भारत के इतिहास में कई ऐसे कवी थे जिन्होंने हिंदी कविता का अस्तित्व ही बदल डाला| कई ऐस प्रसिद्ध कवी और लेखक थे जिन्होंने भारत के लोगो को उनकी कविताओं से हिंदी कविता का मूल समझाया| माखन लाल चतुर्वेदी उन्ही में से एक थे| वे भारत के एक बहुत ही मशहूर कवी, लेखक और गीतकार थे| इनकी लगभग सारी रचनाए आज के समय में भी लोकप्रिय हैं| वे प्रभा नामक एक प्रसिद्ध प्रतिष्ठत पत्रों के सम्पादक भी थे| आजाद भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में उनका प्रमुख योगदान हैं| आज के इस पोस्ट में हम आपको उनकी प्रसिद्ध कविता पुष्प की अभिलाषा का अर्थ, पुष्प की अभिलाषा विकिपीडिया, pushp ki abhilasha by makhanlal chaturvedi summary, पुष्प की अभिलाषा मीनिंग, पुष्प की अभिलाषा सारांश, आदि की जानकारी देंगे|
माखनलाल चतुर्वेदी-पुष्प की अभिलाषा
माखन लाल चतुर्वेदी का जन्म ४ अप्रैल १८८८ में भारत के मध्य प्रदेश शहर के होशंगाबाद जिले के बाबई गांव में हुआ था| उनके पिता जी का नाम नन्द लाल चतुर्वेदी था| उनके पिता जी गांव के प्राइमरी स्कूल के हिंदी के अध्यापक थे| माखन लाल चतुर्वेदी को हिंदी, संस्कृत, बंगला ,अंग्रेजी ,गुजरती आदि सभी भाषा का ज्ञान था| उनकी क्रांतिकारी कविताओं ने भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के मन में देशभक्ति के रंग उजागर किये थे| इसी के चलते उन्हें कई बार अंग्रेज़ो द्वारा जेल भी जाना पड़ा|
पुष्प की अभिलाषा कविता का सारांश
वैसे तो माखनलाल चतुर्वेदी जी ने कई ऐसी रचना करि जो आज के समय में भी बहुत प्रसिद्ध हैं और जिन्हे आज के कवी भी अपनी कविताओं में इस्तेमाल करते हैं लेकिन एक ऐसी कविता हैं जिसने पुरे भारत वर्ष के लोगो ने सरहाया| पुष्प की अभिलाषा कविता उनकी अबतक की सबसे प्रसिद्ध रचना थी|इस कविता की रचना कारण इ के पीछे उनका एक मूल कारण था| जब हमारे भारत देश के स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेज़ो से भारत की आजादी के लिए लड़ाई कर रहे थे तब उनको और भारत की जनता को लड़ाई में सहयोग देने के प्रोत्साहन के लिए इस कविता की रचना की थी|
चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!
पुष्प की अभिलाषा कविता का अर्थ
इस कविता द्वारा माकन लाल जी ने यह बताने की कोशिश की हैं कि जब कभी माली अपने बगीचे से फूल तोड़ने जाता है तो जब माली फूल से पूछता है कि तुम कहाँ जाना चाहते हो? माला बनना चाहते हो या भगवान के चरणों में चढ़ाया जाना चाहते हो तो इस पर फूल कहता है –
मेरी इच्छा ये नहीं कि मैं किसी सूंदर स्त्री के बालों का गजरा बनूँ
मुझे चाह नहीं कि मैं दो प्रेमियों के लिए माला बनूँ
मुझे ये भी चाह नहीं कि किसी राजा के शव पे मुझे चढ़ाया जाये
मुझे चाह नहीं कि मुझे भगवान पर चढ़ाया जाये और मैं अपने आपको भागयशाली मानूं
हे वनमाली तुम मुझे तोड़कर उस राह में फेंक देना जहाँ शूरवीर मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना शीश चढाने जा रहे हों। मैं उन शूरवीरों के पैरों तले आकर खुद पर गर्व महसूस करूँगा।