
माँ कह एक कहानी।”
“तू है हठी, मानधन मेरे, सुन उपवन में बड़े सवेरे,
तात भ्रमण करते थे तेरे, जहाँ सुरभि मनमानी।”
“जहाँ सुरभि मनमानी! हाँ माँ यही कहानी।”
“वर्ण वर्ण के फूल खिले थे, झलमल कर हिमबिंदु झिले थे,
हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।”
“लहराता था पानी, हाँ-हाँ यही कहानी।”
“गाते थे खग कल-कल स्वर से, सहसा एक हंस ऊपर से,
गिरा बिद्ध होकर खग शर से, हुई पक्षी की हानी।”
“हुई पक्षी की हानी? करुणा भरी कहानी!”
“चौंक उन्होंने उसे उठाया, नया जन्म सा उसने पाया,
इतने में आखेटक आया, लक्ष सिद्धि का मानी।”
“लक्ष सिद्धि का मानी! कोमल कठिन कहानी।”
“मांगा उसने आहत पक्षी, तेरे तात किन्तु थे रक्षी,
तब उसने जो था खगभक्षी, हठ करने की ठानी।”
“हठ करने की ठानी! अब बढ़ चली कहानी।”
“हुआ विवाद सदय निर्दय में, उभय आग्रही थे स्वविषय में,
गयी बात तब न्यायालय में, सुनी सभी ने जानी।”
“सुनी सभी ने जानी! व्यापक हुई कहानी।”
“राहुल तू निर्णय कर इसका, न्याय पक्ष लेता है किसका?
कह दे निर्भय जय हो जिसका, सुन लूँ तेरी बानी”
“माँ मेरी क्या बानी? मैं सुन रहा कहानी।
कोई निरपराध को मारे तो क्यों अन्य उसे न उबारे?
रक्षक पर भक्षक को वारे, न्याय दया का दानी।”
“न्याय दया का दानी! तूने गुनी कहानी।”

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