दहेज प्रथा पर एक कविता – dahej pratha par kavita – Poem on Dowry In Hindi

dahej pratha par kavita

भारत में पुराने समय में बहुत सी कुरीतिप प्रथा चली आ रही थी जिसके चलते भारत की महिला वर्ग पर बहुत अत्याचार होता था| बहुत सी प्रथा गैरकानूनी तोर पर बंद हो गई है पर एक ऐसी प्रथा है जो आज के समय में भी चली आ रही है| शादी में लड़कीवालों का लड़के वालो को भारी दहेज देना बहुत ही गलत बात है| आज के समय में स्त्री वर्ग पुरुषो से कन्धा मिलाते हुए हर छेत्र में चलती जा रही है| ऐसे में शादी के समय दहेज देना बहुत ही बड़ा अपराध है| आज के इस पोस्ट में हम आपको दहेज प्रथा पर कविता, dahej pratha kavita, दहेज प्रथा पर कविता, dahej pratha kavita in hindi, dowry par hindi poem, हिंदी कविता ऑन दहेज प्रथा, आदि की जानकारी देंगे|

Dahej Pratha Kavita

जबसे पैदा होती है बेटी, तो एक ही बात होती है जमाने में;
एक बाप लग जाता है तब से दिन रात कमाने में।
कि जैसे भी हो पर दहेज तो कैसे न कैसे जुटाना है;
और अपनी प्यारी बिटिया को उस दहेज से विदा कराना है।

तब बड़ा मुश्किल हो जाता है खुद को संभालना;
और दहेज के असहनीय दर्द से खुद को निकालना।
जब लड़के का बाप कहता है लड़की के बाप से;
कि कुछ शादी के बारे में बातें हो जायें आप से ।
तो लड़की के बाप का दिल बैठ जाता है;
और अचानक से गला सूख जाता है।
धड़कने तब एकाएक तेज चलने लगती है;
और दिल में केवल एक ही बात उठती है।
कि लड़के का बाप अब दहेज की बात करेगा;
न जाने कितनी रकम की माँग करेगा।
न जाने मैं इतनी रकम जुटा पाऊंगा या नहीं;
न जाने कितना कुछ गिरवी रखना पड़ेगा कहीं।
और न जाने कितने ही दिल बैचेन करने वाले;
सवाल घनघोर मन में तब लगते हैं मंडराने।
वो वक्त न जाने कितना कहर ढहाता है;
बस जान न निकले बाकी सब हो जाता है।
एक डरावने सपने से डरावना होता है वो पल;
एक लड़की का बाप सोचे कैसे जाए ये टल।
आँखें चौंधिया देने वाला उजाला भी अंधेरा सा जान पड़ता है;
और बेटी की शादी का सपना किसी डरावने सपने सा लगता है।

दहेज प्रथा पर कविता

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दहेज प्रथा पर एक कविता

अभी तक तो खुशी के पलों में ढूबा था, कि अब वो आराम पाएगा;
और अब तक तो सब ठीक था, लगता था कि रिश्ता हो जाएगा।
तब उसका चेहरा खुशी से झलक उठा था;
बरसों का दुखदायी BP भी normal हो चला था।
मन ने तब जाकर आराम की साँस ली थी;
और गले की सारी खरास मिटी थी।
दूर कही सूरज की किरण दिख रही थी;
और मन में खुशियों की बगिया खिल उठी थी।
कि चलो अब बिटिया की शादी हो जाएगी;
और बार बार दिल टूटने के चक्र से आजादी पाएगी।

पर न जाने ये दहेज की बात कैसे आ गई ;
और स्वर्ग से नरक की बात कैसे छा गई ।
बिटिया को लड़का पसंद आ गया था;
उसके साथ उसका मन सा लग गया था।
अब मैं उससे नजरें कैसे मिलाऊँगा;
और उससे ये कैसे कह पाऊँगा।
कि माफ करना मुझे मेरी बिटिया;
तुझ अनमोल का मैंने मोल न दिया।
मैं तेरा सौदा तय न कर पाया;
और तेरे लिए मैं उतनी रकम न दे पाया।
बेचारी बिटिया ये दर्द कैसे सह सकेगी;
और कितनी बार वो ये जख्म सहती रहेगी।
प्यारी बिटिया है मेरी, कोई वस्तु नहीं है;
मोल लगे उसका ऐसी दुनिया में कोई चीज नहीं है।
और ये दौलत के भूखे, मेरी बिटिया का मोल लगाते हैं;
और दिखावटी शान दिखाने वाले, मेरी बेटी कह के वस्तु सा खरीदते हैं।
ये रिश्तेदारी नहीं बल्कि झूठा मुखौटा पहनी सौदेबाजी लगती है;
और सौदे के बाजार में बेटियाँ यूँ ही दहेज में बिकती है।

और इस तरह निराश एक बाप फिर घर लौटता है;
बिटिया की शादी का सवाल वक्त में खोजता है।
कि कब मेरी प्यारी बिटिया का ब्याह होगा;
और कितने दहेज से दहेज पीड़ा का दाह होगा।

Dahej Pratha Kavita In Hindi

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एक नन्ही सी कली, धरती पर खिली
लोग कहने लगे पराई है पराई
जब तक कली ये डाली से लिपटी रही
आँचल मे मुँह छिपा कर, दूध पीती रही
फूल बनी धागे मे पिरोई गई
किसी के गले में हार बनते ही
टूट कर बिखर गई
ताने सुनाये गये दहेज में क्या लाई है
पैरों से रौन्दी गई
सोफा मार कर घर से निकाली गई
कानून और समाज से माँगती रही न्याय
अनसुनी कर उसकी बातें
धज्जियाँ उड़ाई गई
अंत में कर ली उसने आत्महत्या
दुनिया से मुँह मोड़ लिया
वह थी
एक गरीब माँ बाप की बेटी.

दहेज प्रथा पर गीत

एक अखबार में निविदा विज्ञापन
दहेज के दानव के विनाश हेतु
चाहिए एक बाण
ऐसी निविदा पढ़ने के बाद
दिल को हुआ आराम।

वर्तमान परिदृश्य में
बहुएं जली/जलाई जा रही
ऐसे हादसों के कारण गावों के
कुएं की चरखियां, घट्टीयों की आवाजें
खत्म होती जा रही।

बाजारों में फ्रेमों के और कब्र के पत्थरों के
दाम यकायक बढ़ते जा रहे
सुने घर और आंचल में कैसे छुपे बच्चे
छुपा-छाई का खेल वो खोते जा रहे
रिश्तों में कड़वाहट/लालची युग का
विष घुलता जा रहा।

लगने लगा जैसे दहेज के लालची
दानवों का दायरा बढ़ता जा रहा
बढ़ते हुए दायरों को न रोक पाने का
कारण यह भी हो सकता है
कलयुग में बाण चलाना आता नहीं
या लोग डरपोक बन भागते जा रहे।

निविदा की तिथियां बढ़ती जा रही
अब संशोधनों के साथ
दहेज के दानवों के विनाश हेतु
चाहिए अब तरकशों से भरे बाण
इंतजार है, कोई तो आएगा खरीदने
तभी खत्म हो सकेगी
दहेज के दानवों की विनाशलीला
और बेटियां होंगी हर घरों में
सुरक्षित ।

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