हरियाणा दिवस पर भाषण 2022 -23 Haryana Day Speech in Hindi – हरियाणा दिवस स्पीच इन हरयाणवी

हरियाणा दिवस पर भाषण

हरियाणा दिवस 2022: हरियाणा की स्थापना 1 नबम्बर 1966 में हुई थी | पंजाब से हरियाणा को अलग कर दिया गया था, तभी से 1 नवंबर को हरियाणा में हरियाणा दिवस बड़े ही उत्साह और हर्ष से मनाया जाता है | इस दिन चंडीगढ़ से पचकुला शहर में रैली निकली जातीं हैं और अलग-अलग जगह रक्त-दान शिविर भी लगाए जाते हैं | इस हरियाणा के सभी राज्य परिसरों और इमारतों को सजाया जाता है | इस दिन विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिता आयोजित कीजातीं हैं और लोग उत्साहपूर्वक उनमे भाग भी लेते हैं |

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आज हम हरियाणा का 52वां स्थापना दिवस मना रहे हैं। भौगोलिक दृष्टि से हमारे सूबे का क्षेत्रफल 44,212 वर्ग किलोमीटर है। लेकिन हमारी मांग सिर्फ इतनी ही नहीं थी। हम हरियाणा नहीं विशाल हरियाणा चाहते थे। देश के आजाद होने के बाद 1950 में ही अलग हरियाणा की मांग शुरू हो गई थी। 1954-1955 तक हमारी मांग विशाल हरियाणा की थी, जिसमें न केवल वर्तमान हरियाणा, बल्कि दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के भरतपुर व अलवर जिला तक शामिल था। तर्क भी दिया गया था कि इन इलाकों की भाषा मिलती जुलती है और देश की आजादी से पहले दिल्ली की हर हुकूमत का क्षेत्र भी लगभग इतना रहा।

बकौल 1966 में रोहतक के एपीआरओ रहे सतवीर सिंह राणा, इसे लेकर सबसे पहले सूबे में एडवोकेट आनंद स्वरूप, एडवोकेट प्रताप सिंह दौलता आदि ने अलग हरियाणा की मांग की और आंदोलन शुरू किया।

1957 तक इसमें ताऊ देवीलाल, प्रोफेसर शेरसिंह, आर्य समाज के स्वामी ओमानंद जैसे नेता भी शामिल हो गए। हरियाणा में हिंदी भाषी क्षेत्र को अलग करने की मांग उठती रही तो पंजाब में पंजाबी सूबा अलग करने के लिए आंदोलन शुरू हो गया। आखिर हुकुम सिंह कमेटी बनी और उसने हिंदी भाषी क्षेत्र को अलग हरियाणा बनाने की सिफारिश की।

कई कमीशन भी बनाए गए। जस्टिस जेसी शाह की चैयरमैनशिप में शाह कमीशन बनाया गया, जिसने 31 मई, 1966 को केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी और एक नवंबर, 1966 को हरियाणा बना। लेकिन विशाल हरियाणा नहीं। केवल संयुक्त पंजाब के हिंदी भाषी क्षेत्र को ही इसमें शामिल किया गया।

हरियाणा के लोगों की लाइफ स्टाइल में तेजी से बदलाव आया है। यहां चमचमाती गाड़ियां शहर से लेकर गांव तक घरों के बाहर खड़ी मिल जाएंगी तो शहरों की तरह सुविधायुक्त कोठियां गांवों की शान बढ़ा रही हैं।

बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक मोबाइल, कंप्यूटर और इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। गुड़गांव व फरीदाबाद तक मेट्रो पहुंच चुकी है तो बहादुरगढ़ में इसका कार्य चल रहा है।

दिल्ली से सटे होने की वजह से यहां की संस्कृति भी कुछ बदलाव आ रहा है। गुड़गांव व फरीदाबाद जैसे शहरों में रहने वालों की रहन-सहन और खान-पान पूरी तरह बदल चुका है। सूबे की अर्थ व्यवस्था कृषि पर निर्भर है। 80 फीसदी लोग कृषि करते हैं लेकिन पंजाब ने आज तक हमारे हिस्से का पानी नहीं दिया। एसएवाईएल नहर की खुदाई भी हो चुकी है। कुछ पानी दिया जो नरवाना ब्रांच में छोड़ा जाता है लेकिन वह राजनीतिक प्रभाव की वजह से हिसार, फतेहाबाद व सिरसा जिले को ही मिल रहा है।

पंजाब और हरियाणा का आज भी संयुक्त हाई कोर्ट है। इसे लेकर शुरू से ही विवाद चल रहा है। कई बार मांग भी उठती रहती है लेकिन अभी तक इस तरफ किसी भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया है। पंजाब से अलग होने पर चंडीगढ़ हरियाणा केहिस्से में आया लेकिन पंजाब देने से मना कर दिया। अब तक प्रदेश की अलग राजधानी नहीं बन पाई है।

दोनों प्रदेश की संयुक्त राजधानी आज भी चंडीगढ़ है। 1966 में बिजली व्यवस्था की हालत बिगड़ी हुई थी। गांवों में चिमनी से काम चलता था। धीरे-धीरे व्यवस्था सुधरी लेकिन आज भी 24 घंटे बिजली की बाट किसान और आम आदमी जोह रहा है। हर सरकार 24 घंटे बिजली का वादा भी करती रहती है।

हरियाणावीं खान-पान और संस्कृति की अपनी अलग पहचान है। यहां दूध-दही का खानपान है। हरियाणा केलोगों को मजबूत माना जाता है। यहां पुरुषों केपहनावे में धोती, गोल बाहों का पुराने रिवाज का कुर्ता, कमीज, पगड़ी ज्यादा पहनते हैं तो महिलाएं घाघरा, अंगिया, समीज, सलवार-कुर्ता, कढ़ाई किया हुआ ओढ़ना पहनना पसंद करती है।

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1 नवम्बर 1966 को पंजाब पुनर्गठन अधिनियम एक्ट (1966) के तहत हरियाणा राज्य का गठन हुआ। 23 अप्रैल 1966 को पंजाब राज्य को विभाजित करने और नये हरियाणा राज्य की सीमाए निर्धारित करने के लिए भारत सरकार ने जे.सी. शाह की अध्यक्षता में शाह कमीशन की स्थापना की।

जिसे भारत का ग्रीन लैंड कहा जाता है। वो हरियाणा उत्तर भारतीय राज्य है। राज्य के दक्षिण में राजस्थान और पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और उत्तर में पंजाब की सीमा और पूर्व में दिल्ली क्षेत्र है। हरियाणा और पडोसी राज्य पंजाब की भी राजधानी चंडीगढ़ ही है। इस राज्य की स्थापना 1 नवम्बर 1966 को हुई। क्षेत्रफल के हिसाब से इसे भारत का 20 वा सबसे बड़ा राज्य बनाता है।

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31 मई 1966 को कमीशन ने अपनी रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट के अनुसार कर्नल, गुडगाँव, रोहतक, महेंद्रगढ़ और हिसार जिलो को नये राज्य हरियाणा का भाग बनाया गया। साथ ही इसमें संगरूर जिले की जींद और नरवाना तहसील और नारैनगढ़, अम्बाला और जगाधरी तहसील को भी शामिल किया गया।

साथ ही कमीशन ने सिफारिश भी की के चंडीगढ़ (पंजाब की राजधानी) में शामिल खराद तहसील को भी हरियाणा में शामिल किया जाए। जबकि खराद के छोटे से भाग को ही हरियाणा में शामिल किया गया। चंडीगढ़ राज्य को केन्द्रशासित प्रदेश बनाया गया था, जो पंजाब और हरियाणा दोनों राज्य की राजधानी बनी हुई थी।

भगवत दयाल शर्मा हरियाणा के पहले मुख्यमंत्री बने।

हरियाणा दिवस पर भाषण

भारतीय गणतन्त्र में, एक अलग राज्य के रूप में, हरियाणा की स्थापना यद्यपि 1 नवम्बर, 1966 को हुई, किन्तु एक विशिष्ट ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक इकाई के रूप में हरियाणा का अस्तित्व प्राचीन काल से मान्य रहा है। यह राज्य आदिकाल से ही भारतीय संस्कृति और सभ्यता की धुरी रहा है। मनु के अनुसार इस प्रदेश का अस्तित्व देवताओं से हुआ था, इसलिए इसे ‘ब्रह्मवर्त’ का नाम दिया गया था।

हरियाणा के विषय में वैदिक साहित्य में अनेक उल्लेख मिलते हैं। इस प्रदेश में की गई खुदाईयों से यह ज्ञात होता है कि सिंधु घाटी सभ्यता और मोहनजोदड़ों संस्कृति का विकास यहीं पर हुआ था।

शास्त्र-वेत्तओं, पुराण-रचयिताओं एवं विचारकों ने लम्बे समय तक इस ब्रह्मर्षि प्रदेश की मनोरम गोद में बैठकर ज्ञान का प्रसार अनेक धर्म-ग्रन्थ लिखकर किया। उन्होने सदा मां सरस्वती और पावन ब्रह्मवर्त का गुणगान अपनी रचनाओं में किया।

इस राज्य को ब्रह्मवर्त तथा ब्रह्मर्षि प्रदेश के अतिरिक्त ‘ ब्रह्म की उत्तरवेदी’ के नाम से भी पुकारा गया। इस राज्य को आदि सृष्टि का जन्म-स्थान भी माना जाता है। यह भी मान्यता है कि मानव जाति की उत्पत्ति जिन वैवस्तु मनु से हुई, वे इसी प्रदेश के राजा थे। ष्अवन्ति सुन्दरी कथाष् में इन्हें स्थाण्वीश्वर निवासी कहा गया है। पुरातत्वेत्ताओं के अनुसार आद्यैतिहासिक कालीन-प्राग्हड़प्पा, हड़प्पा, परवर्ती हड़प्पा आदि अनेक संस्कृतियों के अनेक प्रमाण हरियाणा के वणावली, सीसवाल, कुणाल, मिर्जापुर, दौलतपुर और भगवानपुरा आदि स्थानों के उत्खननों से प्राप्त हुए हैं।

भरतवंशी सुदास ने इस प्रदेश से ही अपना विजय अभियान प्रारम्भ किया और आर्यो की शक्ति को संगठित किया। यही भरतवंशी आर्य देखते-देखते सुदूर पूर्व और दक्षिण में अपनी शक्ति को बढ़ाते गये। उन्ही वीर भरतवंशियों के नाम पर ही तो आगे चल कर पूरे राष्ट्र का नाम ‘भरत’ पड़ा।

महाभारत-काल से शताब्दियों पर्व आर्यवंशी कुरूओं ने यही पर कृषि-युग का प्रारम्भ किया। पौराणिक कथाओं के अनुसार उन्होने आदिरूपा माँ सरस्वती के 48 कोस के उपजाऊ प्रदेश को पहले-पहल कृषि योग्य बनाया। इसलिए तो उस 48 कोस की कृषि-योग्य धरती को कुरूओं के नाम पर कुरूक्षेत्र कहा गया जो कि आज तक भी भारतीय संस्कृति का पवित्र प्रदेश माना जाता है।

बहुत बाद तक सरस्वती और गंगा के बीच बहुत बड़े भू-भाग को ‘कुरू प्रदेश’ के नाम से जाना जाता रहा। महाभारत का विश्व-प्रसिद्व युद्व कुरूक्षेत्र में लड़ा गया। इसी युद्ध के शंखनादों के स्वरों के बीच से एक अद्भुत स्वर उभरा। वह स्वर था युगपुरूष भगवान कृष्ण का, जिन्होने गीता का उपदेश यहीं पर दिया था, गीता जो भारतीय संस्कृति के बीच मंत्र के रूप में सदा-सदा के लिए अमर हो गई।

महाभारत-काल के बाद एक अंधा युग शुरू हुआ जिसके ऐतिहासिक यथार्थ का ओर-छोर नहीं मिलता। परन्तु इस क्षेत्र के आर्यकुल अपनी आर्य परम्पराओं को अक्षुण्ण रखते हुए बाहर के आक्रांताओं से टकराते रहे। पुरा कुरू-प्रदेश गणों और जनपदों में बंटा हुआ था। कोई राजा नहीं होता था। गणाधिपति का चुनाव बहुमत से होता था। उसे गणपति की उपाधि दी जाती थी, सेनापति का चुनाव हुआ करता था, जिसे ‘इन्दु’ कहा जाता था। कालांतर तक यह राज-व्यवस्था चलती रही। इन गणों और जनपदों ने सदैव तलवार के बल पर अपने गौरव को बनाए रखा।

आर्यकाल से ही यहाँ के जनमानव ने गण-परम्परा को बेहद प्यार किया था। गांव के एक समूल को वे जनपद कहते थै। जनपद की शासन-व्यवस्था ग्रामों से चुने गये प्रतिनिधि संभालते थे। इसी प्रकार कई जनपद मिलकर अपना एक ‘गण’ स्थापित करते थे। ‘गण’ एक सुव्यवस्थित राजनैतिक ईकाई का रूप लेता था। ‘गणसभा’ की स्थापना जनपदों द्वारा भेजे गये सदस्यों से सम्पन्न होती थी।

यह भी देखा गया है कि इस तरह के कई ‘गण’ मिलकर अपना एक संघ बनाया करते थे, जिसे गण-संघ के रूप में जाना जाता था। यौधेय काल में इसी तरह कई गणराज्यों के संगठन से एक विशाल ‘गण-संघ’ बनाया गया था जो शतुद्रु से लेकर गंगा तक के भूभाग पर राज्य करता था।

राज्य-प्रबन्ध की यह व्यवस्था केवल मात्र राजनीतिक नहीं थी, सामाजिक जीवन में भी इस व्यवस्थाने महत्वपूर्ण स्थान ले लिया था। यही कारण था कि पूरे देश में जब गणराज्यों की यह परम्परा साम्राज्यवादी शक्तियों के दबाव से समाप्त हो गई तब भी हरियाणा प्रदेश के जनमानस ने इसे सहेजे रखा।

इस प्रदेश की महानगरी दिल्ली ने अनेक साम्राज्यों के उत्थान-पतन देखे परन्तु यहां के जन-जीवन में उन सब राजनैतिक परिवर्तनों का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि अपनी आन्तरिक-सामाजिक व्यवस्था में कभी भी इन लोगों ने बाह्म हस्तक्षेप सहन नहीं कया। इनकी गण-परम्परा को शासकों ने भी सदा मान्यता दी। हर्षकाल से लेकर मुगल-काल के अंत तक हरियाणा की सर्वोच्च पंचायत की शासन की ओर से महत्व दिया जाता रहा। सर्वशाप पंचायत के पुराने दस्तावेजों से पता चलता है कि मुगल शासकों की ओर सेे सर्वखाप पंचायत के प्रमुख को ‘वजीर’ की पदवी दी जाती थी और पंचायत के फैसलों को पूरी मान्यता मिलती थी। मुगल-काल में जनपदों का स्थान खापों ने और गणों का स्थान सर्वखाप पंचायतों ने ले लिया था। सर्वखाप पंचायत की सत्ता को सतलुज से गंगा तक मान्यता प्राप्त रही है।

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जब हरियाणा राज्य 1966 में पंजाब से बना तभी से 1 नवंबर को यह दिन हरियाणा दिवस के रूप में मनाया जाता है | इस वर्ष 2020 में, 51 वें हरियाणा दिवस पूरे राज्य में 1 नवंबर को मनाया जाएगा।

हरियाणा दिवस का विवरण

हरियाणा महोत्सव के दौरान, चंडीगढ़ से पंचकुला शहर में आयोजित रैली सह दौड़ के साथ-साथ रैली सह दौड़ भी होती है। सभी लोग उत्साही रूप से भाग लेते हैं और पूरे राज्य में सड़कों पर उत्साह और आनंद देखने को मिलता है।

हरियाणा दिवस त्यौहार का दिन पाकिस्तान परिधानियों, पर्यटक परिसरों में आयोजित खाद्य त्यौहार को दर्शाता है। हरियाणा महोत्सव में रक्त दान शिविर और अन्य रन फन इवेंट भी आयोजित किये जाते हैं। हरियाणा में हरियाणा दिवस त्यौहार में और अधिक आनंद लेने के लिए हरियाणा के लगभग सभी परिसरों में शाम को संगीत प्रदर्शन किया जाता है।

सभी राज्य परिसरों और इमारतों को उज्ज्वल ढंग से सुशोभित किया जाता है और सजाया जाता है और जो एक हंसमुख और सुंदर दृष्टि पेश करता है। हरियाणा दिवस में अधिक आनंद जोड़ने के लिए विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताओं भी आयोजित की जाती हैं। लोग प्रतियोगिताओं, जातियों और समारोहों के अन्य तरीकों में सक्रिय रूप से और उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं।

कोरोनावायरस महामारी के चलते महाराष्ट्र सरकार ने एक योजना को शुरू किया था जिसका नाम बंधकम कामगार योजना 2022 है। योजना के तहत राज्य के मजदूरों को सरकार द्वारा ₹2000 तक की आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी। वह सभी लाभार्थियों की योजना का लाभ उठाना चाहते हैं उनको ऑनलाइन पंजीकरण फॉर्म को भरना होगा। इस लेख के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि काम घर कल्याण योजना 2022 ऑनलाइन अप्लाई कैसे करें। महाराष्ट्र सरकार ने पंजीकृत श्रमिकों को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए ₹2000 तक की धनराशि देने का निर्णय लिया है। यदि आप योजना का आवेदन, बांधकाम कामगार योजना 2022 लिस्ट, bandhkam kamgar yojana renewal करना चाहते हैं तो आपको कामगार योजना की आधिकारिक वेबसाइट पर जाना होगा।

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इस योजना के तहत महाराष्ट्र राज्य के सभी कंस्ट्रक्शन वर्कर यानी मजदूरों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी जिससे कि वह यह करो ना महामारी के समय में किसी भी प्रकार की समस्या का सामना ना कर पाए। इस योजना को कई और नामों से भी जाना जाता है जैसे कि मजदूर सहायता योजना या फिर महाराष्ट्र कोरोना सहायता योजना। बांधकर कामगार योजना 2021 के अंतर्गत मजदूरों को ₹2000 तक की धनराशि प्रदान करने हेतु कई सारे नियम एवं गाइडलाइंस को जारी किया गया था।

इस योजना के अंतर्गत राज्य के 12 लाख से ज्यादा मजदूर इस योजना का लाभ उठा पाएंगे। जो भी श्रमिक विभाग के आधिकारिक वेबसाइट से पंजीकृत है तो उनको यह सहायता राशि सीधे उनके बैंक खाते में ट्रांसफर की जाएगी।

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या योजनेंतर्गत महाराष्ट्र राज्यातील सर्व बांधकाम कामगारांना आर्थिक सहाय्य केले जाईल जेणेकरुन त्यांना महामारीच्या काळात कोणत्याही प्रकारची समस्या येऊ नये. ही योजना इतर अनेक नावांनी देखील ओळखली जाते जसे की मजदूर सहायता योजना किंवा महाराष्ट्र कोरोना सहायता योजना. बांधकर कामगार योजना 2021 अंतर्गत, मजुरांना ₹ 2000 पर्यंत निधी देण्यासाठी अनेक नियम आणि मार्गदर्शक तत्त्वे जारी करण्यात आली होती. या योजनेंतर्गत राज्यातील 12 लाखांहून अधिक मजुरांना या योजनेचा लाभ घेता येणार आहे. ज्यांनी कामगार विभागाच्या अधिकृत वेबसाइटवर नोंदणी केली असेल, त्यांना ही मदत रक्कम थेट त्यांच्या बँक खात्यात हस्तांतरित केली जाईल.

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बांधकर कामगार योजना के तहत ₹2000 की आर्थिक मदद प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको इस पोर्टल पर bandhkam kamgar yojana registration करना होगा। यदि आप जानना चाहते हैं कि योजना के तहत ऑनलाइन आवेदन एवं पंजीकरण कैसे करें तो नीचे दी गई प्रक्रिया को ध्यानपूर्वक पढ़ें।

  • सर्वप्रथम इस योजना के आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं।
  • अब आपको वर्कर रजिस्ट्रेशन के लिंक पर क्लिक करना होगा।
  • अब वर्कर के लिंक पर क्लिक करें।

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  • अब आपके सामने पात्रता मापदंड की सूची खुल जाएगी।
  • आपको यह पता मापदंड की सूची एवं दस्तावेज की जांच करनी होगी।
  • दिए गए विकल्पों पर क्लिक करें।

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  • अब चेक किया और एलिजिबिलिटी के विकल्प पर क्लिक करें।
  • यदि आप इस योजना के आवेदन के लिए एलिजिबल यानी पात्र होंगे तो आपके स्क्रीन पर एक पॉपअप आएगा जिसके बाद आपको ओके के बटन पर क्लिक करना होगा।

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  • अब अपना आधार नंबर एवं आधार नंबर से लिंक मोबाइल नंबर दर्ज करें।
  • ड्रॉपडाउन में से अपना डिस्ट्रिक्ट का चयन करें।

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  • अब सेंड ओटीपी के विकल्प पर क्लिक करें।
  • रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर प्राप्त हुए ओटीपी को दर्ज करें।
  • अब रजिस्ट्रेशन फॉर्म को ध्यानपूर्वक भरे।
  • अब क्लेम के बटन पर क्लिक करें।

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जो भी इच्छुक लाभार्थी बांधकर काम घर योजना के लिए ऑनलाइन की जगह ऑफलाइन आवेदन करने के इच्छुक हैं तो वह bandhkam kamgar yojana 2021 form pdf आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं। इसके लिए हमारे द्वारा नीचे प्रदान किया गया लिंक पर क्लिक करें। अब आपके सामने एक आवेदन फॉर्म पीडीएफ फॉर्मेट में खुल जाएगा। डाउनलोड के बटन पर क्लिक करके इस फॉर्म को डाउनलोड करें। यह एक आधिकारिक आवेदन फॉर्म है जो कि सरकार द्वारा आधिकारिक वेबसाइट के माध्यम से डाउनलोड किया जा सकता है।

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महाराष्ट्र बांधकाम कामगार योजना की पात्रता

यदि आप इस योजना के तहत आवेदन करना चाहते हैं तो निम्नलिखित करना अनिवार्य है। नीचे दिए गए पात्रता मापदंडों को ध्यानपूर्वक पढ़ें।

  • आवेदन श्रमिक की आयु 18 वर्ष से 60 वर्ष के बीच में होनी चाहिए|
  • योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए श्रमिक का महाराष्ट्र इमारत एवं उत्तर बांधकाम कामगार कल्याण विभाग में रजिस्टर होना आवश्यक है।
  • योजना का आवेदन से महाराष्ट्र राज्य के स्थाई निवासी ही कर पाएंगे|
  • इस योजना का लाभ उन्हीं श्रमिकों को मिलेगा जिन्होंने पिछले 12 महीने में कम से कम 90 दिन श्रम किया हो

महाराष्ट्र बांधकाम कामगार योजना के लिए आवश्यक दस्तावेज

अगर आप कामगार योजना के तहत आवेदन करना चाहते हैं तो आपके पास नीचे दिए गए आवश्यक दस्तावेज होने अनिवार्य हैं।

  • आधार कार्ड
  • पासपोर्ट साइज फोटो
  • 90 दिन का श्रम सर्टिफिकेट
  • मोबाइल नंबर
  • निवास प्रमाण पत्र
  • पहचान प्रमाण पत्र
  • आय प्रमाण पत्र

कामगार कल्याण योजना  मान्यता प्राप्त कार्यों की सूची (बांधकाम कामगार सूची)

  • इमारतें,
  • सड़कें,
  • सड़कें,
  • रेलवे,
  • ट्रामवेज,
  • हवाई क्षेत्र,
  • सिंचाई,
  • जल निकासी,
  • तटबंध और नौवहन कार्य,
  • बाढ़ नियंत्रण कार्य (तूफान जल निकासी कार्य सहित),
  • पीढ़ी,
  • बिजली का पारेषण और वितरण,
  • वाटर वर्क्स (पानी के वितरण के लिए चैनल सहित),
  • तेल और गैस प्रतिष्ठान,
  • विद्युत लाइनें,
  • तार रहित,
  • रेडियो,
  • टेलीविजन,
  • टेलीफोन,
  • टेलीग्राफ और विदेशी संचार,
  • बांध,
  • नहरें,
  • जलाशय,
  • जलकुंड,
  • सुरंगें,
  • पुल,
  • पुलिया,
  • एक्वाडक्ट्स,
  • पाइपलाइन,
  • टावर्स,
  • जल शीतलक मीनार,
  • ट्रांसमिशन टावर्स और ऐसे ही अन्य कार्य,
  • पत्थर को काटना, तोड़ना और पत्थर को बारीक पीसना।
  • टाइलों या टाइलों को काटना और पॉलिश करना।
  • पेंट, वार्निश आदि के साथ बढ़ईगीरी,
  • गटर और नलसाजी कार्य।,
  • वायरिंग, वितरण, टेंशनिंग आदि सहित विद्युत कार्य,
  • अग्निशामक यंत्रों की स्थापना और मरम्मत।,
  • एयर कंडीशनिंग उपकरण की स्थापना और मरम्मत।,
  • स्वचालित लिफ्टों आदि की स्थापना,
  • सुरक्षा दरवाजे और उपकरणों की स्थापना।,
  • लोहे या धातु की ग्रिल, खिड़कियां, दरवाजों की तैयारी और स्थापना।
  • सिंचाई के बुनियादी ढांचे का निर्माण।,
  • बढ़ईगीरी, आभासी छत, प्रकाश व्यवस्था, प्लास्टर ऑफ पेरिस सहित आंतरिक कार्य (सजावटी सहित)।
  • कांच काटना, कांच पर पलस्तर करना और कांच के पैनल लगाना।
  • कारखाना अधिनियम, 1948 के अंतर्गत नहीं आने वाली ईंटों, छतों आदि को तैयार करना।
  • सौर पैनल आदि जैसे ऊर्जा कुशल उपकरणों की स्थापना,
  • खाना पकाने जैसे स्थानों में उपयोग के लिए मॉड्यूलर इकाइयों की स्थापना।
  • सीमेंट कंक्रीट सामग्री आदि की तैयारी और स्थापना,
  • स्विमिंग पूल, गोल्फ कोर्स आदि सहित खेल या मनोरंजन सुविधाओं का निर्माण,
  • सूचना पैनल, सड़क फर्नीचर, यात्री आश्रय या बस स्टेशन, सिग्नल सिस्टम का निर्माण या निर्माण।
  • रोटरी का निर्माण, फव्वारे की स्थापना आदि।
  • सार्वजनिक पार्कों, फुटपाथों, सुरम्य इलाकों आदि का निर्माण।

2021 update

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