हिन्दी दिवस 2023: हिंदी दिवस 14 सितम्बर को मनाया जाता है | हिन्दी दिवस के दौरान कई कार्यक्रम होते हैं। इस दिन छात्र-छात्राओं को हिन्दी के प्रति सम्मान और दैनिक व्यवहार में हिन्दी के उपयोग करने आदि की शिक्षा दी जाती है। जिसमें हिन्दी निबंध लेखन, वाद-विवाद हिन्दी टंकण प्रतियोगिता आदि होता है| आज के इस पोस्ट में हम आपको hindi diwas ka bhashan, हिंदी दिवस के भाषण, hindi diwas par speech, हिन्दी दिवस भाषण, hindi diwas speech in english, हिंदी दिवस स्पीच आदि की जानकारी इन मराठी, हिंदी, इंग्लिश, बांग्ला, गुजराती, तमिल, तेलगु, आदि की जानकारी देंगे जिसे आप अपने स्कूल के स्पीच प्रतियोगिता, कार्यक्रम या भाषण प्रतियोगिता में प्रयोग कर सकते है| ये स्पीच कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, 11, 12 और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए दिए गए है|
हिंदी दिवस पर स्पीच
आज हिन्दी का दिन है। हिन्दी दिवस। आज ही के दिन हिन्दी को संवैधानिक रूप से भारत की आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला था। दो सौ साल की ब्रिटिश राज की गुलामी से आजाद हुए देश ने तब ये सपना देखा था कि एक दिन पूरे देश में एक ऐसी भाषा होगी जिसके माध्यम से कश्मीर से कन्याकुमारी तक संवाद संभव हो सकेगा। आजादी के नायकों को इस बात में तनिक संदेह नहीं था कि हिन्दुस्तान की संपर्क भाषा बनने का महती दायित्व केवल और केवल हिन्दी उठा सकती है। इसीलिए इस संविधान निर्माताओं ने देवनागरी में लिखी हिन्दी को नए देश की आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया। संविधान निर्माताओं ने तय किया था कि जब तक हिन्दी वास्तविक अर्थों में पूरे देश की संपर्क भाषा नहीं बना जाती तब तक अंग्रेजी भी देश की आधिकारिक भाषा रहेगी।
संविधान निर्माताओं का अनुमान था कि आजादी के बाद अगले 15 सालों में हिन्दी पूरी तरह अंग्रेजी की जगह ले लेगी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हों या देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, सभी इस बात पर एकमत थे कि ब्रिटेन की गुलामी की प्रतीक अंग्रेजी भाषा को हमेशा के लिए देश की आधिकारिक भाषा नहीं होना चाहिए। लेकिन अंग्रेजों के जाने के बाद भी उनकी “फूट डालो और राज करो” की नीति भाषा के क्षेत्र में चलती रही। हिन्दी को एकमात्र आधिकारिक भाषा के खिलाफ उसकी बहनों ने ही बगावत कर दी। उन्होंने एक परायी भाषा “अंग्रेजी” के पक्ष में खड़ा होकर अपनी सहोदर भाषा का विरोध किया। जबकि उनका भय पूरी तरह निराधार था। हिन्दी किसी भी दूसरी भाषा की कीमत पर राष्ट्रभाषा नहीं बनना चाहती। देश की सभी राज्य सरकारें अपनी-अपनी राजभाषाओं में काम करने के लिए स्वतंत्र थीं। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का विचार परस्पर सह-अस्तित्व पर आधारित था, न कि एक भाषा की दूसरी भाषा की अधीनता पर।आजादी के 70 साल बाद भी स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों की वह इच्छा अधूरी है। आज पूरे देश में शायद ही ऐसा कोना हो जहां दो-चार हिन्दी भाषी न हों। शायद ही ऐसा कोई प्रदेश हो जहां आम लोग कामचलाऊ हिन्दी न जानते हों। भले ही आधिकारिक तौर पर हिन्दी देश की राष्ट्रभाषा न हो केवल राजभाषा हो, व्यावाहरिक तौर पर वो इस देश की सर्वव्यापी भाषा है। ऐसे में जरूरत है हिन्दी को उसका वाजिब हक दिलाने की जिसका सपना संविधान निर्माताओं ने देखा था।
हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की माँग कमोबेश हर हिन्दी भाषी को सुहाती है। लेकिन इसकी आलोचना पर बहुत से लोग मुँह बिचकाने लगते हैं। आज हम हिन्दी की ऐसी दो खास समस्याओं पर बात करेंगे जिन्हें दूर किए बिना हिन्दी सही मायनों में राष्ट्रभाषा नहीं बन सकती। अंग्रेजी, चीनी, अरबी, स्पैनिश, फ्रेंच इत्यादि के साथ ही हिन्दी दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में एक है। लेकिन इसकी तुलना अगर अन्य भाषाओं से करें तो ये कई मामलों में पिछड़ी नजर आती है और इसके लिए जिम्मेदार है कुछ हिन्दी प्रेमियों का संकीर्ण नजरिया। हिन्दी के विकास में सबसे बड़ी बाधा वो शुद्धतावादी हैं जो इसमें से फारसी, अरबी, तुर्की और अंग्रेजी इत्यादि भाषाओं से आए शब्दों को निकाल देना चाहते हैं। ऐसे लोग संस्कृतनिष्ठ तत्सम शब्दों के बोझ तले कराहती हिन्दी को “सच्ची हिन्दी” मानते हैं। लेकिन यहाँ मशहूर भाषाविद प्रोफेसर गणेश देवी को याद करने की जरूरत है जो कहते हैं भाषा जितनी भ्रष्ट होती है उतनी विकसित होती है।
प्रोफेसर देवी का सीधा आशय है कि जिस भाषा में जितनी मिलावट होती है वो उतनी समृद्धि और प्राणवान होती है। अंग्रेजों को लूट, डकैती, धोती और पंडित जैसे खालिस भारतीय शब्द अपनी भाषा में शामिल करने में कोई लाज नहीं आती लेकिन भारतीय शुद्धतावादी लालटेन, कम्प्यूटर, अस्पताल, स्कूल, इंजन जैसे शब्दों को देखकर भी मुँह बिचकाते हैं जिनका प्रयोग अनपढ़ और गंवई भारतीय भी आसानी से कर लेते हैं। तो हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने के लिए जरूरी है कि वो समस्त भारतीय भाषाओं और अन्य भाषाओं से अपनी जरूरत के हिसाब से शब्दों को लेने में जरा भ संकोच न करे। हम परायी भाषा के शब्दों को हिन्दी में जबरन घुसेड़ने की वकालत नहीं कर रहे। लेकिन जो शब्द सहज और सरल रूप से हिन्दी में रच-बस गये हों उन्हें गले लगाने की बात कर रहे हैं।
हिन्दी के राष्ट्रभाषा बनने में दूसरी बड़ी दिक्कत है इसका ज्ञान-विज्ञान में हाथ तंग होना। कोई भाषा केवल अनुपम साहित्य के बल पर राष्ट्रभाषा का दायित्व नहीं निभा सकती। भाषा को ज्ञान, विज्ञान, व्यापार और संचार इत्यादि क्षेत्रों के लिए भी खुद को तैयार करना होता है। आज हिन्दी इन क्षेत्रों में दुनिया की अन्य बड़ी भाषाओं से पीछे है। गैर-साहित्यिक क्षेत्रों में हिन्दी में उच्च गुणवत्ता के चिंतन और पठन सामग्री के अभाव से हिन्दी बौद्धिक रूप से विकलांग प्रतीत होती है। आज जरूरत है कि विज्ञान और समाज विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दुस्तानी को बढ़ावा दिया जाए। तभी सही मायनो में हिन्दी देश की राष्ट्रभाषा बन सकेगी। अगर इन दो बातों पर पर्याप्त ध्यान दिया जाए तो हिन्दी को वैश्विक स्तर पर पहचान और प्रतिष्ठा पाने से कोई नहीं रोक सकेगा।
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हिन्दी हिन्दुस्तान को बांधती है. कभी गांधीजी ने इसे जनमानस की भाषा कहा था तो इसी हिन्दी की खड़ी बोली को अमीर खुसरो ने अपनी भावनाओं को प्रस्तुत करने का माध्यम भी बनाया. लेकिन यह किसी दुर्भाग्य से कम नहीं कि जिस हिन्दी को हजारों लेखकों ने अपनी कर्मभूमि बनाया, जिसे कई स्वतंत्रता सेनानियों ने भी देश की शान बताया उसे देश के संविधान में राष्ट्रभाषा नहीं बल्कि सिर्फ राजभाषा की ही उपाधि दी गई. कुछ तथाकथित राष्ट्रवादियों की वजह से हिन्दी को आज उसका वह सम्मान नहीं मिल सका जिसकी उसे जरूरत थी.
संविधान ने 14 सितंबर, 1949 को हिन्दी को भारत की राजभाषा घोषित किया था. भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343 (1) में यह वर्णित है कि “संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी. संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय होगा.
इसके बाद साल 1953 में हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है.
लेकिन क्या हिन्दी को सिर्फ राजभाषा तक ही सीमित रखना उचित है? आखिर क्या जनमानस की इस भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा पाने का हक नहीं है?
जिस हिन्दी को संविधान में सिर्फ राजभाषा का दर्जा प्राप्त है उसे कभी गांधी जी ने खुद राष्ट्रभाषा बनाने की बात कही थी. सन 1918 में हिंदी साहित्य सम्मलेन की अध्यक्षता करते हुए गांधी जी ने कहा था की हिंदी ही देश की राष्ट्रभाषा होनी चाहिए. लेकिन आजादी के बाद ना गांधीजी रहे ना उनका सपना. सत्ता में बैठे और भाषा-जाति के नाम पर राजनीति करने वालों ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा नहीं बनने दिया.
पहली बार सही मायनों में हिन्दी की खड़ी बोली का इस्तेमाल अमीर खुसरों की रचनाओं में देखने को मिलता है. अमीर खुसरो ने हिन्दी को अपनी मातृभाषा कहा था.
इसके बाद हिन्दी का प्रसार मुगलों के साम्राज्य में ही हुआ. इसके अलावा खड़ीबोली के प्रचार-प्रसार में संत संप्रदायों का भी विशेष योगदान रहा जिन्होंने इस जनमानस की बोली की क्षमता और ताकत को समझते हुए अपने ज्ञान को इसी भाषा में देना सही समझा.
भारतीय पुनर्जागरण के समय भी श्रीराजा राममोहन राय, केशवचंद्र सेन और महर्षि दयानंद जैसे महान नेताओं ने हिन्दी की खड़ी बोली का महत्व समझते हुए इसका प्रसार किया और अपने अधिकतर कार्यों को इसी भाषा में पूरा किया. हिन्दी के लिए पिछली सदी कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है. इस सदी में हिन्दी गद्य का न केवल विकास हुआ, वरन भारतेंदु हरिश्चंद्र ने उसे मानक रूप प्रदान किया. खड़ी बोली को और भी प्रसार दिया महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” और सुमित्रानंदन पंत जैसे रचनाकारों ने.
आजादी की लड़ाई में हिन्दी ने विशेष भूमिका निभाई. जहां एक ओर रविन्द्रनाथ टैगोर ने बांग्ला भाषा का ज्ञाता होते हुए भी हिन्दी को ही जनमानस की भाषा बताया तो वहीं देश के क्रांतिकारियों ने जनमानस से संपर्क साधने के लिए इसी भाषा का प्रयोग किया.
लेकिन जब भारत आजाद हुआ तब इसे कई गुटों ने राष्ट्रभाषा बनाने का विरोध किया जिसमें प्रमुख थे द्रविदर कझगम (Dravidar Kazhagam), पेरियार (Periyar), और डीएमके. हिन्दी के विरोध में इन लोगों ने तमिलनाडु और अन्य दक्षिणी राज्यों में आंदोलन चलाए. हिन्दी के विरोध में कई लोगों ने बकायदा 13 अक्टूबर 1957 को “हिन्दी विरोध दिवस”(Anti-Hindi Day) के रूप में मनाया.
पर कुछ नेता ऐसे भी थे जो हिन्दी को देश की राष्ट्रभाषा बनाने के हिमायती थे. लाल बहादुर शास्त्री, पंडित जवाहरलाल नेहरू, मोरजी देसाई जैसे नेता चाहते थे कि हिन्दी को देश की राष्ट्रभाषा का गौरव प्राप्त हो पर राजनीति की बिसात पर उनकी चाह दबी रह गई. उस समय तमिलनाडु, मद्रास, केरल और अन्य जगह हिन्दी के विरुद्ध फैल रहे आंदोलन दंगों की सूरत लेने पर आमादा थे इसलिए जब पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने हिन्दी को अंग्रेजी के साथ ही चलाते रहने का फैसला किया.
जब 1949 में पहली बार हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया तब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दक्षिण हिन्दी प्रसार सभा का गठन भी कराया ताकि 15 सालों के कार्यकाल में वह हिन्दी को दक्षिण भारत में भी लोकप्रिय और आम बोलचाल की भाषा बनाए लेकिन ऐसा हो नहीं सका. 1949 में जब हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था तक तय किया गया था कि 26 जनवरी, 1965 से सिर्फ हिन्दी ही भारतीय संघ की एकमात्र राजभाषा होगी.
लेकिन 15 साल बीत जाने के बाद जब इसे लागू करने का समय आया तो तमिलों के विरोध के चलते प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हे यह आश्वासन दिया कि जब तक सभी राज्य हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप मे स्वीकार नहीं करेंगे अंग्रेजी हिन्दी के साथ राजभाषा बनी रहेगी. इसका परिणाम यह निकला कि आज भी हिन्दी अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही है.
जाति और भाषा के नाम पर राजनीति करने वाले चन्द राजनेताओं की वजह से देश का सम्मान बनने वाली भाषा सिर्फ राजभाषा तक ही सीमित रह गई. बची-खुची कसर आज के बाजारीकरण ने पूरी कर दी जिस पर अंग्रेजी की पकड़ है. आज हिन्दी जानने और बोलने वाले को बाजार में एक गंवार के रूप में देखा जाता है. जब आप किसी बड़े होटल या बिजनेस क्लास के लोगों के बीच खड़े होकर गर्व से अपनी मातृभाषा का प्रयोग कर रहे होते हैं तो उनके दिमाग में आपकी छवि एक गंवार की बनती है.
उपरोक्त सभी बातें जहां हिन्दी के गौरवपूर्ण इतिहास पर प्रकाश डालती हैं तो वहीं हिन्दी की बर्बादी के मुख्य कारणों को भी समान रूप से उभारती हैं. लेकिन ऐसा नही हैं कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिल ही नहीं सकता. जानकार मानते हैं कि अगर आज भी पूरा हिन्दुस्तान एक होकर हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए राजी हो जाए तो संविधान में उसे यह स्थान मिल सकता है. तो चलिए आज एक लहर की शुरुआत करें अपनी मातृभाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए. जय हिन्द जय हिंदी.
हिंदी दिवस भाषण
भारत दुनिया के सबसे विविध देशों में से एक है जिसमें कई धर्म, रीति-रिवाज, परंपराएँ, व्यंजन और भाषाएँ सम्मिलित हैं। हिंदी भारत की सर्वप्रमुख भाषाओं में से एक है और 2001 में, इस भाषा के लगभग 26 करोड़ देशव्यापी वक्ता थे, जिससे यह भाषा देश में सबसे अधिक और व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषा बन गई है।
जब 14 सितंबर 1949 को हिंदी भाषा को भारत में गौरवान्वित स्थान मिला, तो इसे देश की शासकीय भाषा के रूप में अपनाया गया। 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। आज, हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त है।
हिंदी दिवस को शैक्षिक संस्थानों और सरकारी कार्यालयों में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है।
वर्तमान समय में, अत्यधिक व्यावसायिक वातावरण में, जहाँ लोग अपनी मूल भाषा को भूल रहे हैं, वहाँ हिंदी दिवस एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे न केवल लोगों को अपनी मूल संस्कृति के संपर्क में रहने के लिए प्रोत्साहन मिलता है बल्कि साथ ही हिंदी को बढ़ावा भी मिलता है। अफसोस की बात है, ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपनी मातृभाषा को बोलने में संकोच महसूस करते हैं। हिंदी दिवस हमें यह एहसास कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है कि हिंदी दुनिया की सबसे पुरानी और सबसे प्रभावशाली भाषाओं में से एक है, इसलिए हमें अपनी मातृभाषा को बोलने में गर्व महसूस करना चाहिए।
हिंदी मनीषियों (ज्ञानियों) की भाषा है और इस भाषा में कई साहित्यिक रचनाएं लिखी गई हैं। रामचरितमानस हिंदी भाषा में लिखी गई सबसे बड़ी साहित्यिक रचनाओं में से एक है। 16 वीं सदी में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित इस रचना में राम के चरित्र का वर्णन किया गया है। हिंदी भाषा में कुछ अन्य रचनाएँ जैसे हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित मधुशाला, मुंशी प्रेमचंद द्वारा रचित निर्मला और देवकी नंदन खत्री द्वारा रचित चंद्रकांता आदि हैं।
हिंदी सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक है और संस्कृत भाषा की वंशज (अवरोही) है। हिंदी आधुनिक इंडो-आर्यन (भारतीय-आर्यों की) भाषाओं की शाखा से संबंधित है। हालाँकि, हिंदी में विगत कई शताब्दियों में काफी बदलाव हुआ और आखिरकार अब यह अपने मौजूदा स्वरूप में विकसित हुई है। प्रारंभिक समय में हिंदी के तीन रूप- हिन्दवी, हिंदुस्तानी और खड़ी-बोली थे। इनका उपयोग 10 वीं शताब्दी में किया जाता था। हिंदी का साहित्यिक इतिहास 12 वीं शताब्दी से पहले का है। हिंदी का आधुनिक अवतार लगभग 300 वर्ष पुराना है, जो कि वर्तमान युग में अधिकतर उपयोग में लाया जाता है।
वास्तव में, अंग्रेजी के साथ ही हिंदी को भी राष्ट्र की शासकीय भाषा के रूप में चुना गया क्योंकि हिंदी ही एकमात्र भाषा थी जो सम्पूर्ण राष्ट्र को एकीकृत कर सकती थी। वास्तव में, 1917 में महात्मा गांधी ने गुजरात शिक्षा सम्मेलन, भारुच में एक भाषण प्रस्तुत किया और हिंदी के महत्व को रेखांकित किया। उस विशेष सम्मेलन में, गांधीजी ने स्पष्ट किया कि हिंदी पूर्वकाल से ही अधिकांश भारतीयों द्वारा बोली जाती है इसलिए इसे राष्ट्रीय भाषा के रूप में अपनाया जा सकता है। उन्होंने भाषा के महत्व को रेखांकित करते हुए आगे बताया कि इसका प्रयोग धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक संचार के एक माध्यम के रूप में किया जा सकता है।
इसलिए 14 सितंबर 2017 को हम अत्यधिक आत्मिक खुशी और गर्व के साथ हिंदी दिवस मनाते हैं। यह हमारी राष्ट्रीय भाषा है और इसने हमें अपनी निराली पहचान प्रदान की है। हिंदी में बात करते समय हमें हमेशा गर्व महसूस करना चाहिए। हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
हिंदी दिवस पर भाषण
यह वह दिन है जब हम सभी अपनी राष्ट्रभाषा – हिंदी का प्रचार और प्रसार करते हैं। हिंदी दुनिया भर में अधिकांश लोगों द्वारा बोली जाने वाली मूल भाषा है। यह भाषा भारत की मातृभाषा के रूप में घोषित की गई है। इस दिन कई सत्र, सेमिनार, समारोह आदि का आयोजन किया जाता है। इन समारोहों के दौरान विभिन्न हिंदी कविताओं, निबंधों आदि का आयोजन किया जाता है। इस दिन के पीछे का मुख्य एजेंडा है लोगों को हिंदी भाषा की आवश्यकता को पहचानना और लोगों को भी यह समझना चाहिए कि जो कोई सही तरीके से हिंदी भाषा बोलता है वह पिछड़ा हुआ नहीं है बल्कि यह वह है जो संजीदगी से हिंदी भाषा को आगे ले जा रहा है।
यह दिन हमारी मातृभाषा को सम्मान देने के लिए सालाना तौर पर मनाया जाता है। पूरे देश में हिंदी दिवस का उत्सव मनाया जाता है जो कि सबसे अधिक प्रचलित हिंदी भाषा के महत्व को दर्शाता है। इस दिन को देवनागरी लिपि में आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकृत हिंदी भाषा के प्राचीन समय को पहचानने के लिए कानूनी समर्पित दिन के रूप में घोषित किया गया है।
आजकल लोग अंग्रेजी सीखने के लिए उत्सुक हैं और महसूस करते हैं कि यदि वे हिंदी में बोलते रहे तो यह उनके कैरियर को प्रतिबंध या उनकी प्रगति में बाधाएं उत्पन्न कर सकता है। लेकिन ऐसा नहीं है लोगों के लिए आगे बढ़ना और अन्य भाषाओं को सीखना महत्वपूर्ण है लेकिन हमारी मातृभाषा के महत्व को भूलना या कम करना, यह सही रास्ता नहीं है जिस पर हम आगे बढ़ते हैं। मेरे स्कूल के दिनों के दौरान हमारे शिक्षक विशेष रूप से विभिन्न प्राचीन हिंदी विषयों पर अंतर-कक्षाओं के बीच निबंध लेखन और कविता का पाठ सत्र का आयोजन करते रहते थे। वह समय वाकई मज़ेदार, मनोरंजक और शिक्षा के लिए इस्तेमाल होता था लेकिन आजकल स्कूलों का ध्यान ऑक्सफ़ोर्ड अध्ययन की दिशा में अधिक स्थानांतरित हो गया है और इसलिए वे सभी आयु समूहों में अंग्रेजी भाषा को बढ़ावा देते हैं। यह भी आवश्यक है लेकिन हमारे भीतर हिंदी भाषा का उत्तराधिकारी होने की जड़ होना बहुत महत्वपूर्ण है।
हमें भारत के नागरिकों के रूप में अपनी मातृभाषा – हिंदी को अन्य भाषाओं और दुनिया के अन्य देशों में मान्यता के महत्व को प्राप्त करने पर ध्यान देना चाहिए। इस प्रामाणिक भाषा के अस्तित्व का आकलन करने के कारण हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवसों के रूप में मनाया जाता है। मेरे विचार के अनुसार प्रत्येक विद्यालय, महाविद्यालय और संगठन को इस दिन हमारी हिंदी भाषा को समर्पित विशेष प्रतियोगिताओं के द्वारा मनाना चाहिए। कविता लेखन और कविता सुनाना, कथालेखन और कथा सुनाना, निबंध लेखन और हिंदी शब्दावली की प्रश्न उत्तर आदि के विभिन्न सत्रों को व्यवस्थित किया जा सकता है ताकि अन्य लोगों के साथ युवा पीढ़ी हिंदी भाषा से ज्यादा जुड़ी हो।
इस सत्र का एक हिस्सा बनने के लिए आप सभी को धन्यवाद। जय हिंद! जय भारत! हिंदी भाषा हमारी रगों में दौड़ती है। हम सभी हर वर्ष एक साथ हिंदी दिवसों पर विशेष पहल करने की प्रतिज्ञा करते हैं जिससे कि हिंदी भाषा और हिंदी दिवस का अविश्वसनीय मूल्य प्रमुखता पर बना रहे।
Hindi diwas speech in Hindi
आज 14 सितंबर है। क्या आप में से किसी को इस तिथि के संबंध में कुछ याद है? आप में से अधिकांश लोग इसका जवाब नहीं दे पाएंगे केवल साहित्य अनुभाग से ही कुछ लोगों को इसका जवाब पता है। 14 सितंबर वह दिन है जो हिंदी दिवस के रूप में समर्पित है। एक दिन जिसे हमारी मातृभाषा – हिंदी भाषा को सम्मान देने और समर्पित करने के लिए आवंटित किया गया है।
इस दिन हमारे स्कूल की तरह कई स्कूल, कॉलेज और कार्यालयों में विशेष कार्यक्रम, सत्र और प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है जिसमें हिंदी कविताएं, निबंध, कहानियां, प्रश्नोत्तरी आदि का आयोजन किया जाता है। यह हमारी दोहरी पूर्ति करता है एक हिंदी में उनकी शब्दावली का परीक्षण करने के लिए और दूसरा हिंदी भाषा के साथ जुड़ा हुआ महसूस करने के लिए। इसी के साथ इस दिन विशेष गायन प्रतियोगिताओं और अंताक्षरी खेलों का भी आयोजन किया जाता है। यह सब हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के प्रयास हैं जो एक राष्ट्र को एकजुट करता है।
विदेशी देशों में वहां के नागरिकों को पैसे लेकर उन्हें हिंदी सीखने के लिए स्वैच्छिक कक्षाएं लगाई जाती हैं। विभिन्न देशों में हिंदी सीखना नागरिकों के लिए बहुत उत्साही बात है। ईमानदारी से कहूँ तो दोस्तों हम भारत में फ्रांसीसी, स्पैनिश, आदि सीखते हैं। इसमें अपना करियर बनाना हमारा मकसद है परन्तु विदेश में लोग कैरियर बनाने के मकसद से नहीं बल्कि हिंदी में उनकी रूचि है इसलिए वे हिंदी सीखते हैं। हम भारतीयों के रूप में इस भाषा के अस्तित्व का समर्थन करते हैं और हर साल हिंदी दिवस के विशेष अवसर पर हमें खुद को छोटे रूप से संगठित करना चाहिए जिसमें हमें लोगों को विशेष प्रामाणिक विषयों पर कुछ हिंदी निबंध लिखने के लिए तैयार करना चाहिए। इससे लोग मातृभाषा से अधिक जुड़ेंगे और इस भाषा के अस्तित्व के प्रति और अधिक संतुष्ट महसूस कर सकेंगे।
हम देश के सतर्क नागरिकों के रूप में समाज में आगे बढ़ने और हमारी हिंदी भाषा की स्थिर पहचान के लिए हमारे समर्थन को आगे बढ़ाने की जरूरत है। हमें यह समझना चाहिए कि यह भाषा कितनी महत्वपूर्ण है यह स्पष्ट रूप से तब नोटिस में आता है जब हमें यह जानकारी मिलती है कि हमारी हिंदी भाषा ने इस दिन अपने जश्न के लिए कितनी प्रसिद्धी पाई है। वह गर्व का दिन था जब हिंदी भाषा को देवनागरी लिपि में मान्यता मिली। इस भाषा ने विश्व स्तर पर अपनी उपस्थिती दर्ज कराने के लिए एक लंबा रास्ता तय किया है।
अगर हम सभी हिंदी भाषा का समर्थन करें और हिंदी भाषा को सम्मान दें तो अंत में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हम हमारे देश के लिए सम्मान और समर्थन देते हैं। वर्तमान में बहुत सारे लेखक ऐसे हैं जो अत्यंत प्रामाणिक हिंदी लेखन के लिए समर्पित हैं और दूसरी कोई आग्रह नहीं करते हैं। हम सभी को साल भर में एक बार हिंदी दिवस समारोह का हिस्सा बनना चाहिए और हमें इसके अलावा कई गतिविधियों में संलग्न होना चाहिए जो हमारी मातृभाषा से संबंधित हैं।
इस सत्र का हिस्सा बनने के लिए आप सभी को धन्यवाद और हम सभी युवाओं को हमारी हिंदी भाषा की प्रगति के लिए समर्पित रहना चाहिए और हिंदी दिवस के अस्तित्व को प्रभावी ढंग से संबोधित करना चाहिए।
हिंदी दिवस पर लेख
लेख (300 शब्द)
प्रस्तावना
भारत के संविधान ने देवनागरी लिपि में लिखित हिंदी को 1950 के अनुच्छेद 343 के तहत देश की आधिकारिक भाषा के रूप में 1950 में अपनाया। इसके साथ ही भारत सरकार के स्तर पर अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाएं औपचारिक रूप से इस्तेमाल हुईं। 1949 में भारत की संविधान सभा ने देश की आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी को अपनाया। वर्ष 1949 से प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है।
हिंदी दिवस का महत्व
हिंदी दिवस को उस दिन को याद करने के लिए मनाया जाता है जिस दिन हिंदी हमारे देश की आधिकारिक भाषा बन गई। यह हर साल हिंदी के महत्व पर जोर देने और हर पीढ़ी के बीच इसको बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है जो अंग्रेजी से प्रभावित है। यह युवाओं को अपनी जड़ों के बारे में याद दिलाने का एक तरीका है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कहाँ तक पहुंचे हैं और हम क्या करते हैं अगर हम अपनी जड़ों के साथ मैदान में डटे रहे और समन्वयित रहें तो हम अपनी पकड़ मजबूत बना लेंगे।
यह दिन हर साल हमें हमारी असली पहचान की याद दिलाता है और देश के लोगों को एकजुट करता है। जहां भी हम जाएँ हमारी भाषा, संस्कृति और मूल्य हमारे साथ बरक़रार रहने चाहिए और ये एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करते है। हिंदी दिवस एक ऐसा दिन है जो हमें देशभक्ति भावना के लिए प्रेरित करता है।
आज के समय में अंग्रेजी की ओर एक झुकाव है जिसे समझा जा सकता है क्योंकि अंग्रेजी का इस्तेमाल दुनिया भर में किया जाता है और यह भी भारत की आधिकारिक भाषाओं में से एक है। यह दिन हमें यह याद दिलाने का एक छोटा सा प्रयास है कि हिंदी हमारी आधिकारिक भाषा है और बहुत अधिक महत्व रखता है।
निष्कर्ष
जहाँ अंग्रेजी एक विश्वव्यापी भाषा है और इसके महत्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता है वहीँ हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम पहले भारतीय हैं और हमें हमारी राष्ट्रीय भाषा का सम्मान करना चाहिए। आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी को अपनाने से साबित होता है कि सत्ता में रहने वाले लोग अपनी जड़ों को पहचानते हैं और चाहते हैं कि लोगों द्वारा हिंदी को भी महत्व दिया जाए।