आरक्षण विरोधी कविता 2022-23 Aarakshan Virodhi Kavita in Hindi – Poem Against Reservation in Hindi

aarakshan virodhi kavita in Hindi

आज के समय में आरक्षण भारत की एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में उभर कर आ रही है| यह समस्या पूरे भारत में फैली हुई है| इस समस्या ने आज के समय में बहुत बड़ा और विकराल रूप ले लिया है| आये दिन आरक्षण की वजह से भारत के कई शहरो में दंगे फ़सात होते है जिसकी वजह से भारत की सम्पतियो का बहुत नुक्सान होता है| आज के इस पोस्ट में हम आपको आरक्षण के विरोध में कविता, आरक्षण विरोधी पोएम, आरक्षण हिंदी कविताए, Aarakshan virodhi kavita, Reservation ke Against Hindi Kavita, आदि की जानकारी देंगे|

आरक्षण विरोधी हिंदी कविता

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मोदी जी मैं देता हूँ “अच्छे दिन” लाने का पक्का मंत्र,
विदा करो आरक्षणासुर को, बना दो भारत को सचमुच का गणतंत्र।
अवसर मिले प्रतिभा को, न कि जाति विशेष को,
फिर ना भागेगा कोई गुणवान, ज्ञानवान, प्रतिभावान, विदेश को,
आरक्षण के लालच ने देश की जनता को भ्रमित किया,
निज स्वार्थ में इस देश को खण्ड-खण्ड खण्डित किया।
जाने कितने वीरों ने निज प्राणाहुति देकर राष्ट्र को आज़ाद किया,
लेकिन कुटिल नेताओं ने आरक्षण को हथियार बनाकर देश को बर्बाद किया।
न जाने कितने नालायक आरक्षण की सीढ़ी पाकर सफलता की चोटी चढ़ गए,
न जाने कितने होनहार बच्चों के सपने आरक्षण की बलि चढ़ गए।
आरक्षण रूपी दीमक ने हिंदुस्तान की जड़ों को खोखला कर दिया,
आरक्षण के धुंए ने भारतवर्ष के भविष्य को धुँधला कर दिया।
जब न रहेगा देश में आरक्षण,
तब न रहेगा जाति के नाम पर कोई विभाजन,
न कोई पटेल होगा,
न जैन, न गूजर, न जाट, न दलित होगा,
न कोई अगाड़ी, न कोई पिछड़ा होगा,
हर कोई भारत की तरक्की में सम्मिलित होगा।
जब न रहेगा देश में आरक्षण,
तब न रहेगा धर्म के नाम पर कोई विभाजन,
न कोई हिंदू होगा, न सिख, न ईसाई, न मुसलमान,
उस दिन भारत में रहेगा सिर्फ़ हिंदुस्तान।
यक़ीन मानिए जिस दिन भारत से आरक्षण मिट जाएगा,
निःसंदेह उस दिन भारत फिर से सोने की चिड़िया कहलाएगा।
बस एक आरक्षण को हटाने से मिट जाएँगी देश की सभी बुराइयाँ,
बस एक आरक्षण को हटाने से हो जाएगी सभी विभागों में सफाइयाँ।
इसलिए मोदी जी “स्वच्छ भारत अभियान” में कीजिए ये संकल्प,
“जातिसूचक आरक्षण” को देकर गंगा में तिलांजलि,
कर दीजिए भारत का काया कल्प।

रिजर्वेशन के खिलाफ कविता

मैं सामान्य श्रेणी का दलित हूँ साहब मुझे आरक्षण चाहिए।
तेजाब की फैक्टरी में काम करते हुए खुद को जला कर मुझे पाला,
आज उस पिता की बीमारी के इलाज के लिए धन चाहिए,
मैं सामान्य श्रेणी का दलित हूँ साहब मुझे आरक्षण चाहिए।
कमजोर हो रही हैं निगाहें माँ की मुझे आगे बढ़ता देखने की चाह में,
उसकी उम्मीदों को पूरा कर सकूँ उसे मेरा जीवन रोशन चाहिए,
मैं सामान्य श्रेणी का दलित हूँ साहब मुझे आरक्षण चाहिए।
आधी नींद में बचपन से भटक रहा हूँ किराये के घरों में,
चैन की नींद आ जाये मुझे रहने को अपना मकान चाहिए,
मैं सामान्य श्रेणी का दलित हूँ साहब मुझे आरक्षण चाहिए।
भाई मजदूरी कर पढ़ाई करता है थकावट से चूर होकर,
मजबूरियों को भुला उसे सिर्फ पढ़ने में लगन चाहिए,
मैं सामान्य श्रेणी का दलित हूँ साहब मुझे आरक्षण चाहिए।
राखी बंधने वाली बहन जो शादी के लायक हो रही है,
उसके हाथ पीले करने के लिए थोड़ा सा शगुन चाहिए,
मैं सामान्य श्रेणी का दलित हूँ साहब मुझे आरक्षण चाहिए।
कर्ज ले-ले कर दे रहा हूँ परीक्षाएं सरकारी विभागों की,
लुट चुकी है आज जो कर्जदारी में मुझे वो आन चाहिए,
मैं सामान्य श्रेणी का दलित हूँ साहब मुझे आरक्षण चाहिए।
भूखे पेट सो जाता है परिवार कई रातों को मेरा,
पेट भरने को मिल जाये मुझे दो वक़्त का अन्न चाहिए,
मैं सामान्य श्रेणी का दलित हूँ साहब मुझे आरक्षण चाहिए।
जहाँ जाता हूँ निगाहें नीचे रहती हैं मेरी मुझमें गुण होने के बावजूद,
घृणा होती है जिंदगी से अब तो मुझे मेरा आत्मसम्मान चाहिए,
मैं सामान्य श्रेणी का दलित हूँ साहब मुझे आरक्षण चाहिए।

आरक्षण- सामन्य वर्ग की व्यथा

आरक्षण विरोधी कविता

यह कैसी विडम्बना यह कैसा अत्याचार है?
जिसने की जी तोड़ पढ़ाई वह बैठा बेकार है
प्रतियोगिता के काल में कोटा क्यों बना दिया?
भारत की महान शिक्षा को छोटा क्यों बना दिया?
यह हमारी कमज़ोरी है या समाज का विकार है?
यह कैसी विडम्बना यह कैसा अत्याचार है?
जिसने की जी तोड़ पढ़ाई वह बैठा बेकार है
रचियता को नहीं मालूम इससे बनाने वाले क्या आकार है
अंधे हो जाते है नेता जब देखते कुर्शी साकार है
कोटे का होना हमारी स्वतंत्रता पर एक वार है
यह कैसी विडम्बना यह कैसा अत्याचार है?
जिसने की जी तोड़ पढ़ाई वह बैठा बेकार है
युवा वर्ग को कोटा नहीं अवसर मिलना चाहिए
जिसके अंदर क्षमता हो वह आगे बढ़ाना चाहिए
भीख में मिले मौके को लानत है धित्कार है..
यह कैसी विडम्बना यह कैसा अत्याचार है?
जिसने की जी तोड़ पढ़ाई वह बैठा बेकार है

जातिगत आरक्षण पर कविता

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सामान्य वर्ग से हूँ मैं
आज अपनी व्यथा सुनाता हूँ ,
सक्षमता के बाद भी
समानता मे, मैं पीछे आता हूँ |
संविधान के तहत
बराबरी मेरा भी हक़ है |
माप अगर जाति से हो,
तो काबिलियत पर मुझे भी शक है |
अच्छे दिन और मेरा देश
एक सपना है,
आरक्षण के आगे,
हुनर को तो झुकना है |
मध्यम वर्ग से भी हूँ मैं,
मेरी भी व्यथा सुनाता हूँ |
आरक्षण के बाद,
महंगाई से हार मैं जाता हूँ |
शोक और शौक;
एक मात्रा को तय करने मे
पूरा जीवन लगाता हूँ|
तिनका तिनका जोड़,
अपना एक आशियाना बनाता हूँ |
फिर donation का समय आता है,
सामान्य वर्ग कहाँ बच पाता है ?
तिनका तिनका उड़ फिर,
सब शून्य हो जाता है |
बस भी करो यारो,
आँख खोल क्यों सो रहे हो?
देख तमाशा जब चुप हो;
तो क्यों रो रहे हो?

आरक्षण मदभेद है ,
और भारत माँ को भी खेद है ,
बट गए हम अपनो मे,
और जातियो से प्रतिछेद है ,
वाह रे वाह सरकार इस देश की,
तु इंसान के वेश मे प्रेत है ,
कभी ये देश सोने की चिड़िया था
अब तो बस
रेत है ,
और भारत माँ को भी खेद है,
आतंक मचाया सरकार ने खुद और रुपये से भी उसकी कुर्सी-मेज है ,
रोको दुनिया वालो और फैलादो संदेश मेरा ,
नहीं तो आगे हमारी जिंदगी निषेद है ,
और भारत माँ को भी खेद है !!!

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