दीवाने-ए-ग़ालिब | Diwan-e-Ghalib

दीवाने-ए-ग़ालिब

Diwan-e-Ghalib: दीवान-ए-गालिब, उर्दू व फ़ारसी कवि मिर्ज़ा असदुल्ला खान ग़ालिब साहब की एक मशहूर पुस्तक है। यह गालिब मिर्ज़ा के गजलों का एक संग्रह है। इस पुस्तक में उन्होंने अपनी सारी गजलों को शामिल नहीं किया है परन्तु कई अन्य प्रतियां दीवान ई ग़लिब में अपने सभी कीमती कार्यों को जगह दी गयी है। गालिब द्वारा लिखी गई यह एकमात्र किताब है जिसमे उनकी बहुत सी प्रतियां मौजूद हैं जैसे नोखा ई निजामी, नुसखा ई अरशी, नुसखा ए हैमिडीया (भोपाल), नौका और गुलाम रासूल मेहर। आज हम दीवाने-ए-ग़ालिब से कुछ मशहूर New, Best, Latest, Two Line, Hindi, Urdu, Shayari, Sher, Ashaar, Collection, Shyari, नई, नवीनतम, लेटेस्ट, हिंदी, उर्दू, शायरी, शेर, अशआर, संग्रह के कुछ अंश पेश कर रहे हैं|

मिर्जा गालिब की शायरी

इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया

गैर ले महफ़िल में बोसे जाम के हम रहें यूँ तश्ना-ऐ-लब पैगाम के खत लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के इश्क़ ने “ग़ालिब” निकम्मा कर दिया वरना हम भी आदमी थे काम के Share on X

बाद मरने के मेरे

चंद तस्वीर-ऐ-बुताँ , चंद हसीनों के खतूत . बाद मरने के मेरे घर से यह सामान निकला Share on X

दीवाने ए ग़ालिब ghazals of ghalib

दिया है दिल अगर

दिया है दिल अगर उस को , बशर है क्या कहिये हुआ रक़ीब तो वो , नामाबर है , क्या कहिये यह ज़िद की आज न आये और आये बिन न रहे काजा से शिकवा हमें किस क़दर है , क्या कहिये ज़ाहे -करिश्मा के यूँ दे रखा है हमको फरेब की बिन कहे ही उन्हें सब खबर है , क्या कहिये Share on X
लव सोनेट्स ऑफ़ ग़ालिब
समझ के करते हैं बाजार में वो पुर्सिश -ऐ -हाल की यह कहे की सर -ऐ -रहगुज़र है , क्या कहिये तुम्हें नहीं है सर-ऐ-रिश्ता-ऐ-वफ़ा का ख्याल हमारे हाथ में कुछ है , मगर है क्या कहिये कहा है किस ने की “ग़ालिब ” बुरा नहीं लेकिन सिवाय इसके की आशुफ़्तासार है क्या कहिये Share on X

दीवाने ए ग़ालिब love sonnets of ghalib

नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का काग़ज़ी है पैरहन हर पैकर-ए-तस्वीर का काव काव-ए-सख़्त-जानी हाए-तन्हाई न पूछ सुब्ह करना शाम का लाना है जू-ए-शीर का जज़्बा-ए-बे-इख़्तियार-ए-शौक़ देखा चाहिए सीना-ए-शमशीर से बाहर है दम शमशीर का आगही दाम-ए-शुनीदन जिस… Share on X

मिर्ज़ा ग़ालिब selected poetry of ghalib

बेखुदी बेसबब नहीं ‘ग़ालिब फिर उसी बेवफा पे मरते हैं फिर वही ज़िन्दगी हमारी है बेखुदी बेसबब नहीं ‘ग़ालिब’ कुछ तो है जिस की पर्दादारी है Share on X
जन्नत की हकीकत
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन दिल के खुश रखने को “ग़ालिब” यह ख्याल अच्छा है Share on X
जवाब
क़ासिद के आते -आते खत एक और लिख रखूँ मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में Share on X
diwan e ghalib in urdu pdf

गालिब की शेरो शायरी

Ghalib Urdu Shayari

इश्क़ में
बे-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब जिसे खुद से बढ़ कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है Share on X
सारी उम्र
तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक़ उस ने ग़ालिब के सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे Share on X
साँस भी बेवफा
मैं नादान था जो वफ़ा को तलाश करता रहा ग़ालिब यह न सोचा के एक दिन अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी Share on X
बज़्म-ऐ-ग़ैर
मेह वो क्यों बहुत पीते बज़्म-ऐ-ग़ैर में या रब आज ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहान अपना मँज़र इक बुलंदी पर और हम बना सकते “ग़ालिब” अर्श से इधर होता काश के माकन अपना Share on X
दिल-ऐ -ग़म गुस्ताख़
फिर तेरे कूचे को जाता है ख्याल दिल -ऐ -ग़म गुस्ताख़ मगर याद आया कोई वीरानी सी वीरानी है . दश्त को देख के घर याद आया Share on X
कोई दिन और
मैं उन्हें छेड़ूँ और कुछ न कहें चल निकलते जो में पिए होते क़हर हो या भला हो , जो कुछ हो काश के तुम मेरे लिए होते मेरी किस्मत में ग़म गर इतना था दिल भी या रब कई दिए होते आ ही जाता वो राह पर ‘ग़ालिब ’ कोई दिन और भी जिए होते Share on X

लव सोनेट्स ऑफ़ ग़ालिब

तेरी दुआओं में असर
तेरी दुआओं में असर हो तो मस्जिद को हिला के दिखा नहीं तो दो घूँट पी और मस्जिद को हिलता देख Share on X
खुदा के वास्ते
खुदा के वास्ते पर्दा न रुख्सार से उठा ज़ालिम कहीं ऐसा न हो जहाँ भी वही काफिर सनम निकले Share on X
वो निकले तो दिल निकले
ज़रा कर जोर सीने पर की तीर -ऐ-पुरसितम् निकले जो वो निकले तो दिल निकले , जो दिल निकले तो दम निकले Share on X
कागज़ का लिबास
सबने पहना था बड़े शौक से कागज़ का लिबास जिस कदर लोग थे बारिश में नहाने वाले अदल के तुम न हमे आस दिलाओ क़त्ल हो जाते हैं , ज़ंज़ीर हिलाने वाले Share on X
शब-ओ-रोज़ तमाशा
बाजीचा-ऐ-अतफाल है दुनिया मेरे आगे होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे Share on X

दीवान ए ग़ालिब इन हिंदी

Urdu Ghalib Poetry

तमाशा
थी खबर गर्म के ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्ज़े , देखने हम भी गए थे पर तमाशा न हुआ Share on X
लफ़्ज़ों की तरतीब
लफ़्ज़ों की तरतीब मुझे बांधनी नहीं आती “ग़ालिब” हम तुम को याद करते हैं सीधी सी बात है Share on X
जिस काफिर पे दम निकले
मोहब्बत मैं नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का उसी को देख कर जीते है जिस काफिर पे दम निकले Share on X

ग़ज़ल्स ऑफ़ ग़ालिब

ग़ालिब
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई दोनों को एक अदा में रजामंद कर गई मारा ज़माने ने ‘ग़ालिब’ तुम को वो वलवले कहाँ , वो जवानी किधर गई Share on X
मेरी वेहशत
इश्क़ मुझको नहीं वेहशत ही सही मेरी वेहशत तेरी शोहरत ही सही कटा कीजिए न तालुक हम से कुछ नहीं है तो अदावत ही सही Share on X
रक़ीब
कितने शिरीन हैं तेरे लब के रक़ीब गालियां खा के बेमज़ा न हुआ कुछ तो पढ़िए की लोग कहते हैं आज ‘ग़ालिब ‘ गजलसारा न हुआ Share on X
तनहा
लाज़िम था के देखे मेरा रास्ता कोई दिन और तनहा गए क्यों , अब रहो तनहा कोई दिन और Share on X
नज़ाकत
इस नज़ाकत का बुरा हो , वो भले हैं तो क्या हाथ आएँ तो उन्हें हाथ लगाए न बने कह सके कौन के यह जलवागरी किस की है पर्दा छोड़ा है वो उस ने के उठाये न बने Share on X
काफिर
दिल दिया जान के क्यों उसको वफादार , असद ग़लती की के जो काफिर को मुस्लमान समझा Share on X
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