Bachon Ki Kahaniyan in Hindi: कहानियाँ हमेशा सीख व ज्ञान प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका मानी जाती हैं| कहानियाँ बहुत पुराने समय से लिखी जा रही हैं| बच्चो के लिए तो खासकर कहानी पढ़ना काफी आवश्यक है क्योंकि इन्ही की वजह से बच्चो को सीख सीखने को मिलती है| इसलिए छोटी कक्षा 2,3,4,5,6,7,8,9 के लिए हम लाये हैं बच्चों की छोटी कहानियाँ यानी की बच्चों की कहानी हिंदी में – Kids Stories|
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हिंदी कहानी बच्चों के लिए (Hindi Stories for Kids)
बाल कहानियाँ बच्चो को शिक्षा प्राप्त करने में सबसे आवश्यक होती हैं और इससे उनकी पढ़ने व समझने की क्षमता भी बढ़ती है| आइये देखें कुछ bachchon ke liye janvar ki chhoti kahaniyan, Hindi Kahani for Children:
दयालु शेर
एक जंगल में एक शेर सो रहा था की अचानक एक चूहा शेर को सोता देखकर उसके उपर आकर खेलने लगा जिसके कारण उछलकूद से शेर की नीद खुल गयी और उसने उस चूहे को पकड़ लिया तो चूहा डर के कापने लगा औ शेर से बोला हे राजन हमे माफ़ कर दो जब कभी आपके ऊपर कोई दुःख आएगा तो मै आपकी सहायता कर दूंगा तो शेर हसते हुए बोला मै सबसे अधिक शक्तिशाली हु मुझे किसी की सहायता की क्या जरूरत, यह कहते हुए उसने चूहे को छोड़ दिया
चिड़िया का साहस
बच्चों ये एक चिड़िया की कहानी है जिसने अपने सहस और बुद्धिमानी से छोटे बड़े सब जानवरों और पक्षियों को इकठ्ठा कर एक भयंकर दुविधा का सामना किया।
एक बड़े से घने जंगल में आग लग गयी तो सभी जानवर भागने लगे। पूरे जंगल में हरबड़ी सी मच गयी। सब अपनी जान बचा जंगल छोड़ भागने लगे।
तभी एक नन्ही से चिड़िया ने यह सब देखा तो हैरान रह गयी कि आग तो कोई बुझा नहीं रहा बस सब भाग रहे हैं। वो फ़ौरन पास की नदी पर गयी और अपनी छोटी सी चोंच में पानी भर लायी और जलती आग पर फ़ेंक दिया। इसी तरह उसने ना जाने कितने चक्कर लगाए। बार बार वो जाती अपनी चोंच को पानी से भर्ती और आग पर फ़ेंक देती।
यह सब कुछ और जानवर भी देख रहे थे। वो सब चिड़िया पर हँस रहे थे और कह रहे थे ” चिड़िया रानी, तुम्हारे इस चोंच भर पानी से आग नहीं भुझेगी, तुम तो अपनी जान बचा भाग लो।”
तब चिड़िया ने जवाब दिया “अरे, भाग तो मैं भी सकती हूँ तुम डरपोक जानवरों की तरह, पर मैं तो आग बुझाने की कोशिश करती रहूँगी अपना जंगल बचाने के लिए।”
चिड़िया की बात सुन सब का सर शर्म से झुक गया। तब सब ने मिल कर भागते हुए और जानवरों और पक्षियों को रोक कर समझाया।
और फिर सब ने मिल कर नदी के पानी से जंगल में लगी आग पर काबू पा लिया।
शिक्षा– तभी कहते हैं कि बुरे वक़्त में साहस और बुद्धिमता से काम लो तो जीत होगी।
मन
सुबह होते ही, एक भिखारी नरेन्द्रसिंह के घर पर भिक्षा मांगने के लिए पहुँच गया। भिखारी ने दरवाजा खटखटाया, नरेन्द्रसिंह बाहर आये पर उनकी जेब में देने के लिए कुछ न निकला। वे कुछ दुखी होकर घर के अंदर गए और एक बर्तन उठाकर भिखारी को दे दिया।
भिखारी के जाने के थोड़ी देर बाद ही वहां नरेन्द्रसिंह की पत्नी आई और बर्तन न पाकर चिल्लाने लगी- “अरे! क्या कर दिया आपने चांदी का बर्तन भिखारी को दे दिया। दौड़ो-दौड़ो और उसे वापिस लेकर आओ।”
नरेन्द्रसिंह दौड़ते हुए गए और भिखारी को रोककर कहा- “भाई मेरी पत्नी ने मुझे जानकारी दी है कि यह गिलास चांदी का है, कृपया इसे सस्ते में मत बेच दीजियेगा। ”
वहीँ पर खड़े नरेन्द्रसिंह के एक मित्र ने उससे पूछा- मित्र! जब आपको पता चल गया था कि ये गिलास चांदी का है तो भी उसे गिलास क्यों ले जाने दिया?”
नरेन्द्रसिंह ने मुस्कुराते हुए कहा- “मन को इस बात का अभ्यस्त बनाने के लिए कि वह बड़ी से बड़ी हानि में भी कभी दुखी और निराश न हो!”
शिक्षा– मन को कभी भी निराश न होने दें, बड़ी से बड़ी हानि में भी प्रसन्न रहें। मन उदास हो गया तो आपके कार्य करने की गति धीमी हो जाएगी। इसलिए मन को हमेशा प्रसन्न रखने का प्रयास करें।
हिन्दी बाल कहानियाँ
एक थी राजकुमारी
दूर देश में एक राज्य था । उसपर राजा मंगलदेव राज करते थे । उनकी एक सुंदर सी बेटी थी । उसे सभी परी राजकुमारी के नाम से जानते थे । राजा उसको बहुत मानते थे और उनकी प्रजा भी राजकुमारी को बहुत चाहती थी । एक दिन परी राजकुमारी महल के छत पर सोई हुई थी । उधर से एक मायावी दानव आकाश मार्ग से कही जा रहा था । उसकी नज़र राजकुमारी पर पड़ी । वह उसकी सुंदरता पर मोहित हो गया और उसने उसे पलंग सहित उठाकर अपने महल ले आया । सुबह जब राजकुमारी महल में कहीं नहीं दिखी तो सभी उसे खोजने लगे । पर राजकुमारी को कहीं न पाकर सब घबराए । राजा ने मुनादी कराया कि जो राजकुमारी को खोज कर ला देगा वह उसे इनाम देगा । राम गढ़ के राजकुमार ने इस बीड़ा को उठाया और खोजते – खोजते वह दानव की गुफा तक जा पहुंचाऔर दानव को मारकर राजकुमारी को वापस लाया । चारों तरफ खुशियाँ चा गई । सबने राजकुमार की प्रशंसा की । . यह कहानी दादाजी ने बच्चो को सुनाई , बच्चों ने इसे बड़े ध्यान से सुना बीच –बीच वे दादा जी से प्रश्न भी करते और वह उसका जवाब भी देते । कहानी खत्म हो गई । बच्चों का अच्छा मनोरंजन हुआ । आइये हम बड़े लोग इस कहानी पर थोड़ी चर्चा करते हैं । इस कहानी को पढ्ने के बाद कुछ लोग यह कह सकते हैं कि इस विज्ञान भरे युग में परियों – राजा –रानी कि कथा नहीं चलती ,कुछ लोग इसे बड़े चाव से सुनते है और इसे सही मानते हैं । यह दोनों ही बात बहस –विवाद का मुद्दा हो सकता है ,पर इसमें एक बात पर हम तर्क अवश्य कर सकते हैं और मुझे लगता है कि इसपर आपका भी मत मेरे साथ हो सकता है । इस पूरी कहानी में दो पक्ष हैं । एक अच्छा और दूसरा बुरा । दानव बुरा का प्रतीक है तो राजकुमार अच्छा का । दानव बुरा कर्म करता है तो राजकुमार उसे मारकर अच्छा काम करता है और लोगों को खुश करता है और प्रशंसा का पात्र बनता है । यानि , अच्छा काम करना चाहिए इसका संस्कार बच्चों के कोमल मन – मस्तिष्क में कहानियों , लॉरियों के माध्यम से बचपन में ही डालने का काम होता था जो उनके साथ आजीवन रहता था । इस कारण वे बुरे कर्म से भागते भी थे और बुरे कर्म करने वाले को रोकते भी थे । पर ,आज ऐसी सीख भरी कहानियाँ न तो मिलती है और न कोई सुनाने वाला है । अब इसका स्थान टीवी ने ले लिया जहां न तो संस्कार है और न ही उचित शब्दों का चयन । दूसरा पक्ष कहानियों ,लॉरियों से बच्चों की एकाग्रता और उसके भावनात्मकता को बल मिलता था ,जिस कारण स्नेह ,प्रेम ,सहानभूति समाज में ज्यादा थी । तीसरा पक्ष – हमारे बच्चों के पाठ्यक्रम से महापुरुषों की जीवनियाँ को हटा दिया गया है । उनके जीवन से बच्चे जो प्रेरणा ले पाते पाठ्यक्रम से हट जाने से वे इससे वचित हो गए । अब सवाल यह है कि हमने अपने बच्चों को क्या दिया है जिस कारण हम उससे अच्छे कर्म की अपेक्षा करे ? आज समाज में जिस प्रकार की घटना घट रही है उसके लिए हम चाहे लाख कोस ले पर ज़िम्मेवार तो हम और हमारी शिक्षा है । हमने बच्चों के बचपन को अर्थ के संग्रह में समाप्त कर दिया है । जिस उम्र में उसे संस्कार मिलनी चाहिए उस समय उसे अपने सपनों का संवाहक बनने की प्रेरणा देते हैं । बच्चा न तो स्वय का रह पाता है और न ही समाज ,राष्ट्र का ,वह एक मशीन है ,मशीन से कैसी आशा ? किसी को फांसी चढ़ाने की नौबत न आए ऐसी शिक्षा और वातावरण बनाने की जरूरत है । इसका अर्थ यह नहीं कि ऐसे लोग नहीं होंगे पर कम अवश्य हों ।
बच्चों की कहानियाँ पिटारा
सचाई ख़ुशी देती है
विक्की बहुत खुश था। क्योंकि कल उसके स्कूल में स्वतंत्रता दिवस का समारोह था। स्कूल को अच्छी तरह से रंग बिरंगी झंडियों से सजाया जाएगा। प्रधानाचार्य हमारा प्यारा तिरंगा फेहराएँगें और फिर रंगा रंग एक कार्यक्रम भी होगा।
इसी उत्साह से जब वह घर पहुँचा तो उसके होश उड़ गए। पिताजी के सीने में बहुत ज़ोर से दर्द हो रहा था और सब डॉक्टर के आने का इंतज़ार कर रहे थे। कुछ देर में डॉक्टर साहब भी आ गए और उपचार शुरू कर दिया। दवा से दर्द कम हुआ तो पिताजी कुछ शाँत हो सो गए। डॉक्टर ने कहा कि समय पर दवा देते रहें और अगर दर्द फिर होता है तो पिताजी को फ़ौरन अस्पताल ले जाएँ।पूरी रात विक्की और उसकी और मम्मी पिताजी की देखभाल में लगे रहे। सुबह करीब 4 बजे पिताजी को दर्द फिर से शुरू हो गया तो मम्मी ने फोरना एम्बुलेंस को फ़ोन लगाया। कुछ देर में एम्बुलेंस आ गयी और पिताजी को ले अस्पताल पहुँच गए।वहाँ डॉक्टरों ने उनका इलाज़ शुरू किया और दोपहर होते होते उन्हें भला चंगा कर अस्पताल से छुट्टी दे दी। रोज़ दवा खाने और कुछ चीज़ों से परहेज करने की सलाह दी।सब जब घर पहुँचे तो शाम हो चुकी थी। पिताजी को बिस्तर पर लिटाने के बाद विक्की को ख़याल आया कि आज तो स्कूल में स्वतंत्रता दिवस का समारोह था। पिताजी की तबियत ख़राब होने की वजह से वो पूरी तरह से भूल ही गया था। मायूसी तो हुई पर पिताजी का अच्छा स्वास्थ ज्यादा जरूरी था।अगले दिन प्रधानाचार्य बहुत गुस्से में थे क्योंकि उस समारोह में बहुत से छात्र नहीं आए था। हालांकि उन्होंने एक दिन पहले ही सबको स्वतंत्रता दिवस का महत्व समझाया था और आदेश दिया था कि सब छात्रों को उस में सम्मिलत होना है। फिर क्या था, उन छात्रों की सूची बनाई गयी जो बिना इजाजत के नहीं आए थे। उन सबको क्लास में खड़ा किया गया और प्रधानाचार्य ने खूब डाँटा। बाकी सब बच्चे खामोश बैठे उन बच्चों को दंड प्राप्त करते देखते रहे।सब को दंड दे जब प्रधानाचार्य जाने को हुए तो विक्की खड़ा हो गया। अपनी जगह से उठ वो प्रधानाचार्य के सामने पहुँचा और बोला” सर, आप मेरा नाम लेना भूल गए। मैं भी कल अनुपस्थित था।”यह सुन प्रधानाचार्य अपना गुस्सा भूल मुस्कुराने लगे। विक्की के कंधे पर हाथ रख बोले” जिस छात्र में अपनी गलती मानने की हिम्मत है वो कभी दंड का हक़दार नहीं हो सकता।” ” मैं नहीं पुछूंगा कि किस कारण तुम कल अनुपस्थित थे, लेकिन वादा करो कि कभी सच का साथ नहीं छोड़ोगे।” और वो उसकी पीठ थपथपाते हुई कक्षा से बाहर चले गए।
कहानी बच्चों की हिंदी
सच्चा मित्र
जीवन और राकेश दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे और बहुत ही पक्के दोस्त थे। जहाँ भी जाते खूब मस्ती करते और मौज मनाते ।
एक दिन दोनों घूमते हुए जंगल की तरफ निकल गए। बातें करते हुए उन्हें ध्यान ही नहीं रहा कि रात हो गयी।
अब दोनों को डर लगने लगा कि कहीं कोई जंगली जानवर उन पर हमला ना कर दे।
जल्दी से जंगल से बाहर निकलने के लिए वो दौड़ने लगे। लेकिन दौड़ते हुए जीवन की चप्पल टूट गयी और उसके पैर में चोट लग गयी और खून बहने लगा। जिससे उसे चलने में दिक्कत आने लगी।
टूटी चप्पल और चोट के कारण जीवन बहुत धीरे ही चल पा रहा था क्योंकि अगर चप्पल हाथ में ले लेता तो जमीन पर पड़े पत्थर और कांटे उसके पैर को चुभ जाते और दर्द करते।
तभी दूर से किसी जानवर के चिंघाड़ने की आवाज आयी और उसे सुन राकेश तेजी से भाग गया लेकिन जीवन तो धीरे ही चल पा रहा था सो पीछे रह गया।
लेकिन जीवन ने हिम्मत नहीं हारी और धीरे धीरे ही चलते हुए जंगल से सुरक्षित बाहर आ गया। अगले दिन दोनों जब स्कूल में मिले तो राकेश बोला ” मैंने तो सबक सीख लिया कि अब कभी जंगल की तरफ नहीं जाऊंगा। ” तब जीवन ने जवाब में कहा ” हाँ ! मैंने भी एक सबक सीखा कि दोस्त वही जो समय पर काम आए।”
शिक्षा – तुम्हारा सच्चा मित्र वही जो बुरे समय तुम्हारा साथ दे।
छोटी बाल कहानी
जानवरो की छोटी कहानियाँ
भालू और दो दोस्त
दो दोस्त जंगल के रास्ते से जा रहे थे की अचानक उन्हें दूर से एक भालू अपने पास आता हुआ दिखा तो दोनों दोस्त डर गये पहला दोस्त जो की दुबला पतला था वह तुरंत पास के पेड़ पर चढ़ गया जबकि दूसरा दोस्त जो मोटा था वह पेड़ पर चढ़ नही सकता था तो उसने अपनी बुद्धि से काम लेते हुए वह तुरंत अपनी सांस को रोकते हुए जमीन पर लेट गया और फिर कुछ देर बाद भालू वहा से गुजरा तो उस मोटे दोस्त को सुंघा फिर कुछ समय बाद आगे चला गया इस प्रकार उस मोटे दोस्त की जान बच गयी तो इसके बाद उसका दोस्त उसके पास आकर पूछता है की वह भालू तुम्हारे कान में क्या कह रहा था तो उस दोस्त ने बोला की सच्चा दोस्त वही होता है जो मुसीबत के समय अपनी समय के काम आये
शिक्षा- ”सच्चा दोस्त वही होता है जो दोस्त अपने दोस्त का साथ मुसीबत के वक्त भी न छोड़े”
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